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विवादित ज़मीन मुस्लिम पक्ष को मिलती तो...-वुसअत का ब्लॉग

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इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए राम मंदिर या बाबरी मस्जिद जो भी आप कह लें उसके फ़ैसले पर अब तक टीवी चैनलों पर 3000 घंटे की टिप्पणियां हो चुकी हैं. सरकार समेत सभी को थोड़ा अंदाज़ा था कि किस तरह का फ़ैसला आने वाला है. वैसे भी जो झगड़ा 164 वर्ष में कोई न तय कर पाया उसका उच्चतम न्यायलय से जो भी फ़ैसला आता उसे ठीक ही होना था. पर सोचिए कि अगर पाँच जजों की बेंच बाबरी मस्जिद की ज़मीन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के हवाले कर के गिरी हुई मस्जिद को दोबारा बनाने के लिए एक सरकारी ट्रस्ट बनाने और निर्मोही अखाड़े और राम लला को मंदिर के लिए अलग से पाँच एकड़ ज़मीन अलॉट करने का फ़ैसला देती तो क्या होता? विज्ञापन क्या तब भी सब यही कहते कि ये एक ऐतिहासिक फ़ैसला है जिसका पालन हर नागरिक और सरकार के लिए लाज़मी है. और अगर बाबरी मस्जिद नहीं ढहाई गई होती तब सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला क्या होता? बहरहाल, ये फ़ैसला उस दिन आया जिस दिन करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ. हालांकि ये एक ऐतिहासिक पल था जिसकी सबसे ज़्यादा

#BabriMasjid_Verdict ! सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम के रिटायर्ड जज ने उठाये अहम सवाल , Review Petition की आशंका को मिला बल ।

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अयोध्या फ़ैसले पर जस्टिस गांगुली ने उठाए सवाल ? इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने शनिवार को कहा कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने उनके दिमाग़ में शक पैदा किया है. जस्टिस गांगुली  ने कहा, ''अल्पसंख्यकों ने पीढ़ियों से देखा कि वहां एक मस्जिद थी. मस्जिद तोड़ी गई. अब सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार वहां एक मंदिर बनेगा. इस फ़ैसले ने मेरे मन में एक शक पैदा किया है. संविधान के एक स्टूडेंट के तौर पर मुझे इसे स्वीकार करने में थोड़ी दिक़्क़त हो रही है.'' 72 साल के जस्टिस गांगुली वही हैं जिन्होंने 2012 में टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में फ़ैसला सुनाया था. जस्टिस गांगुली ने कहा, ''1856-57 में भले नमाज़ पढ़ने के सबूत न मिले हों लेकिन 1949 से यहां नमाज़ पढ़ी गई है. यह सबूत है. हमारा संविधान जब अस्तित्व में आया तो नमाज़ यहां पढ़ी जा रही थी. एक वैसी जगह जहां नमाज़ पढ़ी गई और अगर उस जगह

अयोध्या के फ़ैसले पर पाकिस्तानी अख़बारों में तीखी प्रतिक्रिया

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इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की चर्चा पाकिस्तान में ख़ूब हो रही है. पाकिस्तानी मीडिया में भी इस फ़ैसले को काफ़ी तवज्जो मिली है. शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद की ज़मीन हिन्दू पक्ष को और मुस्लिम पक्ष को कहीं और पाँच एकड़ ज़मीन देने का फ़ैसला सुनाया था. पाकिस्तान में भारत के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर सेना से लेकर विदेश मंत्रालय तक की प्रतिक्रिया आई. रविवार को पाकिस्तान प्रमुख  अंग्रेज़ी अख़बार डॉन  ने इस पर संपादकीय लिखा है. इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES डॉन ने संपादकीय टिप्पणी में लिखा है, ''भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में तोड़ी गई मस्जिद की जगह मंदिर बनाने की अनुमति दे दी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को अवैध बताया है लेकिन दूसरी तरफ़ मंदिर बनाने की अनुमति देकर अप्रत्यक्ष रूप से भीड़ की तोड़फोड़ का समर्थन भी किया है. यह भी दिलचस्प है कि फ़ैसला