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असमः अपने पिता का शव लेने से इनकार क्यों कर रहा है यह परिवार?

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इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट DILIP SHARMA/BBC Image caption दुलाल चंद्र पॉल की पत्नी और तीन बेटे "मेरे पिता को बांग्लादेशी घोषित कर घर से उठा ले गए थे. दो साल डिटेन्शन कैंप में कैद करके रखा. अब हिरासत में उनकी मौत हो गई है, तो सरकार हम लोगों पर उनका शव ले जाने के लिए दबाव बना रही है. यह किस तरह का न्याय है?'' 25 साल के अशोक पॉल अपने पिता की मौत को लेकर सरकार के रवैये से बेहद गुस्से में है. वो कहते हैं, ''जब मेरे पिता ज़िंदा थे तो उन्हें 'बांग्लादेशी' बना दिया, अब मरने के बाद वे स्वदेशी कैसे हो सकते है? सरकार को हमें लिखकर देना होगा कि वे भारतीय नागरिक थे तभी हम उनका शव ग्रहण करेंगे. हम बांग्लादेशी व्यक्ति का शव लाने नहीं जाएंगे." दरअसल असम के तेजपुर सेंट्रल जेल के भीतर बने डिटेन्शन कैंप में बंद 65 साल के दुलाल चंद्र पॉल नामक एक कैदी की मौत ने प्रदेश की सरकार को एक बड़ी ही अजीबोगरीब स्थिति में डाल दिया है. दुलाल चंद्र पॉल की बीते र

असम के 'एनआरसी' के बारे में कितना जानते हैं आप?

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Accessibility links सामग्री को स्किप करें Accessibility Help सूची खोजें News हिंदी BBC News हिंदी Navigation सेक्शन प्रियंका दुबे बीबीसी संवाददाता इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए असम में 31 अगस्त को प्रकाशित होने वाले नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस यानी एनआरसी लिस्ट पर पूरे देश की निगाहें टिकीं हुईं हैं. राज्य के तक़रीबन 41 लाख लोग फ़िलहाल अधर में लटकी अपनी नगरिकता का भविष्य जानने के लिए इस लिस्ट के इंतज़ार में हैं. लेकिन आख़िर ये एनआरसी लिस्ट है क्या? आसान भाषा में हम एनआरसी को असम में रह रहे भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट के तौर पर समझ सकते हैं. ये प्रक्रिया दरअसल राज्य में अवैध तरीक़े से घुस आए तथाकथित बंगलादेशियों के ख़िलाफ़ असम में हुए छह साल लंबे जनांदोलन का नतीजा है. null आपको ये भी रोचक लगेगा सियासी मामलों की जांच में CBI माकूल नहीं: जस्टिस गोगोई सऊदी अरब: महिलाएँ बिना रोक-टोक करेंगी विदेश यात्रा बेरोज़गार य