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मोदी जी क्या इन लोगों के संभावित दिक़्क़तों के बारे में नहीं सोंचे थे ?
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मोदी जो की ऐसी तारीफ नहीं सुने होंगे आज तक .....
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कोरोना लॉकडाउन: क्यों ज़रूरी है शराब की बिक्री?
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दिलनवाज़ पाशा बीबीसी संवाददाता इस पोस्ट को शेयर करें Facebook इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp इस पोस्ट को शेयर करें Messenger इस पोस्ट को शेयर करें Twitter साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES Image caption कोरोना लॉकडाउन के दौरान खुली शराब की दुकानें भारत में आज लॉकडाउन 3.0 के पहले दिन शराब की दुकानें खुलीं तो देशभर में ख़रीददारों की लाइन लग गई. शराब की बिक्री तो शुरू कर दी गई है लेकिन बाक़ी कारोबार बंद हैं. ऐसे में सवाल उठा है कि शराब की बिक्री सरकारों के लिए इतनी ज़रूरी क्यों हैं. विज्ञापन इमेज कॉपीराइट BBC News Hindi BBC NEWS HINDI दरअसल, शराब और पेट्रोल ये दो ऐसे उत्पाद हैं जिन पर राज्य सरकारें अपनी ज़रूरत के हिसाब से टैक्स लगाकर सबसे ज़्यादा राजस्व वसूलती हैं. माना जा रहा है कि राज्य सरकारों को हो रहे राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए ही लॉकडाउन के बावजूद शराब की दुकानें खोली गई हैं. null और ये भी पढ़ें 41 दिन बाद खुली शराब की दुकानें, ख़रीदने के लिए उमड़ी भीड़ सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर छत्तीसगढ़ में शरा
साफ़ दिख रही है लॉकडाउन से बढ़ी ग़रीबी हालांकि लॉकडाउन की वजह से कितनी ग़रीबी बढ़ी है इसका अभी कोई आंकड़ा नहीं आया है लेकिन बढ़ती आर्थिक दुर्दशा साफ़ दिख रही है. गांव हो या शहर, बढ़ती ग़रीबी से बेहाल दिखने लगे हैं. सीएसडीएस की ओर से कराए गए पिछले डेढ़ दशकों के ( 2005-2019) अध्ययनों के मुताबिक, मुश्किल से दस फ़ीसदी लोगों ने माना कि मौजूदा कमाई से उनकी ज़रूरतें पूरी हो पा रही हैं और वे कुछ बचत भी कर रहे हैं. 18 से 25 फ़ीसदी लोगों ने माना कि उनकी कमाई से उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी हो रही हैं. दिक्कतें नहीं झेलनी पड़ रही है लेकिन बचत के नाम पर एक पैसा भी जमा नहीं हो पा रहा है. बड़ी तादाद में यानी लगभग 65 फीसदी लोगों ने माना कि उनकी कमाई से उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी नहीं हो रही हैं. उन्हें हर तरह की आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. कुछ को कम तो कुछ को ज्यादा.
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जितनी दिखती है, उससे कहीं गहरी है लॉकडाउन की मार: नज़रिया इस पोस्ट को शेयर करें Facebook इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp इस पोस्ट को शेयर करें Messenger साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES भारत के गांवों और शहरों में कामगारों की बहुत बड़ी आबादी है. ये मजदूर ज्यादातर दिहाड़ी पर काम करते हैं. कुछ जगहों पर हर सप्ताह मज़दूरी मिलती है. जो दिहाड़ी मिलती है वह अमूमन काफी कम होती है. इससे मज़दूरों का गुज़ारा बड़ी मुश्किल से हो पाता है. खाना, रहना और कपड़े का ख़र्च ही पूरा नहीं हो पाता, बचत की बात तो दूर की कौड़ी है.भारत में ज्यादातर मासिक वेतन वाले लोगों के भी लिए बचत करना आसान नहीं है. लॉकडाउन को लगभग छह सप्ताह हो गए हैं और इस बीच दिहाड़ी मज़दूरों के हालात पर काफी चिंता जताई जा रही है. यह स्वाभाविक ही है क्योंकि लॉकडाउन की वजह से उन्हें काम नहीं मिल रहा है. उनकी कमाई ख़त्म हो गई है. विज्ञापन इसमें शायद ही कोई शक हो कि इन दिहाड़ी मज़दूरों की बड़ी तादाद दयनीय हालत में पहुंच गई है. आप सोच सकते हैं कि लॉकडाउन के इन दिनों में जब हर महीने वेतन प