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अयोध्या में मुस्लिम पक्ष क्या पांच एकड़ ज़मीन लेने से इनकार भी कर सकता है?

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इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दी जाने वाली पांच एकड़ ज़मीन को लेकर चर्चा काफ़ी गरम हो रही हैं. एक ओर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड पर इस ज़मीन को न लेने का दबाव पड़ रहा है तो दूसरी ओर ये चर्चा भी है कि यह ज़मीन कहां मिलेगी. इस मामले में मुस्लिम समुदायों और संगठनों के बीच असहमति के स्वर भी सुनाई पड़ रहे हैं. सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने जहां फ़ैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद इसे स्वीकार करने और आगे कहीं चुनौती न देने की घोषणा की और जिसका कई मुस्लिम धर्म गुरुओं ने भी समर्थन किया, वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है. पर्सनल लॉ बोर्ड इस विवाद में अन्य पक्षकारों की ओर से पैरोकार रहा है. null आपको ये भी रोचक लगेगा सरकार को मुस्लिम समाज के लिए मस्जिद बनाकर देनी चाहिएः जस्टिस सावंत अयोध्या फ़ैसले पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड में फूट अयोध्

#BabriMasjid पर फैसला आने से पहले ही साजिश की खुशबू को एक आर्टिकल के जरिये फैला दिए थे जनाब Dr Rajiv Dhawan ने ! फैसले के बाद दुनिया उठा रही उंगलियां ।

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बाबरी मस्जिद को ढहाना क़ानून के शासन का घिनौना उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

BY: LIVELAW NEWS NETWORK 9 Nov 2019 6:12 PM 66 SHARES  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाबरी मस्जिद को 1934 में नुकसान पहुंचना, 1949 में इसको अपवित्र करना जिसकी वजह से इस स्थल से मुसलामानों को बेदखल कर दिया गया और अंततः 6 दिसंबर 1992 को इसको ढहाया जाना क़ानून के नियम का गंभीर उल्लंघन है।  मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने एकमत से दिए अपने फैसले में कहा है मुस्लिमों को मस्जिद के निर्माण के लिए कहीं और जगह दिया जाए। अदालत ने कहा, "नमाज पढ़ने और इसकी हकदारी से मुस्लिमों का बहिष्करण 22/23 दिसंबर 1949 की रात को हुआ जब हिन्दू देवताओं की मूर्ती वहां रखकर मस्जिद को अपवित्र किया गया। मुसलामानों को वहां से भगाने का काम किसी वैध अथॉरिटी ने नहीं किया बल्कि यह एक भली प्रकार सोची समझी कार्रवाई थी जिसका उद्देश्य मुसलामानों को उनके पूजा स्थल से वंचित करना था। जब सीआरपीसी, 1898 की धारा 145 के तहत कार्रवाई शुरू की गई और अंदरूनी आंगन को जब्त करने के बाद रिसीवर नियुक्ति किया गया और तब वहां हिन्दू मूर्तियों की पूजा की अनुमति दी गई। 

अयोध्या फैसले पर रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज एके गांगुली ने उठाए सवाल, कहा- मैं परेशान हूं

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सु्प्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके गांगुली ने शनिवार को अयोध्या मामले में आए फैसले पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि बतौर संविधान का विद्यार्थी होने के नाते मैं इसे पचा नहीं पा रहा हूं। Ayodhya Ram Mandir-Babri Masjid Case Verdict:  सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस अशोक गांगुली ने अयोध्या मामले में आए फैसले पर असंतोष जाहिर करते हुए सवाल उठाए हैं। शनिवार को गांगुली ने कहा कि अयोध्या मामले पर आए फैसले ने उनके भीतर संदेह पैदा कर दिया है और फैसले के बाद वह काफी परेशान हो गए थे। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने फैसला राम मंदिर के हक में दिया। कोर्ट ने फैसले में कहा कि 2.77 एकड़ भूमि पर ‘राम मंदिर’ बनेगा और सरकार को मुसलमानों के लिए वैकल्पिक रूप से पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। ‘द टेलिग्राफ’ के मुताबिक 72 वर्षीय जस्टिस गांगुली ने कहा, “पीढ़ियों से अल्पसंख्यकों ने देखा कि वहां पर एक मस्जिद थी। जिसे ढहा गिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक इसके ऊपर एक मंदिर बनाया जाएगा। इस बात ने मेरे दिमाग में शंका पैदा कर दिया है। सं

अयोध्या मामलाः पंच परमेश्वर के फै़सले के बाद उठने वाले पांच ज़रूरी सवाल

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इस पोस्ट को शेयर करें Facebook   इस पोस्ट को शेयर करें WhatsApp   इस पोस्ट को शेयर करें Messenger   साझा कीजिए इमेज कॉपीरइट GETTY IMAGES अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने नौ नवंबर को फ़ैसला सुना दिया. माना जा रहा है कि आज़ाद भारत के न्यायिक इतिहास के सबसे विवादित और संवेदनशील मुद्दे का इसी के साथ अंत हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से यह फ़ैसला सुनाया है. लेकिन जिस आधार पर फ़ैसला दिया गया उस पर क़ानून और संविधान के कुछ अध्येता सवाल खड़े कर रहे हैं. क्या हैं ये सवाल. इसकी सूची बनाते हुए बीबीसी हिंदी ने कुछ जानकारों से बात की है. सुप्रीम कोर्ट के वकील और 'अयोध्याज़ राम टेंपल इन कोर्ट्स' किताब के लेखक विराग गुप्ता ने इस फै़सले से सहमति जताते हुए कहा कि इस फै़सले से एक ऐतिहासिक विसंगति दूर होगी पर उन्होंने साथ ही ये भी कहा कि इस न्यायिक फै़सले पर आलोचकों ने अनेक सवाल उठाए हैं, विशुद्ध न्यायिक दृष्टि से देखें तो इस फ़ैसले से जो सवाल खड़े हुए हैं, उन पर ग़ौर किया जाना चाहिए. वरिष्ठ पत्रकार जे वेकंटे