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देश में तथाकथित आतंकवाद के असलियत का परदाफाश || 127 लोगों की कैरियर बर्बादी के बाद आज़ाद ||पढ़िए बीबीसी की खास रिपोर्ट ।। और समझिए असलियत

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  गुजरात: प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन से जुड़े 20 साल पुराने मामले में 127 लोग बरी 18 मिनट पहले इमेज स्रोत, नरेश सोलंकी भारत में प्रतिबंधित इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) से कथित संबंध रखने के 20 साल पुराने एक मामले में सूरत की अदालत ने 127 मुसलमान कार्यकर्ताओं को बरी कर दिया है. 2001 में इस मामले में सूरत में 127 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में पुलिस ने इन्हें गिरफ़्तार किया था. 20 साल पुराने मामले इस मामले के सभी 127 अभियुक्तों को सूरत की एक अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी करने का फ़ैसला सुनाया है. हालांकि इस मामले में सभी अभियुक्त ज़मानत पर रिहा थे. इनमें से पांच लोगों की मौत भी हो गई थी. मामले की अंतिम सुनवाई में सरकारी वकील नयनभाई सुखादवाला और बचाव पक्ष के वकील अब्दुल वहाब शेख शामिल हुए थे. विज्ञापन पुलिस की शिकायत के मुताबिक़ ये सभी इस्लामिक कार्यकर्ता सूरत में 2001 में अल्पसंख्यक शिक्षा के मुद्दे पर दो दिनों तक चलने वाले सेमिनार में भाग लेने आए थे. इन लोगों को प्रतिबंधिति संगठन इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (

#Viral_Video || आपबीती || इस्लाम धर्म अपनाने वाली महिला की कहानी ||

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#Islam ! इस वायरल खबर के मुताबिक पूरे गांव के लोगों ने अपना लिया इस्लाम धर्म ?

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16 साल की उम्र में हिन्दू धर्म को अलविदा , फिर सऊदी की नागरिकता , मजेदार कहानी

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https://www.theworldnewshindi.com से साभार

आतंकवाद के नाम पर होने वाला गन्दा खेल कब खत्म होगा ?

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पढ़ना न भूलें ये दर्दनाक दास्ताँ ! लगभग रोते हुए अरशद कहते हैं कि हम कोर्ट के फ़ैसले से ख़ुश हैं लेकिन जब ज़िंदगी के क़ीमती साल गुज़र रहे थे तब कोर्ट चुप क्यों थी. कौन उन 23 सालों को वापस लेकर आएगा और अब अली क्या करेगा.

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कश्मीर: जेल में बीती जवानी फिर सुबूत के अभाव में रिहा रियाज़ मसरूर बीबीसी संवाददाता, श्रीनगर 25 जुलाई 2019 इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES जवानी, ज़िंदगी का वो पड़ाव जब शरीर में कुछ करने का जज़्बा तो होता ही है उसे पूरा करने की ताक़त और ऊर्जा भी होती है. लेकिन अगर किसी की जवानी जेल की दीवरों के भीतर क़ैदी बनकर गुज़र जाए, फिर दो दशक बीतने के बाद एक दिन उन्हें रिहा कर दिया जाए और बताया जाए कि पर्याप्त सुबूत नहीं मिले, इसलिए उन्हें रिहा किया जाता है. ऐसा ही हुआ 49 साल के मोहम्मद अली भट्ट, 40 साल के लतीफ़ वाज़ा और 44 साल के मिर्ज़ा निसार के साथ. अपनी पूरी जवानी जेल में बिताने के बाद मोहम्मद अली भट्ट, लतीफ़ वाज़ा और मिर्ज़ा निसार को सुबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया. इन सभी को दिल्ली के लाजपत नगर और सरोजिनी नगर में साल 1996 में हुए बम धमाकों में शामिल होने के शक में पुलिस ने हिरासत में लिया था. लेकिन उनके ख़िलाफ़ सुबूत नहीं थे और इसलिए उन्हें रिहा

समलेटी धमाका: 23 साल की क़ैद के बाद बरी हुए अभियुक्त

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24 जुलाई 2019 साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES राजस्थान हाई कोर्ट ने 1996 के समलेटी धमाका मामले में पांच अभियुक्तों को बरी कर दिया है. द इंडियन एक्सप्रेस की  रिपोर्ट  के मुताबिक लतीफ़ अहमद बाजा(42), अली भट्ट (48), मिर्ज़ा निसार (39), अब्दुल गनी (57 और रईस बेग(56) मंगलवार को जेल से बाहर आए. बेग 8 जून 1997 से जेल में थे जबकि अन्य को जून 1996 और जुलाई 1996 के बीच गिरफ़्तार किया गया था. इस दौरान ये पांचों अभियुक्त दिल्ली और अहमदाबाद की जेलों में बंद रहे लेकिन कभी भी ज़मानत या परोल पर बाहर नहीं आए. पाँचों को बरी करते हुए अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके ख़िलाफ़ षडयंत्र में शामिल होने के सबूत नहीं पेश कर सका है. रिहाई के बाद इन अभियुक्तों का कहना है कि गिरफ़्तारी से पहले वो एक दूसरे को नहीं जानते थे. ये लोग अब पूछ रहे हैं कि हम बरी तो हो गए हैं लेकिन जो समय हमें जेल में गुज़ारना पड़ा उसे कौन वापस लाएगा. https://www.bbc.com/hindi/india-49091979#share-tools बीबीसी हिंदी से साभार