औरंगाबाद CAA विरोध प्रदर्शनः पुलिस कार्रवाई पर उठ रहे सवाल- ग्राउंड रिपोर्ट


औरंगाबाद CAA विरोध प्रदर्शन के दौरान एक शख़्स को पकड़कर ले जाती पुलिसइमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY
Image captionऔरंगाबाद CAA विरोध प्रदर्शन
बिहार की राजधानी पटना से 140 किमी. दूर औरंगाबाद में CAA और NRC के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय जनता दल के बिहार बंद के दौरान हिंसा की घटनाएं हुई थीं.
स्थानीय अख़बारों और उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ एक भीड़ ने सुनियोजित रूप से पुलिस पर पत्थरबाज़ी और बमबाज़ी की.
पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 41 लोगों को गिरफ़्तार किया. 84 नामज़द और करीब 150 अज्ञात अभियुक्त बनाए गए हैं.
CAA और NRC के विरोध में बिहार में हुए विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ ये पुलिस की सबसे बड़ी कार्रवाई है.
फिलहाल 43 लोग जिनमें तीन महिलाएं और 11 कथित रूप से नाबालिग लड़के शामिल हैं, जेल में बंद हैं.
बीते तीन दिसंबर को औरंगाबाद की निचली अदालत ने उनकी जमानत याचिका भी ख़ारिज कर दी थी.
औरंगाबाद में जामा मस्जिद जहां पथराव हुआ था.इमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY
Image captionरिपोर्ट्स के अनुसार शहर की जामा मस्जिद के नज़दीक पथराव और बमबाजी हुई थी.

औरंगाबाद का हाल

इस शहर में भी एक जामा मस्जिद है. एकदम भीड़भाड़ और बाज़ार वाले इलाके में.
रिपोर्ट्स के मुताबिक इसी मस्जिद के नजदीक पथराव और बमबाज़ी हुई थी. इस मोहल्ले को तेली मोहल्ले के नाम से भी जाना जाता है.
15 दिन से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी जामा मस्जिद और उसके आस-पास के इलाक़ों में तनाव अब भी कायम था.
पुलिस की छह पन्ने की एफआईआर रिपोर्ट के मुताबिक़ 21 दिसंबर को 12 बजकर 15 मिनट पर जब बंद शांत चुका था, तभी नावाडीह की तरफ़ से करीब 200 लोगों की भीड़ जुलूस की शक्ल में जामा मस्जिद की तरफ आई. लाठी, डंडों से मारकर दुकानों को बंद करा दिया.
मौके पर मौजूद पुलिस ने उन्हें शांत कराने की कोशिश की तो वे पुलिस पर पथराव करने लगे. जवाब में पुलिस ने एक्शन लिया. मौक पर ही कई उपद्रवी पकड़े गए. कइयों को बाद में वीडियो फुटेज के आधार पर चिन्हित कर गिरफ्तार किया गया. लेकिन, ये सब केवल पुलिस और प्रशासन का पक्ष है.
अस्पताल में इलाजरत नाबालिग के साथ अन्य घायल नामजदइमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY
Image captionअस्पताल में इलाजरत नाबालिग के साथ अन्य घायल नामजद

क्या कहते हैं मुस्लिम मोहल्ले के लोग

जामा मस्जिद के बगल से ही एक गली निकलती है जो आगे न्यू काजी मोहल्ला, कुरैशी मोहल्ला, पठान टोली, इस्लाम टोली, आजाद नगर, नाजीर मोहल्ला, केवानी मोहल्ला, युसुफ अंसारी मोहल्ला और ऐसे ही नामों वाले कई मुस्लिम बहुल मोहल्लों तक जाती है. अभी तक सभी गिरफ्तारियां इन्हीं मोहल्लों से हुई हैं.
यहीं कुरैशी मोहल्ले के अफ़रोज़ आलम ने कहा, "मुझे प्रशासन सिर्फ़ इतना बता दे कि जिस जगह पर पत्थरबाज़ी हुई, झगड़ा हुआ, वहां से लोगों को क्यों नहीं पकड़ा गया? उन लोगों को पुलिस मारते-पीटते ले गई जो अंदर के मोहल्लों में अपने घरों में थे."
मोहल्ले के लड़कों में स्थानीय मीडिया से भी खासी नाराज़गी थी. उनका आरोप था कि मीडिया ने सिर्फ़ वही दिखाया और बताया जो पुलिस ने उन्हें ब्रीफ़ किया.
यहीं पर साहिल नाम के लड़के ने बताया, "बाहर की मीडिया ने थोड़ा-बहुत दिखाया भी है. आप ही बताइए, प्रशासन से कौन अपना संबंध खराब करना चाहता है? हम सब डर रहे हैं. यहां की मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं. कोई कुछ नहीं बोल रहा. पुलिस रोज-रोज आती है. दरवाजा पटकती है. खुलवाती है. महिलाओं के साथ बदतमीजी करती है."
एक शादी समारोह में अपने भाइयों के साथ बीच में खड़े क़मरइमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY
Image captionएक शादी समारोह में अपने भाइयों के साथ बीच में खड़े क़मर

पुलिस की जांच में जामिया कनेक्शन

एक घर से तीन भाई गिरफ्तार हुए हैं. 23 साल के अहमद, 22 साल के क़मर और 18 साल के अकबर. पिता का नाम खुर्शीद अहमद है.
घरों के दरवाजे अब भी टूटे हैं. अंदर एक महिला थीं. उन्होंने अपना नाम सूफ़ीया बानो बताया, वो क़मर की फूफी थीं.
क़मर के बारे में स्थानीया मीडिया में ऐसी भी रिपोर्टें आयी हैं कि वे दिल्ली के जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं.
पुलिस की जांच का एक पहलू यह भी है कि हिंसा करने के लिए जामिया से लड़के आए थे.
सूफ़ीया बानो ने अपने भतीजों के बारे में बताया, "तीनों बच्चे आसनसोल से शादी से लौटकर आए थे. उन्हें बाहर क्या हो रहा है, नहीं हो रहा कुछ भी नहीं पता था. अचानक पुलिस दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुसी. अंदर जो बच्चे थे उन्होंने डर से अपना दरवाज़ा बंद कर लिया. पुलिसवालों ने बंदूकों से मारकर दरवाज़ा तोड़ दिया. उन्हें भी मारते पीटते हुए लेकर चले गए."
सूफिया बानो कमर की फूफी.इमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY
Image captionसूफिया बानो कमर की फूफी.

नाबालिग लड़कों की गिरफ़्तारी

पुलिस की एफआईआर रिपोर्ट के अनुसार पत्थरबाजी की घटना में तीन महिलाएं भी शामिल थीं. जिन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया गया.
उनका घर भी क़ुरैशी मोहल्ले में ही था. घर के दरवाजे बंद थे. स्थानीय लोगों ने बताया कि ताला बंद करके सब लोग चले गए हैं.
कु़रैशी मोहल्ले के अल्ताफ़ हुसन ने बताया, "यहां की तीन महिलाओं को गिरफ़्तार किया गया है. उनके घर में उस दिन शादी थी. पुलिस ने अचानक हमला बोल दिया. जितने लोग मिले, सबको पकड़ लिया. निकाह भी नहीं हो सका. आप ही बताइए जिस घर में शादी हो रही हो वहां की महिलाएं पत्थर चलाने जाएंगी क्या?"
पुलिस की कार्रवाई पर सवाल इसलिए भी उठे हैं क्योंकि 43 लोग जो जेल में बंद हैं उनमें से 11 कथित तौर पर नाबालिग लड़के हैं.
इनकी सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के ज़रिए कराने के लिए उनकी तरफ से आवेदन दिया गया है. उनके वकील मेराज ने हमें यह जानकारी दी.
सूफिया बानो कमर की फूफी.इमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY

डीएम के ख़िलाफ़ गुस्सा

उन्हीं नाबालिगों में से एक मसूद फैसल घायल अवस्था में सदर अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. उनके हाथ-पैर टूटे हुए हैं. शरीर के काफी हिस्सों में चोटें आई हैं.
मसूद फैसल के बारे में एफआईआर रिपोर्ट में लिखा गया है कि उनकी उम्र 28 साल है. जबकि वे बताते हैं कि उन्होंने पिछले ही साल दसवीं की परीक्षा पास की है.
सर्टिफिकेट के हिसाब से उनकी उम्र कुल मिलाकर 16 साल 10 महीने ही हुई है.
मसूद के मुताबिक वे "ट्यूशन से घर लौट रहे थे. पीठ पर बैग भी था. पठानटोली में उनका घर था. जिस रस्ते से जा रहे थे, उसमें अचानक भगदड़ हो गई. वो भागते हुए गिर गए. फिर पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया और पिटाई कर दी."
मोहल्ले वालों का स्थानीय डीएम राहुल रंजन माहिवाल के ख़िलाफ़ काफ़ी गुस्सा देखने को मिला. लोग पुलिस कार्रवाई के दौरान जो विजुअल्स दिखा रहे थे उनमें डीएम एक हाथ में पत्थर और दूसरे में बेंत लिए दिखते हैं.
एक हाथ में पत्थर, दूसरे में बेंत उठाए डीएम राहुल रंजन माहीवालइमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY
Image captionएक हाथ में पत्थर, दूसरे में बेंत उठाए डीएम राहुल रंजन माहीवाल

प्रशासन का जवाब

हमने डीएम राहुल रंजन माहिवाल से भी बात की. उनके ऊपर लग रहे आरोपों और प्रशासन की कार्रवाई के बारे में सवाल पूछे.
डीएम कहते हैं, "आपको बधाई देनी चाहिए कि हम ख़ुद वहां मौजूद थे. हमनें मात्र डेढ़ घंटे के अंदर सब काबू कर लिया. उस पत्थरबाजी में कई पुलिसवाले घायल हो गए थे. हमारे एक दारोगा का सिर फूटा है. एसएसपी की उंगली टूटी है. पत्थर हमारे ऊपर भी फेंके जा रहे थे. आप हाथ में जिस पत्थर की बात कर रहे हैं, उन्हीं में से एक पत्थर था, जो मैंने उठा लिया था."
पुलिस की कार्रवाई के बारे में बात करते हुए डीएम कहते हैं, "किसी बेगुनाह को नहीं पकड़ा गया है. मैं ख़ुद इसे मॉनिटर कर रहा हूं. जितने लोगों को पकड़ा गया है उनके ख़िलाफ़ हमें पुख्ता साक्ष्य मिल गए हैं. जिन्हें अदालत में पेश भी किया गया है. उसी की बिनाह पर उनकी जमानत याचिका भी ख़ारिज हुई. कोई नहीं बचेगा. हमने एक-एक आरोपी के ख़िलाफ़ सबूत रखा है. उनके फोन और पूछताछ के जरिए और भी चीजें मिली हैं जो हिंसा को सुनियोजित कहने के लिए काफी हैं. पुलिस की कार्रवाई एकदम सही है और आप देखिएगा, उनमें से कोई नहीं बच पाएगा. चाहे यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक ही क्यों न जाए."
मोहल्ले वालों के आरोपों पर डीएम ने कहा, "जिनके ख़िलाफ़ सख्ती करिएगा वो आपको अलोकप्रिय बनाएंगे ही. स्वाभाविक है कि अगर प्रशासन उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगा तो हमें अच्छा नहीं कहेंगे."
पांडेय पुस्तकालयइमेज कॉपीरइटNEERAJ PRIYADARSHY
Image captionपांडेय पुस्तकालय

औरंगाबाद में शक्ति प्रदर्शन

आखिर में हम पहुंचे उस खास जगह पर जहां पत्थरबाज़ी की घटना को लेकर एफआईआर रिपोर्ट दर्ज है.
पांडेय पुस्तकालय. जामा मस्जिद के ठीक आगे और तेली मोहल्ले की तरफ़ जाने वाली गली के एकदम सामने.
पांडे पुस्तकालय के बोर्ड पर भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल छपा था.
पुस्तकालय के काउंटर पर खड़े दुकान के मालिक कहते हैं, "उस दिन हमारी दुकान बंद थी. यहां क्या-क्या हुआ वो तो नहीं बता सकते. पर इतना जरूर कहेंगे कि अगर पुलिस और प्रशासन ने इतनी तत्परता नहीं दिखाई होती तो हालात आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता. वैसे ये औरंगाबाद है, यहां शक्ति प्रदर्शन होते रहते हैं. कभी इधर से होता है, तो कभी उधर से."
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