कोरोना से मर रहे लोगों को अंतिम विदाई देने वाला मुसलमान


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भारत में कोरोनावायरस के मामले

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स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
9: 43 IST को अपडेट किया गया
दुनियाभर में लोग कोरोना वायरस की महामारी से लड़ रहे हैं. फ्रंटलाइन पर डॉक्टर, नर्स, मेडिकल स्टाफ़ और पुलिसकर्मी हैं जो अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता भी लोगों को जागरुक कर रहे हैं.
इस मुश्किल वक़्त में सूरत का एक मुसलमान व्यक्ति बहुत से परिवारों का सहारा बन गया है. इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक सूरत में कोरोना वायरस से चार लोगों की मौत हुई थी और उनका अंतिम संस्कार किया अब्दुल मालाबरी ने.
कोरोना वायरस से मर रहे सभी जाति-धर्म के लोगों का अंतिम संस्कार अब्दुल ही करवा रहे हैं. संक्रमण के डर की वजह से परिजन लाशों के पास तक नहीं आ रहे हैं. ऐसे में अब्दुल भाई लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं.

तीस साल से सेवा कर रहे हैं अब्दुल

बीबीसी गुजराती सेवा से बात करते हुए 51 साल के अब्दुल ने कहा, "मैं तीस सालों से लावारिस या छोड़ दिए गए शवों का अंतिम संस्कार कर रहा हूं. सड़कों पर रह रहे लोग, भिखारी, या फिर आत्महत्या करने वाले लोग, जिन्हें अंतिम विदाई देने वाला कोई नहीं होता."

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अब्दुल बताते हैं कि उनके साथ पैंतीस स्वयंसेवक काम करते हैं और उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी लोगों के अंतिम संस्कार किए हैं.
"जब कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ने लगे तो सूरत नगर निगम ने हमसे संपर्क किया. उन्होंने हमें बताया कि दुनियाभर में हज़ारों लोगों की मौत हो चुकी है. ऐसी मौतें सूरत में भी हो सकती हैं, ऐेसे लोगों के शव परिजनों को नहीं सौंपे जा सकते हैं."
"उन्होंने हमसे कहा कि क्या हम ऐेसे लोगों का अंतिम संस्कार कर सकते हैं और हम तुरंत राज़ी हो गए."
"हमने अलग अलग समय पर सेवा देने के लिए अपने बीस लोगों के नाम अधिकारियों को दिए. हमारे पास सभी ज़िला अधिकारियों और अस्पतालों के भी नंबर हैं और वो हमें कभी भी संपर्क कर सकते हैं. जैसे ही हमें कॉल आता है, हम अपनी किट के साथ निकल पड़ सकते हैं. डिप्टी कमिश्नर आशीष नाइक ने हमें बताया कि शवों का अंतिम संस्कार कैसे किया जाए, पीपीई किट का इस्तेमाल किया जाए, अपने आप को कैसे बचाया जाए."

अपने आप को कैसे बचाते हैं वो?

कोरोना वायरस से मरने वालों का अंतिम संस्कार करते हुए संक्रमण का ख़तरा रहता है.
अब्दुल बताते हैं, "हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं और बॉडी सूट, मास्क और दास्ताने पहनते हैं."
"शव पर रसायन छिड़का जाता है और फिर उसे पूरी तरह ढक दिया जाता है. हमारे पास शव ले जाने के लिए पांच वाहन हैं. इनमें से दो को हम सिर्फ़ कोरोना पीड़ितों के लिए ही आरक्षित रखते हैं. इन वाहनों को हम नियमित तौर पर सेनेटाइज़ करते हैं."

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वो कहते हैं, "हमारी संस्था एकता ट्रस्ट इस काम को तीन दशकों से कर रही है. सूरत और आसपास के ज़िलों में रोज़ाना दस-बारह शव मिलते हैं. नदियों, नहरों या रेलवे ट्रेक से शव मिलते हैं. हम ऐसे शवों का रोज़ाना अंतिम संस्कार करते हैं और इस दौरान मास्क और दास्ताने भी पहनते हैं."
"हमें इस काम में सरकार का भी सहयोग मिलता है. पुलिस, अग्निशमन और नगर निगम की टीमें भी हमारा सहयोग करती हैं."

ये डराने से ज़्यादा दर्दनाक है

मारे गए लोगों के परिजनों से जुड़े अपने अनुभव के बारे में बताते हुए अब्दुल कहते हैं, "जब कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो जाता है तो उनके परिवार को भी क्वारंटीन में रखा जाता है. उन्हें क्वारंटीन केंद्र भेज दिया जाता है."
"उन्हें वहां चौदह दिनों तक रखा जाता है और उनके टेस्ट भी किए जाते हैं. अगर इलाज के दौरान कोरोना संक्रमित की मौत हो जाती है तो उनके परिजन अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाते हैं. हमने सालों से क्षत-विक्षत शव देखे हैं, कोरोना हमारे लिए डरावना नहीं है लेकिन परिजनों को अपनों को अंतिम विदाई भी ने दे पाने को देखना दर्दनाक होता है."

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.
राज्य या केंद्र शासित प्रदेशकुल मामलेजो स्वस्थ हुएमौतें
महाराष्ट्र2916295187
दिल्ली15784032
तमिलनाडु124211814
राजस्थान10231473
मध्य प्रदेश9876453
गुजरात7666433
उत्तर प्रदेश7355111
तेलंगाना64712018
आंध्र प्रदेश5252014
केरल3882183
जम्मू और कश्मीर300364
कर्नाटक2798012
पश्चिम बंगाल231427
हरियाणा205433
पंजाब1862713
बिहार70291
ओडिशा60181
उत्तराखंड3790
हिमाचल प्रदेश35161
छत्तीसगढ़33170
असम3301
झारखंड2802
चंडीगढ़2170
लद्दाख17100
अंडमान निकोबार द्वीप समूह11100
गोवा750
पुडुचेरी710
मणिपुर210
मिज़ोरम100


स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
9: 43 IST को अपडेट किया गया
अब्दुल कहते हैं, "परिवार अंतिम वक़्त में अपनों के साथ होना चाहता है लेकिन कोरोना संक्रमण के मामले में ये संभव नहीं है."
"रिश्तेदार चाहते हैं कि उन्हें अंतिम संस्कार में शामिल होने दिया जाए. ऐसे मामलों में हम उन्हें अंतिम संस्कार स्थल तक अलग वाहन में ले जाते हैं और उनसे दूर से ही देखने और प्रार्थना करने के लिए कहते हैं."

"हम अपने परिवार से दूर रहते हैं"

अब्दुल भाई से जब पूछा कि उनके परिजनों की इस पर क्या प्रतिक्रिया है तो वो कहते हं, "परिवार ने सिर्फ़ इतना ही कहा, अपना ख़्याल रखो. हमारे पास सिर्फ़ तब ही किट होती है जब हम अस्पताल के कोरोना सेक्शन में होते हैं. अंतिम संस्कार के बाद हम किट हटा देते हैं."
"अंतिम संस्कार करने के बाद हम अपने हाथ और पैर गरम पानी से धोते हैं और साफ़ कपड़े पहनते हैं. हम सभी सावधानियां बरतते हैं लेकिन बावजूद इसके हमारे परिजनों के लिए ख़तरा तो बना ही रहता है. ये हालात सुधरने तक हम अपने परिवारों से नहीं मिल पाएंगे. हमारे दफ़्तर में ही हमारे रहने और आराम करने का इंतेज़ाम किया गया है."
अब्दुल भाई कहते हैं, "अब मुझे जानने वाले लोग जानते हैं कि मैं कोरोना से मारे जा रहे लोगों का अंतिम संस्कार करता हूं. लोग अब दूर से ही दुआ सलाम करते हैं. कोई मेरी कार में नहीं बैठता है. लेकिन मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है."
सरकार की ओर से मिलने वाली वित्तीय मदद के बारे में अब्दुल कहते हैं, "सरकार ने मदद की पेशकश की थी लेकिन हमारी संस्था के सदस्यों और शहर के लोगों से मिलने वाला चंदा ही पर्याप्त होता है. हमें कोई दिक्कत नहीं है."
बीबीसी से बात करते हुए सूरत नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर आशीष नाइक ने कहा, "ऐसे मुश्किल वक़्त में अब्दुल भाई महान कार्य कर रहे हैं. जब हमने उनसे संपर्क किया तो वो मदद करने के लिए तुरंत तैयार हो गए. उनकी टीम हमारे पास पंद्रह मिनट में ही पहुंच जाती है. अंतिम संस्कार के बाद वो स्थल के सेनेटाइज़ेशन में भी मदद करते हैं. वो प्रशंसनीय काम कर रहे हैं."

कोरोना वायरस

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