अयोध्या के फ़ैसले पर पाकिस्तानी अख़बारों में तीखी प्रतिक्रिया


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अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की चर्चा पाकिस्तान में ख़ूब हो रही है.
पाकिस्तानी मीडिया में भी इस फ़ैसले को काफ़ी तवज्जो मिली है. शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद की ज़मीन हिन्दू पक्ष को और मुस्लिम पक्ष को कहीं और पाँच एकड़ ज़मीन देने का फ़ैसला सुनाया था.
पाकिस्तान में भारत के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर सेना से लेकर विदेश मंत्रालय तक की प्रतिक्रिया आई. रविवार को पाकिस्तान प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने इस पर संपादकीय लिखा है.

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डॉन ने संपादकीय टिप्पणी में लिखा है, ''भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में तोड़ी गई मस्जिद की जगह मंदिर बनाने की अनुमति दे दी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस को अवैध बताया है लेकिन दूसरी तरफ़ मंदिर बनाने की अनुमति देकर अप्रत्यक्ष रूप से भीड़ की तोड़फोड़ का समर्थन भी किया है. यह भी दिलचस्प है कि फ़ैसला उस दिन आया जब सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरिडोर खोला गया.''
डॉन ने लिखा है, ''शायद यह ज़्यादा अच्छा होता कि कोर्ट किसी भी पक्ष की तरफ़दारी नहीं करता क्योंकि यह मुद्दा भारत में काफ़ी संवेदनशील था और इसका संबंध सांप्रदायिक सौहार्द से भी है. आस्था और धार्मिक निष्ठा के मामलों में सबसे अच्छा यह होता है कि स्टेट किसी एक की तरफ़ ना झुके और सभी नागरिकों को इंसाफ़ दे.''
डॉन ने संपादकीय में लिखा है कि 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद यह कहा जा सकता है कि भारत में नेहरू के सेक्युलर इंडिया के अंत की शुरुआत हो गई थी और संघ परिवार ने राष्ट्रीय स्तर पर दस्तक दे दी थी. जिन्होंने अयोध्या में भीड़ को उकसाकर बाबरी मस्जिद तोड़वाई थी, उनमें से कई सत्ता का सुख भोग रहे हैं.''

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डॉन ने रविवार की संपादकीय में लिखा है, ''बेशक इस फ़ैसले से कट्टर हिन्दूवाद को बढ़ावा मिलेगा और अल्पसंख्यकों में ख़ास करके मुसलमानों के बीच संदेश जाएगा कि आधुनिक भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक आज़ादी के ख़िलाफ़ बहुसंख्यकों की हिंसा माफ़ है.''
डॉन ने लिखा है, ''इसके साथ ही भारत अब दावा नहीं कर पाएगा वो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. बाबरी मस्जिद घटनाक्रम के बाद नेशनल नैरेटिव अब नेहरू और गांधी को छोड़ सावरकर और गोलवलकर की विचारधारा की तरफ़ शिफ़्ट हो गया है. अब भारत के लोगों को तय करना है कि वो लोकतांत्रिक सोच के साथ जाएंगे या हिन्दू राष्ट्र की ओर जहां अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे के नागरिक के तौर पर देखा जाएगा.''
पाकिस्तानी अख़बार द नेशन ने भी अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को काफ़ी प्रमुखता से छापा है. द नेशन ने पाकिस्तानी सीनेटर रहमान मलिक का एक कॉलम छापा है जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पक्षपातपूर्ण बताया है.
रहमान मलिक ने अपने कॉलम में लिखा है, ''मैं ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कंट्रीज़ से अपील करता हूं कि इसे इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में उठाए क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के चार्टर अंतरधार्मिक सद्भावना के ख़िलाफ़ है और भारत ने इस पर हस्ताक्षर किया है. आरएसएस और मोदी न केवल भारत के मुसलमान और पाकिस्तान का नुक़सान कर रहे हैं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के मुसलमानों का नुक़सान कर रहे हैं.''
द नेशन ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी का बयान भी छापा है जिसमें उन्होंने अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को भारत के मुसलमानों को मजबूर करने वाला बताया है. क़ुरैशी ने कहा, ''भारत में मुसलमान पहले से ही दबाव में थे और सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से और दबाव बढ़ेगा.''
पाकिस्तान की न्यूज़ वेबसाइट ने इंटरनेशनल द न्यूज़ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को सदस्य कमाल फ़ारूक़ी के हवाले से एक बयान छापा है. इस बयान में लिखा है, ''हमलोग को उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों के आधार पर फ़ैसला सुनाएगी न कि आस्था के आधार पर.''

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द न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन ज़फ़र अहमद फ़ारूक़ी का भी बयान छापा है. फ़ारूक़ी ने कहा है, ''हम सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हैं और बोर्ड इस फ़ैसले को चुनौती नहीं देगा.''
पाकिस्तान से प्रकाशित होने वाले अख़बार ट्रिब्यून ने अपने शुरुआती पन्ने पर भारतीय सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से संबंधित दो ख़बरें प्रकाशित की हैं.
पहली ख़बर में अख़बार ने जमीयत उलेमा-ए इस्लाम के फ़ज़लुर रहमान का बयान छापा है जो प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ आज़ादी मार्च पर निकले हैं.

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रहमान ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की निंदा की है. उन्होंने कहा, ''मुल्क अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा करने में नाकामयाब रहा है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय का यह फ़ैसला उनकी संकुचित सोच को दिखाता है."
वहीं एक अन्य ख़बर में अख़बार ने पाकिस्तान सिख काउंसिल के चेयरमेन सरदार रमेश सिंह के हवाले से एक तुलनात्मक ख़बर प्रकाशित की है.
अख़बार ने लाहौर के शहीद गंज गुरुद्वारा मामले और बाबरी मस्जिद मामले में आए फ़ैसलों की तुलना की है. अख़बार ने लिखा है, ''भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 16वीं सदी में बनी बाबरी मस्जिद की विवादित ज़मीन को हिंदुओं को दे दी है ताकि वहां मंदिर बने. ऐसे में पाकिस्तान के शहीद गंज गुरुद्वारे का ज़िक्र करना ज़रूरी हो जाता है.''
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून में उनका बयान छापा है, ''इन दोनों ही मामलों में काफ़ी समानता है. दोनों ही मामलों में दावे किए गए. दोनों ही मामलों में जिस वक़्त फ़ैसला आया वो ख़ास और सोचने के लिए मजबूर करने वाला था. जैसा कि शनिवार को ही पाकिस्तान और भारत के बीच करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत हो गई है.''

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रमेश सिंह इसका श्रेय मुस्लिम समुदाय को देते हैं जिन्होंने पाकिस्तान बनने के बाद शहीद गंज गुरुद्वारे को मस्जिद में नहीं बदला.
वो कहते हैं "भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों से बाबरी मस्जिद ले ली गई है जबकि यहां पाकिस्तान में मुस्लिम बहुल आबादी होने के बावजूद अल्पसंख्यक सिख समुदाय से संबंद्ध गुरुद्वारा अब भी उसी जगह विराजमान है."
इसके अलावा पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आसिफ़ ग़फ़ूर ने भी अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
गफ़ूर ने एक वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा है, ''आज भारत के सभी अल्पसंख्यकों को फिर से अहसास हो गया होगा कि हमारे महान नेता मोहम्मद अली जिन्ना की हिन्दुत्व के बारे में जो सोच थी वो बिल्कुल सही थी.''
पाकिस्तानी अख़बार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अयोध्या पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया को पहले पन्ने पर छापा है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, ''सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से भारत की धर्मनिरपेक्षता का दिखावा दुनिया के सामने आ गया है. अब स्पष्ट है कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं. अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थल भारत में सुरक्षित नहीं हैं. भारत में हिन्दू राष्ट्र के तहत फिर से इतिहास लिखने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.''
साभार --- बीबीसी हिंदी 

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