मुफ़्त राशन क्या हर ग़रीब तक पहुंच पा रहा है?
सोमवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ग़रीबों को जो मुफ़्त अनाज मिल रहा है वह दिवाली तक मिलेगा.
पिछले साल भी पहले लॉकडाउन के दौरान ऐसी ही घोषणा की गई थी जिसे बढ़ाकर 2020 की दीवाली तक किया गया था. बाद में बिहार चुनावों को देखते हुए इसे छठ तक बढ़ा दिया गया था.
बीबीसी ने जानने की कोशिश की है कि देश के अलग-अलग ग्रामीण इलाक़ों में ग़रीबों को राशन में क्या मिल रहा है, कितना मिल रहा है, और कितनी आसानी से या दिक़्क़तों के बाद मिल रहा है.
'लॉकडाउन में इससे राहत मिली'
उत्तरप्रदेश से समीरात्मज मिश्र
आगरा के रामबाग में रहने वाली 35 वर्षीय लता कहती हैं, "हमें मई से राशन मिल रहा है. प्रधानमंत्री योजना के तहत लॉकडाउन में बहुत सहायता मिली है. अब नवंबर तक और मिलेगा तो काफ़ी राहत होगी."
"एक सदस्य पर तीन किलो गेहूं और दो किलो चावल मिलता है. मेरे घर में पाँच लोग हैं तो इस हिसाब से हमें पंद्रह किलो गेहूं और दस किलो चावल मिल रहा है. इतने राशन से हमारा काम चल जा रहा है. हालांकि और चीज़ें हमें ख़रीदनी पड़ती हैं."
आगरा के ही 59 साल के आनंद का कहना है कि सरकार का यह क़दम बहुत ही बेहतरीन है.
उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "मई और जून में प्रधानमंत्री की योजना के तहत मुफ़्त राशन मिला है. अब इसे नवंबर तक यानी दिवाली तक बढ़ाया गया है. यह बहुत अच्छा क़दम है. ग़रीबों के लिए तो बहुत बड़ी राहत है. लॉकडाउन में लोगों का रोज़ी-रोज़गार बंद हो गया, भूखों मरने की नौबत आ गई. ऐसे में सरकार ने मुफ़्त राशन का जो इंतज़ाम किया है ग़रीबों के लिए वह बेहतरीन क़दम है."
सरकार की घोषणा से खुश हैं लोग
बिहार से सीटू तिवारी
पटना के आर ब्लॉक स्लम में रहने वाली आरती देवी अपना गुज़र-बसर झोला सिल कर करती हैं. उनके परिवार में आठ सदस्य हैं.
राशन कार्ड धारी आरती देवी अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहती हैं कि सरकार का ये अच्छा क़दम है.
बीते साल कोरोना के वक़्त भी उन्हें छह माह तक ज़्यादा राशन मिला था और साल 2021 में उन्हें मई माह में ज़्यादा राशन मिला है. हालांकि उनकी शिकायत मिलने वाले अनाज के वज़न और गुणवत्ता को लेकर है.
वो कहती हैं, "कई बार चावल ऐसा मिलता है कि सिर्फ़ छूने भर से ही भरभरा कर टूट जाता है. अनाज की मापी तो कभी ठीक से होती ही नहीं है. अगर 25 किलो चावल मिलना है तो वो निश्चित तौर पर 23 किलो ही मिलेगा."
रोहतास के दिनारा ब्लॉक के बरूना गांव के नारायण गिरी के परिवार में छह सदस्य हैं. वो दीपावली तक ग़रीब कल्याण प्रधानमंत्री राशन योजना के तहत राशन मिलने के आदेश का स्वागत करते हैं.
वो कहते हैं, "कोरोना के वक़्त लोग घर पर ही बैठे हुए हैं. काम चल नहीं रहा है, ऐसे में सरकार का ये अच्छा आदेश है. पिछली बार भी हम लोगों को राशन छठ तक मिला था और अबकी बार भी मई महीने में ज़्यादा राशन मिला है."
वो बताते हैं, "हमारे यहां राशन की क्वालिटी ठीक है. उसको लेकर जल्दी कभी कोई दिक़्क़त नहीं आती है."
'राशन नहीं मिलेगा तो घर कैसे चलायेंगे'
मध्यप्रदेश से शुरैह नियाज़ी
राजधानी भोपाल में रहने वाले प्रताप चलिते ने बताया कि कोरोना के बाद से उन्हें लगातार चावल, गेंहू और बाजरा मिल रहा है. हालांकि उन्हें अभी बताया गया है कि अब उन्हें दूसरी राशन की दुकान से ये सब सामान मिलेंगे.
जब उनसे पूछा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि उन लोगों को दीवाली तक सरकार की तरफ़ से मुफ़्त अनाज मिलता रहेगा तो उसमें उस पर उन्होंने कहा, "देखना पड़ेगा कि आख़िर हमें कब तक मिलता है."
वहीं भोपाल में ही रहने वाली 65 साल की अनार बाई का कहना है कि उन्हें कोरोना के बाद से गेंहू, बाजरा और चावल मिल रहा है, दुकानदार उन्हें ये सब चीज़ें देते रहे हैं.
हालांकि उन्होंने बताया कि इस महीने उन्हें अभी सिर्फ़ गेंहू मिला है लेकिन चावल और बाजरे का कोटा आ गया है और हो सकता है कि कुछ दिनों में यह मिल जाएं.
दीवाली तक मुफ़्त अनाज की प्रधानमंत्री की घोषणा पर उन्होंनें कहा, "हम जैसे ग़रीबों के लिये यह अच्छा है. हम लोगों को मिलते रहना चाहिये वरना हम अपना घर कैसे चलायेंगे. यह क़दम अच्छा है इसे आगे भी जारी रखना चाहिये."
'आय का साधन नहीं है, राशन से मदद होती है'
राजस्थान से मोहर सिंह मीणा
सीकर ज़िले की नीमकाथाना उपखंड के गांव भराला की 45 वर्षीय शांति देवी नवंबर तक राशन देने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा को अच्छा क़दम मानती हैं.
वह कहती हैं, "कल फ़ोन पर मैसेज आया तो मालूम हुआ कि दिवाली तक राशन मिलेगा. अभी भी राशन मिल रहा है, अपनी ग्राम पंचायत महावा में राशन डीलर पर कभी अनाज ख़त्म हो जाता है तो पड़ोस की गावड़ी पंचायत से ले आते हैं."
शांति देवी कहती हैं, "पति बीमार रहते हैं इसलिए आय का कोई साधन नहीं है. घर में दो बच्चों समेत चार सदस्यों का 20 किलो गेहूं मिलता है."
राजधानी जयपुर से क़रीब 60 किलोमीटर दूर टोंक ज़िले की मालपुरा तहसील में सीतारामपुर गांव के 48 वर्षीय नाथू लाल मीणा को चालीस किलो गेंहू मिल रहा है.
वह कहते हैं, "राज्य सरकार की योजना के तहत पाँच किलो प्रति सदस्य के लिए गेंहू मिल रहा है. अब प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत भी पाँच किलो प्रति सदस्य के हिसाब से भी गेंहू मिल रहा है."
वह बताते हैं कि घर में दो बच्चे और पत्नी हैं यानी चार सदस्यों के लिए अब चालीस किलो गेंहू मिलेगा. उनके अनुसार लॉकडाउन के दौरान अधिकतर परिवार आर्थिक तंगी से गुज़र रहे हैं, ऐसे में केंद्र सरकार का यह फ़ैसला अच्छा है.
वह मानते हैं कि उनके परिवार के साथ ही लाखों परिवारों के लिए यह फ़ैसला लाभकारी है. लेकिन, नवंबर तक समय से गेंहू मिलता रहे तो ही हितकारी होगा.
'चावल मिल रहा है दाल नहीं'
असम के मरियानी से दिलीप कुमार शर्मा
जोरहाट ज़िले के मरियानी में रहने वाली 43 साल की मिनोति दास एक प्राइवेट स्कूल में चपरासी की नौकरी करती हैं और कोरोना संक्रमण के कारण बीते कुछ दिनों से स्कूल बंद होने के चलते मिनोति का अब गुज़ारा करना मुश्किल हो रहा है.
अपनी परेशानी और प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के तहत मिलने वाले मुफ़्त अनाज पर बात करते हुए मिनोति ने बीबीसी से कहा, "हमारे पास राशन कार्ड है लेकिन एक व्यक्ति को महीने में केवल पाँच किलो चावल ही मुफ़्त मिलता है. हमारे परिवार में चार लोग हैं, इसलिए 20 किलो चावल मिला था. पिछले साल हमें तीन बार मुफ़्त चावल मिला था लेकिन बाद में बंद हो गया. अब फिर मई महीने से मिल रहा है. राशन के नाम पर केवल चावल ही मिलता है और कुछ नहीं देते. ऐसे में गुज़ारा करना बहुत मुश्किल हो रहा है. कोई दूसरी इनकम भी नहीं है."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुफ़्त राशन देने के फ़ैसले पर मिनोति कहती हैं, "प्रधानमंत्री जो राशन दे रहे हैं उससे घर नहीं चलता. हम चार लोग केवल 20 किलो चावल से पूरा महीना कैसे चला लेंगे. दूसरा कोई सामान जैसे दाल भी नहीं दे रहें हैं. खाने के सामान की क़ीमत भी बहुत है. मीठा (सरसों) तेल के एक लीटर की क़ीमत 200 रुपए है. ऐसे में घर नहीं चला पा रही हूं."
वहीं मरियानी की रहने वाली 42 साल की गीता डे कहती हैं, "सरकार की तरफ़ से जितना राशन मुफ़्त मिल रहा है उससे गुज़ारा नहीं हो पाता. मेरे पति का निधन हो गया है और दो बेटियों के साथ बहुत परेशानी में दिन गुज़ार रही हूं. हम परिवार में तीन लोग हैं और 15 किलो चावल मिलता है. उसमें भी 300 ग्राम चावल कम मिलता है. केवल चावल से कैसे गुज़ारा करें? इसके साथ दाल, तेल सब कुछ चाहिए."
गीता डे कहती हैं, "प्रधानमंत्री मुफ़्त राशन दे रहें है लेकिन कोई काम मिल जाता तो ज़्यादा अच्छा था. क्योंकि मेरा काम भी बंद हो गया है. इसलिए पैसे भी नहीं मिल रहें है. मैं प्राइवेट काम करती हूं इसलिए काम होगा तो पैसा मिलेगा. महंगाई बहुत है लेकिन मेरे अकेले के कहने से क्या होगा. सब लोग मिलकर आवाज़ उठाएंगे तभी कुछ होगा."
केंद्र सरकार द्वारा पीएम ग़रीब कल्याण योजना के तहत राशन कार्ड धारकों को पाँच किलो अनाज (गेहूं/चावल) तथा एक किलो दाल दी जाती है. लेकिन यहां केवल चावल ही मिल रहा है.
राशन नहीं मिलता तो खाने के लाले पड़ जाते
पश्चिम बंगाल से प्रभाकर मणि तिवारी
उत्तर 24-परगना ज़िला के बादुड़िया के रहने वाले 44 वर्षीय सुजित जाना कहते हैं कि राशन तो मिला लेकिन देरी से और कम भी मिला.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "हमें बीते साल लॉकडाउन के बाद प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के तहत राशन मिला था. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी मुफ़्त राशन की व्यवस्था की थी. लेकिन कोरो की दूसरी लहर में हमें मई में केंद्रीय योजना के तहत राशन नहीं मिला. केंद्र ने मुफ़्त राशन की समयसीमा बढ़ाई है, यह अच्छी बात है. लेकिन शीघ्र इसका समुचित वितरण सुनिश्चित करना चाहिए ताकि कोरोना की मार से जूझ रहे हम जैसे ग़रीबों को राहत मिल सके."
"बीते साल हमें केंद्रीय योजना के तहत राशन देरी से मिला था और एक महीने में कम मिला था. और एक महीने में जो चावल मिला था वह बेहद ख़राब क़िस्म का था. अब प्रधानमंत्री ने इस साल इसे बढ़ाया है तो उम्मीद है बढ़िया क़िस्म का चावल मिलेगा. कोरोना की वजह से बेटा बेरोज़गार हो गया है. केंद्र और राज्य सरकार की ओर से मिलने वाले राशन से खाने की समस्या काफ़ी हद तक ख़त्म हो जाएगी."
बांकुड़ा ज़िला के खातड़ा के रहने वाले 36 साल के रमेन दास कहते हैं कि फ़िलहाल तो उन्हें राज्य सरकार वाला ही राशन मिल रहा है.
बीबीसी से बातचीत में उनका कहना था, "मई में तो हमें राज्य सरकार वाला राशन ही मिला. अब राशन डीलर कह रहे हैं कि सप्लाई पहुँचने के बाद दोनों महीनों का राशन एक साथ दे दिया जाएगा. देखते हैं कि इस महीने क्या होता है?"
"वैसे, राज्य सरकार वाला राशन समय पर मिल रहा है. बीते साल से ही. यह नहीं होता तो हमारे परिवार को दो जून के खाने के लाले पड़ जाते. बीते साल कुछ महीनों तक हमें दो-दो राशन मिले थे. केंद्र सरकार की ओर से भी और राज्य सरकार की ओर से भी. लेकिन एक महीने में पूरी सामग्री नहीं मिली थी. और एक महीने में हमारे डीलर ने जो चावल दिया जो खाने लायक़ नहीं था. मुझे लगता है कि उसने चावल बदल दिया था. हालांकि उसका कहना था कि उसे यही चावल मिला है."
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