आज़मगढ़ में क्या होने वाला है?- लोकसभा चुनाव 2019


अखिलेश यादवइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

2014 लोक सभा चुनाव प्रचार अपने शबाब पर था. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल पर पूरे देश की नज़र थी क्योंकि भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी वाराणसी से भी चुनाव लड़ रहे थे.
इस फ़ैसले की वजह से समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ने के लिए बगल के आज़मगढ़ पहुँच गए थे.
पाँच साल पहले मई महीने की तपती हुई उस दोपहर, हम सब सिर पर गमछा बांधे आज़मगढ़ में मोदी की एक रैली में उन्हें सुन रहे थे.
उन्होंने मंच से कहा था, "प्रदेश में बाप-बेटे की सरकार है और केंद्र में माँ-बेटे की सरकार है. आप बताइए आपके जीवन में दस साल में कोई बदलाव आया है क्या? आप मुझे मज़बूत सरकार दीजिए, किसानों की और देश की दिशा और दशा सुधार दूँगा".
पूरे पाँच साल बाद आज़मगढ़ के उसी मैदान से थोड़ा आगे, प्रधानमंत्री मोदी अपने तीन हेलीकाप्टरों के क़ाफ़िले के साथ गुरुवार को उतरे.
तापमान 43 डिग्री था और हम इस बार भी सिर पर गमछा बांधे रैली में मौजूद थे.
मोदी के लैंड करने से कोई दस मिनट पहले फूलमती नाम की महिला मिली, जिनसे धूप बर्दाश्त नहीं हो पा रही थीं और वे अपने कुनबे के साथ वापस जा रही थीं.

आज़मगढ़ का समीकरण


फूलमती

उन्होंने कहा, "क्या होने वाला है, ये होने वाला है कि जीत लिंहिए, अपना घरे चल दिहीनए, कांव-कांव कर के निरहुवा चल दिहीनए, और मरिहे जनता अपने में."
इसी समय प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंच से अपना भाषण दे रहे थे और कह रहे थे, "इस बार तो कमल खिलाना है आज़मगढ़ में".
थोड़ी देर बार मोदी के भाषण का प्रमुख निशाना था समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का महगठबंधन जिसे उन्होंने 'महामिलावटी महगठबंधन' बताया. किसानों की दशा और दिशा से ज़्यादा समय 'पाकिस्तान को सबक़ सिखाने' और 'राष्ट्रहित की रक्षा' करने वाले बयानों में बीता.
12 मई को लोक सभा चुनावों के तहत छठे चरण का मतदान होना है और इसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ सीट ख़ासी अहम बताई जा रही है.
हमेशा की तरह इस बार भी आज़मगढ़ के चुनावी समीकरण बेहद दिलचस्प हैं.
आज़मगढ़ में चुनाव आमतौर से जाति और धर्म की दूरबीन से परख कर होते आए हैं.
यहाँ एक तरफ़ अल्पसंख्यकों की अच्छी आबादी है तो दूसरी तरफ़ पिछड़े वर्ग की आबादी भी ख़ासी है.
'अहीर-अहीर से लड़ा दिया'

निरहुआ

पिछली बार अगर मुलायम सिंह यादव मैदान में थे तो इस बार उनके बेटे अखिलेश महागठबंधन के उम्मीदवार हैं.
कांग्रेस पार्टी ने यहाँ इस बार अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं किया है. इलाक़े के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने भी अपना कैंडिडेट ढूँढा.
पार्टी ने एक स्थानीय लेकिन बेहद लोकप्रिय भोजपुरी गायक दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' को मैदान में उतारा है जिनके कैम्पेन की ख़ासी चर्चा हो रही है.
शहर के बीचोंबीच अखिलेश के एक समर्थक, आनंद कीर्ति बौद्ध से बात हुई.
उन्होंने कहा, "वो क्या है, दुश्मन भोला-भाला लगता है, मगर अंदर से कसाई के समान होता है. एक तीर से तेरह निशाना इसलिए भाई-भाई को, अहीर-अहीर से लड़ा दिया".

बीजेपी ऑफिस, आजमगढ़

आज़मगढ़ जिले का अपना एक प्रगतिशील इतिहास भी रहा है जिसमें शिबली नोमानी और कैफ़ी आज़मी जैसे दिग्गजों की गिनती होती है.
'नज़र लग गई'

समाजपार्टी ऑफिस, आजमगढ़

लेकिन हर चुनाव के पहले आम आदमियों के भी मसले होते हैं, अपनी राय होती है.
शहर से दूर लेकिन संसदीय क्षेत्र के भीतर आने वाले मुबारकपुर को ही ले लीजिए जहाँ का हथकरघा उद्योग एक ज़माने में विश्व विख्यात हुआ करता था.
घर-घर पावरलूम चला करती थीं और लोगों के मुताबिक़ ख़ुशहाली थी.
मुलाक़ात जमाल अहमद से हुई जिनकी साड़ी की दुकान है और पीछे पावरलूम मशीन बंद पड़ी है.
उन्होंने कहा, "बम धमाके और आतंकवाद के फ़िज़ूल मामलों की वजह से हमारे मुबारकपुर को तो नज़र लग गई. नोटबंदी ने दोहरी मार दे डाली. अब सोच रहे हैं किसी और व्यापार की तरफ़ बढ़ें, वरना खाने के लाले पड़ने लगेंगे".
ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में आज़मगढ़ एकमात्र ऐसी सीट थी जिस पर साल 2014 की 'मोदी लहर' का असर नहीं दिखा था.
'अखिलेश की व्यस्तता'

नंदू दहिकार
Image captionनंदू दहिकार

शायद यही वजह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन चुनावों के बाद इस सीट पर फ़ोकस बनाए रखा है. उनके समर्थक भी सड़कों पर 'सांसद बदलो' के नारे लगाते मिल जाते हैं.
उन्हीं में से एक नंदू दहिकार ने कहा, "भाजपाई हैं और मोदी चाचा को चाहते हैं. यहाँ के जो सांसद थे (मुलायम) वो देखने भी नहीं आए. मोदी चाचा हैं तो पूरा देख रहे हैं, ग़रीबों को शौचालय दे रहे हैं, आवास दे रहे हैं. अब उनकी सरकार बने तो आज़मगढ़ के लिए और करेंगे. मोदी चाचा ज़िंदाबाद हैं और ज़िंदाबाद रहेंगे".
इलाक़े में कुछ ऐसे लोग भी मिले जिनको लगता है, "अखिलेश भैया यहाँ प्रचार के लिए समय नहीं दे सके. इससे उनके वोट कम हो सकते हैं".
हालाँकि अखिलेश यादव ख़ुद इस बात पर जवाब दे चुके हैं जब उन्होंने कहा था, "मेरे पास अस्सी सीटों में प्रचार की ज़िम्मेदारी है तो थोड़ा समय का अभाव रहता है. लेकिन मेरे प्रतिनिधि हर कोने, हर गाँव में पहुँचते हैं".

मोहम्मद शेरू

हक़ीक़त ये भी है कि पिछले लोक सभा चुनाव की ही तरह इस बार भी अखिलेश के चाचा और 'मेंटॉर' राम गोपाल यादव ने आज़मगढ़ में डेरा डाल रखा है और उनकी मदद के लिए भतीजे और सपा सांसद धर्मेंद्र यादव भी मौजूद हैं.
अखिलेश को समर्थन देने के लिए मेरठ से साइकिल चला कर पहुँचे हैं मोहम्मद शेरू.
उनके मुताबिक़, "उस ज़माने में नेताजी ने जो किया था, जो वादा किया था वो करके निभाया. ऐसे ही उनके बेटे हैं, कहते नहीं करते हैं. नेताजी ने जो किया, सच्चाई-कलम, वो तो हैं मुलायम. विकास का पहिया, अखिलेश भैया".
लेकिन पास ही खड़ी कुछ महिलाओं में से एक रीता राय ये सुनकर बात करने के लिए आगे बढ़ीं.
उन्होंने कहा, "मोदी इतना किए हैं जनता के लिए इसलिए उनका प्रचार है. हमको तो अभी कुछ नहीं मिला है लेकिन भरोसा है. हमारी दो लड़कियाँ हैं, एक लड़का है, पढ़ाई लिखाई में हमें कोई सुविधा नहीं है. उम्मीद लगाए हैं कि वोट देंगे तो फिर कहीं से मदद मिलेगी तो अपना कुछ कर सकेंगे."
हालाँकि पिछले पाँच साल में तीसरी दफ़ा आज़मगढ़ आने पर मुझे तो कुछ ख़ास बदलाव नहीं दिखे हैं. कुछ नए होटल खुल गए हैं, छोटे-छोटे शॉपिंग मॉल भी खुले हैं और स्थानीय लोगों के मुताबिक़ बिजली अब पहले से थोड़ी ज़्यादा आती है.

राजेश यादव
Image captionराजेश यादव

लेकिन सड़कों की हालत आज भी बदहाल है और शहर से थोड़ा बाहर ग्रामीण इलाक़े जस के तस ही दिखते हैं.
इस बात का अंदाज़ा लगाना मुश्किल हैं कि इनमें से कितनी बातों के बारे में यहाँ के मतदाता गम्भीरता से सोच रहे हैं. क्योंकि कोई भी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं.
शहर के दक्षिणी हिस्से में एक पेट्रोल पंप के सामने राजेश यादव मिले जिन्होंने इस बात को और बल दिया.
उन्होंने कहा, "कुछ तो हुआ है, जैसे चौराहे वग़ैरह तो बने हैं. मुलायम सिंह सांसद थे उनकी ही देन है. हाँ, नोटबंदी से शादी में लोग परेशान हुए, दो हज़ार का नोट निकालने के लिए लोग घंटों-घंटो लाइन में खड़े होते थे. अब पुलवामा हुआ है और उसमें भी जो सरकार ने यानी मोदी सरकार किया वो भी अच्छा है."
बीबीसी हिंदी से साभार ।

Comments

Shivendra Yadav said…
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