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किसान आन्दोलन || दिल्ली हिंसा की साजिश किसने रची ?

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हिंसा के बाद लाल क़िले पर भारी सुरक्षा इंतज़ाम

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  Reuters Copyright: Reuters दिल्ली में मंगलवार को किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान आंदोलनकारी भीड़ में से कुछ लोग लाल किले की प्राचीर पर चढ़ गए थे. जिसके बाद से ही वहां सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है. इस बीच दिल्ली मेट्रो ने लाल क़िला मेट्रो स्टेशन और जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन को आज बंद रखने का घोषणा की है. न्यूज़ एजेंसी पीटीआई की ख़बर के मुताबिक़, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने एक आदेश जारी किया है, जिसके मुताबिक़ लाल क़िला 27 जनवरी से लेकर 31 जनवरी तक बंद रहेगा. हालांकि लाल क़िले को बंद क्यों किया गया है, उस कारण का उल्लेख नहीं किया गया है. लेकिन इससे पहले 6 जनवरी और 18 जनवरी को आदेश जारी करके लाल क़िले को 19 से 22 जनवरी तक बंद रखने का आदेश दिया गया था. यह आदेश बर्ड फ़्लू को लेकर जारी किया गया था. पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि 26 जनवरी को लाल क़िला परिसर में हुई हिंसा के बाद, एएसआई ने नुकसान का जायज़ा लेने के लिए फाटकों को बंद रखने का निर्णय लिया है. Social embed from twitter

लाल क़िले पर जब प्रदर्शनकारियों की भीड़ चढ़ गई, तब अंदर कौन फंसा था?

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  गुरप्रीत सैनी बीबीसी हिंदी 27 जनवरी 2021 इमेज स्रोत, SAJJAD HUSSAIN/AFP VIA GETTY IMAGES गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकाल रहे प्रदर्शनकारियों की भीड़ जब लाल क़िले पर चढ़ गई, उस वक़्त लाल क़िले के अंदर स्कूली छात्रों समेत कई लोग मौजूद थे. इस बारे में जानकारी देते हुए दिल्ली पुलिस के डीसीपी (नॉर्थ) एंटो अल्फोंस ने बताया कि 'लाल क़िले के अंदर उस वक़्त क़रीब 300 लोग थे, जिनमें बच्चे भी थे.' ये वो कलाकार थे जिन्होंने गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लिया था. आमतौर पर गणतंत्र दिवस परेड की झांकियां लाल क़िले तक आती हैं, फिर उन्हें अंदर ले जाया जाता है. विज्ञापन लेकिन पुलिस के मुताबिक़, क्योंकि किसानों ने अपनी ट्रैक्टर परेड वक़्त से पहले ही शुरू कर दी थी और वो फिर लाल क़िले की तरफ़ आ गए. 'जब तक झांकियां लाल क़िले में जा पातीं उससे पहले ही काफ़ी प्रदर्शनकारी लाल क़िले के अंदर घुस चुके थे और धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती जा रही थी.' छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें और ये भी पढ़ें किसान ट्रैक्टर परेड हिंसा: एक देश, दो परेड, किसान और जवान के बीच ठिठका गणतंत्र दिल्ली पुलिस की चेतावनी के ब

किसान ट्रैक्टर परेड हिंसा: एक देश, दो परेड, किसान और जवान के बीच ठिठका गणतंत्र

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  विकास त्रिवेदी बीबीसी संवाददाता, दिल्ली इमेज स्रोत, VIKSA TRIVEDI/BBC 26 जनवरी. दोपहर क़रीब एक बजे. एक तेज़ भागता लड़का आईटीओ चौराहे की ओर आकर चिल्लाता है- ''ओए चलो ओए, अपने बंदे नू मार दिया.'' हाथों में रॉड और डंडे लिए ट्रैक्टरों से उतरे प्रदर्शनकारी नई दिल्ली स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क की ओर बढ़ते हैं. क़रीब 200 मीटर की दूरी पर आंध्र एजुकेशन सोसाइटी के बाहर नीले रंग का एक ट्रैक्टर पलटा पड़ा है. पास में ही एक शव तिरंगे से ढँका रखा है, गणतंत्र दिवस का तिरंगा इस तरह काम आएगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा. पास पहुंची शुरुआती भीड़ चेहरे से तिरंगा हटाती है. प्रदर्शनकारी शव की जेब में पहचान के लिए क़ागज खोजते हैं. मोबाइल मिलता है. शव के अंगूठे को लगाकर फ़ोन का लॉक खोलने की कोशिश होती है. लॉक नहीं खुलता है. विज्ञापन कोई कहता है- फे़स लॉक लगा रखा है. फ़ोन को शव के चेहरे के पास लाया जाता है. फे़स लॉक तब भी नहीं खुलता है. चेहरे पर बहे खून का थक्का अब भी गीला है. छोड़कर और ये भी पढ़ें आगे बढ़ें और ये भी पढ़ें किसान ट्रैक्टर परेड का आंखों देखा हाल, जानिए क्या हुआ? किसानों की ट