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तालिबान की वापसी क्या चीन-पाकिस्तान के लिए खुशख़बरी है?
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चीन और पाकिस्तान दोनों ही उन चुनिंदा देशों में भी शामिल हैं, जिनके दूतावास अफ़गानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद भी सक्रिय हैं. एक तरफ़ जहाँ अफ़गानिस्तान से हैरान-परेशान लोगों की चिंताजनक तस्वीरें सामने आ रही है. वहीं, दूसरी तरफ़ चीन और पाकिस्तान का तालिबान के लिए नरम रवैया भी चर्चा का विषय है. कई विशेषज्ञ चीन-पाकिस्तान और तालिबान के बीच इस 'रोमांस' पर बिल्कुल हैरान नहीं हैं. वो इसे तालिबान की एक बड़ी 'कूटनीतिक जीत' के रूप में देख रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि चीन और तालिबान को कहीं न कहीं एक दूसरे की ज़रूरत है. वहीं, पाकिस्तान पर तालिबान को समर्थन देने के आरोप पहले से लगते रहे हैं. तो क्या ऐसा माना जाए कि अफ़गानिस्तान में तालिबान का क़ब्ज़ा चीन और पाकिस्तान के लिए अच्छी ख़बर है? क्या तालिबान से चीन और पाकिस्तान को कोई ख़तरा भी है? स्टोरीः सिंधुवासिनी आवाजः विशाल शुक्ला वीडियो एडिटः देबलिन रॉय ( बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक , ट्विटर , इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
अमेरिका-तालिबान समझौते ने तय कर दिया था अफ़ग़ानिस्तान का भविष्य?
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19 अगस्त 2021 इमेज स्रोत, GETTY IMAGES इमेज कैप्शन, तालिबान ने जब काबुल पर नियंत्रण करना शुरू किया, तब वहां के एयरपोर्ट पर अराज़कता फैल गई न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन पर 2001 में 9/11 के हमलों के बाद नेटो ने तालिबान को काबुल से बाहर कर दिया था. लेकिन इसके क़रीब दो दशक बाद, तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में फिर से कब्ज़ा हो गया है. लगभग पूरे देश को अपने नियंत्रण में ले लेने के साथ इसके लड़ाकों ने राष्ट्रपति भवन में खुशी-खुशी सेल्फ़ी ली. ये सबसे आश्चर्य की बात है कि यह उलटफेर अमेरिका और उसके नेटो सहयोगियों की हार की वजह से नहीं हुआ, बल्कि यह सावधानीपूर्वक बातचीत के बाद हुए समझौते का परिणाम है. लेकिन सवाल उठता है कि एक राष्ट्रपति के शासनकाल में दस्तख़त हुए और उनके उत्तराधिकारी के आदेश पर लागू की गई इस डील के साथ क्या हुआ, जिससे इतनी भयावह ग़लती होती दिख रही है? अफ़ग़ानिस्तान पर राष्ट्रपति बाइडन के बयान का फ़ैक्ट चेक तालिबान के ख़िलाफ़ जंग में अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों को कितना नुक़सान हुआ? इमेज स्रोत, PA MEDIA इमेज कैप्शन, नेटो सैनिक शुरू में तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान के प्रमुख श
मुझे तालिबान की क़ैद ने ही क्यों बना दिया मुसलमान ?
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तालिबान के साथ भारत का रुख़ कैसा रहेगा?
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अफ़ग़ानिस्तान की अशरफ़ ग़नी सरकार और अमेरिका का साथी भारत भी आज ख़ुद को अजीब स्थिति में पा रहा है. जहाँ एक ओर चीन और पाकिस्तान, तालिबान से अपनी दोस्ती के चलते काबुल के नए घटनाक्रम को लेकर थोड़े आश्वस्त दिख रहे हैं, वहीं भारत फ़िलहाल अपने लोगों को आनन-फ़ानन में काबुल से निकालने में लगा हुआ है. तालिबान को आधिकारिक तौर पर भारत ने कभी मान्यता नहीं दी, लेकिन इस साल जून में दोनों के बीच 'बैकचैनल बातचीत' की ख़बरें भारतीय मीडिया में छाई रहीं. भारत सरकार ने "अलग-अलग स्टेकहोल्डरों" से बात करने वाला एक बयान ज़रूर दिया, ताकि मामले को तूल देने से रोका जा सके. स्टोरी: सरोज सिंह आवाज़: नवीन नेगी वीडियो एडिटिंग: दीपक जसरोटिया ( बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक , ट्विटर , इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
तालिबान की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस: 'इस्लामी क़ानून के तहत महिलाओं को काम करने का अधिकार'
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9 मिनट पहले इमेज स्रोत, REUTERS अफ़ग़ानिस्तान पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने के बाद तालिबान का पहला संवाददाता सम्मेलन मंगलवार को काबुल में आयोजित हुआ. कैमरों के सामने पहली बार आए तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुज़ाहिद ने कहा, "20 साल के संघर्ष के बाद हमने देश को आज़ाद कर लिया है और विदेशियों को देश से बाहर निकाल दिया है." उन्होंने इसे पूरे देश के लिए गौरव का पल बताया है. शरिया के अनुसार होंगे महिलाओं के हक़ जबीहुल्लाह मुज़ाहिद कहते हैं, "हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आश्वस्त करना चाहते हैं कि किसी को नुक़सान नहीं होने देंगे." अफ़ग़ानिस्तान की बिसात पर कहां खड़े हैं अमेरिका, चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें और ये भी पढ़ें तालिबान ने बताया उनके शासन में कैसी होगी अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं की ज़िंदगी अफ़ग़ानिस्तान में तुर्की क्या हासिल करना चाहता है और तालिबान से कैसे निपटेगा तालिबान ने कहा, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएं शरीयत के हिसाब से काम कर सकती हैं तालिबान के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में क़ैदियों को जेलों से रिहा क्यों किया जा रहा है समाप्त अफ़ग़