भाजपा/संघ अमरबेल के समान हैं, जिस पेड़ पर लिपट जाती है वह पेड़ सूख जाता है और वह पनप जाती है। नितीश जी, लालू जी ने आपके साथ संघर्ष किया है आंदोलनों मे जेल गए है भाजपा/संघ की विचारधारा को छोड़ कर तेजस्वी को आशीर्वाद दे दीजिए। इस “अमरबेल” रूपी भाजपा/संघ को बिहार में मत पनपाओ। नितीश जी, बिहार आपके लिए छोटा हो गया है, आप भारत की राजनीति में आ जाएँ। सभी समाजवादी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों को एकमत करने में मदद करते हुए संघ की अंग्रेजों के द्वारा पनपाई “फूट डालो और राज करो” की नीति ना पनपने दें। विचार ज़रूर करें। यही महात्मा गॉंधी जी व जयप्रकाश नारायण जी के प्रति सही श्रद्धांजलि होगी। आप उन्हीं की विरासत से निकले राजनेता हैं वहीं आ जाइए। आपको याद दिलाना चाहूँगा जनता पार्टी संघ की Dual Membership के आधार पर ही टूटी थी। भाजपा/संघ को छोड़िए। देश को बर्बादी से बचाइए।
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बिहार चुनावः क्या तेजस्वी ने कांग्रेस को 70 सीटें देकर ग़लती की?
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दिलनवाज़ पाशा बीबीसी संवाददाता इमेज स्रोत, HINDUSTAN TIMES इमेज कैप्शन, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में कई रैलियां की बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ महागठबंधन के तहत 70 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस बमुश्किल बीस सीटों के पार जाती दिख रही है यानी उसका स्ट्राइक रेट उसकी अपनी उम्मीदों से काफ़ी नीचे है. अगर बिहार की राजनीति में हाल के दशकों में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखा जाए तो ये बहुत हैरान करने वाली बात नहीं है. 2015 के चुनावों में कांग्रेस ने आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के साथ महागठबंधन के तहत 41 सीटों पर चुनाव लड़ा और 27 सीटें जीतीं. लग नहीं रहा कि कांग्रेस इस बार पिछले चुनाव वाला प्रदर्शन दोहरा पाएगी. 2010 में कांग्रेस ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे सिर्फ़ चार सीटें ही मिल सकीं थीं. वहीं साल 2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए. एक बार फ़रवरी में और फिर विधानसभा भंग होने के कारण दोबारा अक्तूबर में चुनाव हुए. विज्ञापन फ़रवरी में कांग्रेस ने 84 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ दस पर जीत हासिल की वहीं अक्तूबर में 51 सीटों पर लड़कर सिर
राजद उमीदवार के नाम के आगे लालटेन गायब , भूल या साजिश
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बिहार चुनाव: ईवीएम में राजद के “लालटेन” के आगे बटन ही नहीं, तीन घंटे ऐसे ही होती रही वोटिंग ऐप पर पढ़ें मुंगेर जिले की तीनों सीटों पर लगभग 43 प्रतिशत मतदान होने की रिपोर्ट मिली है। मुंगेर में 15, जमालपुर में 19 और तारापुर विधान सभा क्षेत्र में 25 प्रत्याशियों के का भविष्य ईवीएम में कैद हो गया। जनसत्ता ऑनलाइन Edited By Anil Kumar नई दिल्ली | Updated: October 29, 2020 8:55 am लोगों की शिकायत के बाद ईवीएम मशीन को बदला गया। (फोटोः पीटीआई) बिहार विधानसभा चुनाव में मुंगेर सदर विधानसभा सीट के एक बूथ अजीबोगरीब वोटिंग का मामला सामने आया। यहां ईवीएम में राजद उम्मीदवार के चुनाव चिह्न लालटेन के आगे बटन ही गायब था। ADVERTISEMENT हैरानी वाली बात है कि महादेवपुर सामुदायिक केंद्र के बूथ पर बिना बटन वाले ईवीएम के बावजूद तीन घंटे से अधिक समय तक वोटिंग होती रही है। बाद में लोगों ने जब इसकी शिकायत की तो 3 घंटे 13 मिनट बाद ही ईवीएम को बदला जा सका। ऐसे में शुरुआती तीन घंटे तक राजद उम्मीदवार के खाते में एक भी वोट नहीं गए। इस पूरे मामले में राजद उम्मीदवार अविनाश कुमार विद्यार्थी के चुनाव प्रभारी शिशिर कुमा
रामविलास पासवान के नहीं रहने से बिहार चुनाव पर क्या होगा असर
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अपूर्व कृष्ण बीबीसी संवाददाता 9 अक्टूबर 2020 अपडेटेड 10 अक्टूबर 2020 इमेज स्रोत, HINDUSTAN TIMES बिहार में रामविलास पासवान का देहांत एक ऐसे समय हुआ है जब चुनाव मुश्किल से तीन हफ़्ते दूर है. ऐसे में श्रद्धांजलियों और संवेदनाओं के साथ-साथ कुछ राजनीतिक सवाल भी मंडरा रहे हैं. जैसे बुनियादी सवाल तो यही उठ रहा है कि पासवान के निधन का क्या चुनाव पर कोई असर पड़ सकता है? और उसी की छाया तले दूसरे सवाल भी आ जाते हैं, जैसे नीतीश कुमार का क्या होगा, दलित मतों का क्या होगा? और एक बड़ा सवाल ये भी कि चिराग़ पासवान अपने पिता की विरासत को सँभाल पाएँगे? विज्ञापन पर इन सारे सवालों की पड़ताल के लिए ये जानना ज़रूरी है कि बिहार की राजनीति में रामविलास पासवान का क़द कितना बड़ा था, उनकी पकड़ कितनी मज़बूत थी. रामविलास पासवान की राजनीति का आधार रामविलास पासवान का राजनीति में पदार्पण जाति की बुनियाद पर हुआ भी, और नहीं भी. जाति के आधार पर इसलिए क्योंकि 1969 में अपनी ज़िंदगी का पहला चुनाव उन्होंने जिस सीट से लड़ा और जीता था, वो अनुसूचित जाति के लिए एक सुरक्षित सीट थी. वो पहली बार बिहार की अलौली विधानसभा सीट से एम