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मुग़लों को भारत किस हिन्दू राजा ने बुलाया था ?

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ममता बनर्जी देश की राजनीति में जगह बनाने के लिए क्या पश्चिम बंगाल का सीएम पद छोड़ देंगी?

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  प्रभाकर मणि तिवारी कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए एक घंटा पहले इमेज स्रोत, GETTY IMAGES क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी कुर्सी किसी और को सौंपने की तैयारी में हैं? बीते विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी जीत के बाद ममता के लगातार बंगाल के बाहर दौरों के कारण राजनीतिक हलकों में यही सवाल पूछा जा रहा है. उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी सक्रियता बढ़ाने की मंशा तो 21 जुलाई को अपनी सालाना शहीद रैली में ही साफ कर दी थी. चुनाव के बाद ममता दो बार दिल्ली और दो बार गोवा के अलावा एक बार मुंबई का दौरा कर चुकी हैं. अब साल के आखिर में भी उनका पूर्वोत्तर और दार्जिलिंग दौरे का कार्यक्रम है. शुरुआत ममता ने राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बनने की कवायद अपनी सालाना शहीद रैली से शुरू की थी. इस रैली में उन्होंने बीजेपी हटाओ देश बचाओ का नारा देते हुए तमाम विपक्षी दलों से भगवा पार्टी के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी औऱ भगवा पार्टी को तानाशाह और कोरोना से भी खतरनाक वायरस करार दिया. इस साल खास बात यह रही कि पहली बार ममता ने अपना ज्यादातर भाषण हिंदी और अंग्रेजी में दिय

छूटी हुई बड़ी खबर

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खबर जिसे जानना ज़रूरी है ।

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बड़ी खबर ।।

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*جو بیٹیاں شادی کے بعد بھی ماؤں کی دہلیز نہیں چھوڑتیں وہ کس کس کا نقصان کرتی ہیں؟*

 💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕💕 *::::ہمارے معاشرے میں جب تک بیٹیاں بیاہی نہ جائیں تب تک ماں باپ کے سینے پر بوجھ رہتی ہیں اور وہی بیٹیاں شادی ہوجانے کے بعد اماں ابا خصوصا اماں کی منظورِ نظر بن جاتی ہیں۔ مائیں لاڈ کے مارے خود شادی شدہ بیٹیوں کو گھر بلا کر یا فون کر کر کے اپنے مسئلوں میں اتنا الجھا دیتی ہیں کہ نہ بیٹیوں کا گھر بس پاتا ہے اور نہ ہی ماں کے گھر میں بیاہ کر آنیوالی اس کی اپنی بہو اپنا گھر بسا پاتی ہے۔ نیچے ہم بیان کریں گے وہ وجوہات جن کی وجہ سے اچھے بھلے بسے بسائے گھر ٹوٹ جاتے ہیں*   *بھابھی سے مقابلہ* *شادی شدہ بیٹیاں بار بار گھر آکر اپنی زندگی کا موازنہ اپنے بھائی بھابھی سے کرتی ہیں مثال کے طور پر اگر بھائی بھابھی کے مقابلے میں ان کی مالی حالت اچھی ہے تو وہ اس کا بلند آواز میں اظہار کریں گی جیسے کہ ارے ہم تو کل فلاں ہوٹل کھانا کھانے گئے تھے، بھئی ہم تو چھٹیاں منانے فلاں مقام پر جائیں گے ۔ اس طرح کی باتوں کا مقصد اپنی امارت جتانا اور اگلے کو نیچا دکھانا ہوتا ہے جس کی وجہ سے بھاوجوں کے دل میں نفرت ، حسد اور رقابت کے جذبات بیدار ہوجاتے ہیں اور اگر معاملہ اس کے برعکس ہو یعنی بیٹیوں کے

विनोद दुआ: आने वाली नस्लें याद रखेंगी, एक ऐंकर ऐसा भी था

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  डॉ मुकेश कुमार मीडिया विश्लेषक 4 दिसंबर 2021, 18:12 IST अपडेटेड एक घंटा पहले इमेज स्रोत, FB जाने-माने टीवी ऐंकर विनोद दुआ का जाना टीवी पत्रकारिता के एक युग का अंत है. यहाँ 'एक युग का अंत' घिसा-पिटा मुहावरा या अतिश्योक्ति नहीं है, वह सच्चाई है. ख़ास तौर पर हिंदी टीवी पत्रकारिता के लिए. उन्हीं की वज़ह से टीवी पर हिंदी पत्रकारिता पहली बार जगमगाई थी. उस समय जब टीवी की दुनिया दूरदर्शन तक सिमटी थी और टीवी पत्रकारिता नाम के लिए भी नहीं थी, विनोद दुआ धूमकेतु की तरह उभरे थे. इसके बाद वे लगभग साढ़े तीन दशकों तक किसी लाइट टॉवर की तरह मीडिया जगत के बीच जगमगाते रहे. दूरदर्शन पर उनकी शुरुआत ग़ैर समाचार कार्यक्रमों की ऐंकरिंग से हुई थी, मगर बाद में वे समाचार आधारित कार्यक्रमों की दुनिया में दाखिल हुए और छा गए. चुनाव परिणामों के जीवंत विश्लेषण ने उनकी शोहरत को आसमान तक पहुँचा दिया था. प्रणय रॉय के साथ उनकी जोड़ी ने पूरे भारत को सम्मोहित कर लिया था. दरअसल, विनोद दुआ का अपना विशिष्ट अंदाज़ था. इसमें उनका बेलागपन और दुस्साहस शामिल था. जनवाणी कार्यक्रम में वे मंत्रियों से जिस तरह से सवाल पूछते य