हिंदुत्व - मुल्क के लिए खतरा । # अंग्रेजों ने बंगाल में अपने मौकूफ को मजबूत बनाने के बाद और खसूसन नवाब सेराज़ुद दौला को 1756 में पलासी में शिकस्त देने के बाद जहाँ मीर जाफर ने गद्दारी की । और राजा मोहन राय ने नवाब के साथ खरे रहे । अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने महसूस किया की ......... अंग्रेज हिन्दुस्तान पर उस वक़्त तक हुकूमत कर सकते हैं जब तक मुसलमान और हिन्दूओं के दरमियान एखतेलाफ (नफरत, दुश्मनी ) रहेंगे । और जब ये दोनों मुत्तहिद हो जायेंगे तो इस बड़े मुल्क हिन्दुस्तान को छोड़ना पड़ेगा । इसलिए उन्होंने हिंदुस्तान की तारीख को इस अंदाज़ में दुबारा लिखवाया और केकई झूठे घटनाओं का इजाफा किया के हिंदुस्तान के उन दोनों मजहबी गिरोहों के दरमियान बेगानगी और एक्तेलाफ और दुश्मनी के बीज बो दिए जाएँ । आज़ादी की पहली जंग 1857 में अंग्रेजों ने देख लिया के हिन्दुओं और मुसलमानों के दरमियाँ दरार पैदा करने का काम उनकी आरज़ू के मुताबिक़ नहीं हुआ । मेरठ के उन सिपाहियों की जुबानों पर जिन्होंने अंग्रेज आकाओं से बगावत की थी ,दिन - दिन का नारा था । अंग्रेजों के एक्तेदार के खेलाफ जो भी उठ खड़ा हुआ ,चाहे वह हिन्दू हो कि मुसलमान उसने यही एलान किया की मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र हमारा शहंशाह है । इसका एतराफ़ (स्वीकार ) वी.डी सावरकर ने अपनी किताब " The indian war of independence "में किया है के बहादुर शाह ज़फर ने हिन्दुओं और मुसलमानों के दिलों में और हमारे मुल्क से अंग्रेजों को निकाल बाहर करने की आरज़ू पैदा की । # अब अंग्रेजों ने अपनी कोशिशों को दुगुना कर दिया । अब उनकी कोशिश रही के मुस्लिम हुक्मरानों को मंदिर तोड़ने वाला ,और हिन्दू औरतों की इज्ज़त लूटने वाला ज़ालिम और खूंखार और जब्र और जुल्म के जरिये हिन्दुओं का मजहब तब्दील करवाने वाला बनाकर पेश किया जाए । और बताया जाए की अंग्रेजों ने ऐसे बुरे हालात में हिन्दुनों की रक्षा की । अंग्रेज हिन्दुओं के मोहसीन ( यानी दोस्त ,हमदर्द ) हैं ।इसलिए हिन्दुओं का काम है हिन्दुस्तान में अंग्रेजों की हुकूमत के केयाम और इस्तेहकाम ( अस्थापना और मजबूती ) में मदद करें । इस पश्मंजर में और अंग्रेजों के मकसद को बढाने के लिए बंकिम चंद्र चट्टो पाध्याये (1837- 1894 ) ने जिस को चटर्जी भी कहा जाता है । अपने अँगरेज़ आकाओं को खुश करने के लिए नॉवेल " आनंद मठ " लिखी ये कंपनी की हुकूमत में एक मुलाजिम था ।और deputy magistrate के ओहदे पर फाएज था । सितम जरिफी ये है की चंद्र ने बंगाल के मशहुर अवामी फायेदा पहुंचाने वाली शख्सियत मोहम्मद मोहसीन से रकमी वजीफा पाकर आला तालीम हासिल की और उसी ने मुस्लिम दुश्मन नॉवेल "आनंद मठ" लिखी । जिसने हिन्दू और मुसलमानों के दरमियान नफरत को बढ़ावा दिया और अंग्रेजों की हुकूमत को मजबूती प्रदान की । इस नॉवेल में बंगाल के मुस्लिम हुक्मरानों और म्य्सल्मानों के खेलाफ साधुओं के सरदार "सत्यानंद " को जब मालुम होता है और बताया जाता है कि मुसल्नानों की हुकूमत ख़त्म हो गयी और अंग्रेजों ने अपना राज़ कायेम कर लिया है तो अपनी तहरीक खत्म कर देता है ।
हिंदुत्व - मुल्क के लिए खतरा ।
( पार्ट एक )
हमारा मुल्क हिंदुस्तान दुनिया का एक बड़ा मुल्क है ,आबादी के लिहाज से सारी दुनिया में दूसरा सबसे जयादा आबादी रखने वाला मुल्क है । हिंदुस्तान की शानदार तारीख है चाहे कदीम दौर हो या अहदे वस्ता हो ,हिंदुस्तान की तारीख मालामाल है । जो अपने आवाम में रौशन मुस्तकबिल की तरफ ( ब्राइट फ्यूचर ) की तरफ बढ़ने का जज्बा जगाती है ।
बरतानवी राज से आज़ादी की जद्दोजहद के दौरान हमारे कायेदीन मुल्क के बारे में एक अज़ीम त'सौयुर रखते थे( बिग इमेजिंग )ये जद्दोजेहद ( struggle) सिर्फ अंग्रेजी सामराज़ से मुल्क को आज़ाद करने के लिए ही नहीं बल्कि वह मुल्क को एक ऐसे रास्ते पर ले जाना चाहते थे । जिससे वह बाहमी मुफाहेमत और मसावात पर आधारित समाजी ढाँचे और मजाहिब के दरमियान हम आहंगी ( सामाजिक और धार्मिक सौहार्द )के जरिये दुनिया की दूसरी कौमों के लिए एक नमूना साबित हो । और एक ऐसा मुल्क हो जहाँ इन्साफ का दौर दौरा रहे ।
हिंदुस्तान एक कसीर नस्ली ,कसीर लेसानी ,और कसीर सेकाफाती ( अनेक धर्म ,अनेक भाषा ,और विभिन सांस्कृतिक )मुल्क है । जहाँ के आवाम मुख्लतिफ़ अकायेद ( यानी विभिन आस्था )को मानने वाले हैं । ये बात महत्पूर्ण और जरुरी था था और आज भी जरुरी है । इसको ऐसा मुल्क बनाया जाये जहाँ एक मकसद के के लिए विभिन नस्लों ,जातों ,जुबानों से सम्बन्ध रखने वाले आवाम में आपसी विस्वास पायी जाए ।
जनवरी 1947 में जबकि मुल्क की फेजा में बड़ा तनाव था और हालात देश की बटवारे के मुताल्बे की वजह से बिगड़े हुए थे । और ये मुतालेबा ( मांग ) जोर पकड़ता जा रहा था । और बरतानवी हुकूमत इसको कबूल करने लगे थे । ऐसे इन्तेसार और तनाव के माहौल में दस्तूर साज असेम्बली में एक क़रारदाद ( बिल ) क़रारदाद मक़ासिद के नाम से पेश की गयी जिसे 1 जनवरी 1947 को मंजूर हुई इस क़रारदाद ( bill) में जो महत्पूर्ण बातें थीं वह इस प्रकार हैं ।
# समाजी इन्साफ ,म'आसी ,सियासी इन्साफ ,और हैसियत की ,मर्तबा की मवाके मसावात(equal apportunity ) और कानून के सामने मसावात (equity before law ),फ़िक्र और इज़हार की ,अकीदत की ,इबादत की ,पेशे की । अंजुमन साजी की और अमल आजादी इन तमाम की जमानत हिंदुस्तान के तमाम शहरियों को दी जायेगी और उनको फराहम की जाएँगी ।
# जहाँ अकलियतों , backward और sc ,ST और बाकी backward classes के लिए मोनासिब सुरक्षा उपलब्ध किये जायेंगे ।
# ये क़दीम मुल्क दुनिया में अपना मुस्तःका और मु'अज्जज मुकाम हासिल करेगा और इंसानियत के फरोग ( मानवता के उत्थान ) के लिए अपना अहम् किरदार अदा करेगा । क़रारदाद मक़ासिद असेम्ली में उस वक़्त मंजूर हुई जबकि हिन्दुस्तानी आवाम के दरमियान बेगानगी की खायी चौड़ी हो चुकी थी । इस पश्मंजर में इस क़रारदाद का पास होना एक अहम वाकेया ( महत्पूर्ण घटना )है ।
दस्तूर साज असेम्ली के अरकान हमारे दस्तूर को बनाने वाले और हिंदुस्तान के जम्हूरी मिजाज के अवाम की नजर बहुत दूररस थी ।अब उन्होंने दूर की मुस्तकबिल में एक शानदार हिन्दुस्तान की तश्वीर देखी । उनका यकीन था की शानदार हिंदुस्तान को एक सेक्युलर मम्लेक़त और इस हैसियत में रहना चाहिए जहाँ मुल्क का कोई मजहब न हो । इसलिए दस्तूर में खसुसी दफ'आत रखी गयीं । जिनके जरिये जमीर की आज़ादी अकीदा रखने ,अकीदा पर अमल करने और अकीदा यानी मजहब की अशा'अत करने की आज़ादी और मजहबी मामलात को अंजाम देने और उनका इन्तेजाम करने की आज़ादी और अकलियतों के मुफादात के तहफ्फुज ( सुरक्षा ) की जमानत दी गयी । SC & ST के किये विशेष छुट दी गयी । इस बेना पर ये कहा जा सकता है की हमारा दस्तूर हिंदुस्तान के अवाम किया गया एक मुक़द्दस अहद ( यानी पवित्र क़सम ) है । मम्लेकत यानी आमेला, कानून सजिया और अदलिया इन असूलों की बुनियाद पर हिन्दुस्तानी समाज की तशकील के लिए हर मुमकिन कोशीश करेंगे । । क़रारदाद मक़ासिद हमारे मुल्क के सफ़र में एक अहम् संगमील है ।और दस्तूर के इइब्तदायिया का पेश खेमा है । और ये इन मक़ासिद को दस्तूर साजों के सामने तफसील से रखना है । और उन मक़ासिद को दस्तूर के इब्तेदा में जो 26/ 11/1949 को मंजूर हुआ यूँ दर्ज किया गया ।
हम हिंदुस्तान के अवाम अहद मोक़द्दस करते हैं कि हिंदुस्तान को मुक्तदर आला जम्हूरी रिपब्लिक बनायेंगे । और उसके तमाम शहरियों को ये चीजें हासिल होंगी ।
इंसाफ # समाजी , म'आसी ,और सियासी
आज़ादी # खेयाल की आज़ादी ,इज़हार की आजादी ,अकीदत की आज़ादी ,मजहब की आज़ादी , और इबादत की आज़ादी ।
मसावात (equality) # हसियत की ,मवाके ( अवसर ) और मसावात को सबके दरमियान फरोग दिया जाएगा ।
इख्वत # फर्द के एहतराम और कौम के इत्तहाद तलकीन के साथ इस तरह हमारे दस्तूर ने मुल्क और अवाम के सामने एक शानदार मक़ासिद रखा है जिसको हमें हासिल करना है । ये मकसद अल्फाज में जाहिर होने के साथ साथ दस्तूर में अवाम को दिए गए बुनियादी हकूक में भी पोशीदा है । बाब 3 के tiqnat ibtadayiya के साथ मिलकर इस बात को यकीनी बना देते हैं के कभी बुनियादी हकूक अक्सरियती ( बहुसंख्यक ) समुदाय के हाथों का खिलौना नहीं बंजाबंजायेंगे । इन बुनियादी हकूक का मकसद मसावात पर मबनी समाज की तशकील है , जहाँ तमाम शहरी जोर जबरदस्ती और दबाव से आज़ाद हों । दस्तूर में एक नए हिस्से का इजाफा बुनियादी फरायेज के अनवान से 1976 में किया गया । ये इजाफा आर्टिकल ( 51 - A )है चंद बुनियादी फरायेज दर्ज जेल हैं ।
1. दस्तूर की ताबेदारी करना और उसमे दर्ज त' सौवेरात का एहतराम करना ।
2. उन आला त' सौवेरात को अज़ीज़ रखना और उनकी पैरवी करना के इन त'सौवेरात ने मुल्क की आशआज़ादी की जद्दोज़हद का जज्बा जगाया था ।
3. हम आहंगी को और हिन्दुस्तान के तमाम अवाम के दरमियान मुस्तरका भाई चारगी के जज्बे को मजहबी ,लेसानी ,और तब्काती ,तसौवेरात से बुलंद होकर फरोग देना ,खवातीन के एहतराम को मुतास्सिर करने वाली रवायत को ख़त्म करना ।
4. हमारी मख्लुत कल्चर की मालामाल वेरासत की कद्र करना और इसको कायम रखना ।
अब सवाल ये है कि क्या ऐसे नजरिये को जो दस्तूर में दिए गए हैं त'सौवेरात से बिलकुल मुख्तलिफ बल्कि मुत्तजाद (विरिधाभासी )हो ,फैलने और दस्तूर को अपनी गिरफ्त में लेने की अज़ज़इजाज़त दी जा सकती है .? और ये कि क्या रियासत की जिम्मेदारी बल्कि उसका एक अहम् फ़र्ज़ नहीं है की वह ऐसी जेहनियत और नजरियात पर पाबंदी लगाए ।और ऐसी सरगर्मियों पर इम्तना आयद करे ।?
# अंग्रेजों ने बंगाल में अपने मौकूफ को मजबूत बनाने के बाद और खसूसन नवाब सेराज़ुद दौला को 1756 में पलासी में शिकस्त देने के बाद जहाँ मीर जाफर ने गद्दारी की । और राजा मोहन राय ने नवाब के साथ खरे रहे । अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने महसूस किया की ......... अंग्रेज हिन्दुस्तान पर उस वक़्त तक हुकूमत कर सकते हैं जब तक मुसलमान और हिन्दूओं के दरमियान एखतेलाफ (नफरत, दुश्मनी ) रहेंगे । और जब ये दोनों मुत्तहिद हो जायेंगे तो इस बड़े मुल्क हिन्दुस्तान को छोड़ना पड़ेगा । इसलिए उन्होंने हिंदुस्तान की तारीख को इस अंदाज़ में दुबारा लिखवाया और केकई झूठे घटनाओं का इजाफा किया के हिंदुस्तान के उन दोनों मजहबी गिरोहों के दरमियान बेगानगी और एक्तेलाफ और दुश्मनी के बीज बो दिए जाएँ ।
आज़ादी की पहली जंग 1857 में अंग्रेजों ने देख लिया के हिन्दुओं और मुसलमानों के दरमियाँ दरार पैदा करने का काम उनकी आरज़ू के मुताबिक़ नहीं हुआ । मेरठ के उन सिपाहियों की जुबानों पर जिन्होंने अंग्रेज आकाओं से बगावत की थी ,दिन - दिन का नारा था । अंग्रेजों के एक्तेदार के खेलाफ जो भी उठ खड़ा हुआ ,चाहे वह हिन्दू हो कि मुसलमान उसने यही एलान किया की मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र हमारा शहंशाह है । इसका एतराफ़ (स्वीकार ) वी.डी सावरकर ने अपनी किताब " The indian war of independence "में किया है के बहादुर शाह ज़फर ने हिन्दुओं और मुसलमानों के दिलों में और हमारे मुल्क से अंग्रेजों को निकाल बाहर करने की आरज़ू पैदा की ।
# अब अंग्रेजों ने अपनी कोशिशों को दुगुना कर दिया । अब उनकी कोशिश रही के मुस्लिम हुक्मरानों को मंदिर तोड़ने वाला ,और हिन्दू औरतों की इज्ज़त लूटने वाला ज़ालिम और खूंखार और जब्र और जुल्म के जरिये हिन्दुओं का मजहब तब्दील करवाने वाला बनाकर पेश किया जाए । और बताया जाए की अंग्रेजों ने ऐसे बुरे हालात में हिन्दुनों की रक्षा की । अंग्रेज हिन्दुओं के मोहसीन ( यानी दोस्त ,हमदर्द ) हैं ।इसलिए हिन्दुओं का काम है हिन्दुस्तान में अंग्रेजों की हुकूमत के केयाम और इस्तेहकाम ( अस्थापना और मजबूती ) में मदद करें । इस पश्मंजर में और अंग्रेजों के मकसद को बढाने के लिए बंकिम चंद्र चट्टो पाध्याये (1837- 1894 ) ने जिस को चटर्जी भी कहा जाता है । अपने अँगरेज़ आकाओं को खुश करने के लिए नॉवेल " आनंद मठ " लिखी ये कंपनी की हुकूमत में एक मुलाजिम था ।और deputy magistrate के ओहदे पर फाएज था । सितम जरिफी ये है की चंद्र ने बंगाल के मशहुर अवामी फायेदा पहुंचाने वाली शख्सियत मोहम्मद मोहसीन से रकमी वजीफा पाकर आला तालीम हासिल की और उसी ने मुस्लिम दुश्मन नॉवेल "आनंद मठ" लिखी । जिसने हिन्दू और मुसलमानों के दरमियान नफरत को बढ़ावा दिया और अंग्रेजों की हुकूमत को मजबूती प्रदान की । इस नॉवेल में बंगाल के मुस्लिम हुक्मरानों और म्य्सल्मानों के खेलाफ साधुओं के सरदार "सत्यानंद " को जब मालुम होता है और बताया जाता है कि मुसल्नानों की हुकूमत ख़त्म हो गयी और अंग्रेजों ने अपना राज़ कायेम कर लिया है तो अपनी तहरीक खत्म कर देता है ।
" तुम्हारी ख्वाहिश पूरी हो गयी तुम को तुम्हारा मकसद मिल गया अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत कायम कर ली .......... अब लोगों की त ' वज्जोह जमीन ने खेती करने की तरफ पलटाव ............अंग्रेजों की हुकूमत हमारी दोस्त है कोई अंग्रेजों से लड़ के जीत नहीं सकता " ...........किसी के पास इतनी ताक़त नहीं है " तब सत्यानंद ने अपने मुस्लिम दुश्मन volunteers की फ़ौज को तहलील ( विघटन ) कर के " धेयान ज्ञान " के लिए हेमालय का रुख किया । अब आप अपने आप से सवाल कीजिये की इस फर्जी कहानी को जिस मे बंगाल के एक्तेदार (सत्ता )अंग्रेजों के कब्जा पर ख़ुशी का इज़हार किया गया है । एक तारीखी किताब समझने और मुसलामानों के खेलाफ फर्जी जंगी मुहीम के फैजी तराने " वंदे मातरम " को कौमी तराना का दर्ज़ा दिया जाए ।? जिसके बाज़ बंद मुसलमानों के एक खुदा त'सौवुर के बिलकुल खेलाफ है । मसलन...... वंदे मातरम, तुमी विद्या ,तुमी धर्म ,तुमी हरी ,तुमी करम ,तुही प्राण शरीर..........तुही दुर्गा , वश पर हरण धारणी ,कमला कमल दिल वभारनी ।।
इसके आखरी बंद में दुर्गा से प्राथना की गयी है कि वह हिन्दुओं को इतनी शक्ति दे के मुसलामानों का खून उसके क़दमों पर निछावर कर सकें ।
क्या ये बात मुनासिब है? और क्या ये बात अदल व इन्साफ की है कि हिन्दुस्तानी मुसलमानों से ऐसा तराना पढ़ने या उस तराने का एहतराम करने को कहा जाए ।? जिसमें मुसलामानों के अकीदा के खेलाफ बात और मुसलामानों के खून बहाने की बात कही गयी ।?
नॉवेल " आनंद मठ " बहुत मकबूल हुआ और उसके जरिये बंगाल के हिन्दुओं में मुसलामानों के खेलाफ नफरत और दुश्मनी के जज्बात पैदा हुए ।
महाराष्ट्र में वी डी सावरकर की सख्सियत एक मुखालिफ अँगरेज़ इन्क़लाबी की हैसियत से पहले उभरती है ,उसने किताब लिखी और शाये ( प्रकाशन ) की जिसका नाम "the indian war of 1857 " है , उस कितब में उसने उन दिनों हिन्दुओं और मुसलमानों के दरमियान पाए जाने वाली मुफाहेमत की तारीफ़ की है और उसको मूलमुल्क की आबादी के लिए जरुरी करार दिया है । उनहोंने लिखा है
" उसने अपने एलान में दिल्ली के शहंशा ने सौराज के केयाम की बात कही और हिन्दुस्तान के बेटों अगर तुम इरादा कर लो तो आन की आन में तुम दुशमन तो ख़त्म कर सकते हो ,हम दुश्मन को खत्म करेंगे ।और अपने मजहब और मुल्क को जो हमें अपनी जान से जेयादह पयार है ,उनके खौफ से निकालेंगे ।,दुनिया में ऐसी इन्केलाबी जंग से जेयादा और क्या मोक़द्दस है ? वह जंग जिसके ऊँचे असूलों का इज़हार इस जुमले में किया गया है के " हमारे मजहब और हमारे मुल्क की जो हमको हमारी जान से जेयादा पयार है , खौफ से रिहाई ,1857 के इंक़लाब का हिन्जास मकसद और मुत हर्रिक करने वाले अलफ़ाज़ के साथ बोया गया जो देहली के तख़्त से इर्द हुए ।
( पार्ट एक )
हमारा मुल्क हिंदुस्तान दुनिया का एक बड़ा मुल्क है ,आबादी के लिहाज से सारी दुनिया में दूसरा सबसे जयादा आबादी रखने वाला मुल्क है । हिंदुस्तान की शानदार तारीख है चाहे कदीम दौर हो या अहदे वस्ता हो ,हिंदुस्तान की तारीख मालामाल है । जो अपने आवाम में रौशन मुस्तकबिल की तरफ ( ब्राइट फ्यूचर ) की तरफ बढ़ने का जज्बा जगाती है ।
बरतानवी राज से आज़ादी की जद्दोजहद के दौरान हमारे कायेदीन मुल्क के बारे में एक अज़ीम त'सौयुर रखते थे( बिग इमेजिंग )ये जद्दोजेहद ( struggle) सिर्फ अंग्रेजी सामराज़ से मुल्क को आज़ाद करने के लिए ही नहीं बल्कि वह मुल्क को एक ऐसे रास्ते पर ले जाना चाहते थे । जिससे वह बाहमी मुफाहेमत और मसावात पर आधारित समाजी ढाँचे और मजाहिब के दरमियान हम आहंगी ( सामाजिक और धार्मिक सौहार्द )के जरिये दुनिया की दूसरी कौमों के लिए एक नमूना साबित हो । और एक ऐसा मुल्क हो जहाँ इन्साफ का दौर दौरा रहे ।
हिंदुस्तान एक कसीर नस्ली ,कसीर लेसानी ,और कसीर सेकाफाती ( अनेक धर्म ,अनेक भाषा ,और विभिन सांस्कृतिक )मुल्क है । जहाँ के आवाम मुख्लतिफ़ अकायेद ( यानी विभिन आस्था )को मानने वाले हैं । ये बात महत्पूर्ण और जरुरी था था और आज भी जरुरी है । इसको ऐसा मुल्क बनाया जाये जहाँ एक मकसद के के लिए विभिन नस्लों ,जातों ,जुबानों से सम्बन्ध रखने वाले आवाम में आपसी विस्वास पायी जाए ।
जनवरी 1947 में जबकि मुल्क की फेजा में बड़ा तनाव था और हालात देश की बटवारे के मुताल्बे की वजह से बिगड़े हुए थे । और ये मुतालेबा ( मांग ) जोर पकड़ता जा रहा था । और बरतानवी हुकूमत इसको कबूल करने लगे थे । ऐसे इन्तेसार और तनाव के माहौल में दस्तूर साज असेम्बली में एक क़रारदाद ( बिल ) क़रारदाद मक़ासिद के नाम से पेश की गयी जिसे 1 जनवरी 1947 को मंजूर हुई इस क़रारदाद ( bill) में जो महत्पूर्ण बातें थीं वह इस प्रकार हैं ।
# समाजी इन्साफ ,म'आसी ,सियासी इन्साफ ,और हैसियत की ,मर्तबा की मवाके मसावात(equal apportunity ) और कानून के सामने मसावात (equity before law ),फ़िक्र और इज़हार की ,अकीदत की ,इबादत की ,पेशे की । अंजुमन साजी की और अमल आजादी इन तमाम की जमानत हिंदुस्तान के तमाम शहरियों को दी जायेगी और उनको फराहम की जाएँगी ।
# जहाँ अकलियतों , backward और sc ,ST और बाकी backward classes के लिए मोनासिब सुरक्षा उपलब्ध किये जायेंगे ।
# ये क़दीम मुल्क दुनिया में अपना मुस्तःका और मु'अज्जज मुकाम हासिल करेगा और इंसानियत के फरोग ( मानवता के उत्थान ) के लिए अपना अहम् किरदार अदा करेगा । क़रारदाद मक़ासिद असेम्ली में उस वक़्त मंजूर हुई जबकि हिन्दुस्तानी आवाम के दरमियान बेगानगी की खायी चौड़ी हो चुकी थी । इस पश्मंजर में इस क़रारदाद का पास होना एक अहम वाकेया ( महत्पूर्ण घटना )है ।
दस्तूर साज असेम्ली के अरकान हमारे दस्तूर को बनाने वाले और हिंदुस्तान के जम्हूरी मिजाज के अवाम की नजर बहुत दूररस थी ।अब उन्होंने दूर की मुस्तकबिल में एक शानदार हिन्दुस्तान की तश्वीर देखी । उनका यकीन था की शानदार हिंदुस्तान को एक सेक्युलर मम्लेक़त और इस हैसियत में रहना चाहिए जहाँ मुल्क का कोई मजहब न हो । इसलिए दस्तूर में खसुसी दफ'आत रखी गयीं । जिनके जरिये जमीर की आज़ादी अकीदा रखने ,अकीदा पर अमल करने और अकीदा यानी मजहब की अशा'अत करने की आज़ादी और मजहबी मामलात को अंजाम देने और उनका इन्तेजाम करने की आज़ादी और अकलियतों के मुफादात के तहफ्फुज ( सुरक्षा ) की जमानत दी गयी । SC & ST के किये विशेष छुट दी गयी । इस बेना पर ये कहा जा सकता है की हमारा दस्तूर हिंदुस्तान के अवाम किया गया एक मुक़द्दस अहद ( यानी पवित्र क़सम ) है । मम्लेकत यानी आमेला, कानून सजिया और अदलिया इन असूलों की बुनियाद पर हिन्दुस्तानी समाज की तशकील के लिए हर मुमकिन कोशीश करेंगे । । क़रारदाद मक़ासिद हमारे मुल्क के सफ़र में एक अहम् संगमील है ।और दस्तूर के इइब्तदायिया का पेश खेमा है । और ये इन मक़ासिद को दस्तूर साजों के सामने तफसील से रखना है । और उन मक़ासिद को दस्तूर के इब्तेदा में जो 26/ 11/1949 को मंजूर हुआ यूँ दर्ज किया गया ।
हम हिंदुस्तान के अवाम अहद मोक़द्दस करते हैं कि हिंदुस्तान को मुक्तदर आला जम्हूरी रिपब्लिक बनायेंगे । और उसके तमाम शहरियों को ये चीजें हासिल होंगी ।
इंसाफ # समाजी , म'आसी ,और सियासी
आज़ादी # खेयाल की आज़ादी ,इज़हार की आजादी ,अकीदत की आज़ादी ,मजहब की आज़ादी , और इबादत की आज़ादी ।
मसावात (equality) # हसियत की ,मवाके ( अवसर ) और मसावात को सबके दरमियान फरोग दिया जाएगा ।
इख्वत # फर्द के एहतराम और कौम के इत्तहाद तलकीन के साथ इस तरह हमारे दस्तूर ने मुल्क और अवाम के सामने एक शानदार मक़ासिद रखा है जिसको हमें हासिल करना है । ये मकसद अल्फाज में जाहिर होने के साथ साथ दस्तूर में अवाम को दिए गए बुनियादी हकूक में भी पोशीदा है । बाब 3 के tiqnat ibtadayiya के साथ मिलकर इस बात को यकीनी बना देते हैं के कभी बुनियादी हकूक अक्सरियती ( बहुसंख्यक ) समुदाय के हाथों का खिलौना नहीं बंजाबंजायेंगे । इन बुनियादी हकूक का मकसद मसावात पर मबनी समाज की तशकील है , जहाँ तमाम शहरी जोर जबरदस्ती और दबाव से आज़ाद हों । दस्तूर में एक नए हिस्से का इजाफा बुनियादी फरायेज के अनवान से 1976 में किया गया । ये इजाफा आर्टिकल ( 51 - A )है चंद बुनियादी फरायेज दर्ज जेल हैं ।
1. दस्तूर की ताबेदारी करना और उसमे दर्ज त' सौवेरात का एहतराम करना ।
2. उन आला त' सौवेरात को अज़ीज़ रखना और उनकी पैरवी करना के इन त'सौवेरात ने मुल्क की आशआज़ादी की जद्दोज़हद का जज्बा जगाया था ।
3. हम आहंगी को और हिन्दुस्तान के तमाम अवाम के दरमियान मुस्तरका भाई चारगी के जज्बे को मजहबी ,लेसानी ,और तब्काती ,तसौवेरात से बुलंद होकर फरोग देना ,खवातीन के एहतराम को मुतास्सिर करने वाली रवायत को ख़त्म करना ।
4. हमारी मख्लुत कल्चर की मालामाल वेरासत की कद्र करना और इसको कायम रखना ।
अब सवाल ये है कि क्या ऐसे नजरिये को जो दस्तूर में दिए गए हैं त'सौवेरात से बिलकुल मुख्तलिफ बल्कि मुत्तजाद (विरिधाभासी )हो ,फैलने और दस्तूर को अपनी गिरफ्त में लेने की अज़ज़इजाज़त दी जा सकती है .? और ये कि क्या रियासत की जिम्मेदारी बल्कि उसका एक अहम् फ़र्ज़ नहीं है की वह ऐसी जेहनियत और नजरियात पर पाबंदी लगाए ।और ऐसी सरगर्मियों पर इम्तना आयद करे ।?
# अंग्रेजों ने बंगाल में अपने मौकूफ को मजबूत बनाने के बाद और खसूसन नवाब सेराज़ुद दौला को 1756 में पलासी में शिकस्त देने के बाद जहाँ मीर जाफर ने गद्दारी की । और राजा मोहन राय ने नवाब के साथ खरे रहे । अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने महसूस किया की ......... अंग्रेज हिन्दुस्तान पर उस वक़्त तक हुकूमत कर सकते हैं जब तक मुसलमान और हिन्दूओं के दरमियान एखतेलाफ (नफरत, दुश्मनी ) रहेंगे । और जब ये दोनों मुत्तहिद हो जायेंगे तो इस बड़े मुल्क हिन्दुस्तान को छोड़ना पड़ेगा । इसलिए उन्होंने हिंदुस्तान की तारीख को इस अंदाज़ में दुबारा लिखवाया और केकई झूठे घटनाओं का इजाफा किया के हिंदुस्तान के उन दोनों मजहबी गिरोहों के दरमियान बेगानगी और एक्तेलाफ और दुश्मनी के बीज बो दिए जाएँ ।
आज़ादी की पहली जंग 1857 में अंग्रेजों ने देख लिया के हिन्दुओं और मुसलमानों के दरमियाँ दरार पैदा करने का काम उनकी आरज़ू के मुताबिक़ नहीं हुआ । मेरठ के उन सिपाहियों की जुबानों पर जिन्होंने अंग्रेज आकाओं से बगावत की थी ,दिन - दिन का नारा था । अंग्रेजों के एक्तेदार के खेलाफ जो भी उठ खड़ा हुआ ,चाहे वह हिन्दू हो कि मुसलमान उसने यही एलान किया की मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र हमारा शहंशाह है । इसका एतराफ़ (स्वीकार ) वी.डी सावरकर ने अपनी किताब " The indian war of independence "में किया है के बहादुर शाह ज़फर ने हिन्दुओं और मुसलमानों के दिलों में और हमारे मुल्क से अंग्रेजों को निकाल बाहर करने की आरज़ू पैदा की ।
# अब अंग्रेजों ने अपनी कोशिशों को दुगुना कर दिया । अब उनकी कोशिश रही के मुस्लिम हुक्मरानों को मंदिर तोड़ने वाला ,और हिन्दू औरतों की इज्ज़त लूटने वाला ज़ालिम और खूंखार और जब्र और जुल्म के जरिये हिन्दुओं का मजहब तब्दील करवाने वाला बनाकर पेश किया जाए । और बताया जाए की अंग्रेजों ने ऐसे बुरे हालात में हिन्दुनों की रक्षा की । अंग्रेज हिन्दुओं के मोहसीन ( यानी दोस्त ,हमदर्द ) हैं ।इसलिए हिन्दुओं का काम है हिन्दुस्तान में अंग्रेजों की हुकूमत के केयाम और इस्तेहकाम ( अस्थापना और मजबूती ) में मदद करें । इस पश्मंजर में और अंग्रेजों के मकसद को बढाने के लिए बंकिम चंद्र चट्टो पाध्याये (1837- 1894 ) ने जिस को चटर्जी भी कहा जाता है । अपने अँगरेज़ आकाओं को खुश करने के लिए नॉवेल " आनंद मठ " लिखी ये कंपनी की हुकूमत में एक मुलाजिम था ।और deputy magistrate के ओहदे पर फाएज था । सितम जरिफी ये है की चंद्र ने बंगाल के मशहुर अवामी फायेदा पहुंचाने वाली शख्सियत मोहम्मद मोहसीन से रकमी वजीफा पाकर आला तालीम हासिल की और उसी ने मुस्लिम दुश्मन नॉवेल "आनंद मठ" लिखी । जिसने हिन्दू और मुसलमानों के दरमियान नफरत को बढ़ावा दिया और अंग्रेजों की हुकूमत को मजबूती प्रदान की । इस नॉवेल में बंगाल के मुस्लिम हुक्मरानों और म्य्सल्मानों के खेलाफ साधुओं के सरदार "सत्यानंद " को जब मालुम होता है और बताया जाता है कि मुसल्नानों की हुकूमत ख़त्म हो गयी और अंग्रेजों ने अपना राज़ कायेम कर लिया है तो अपनी तहरीक खत्म कर देता है ।
" तुम्हारी ख्वाहिश पूरी हो गयी तुम को तुम्हारा मकसद मिल गया अंग्रेजों ने अपनी हुकूमत कायम कर ली .......... अब लोगों की त ' वज्जोह जमीन ने खेती करने की तरफ पलटाव ............अंग्रेजों की हुकूमत हमारी दोस्त है कोई अंग्रेजों से लड़ के जीत नहीं सकता " ...........किसी के पास इतनी ताक़त नहीं है " तब सत्यानंद ने अपने मुस्लिम दुश्मन volunteers की फ़ौज को तहलील ( विघटन ) कर के " धेयान ज्ञान " के लिए हेमालय का रुख किया । अब आप अपने आप से सवाल कीजिये की इस फर्जी कहानी को जिस मे बंगाल के एक्तेदार (सत्ता )अंग्रेजों के कब्जा पर ख़ुशी का इज़हार किया गया है । एक तारीखी किताब समझने और मुसलामानों के खेलाफ फर्जी जंगी मुहीम के फैजी तराने " वंदे मातरम " को कौमी तराना का दर्ज़ा दिया जाए ।? जिसके बाज़ बंद मुसलमानों के एक खुदा त'सौवुर के बिलकुल खेलाफ है । मसलन...... वंदे मातरम, तुमी विद्या ,तुमी धर्म ,तुमी हरी ,तुमी करम ,तुही प्राण शरीर..........तुही दुर्गा , वश पर हरण धारणी ,कमला कमल दिल वभारनी ।।
इसके आखरी बंद में दुर्गा से प्राथना की गयी है कि वह हिन्दुओं को इतनी शक्ति दे के मुसलामानों का खून उसके क़दमों पर निछावर कर सकें ।
क्या ये बात मुनासिब है? और क्या ये बात अदल व इन्साफ की है कि हिन्दुस्तानी मुसलमानों से ऐसा तराना पढ़ने या उस तराने का एहतराम करने को कहा जाए ।? जिसमें मुसलामानों के अकीदा के खेलाफ बात और मुसलामानों के खून बहाने की बात कही गयी ।?
नॉवेल " आनंद मठ " बहुत मकबूल हुआ और उसके जरिये बंगाल के हिन्दुओं में मुसलामानों के खेलाफ नफरत और दुश्मनी के जज्बात पैदा हुए ।
महाराष्ट्र में वी डी सावरकर की सख्सियत एक मुखालिफ अँगरेज़ इन्क़लाबी की हैसियत से पहले उभरती है ,उसने किताब लिखी और शाये ( प्रकाशन ) की जिसका नाम "the indian war of 1857 " है , उस कितब में उसने उन दिनों हिन्दुओं और मुसलमानों के दरमियान पाए जाने वाली मुफाहेमत की तारीफ़ की है और उसको मूलमुल्क की आबादी के लिए जरुरी करार दिया है । उनहोंने लिखा है
" उसने अपने एलान में दिल्ली के शहंशा ने सौराज के केयाम की बात कही और हिन्दुस्तान के बेटों अगर तुम इरादा कर लो तो आन की आन में तुम दुशमन तो ख़त्म कर सकते हो ,हम दुश्मन को खत्म करेंगे ।और अपने मजहब और मुल्क को जो हमें अपनी जान से जेयादह पयार है ,उनके खौफ से निकालेंगे ।,दुनिया में ऐसी इन्केलाबी जंग से जेयादा और क्या मोक़द्दस है ? वह जंग जिसके ऊँचे असूलों का इज़हार इस जुमले में किया गया है के " हमारे मजहब और हमारे मुल्क की जो हमको हमारी जान से जेयादा पयार है , खौफ से रिहाई ,1857 के इंक़लाब का हिन्जास मकसद और मुत हर्रिक करने वाले अलफ़ाज़ के साथ बोया गया जो देहली के तख़्त से इर्द हुए ।
( मोहम्मद अब्दुल रहीम कुरैसी )उर्दू दैनिक पिन्दार दिनांक 6/5/14 पेज नंबर -से
हिंदुत्व मुल्क के लिए खतरा पार्ट - 2
" बरैली से जारी कुर्दा एलान में । उन्होंने कहा की हिन्दुस्तान के हिन्दू और मुसलमानों ! उठो भाईयों उठ खरें हों । खुदा की नेमतों में सबसे बड़ी नेमत सव्राज हैं । क्या ये जालिम देव ( यानी अँगरेज़ ) हमको धोखे और फरेब के जरिये हमेशा उससे दूर रखेगा ? खुदा ये नहीं चाहता इसीलिए उसने हिन्दू और मुसलमानों के दिलों में मुल्क और अंग्रेजों को बाहर निकालने की आरजू पैदा की है । खुदा की नुसरत और तुम्हारी जुर्रत और हिम्मत दोनों मिलकर दुश्मन को शिकश्त देंगे ।और दुश्मन का नामों निशाँ नहीं रहेगा । हमारी फ़ौज में छोटे और बड़े का फर्क नहीं होगा । दर्जा बराबर का दिया जाएगा । और मसावात का दौर दौरा होगा । कयोंकि जो अपने मजहब की मुदाफ़ेअत ( हिफाज़त ) जंग करता है और तलवार निकालता है ,। इस तरह जंग वाले आपस में भाई होते हैं ये आपस में भाई हैं और उनके दरमियान रुतबा का कोई फर्क नहीं है ,इसलिए दुबारा अपने हिन्दू भाईयों से कहता हूँ । उठो अपना मजहबी काम अंजाम देने के लिए और अपना फर्ज पूरा करने के लिए मैदाने जंग में कूद परो । " इस एलान को एलान को बयान करने के बाद वी डी सावरकर बड़े तारीफी कलमात लिखता है जिससे ये बात वाजेह होती है की जब उसने ये किताब लिखी थी उसका जेहन और सोंच क्या था । वह लिखता है " जो सख्श इंक़लाबी कायेद को जुबान से ऐसी शानदार बातें कहते हुए देखने के बाद उनके असूलों को न समझे , जैसा कि हम कह चुके हैं की वह बेवकूफ है या बुजदिल । और मजबूत के शहादत ( सबूत ) चाहिए ? जो साबीत करे कि हिन्दुस्तानी जांबाजों ने उस वक़्त अपने मजहब और अपने मुल्क की आज़ादी के लिए ये समझे हुए तलवार उठायी के खुदा की तरफ से इंसान को दिए गए हक की हिफाज़त के लिए लड़ना हर शख्स पर फ़र्ज़ है ।ये एलानात मुख्तलिफ मौकों ( विभिन्न अवसरों ) पर जारी किये गए ।जिससे ये बड़ी भारी जिम्मेदारी आयेद होती है , इन एलानात को किसी गैर मारुफ़ शख्स ने जारी नहीं किया ,बल्कि ये काबिले ताजीम और ताक़तवर तख़्त के जारी कुर्दा एहकमात ( आदेश ) थे । ये एलानात उस वक़्त के मुश'तयील एहसासात के रौशन खेयाल थे । उनमें अवाम के दिल के हकीकी अल्फाज हैं जो उस वक़्त जंग के मौका पर कही गई । और उनको किसी के दबाव या खौफ की वजह से छुपाने का कोई मौका नहीं था । हिन्दू और मुसलमान मिलकर मजहब और आज़ादी के नाम पर उठ खड़े हुए " उन्होंने टीपू सुलतान के वालिद हैदर अली तक तारीफ़ की है और लिखा है कि " हिन्दुस्तान की आज़ादी के खतरे को पहले से भांपने वालों में पूना के नाना फरनाविश और मैसूर के हैदर साहब थे " इस ने आज़ादी के मक़ासिद के लिए नाना के सफीर अज़िमुल्लाह खान के कारनामों को भी तस्लीम किया है और कहता है कि " 1857 की इन्क़लाबी जंग के अहम् किरदारों में सबसे जेयादा याद रखा जाने वाला नाम अज़िमुल्लाह खान का है ,आज़ादी की जंग का तसौउर ( कल्पना ) जिन तेज़ जेहन के दिमागों में आया उनमें अज़िमुल्लाह को एक नुमाया मुकाम देना चाहिए । । इंक़लाब के मराहिल में जिन मुख्तलिफ मंसूबों के जरिये रोनुमा ( प्रकट ) हुए उनमें अज़िमुल्लाह खान का मंसूबा ( प्लान , योजना ) खसुसी तवज्जोह ( विशेष धेयानाकर्षण ) का मुस्तहक यानी हक़दार है ।" आखरी बाब में वी डी सावरकर ने " ग़दर " पर एक अँगरेज़ तब्सिरा निगार के तब्सिरे को नक़ल किया है । वह कहता है " हिन्दुस्तानी ग़दर के कई अस्बाक में जो तारीख निगारों ( इतिहासकारों ) को मिलते हैं कोई भी जेयादा अहमियत नहीं रखता ,इस इन्तेबाह के मुकाबिले में एक इन्किलाब मुमकिन है ,जिन में बरहमन ,और शुद्र हिन्दू और मुसलमान हमारे खिलाफ मुत्तहिद ( यूनाइट ) हो सकते हैं "
इस तब्सिरे के जरिये फर्स्ट ने अपने हम मुल्कों पर यानी अंग्रेजों पर ये वाजेह किया है की हिन्दुस्तान पर हुकूमत करने के लिए अंग्रेजों को हिन्दुओं के दरमियान जात पात के एख्तेलाफ को बढ़ाना चाहिए । और हिन्दुस्तान के मुसलमानों और हिन्दुओं के दरमियान नफरत और दुश्मनी के जज़्बात पैदा करनी चाहिए और इस कौल को नक़ल करके वी डी सावरकर हिन्दुओं और मुसलमानों को मुत्तहिद होने और हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने के लिए मिलजुलकर जद्दोजेहद ( संघर्ष ) करने के लिए आवाज देता है ।
इस इन्केलाबी सावरकर को गिरफ्तार किया गया । और काले पानी की सजा देते हुए अंडमान में क़ैद किया गया ।जब सावरकर को 1925 में रेहा किया गया तो बिलकुल बदला हुआ शख्स था ,कहा जाता है है कि उसने बरतानवी हुकूमत से माफ़ी चाहि और माफ़ी की दरखास्त पर उसको अंडमान निकोबार की जेल से रेहा किया गया । अब उसको अंग्रेजों से लड़ने का जज्बा खत्म हो चूका था ।और हिन्दू मुस्लिम इत्तेहाद ( हिन्दू मुस्लिम एकता ) का नारा लगाने वाला मुसलमानों के खेलाफ नफरत का प्रचार करने वाला बन गया और उसी ने हिंदुत्व की इस्लाह गढ़ी।
अपनी किताब " हिंदुत्व "में सावरकर ने तक़रीबन 80 सफ्हात ( पृष्ठों ) इस हकीकत का इनकार करने पर खर्च किये हैं के लफ्ज़ हिन्दू ईरानियों का लफ्ज़ है जो उन्होंने दरियाए सिंध के मशरीक ( पूरब ) में रहने वालों के लिए इस्तेमाल होते थे । सावरकर ने ये बात कहने पर बड़ी ही तकलीफ और मुशक़्क़त उठायी है के लफ्ज़ हिन्दू हिन्दुस्तान में बना लेकिन वह ये साबित करने में नाकाम रहे की लफ्ज़ हिन्दू की असल संस्कृत और प्राकृत जुबानों में है । किताब के बाकी हिस्सों में उन्होंने इस पर जोर दिया है कि हिन्दू समाज में जात पात के एख्तेलाफ को करार रहना चाहिए और मुसलमानों को हिन्दुओं के मुल्क हिन्दुस्तान में रहने का कोई हक हासिल नहीं है ,वह कहता है ।
1. चार जातों के नेजाम को बौध मजहब का गलबा ख़त्म न कर सका और इस नेजाम की मकबूलियत बढ़ती चली गयी ।
2. हिन्दुस्तान के मानी हैं हिन्दुओं का मुल्क । हिंदुत्व पहली बुनियाद ये जोगराफियाई इलाका है ।एक हिन्दू बुनियादी तौर पर खुद से और अपने आबाओ अजदाद की वजह से हिन्दुस्तान का शहरी है और इस मुल्क को मादरे वतन करार देता है । हिन्दुस्तान में रहने वाले गैर हिन्दुस्तानी बन सकते हैं ।अगर हिन्दू तमद्दुन को अपना लें और हिन्दुस्तान से इतनी मुहब्बत करें की इसको मुक़द्दस सरजमीं मान लें ।
हिन्दू महासभा का केयाम (स्थापना )1914 में अमृत सर में हुआ । और हरिद्वार उसका मुस्तकिर करार दिया गया । उसके बानियों में यू पी के पंडित मदन मोहन मालवीय और पंजाब के लाला लाजपत राये थे । 1924 के बाद हिन्दू महासभा वी डी सावरकर के जेरे असर आ गयी । सावरकर के जेरे असर हिन्दू महासभा कांग्रेस की सख्त मुखालिफ (कट्टर विरोधी ) हो गयी और उसपे ये इल्जाम लगाया लगाया की मुसलमानों की हिमायत हासिल करने की कोशीश में लगी है । हिन्दू महासभा ने अंग्रेजी हुकूमत के खेलाफ किसी सरगर्मी या activities और किसी भी प्रकार के agitation में भाग न ही भाग ही लिया या न किसी भी प्रकार का समर्थन ही दिया ।
1925 में हिन्दू महासभा को एक धक्का उस वक़्त लगा जब उसके एक सदस्य डॉक्टर केटू बली राम हेडगवार ने हिन्दू महासभा छोड़कर आर एस एस कायम की । आर एस एस का नजरिया हिन्दू महासभा का नजरिया ही था लेकिन आर एस एस ने तेज़ी से मकबूलियत अथवा लोकप्रियता प्राप्त कर ली । हिन्दू महासभा ने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन की मुखालेफत ( विरोध ) किया और दूसरी आलमगीर जंग ( 2nd world war ) में हुकूमत बरतानिया की जंगी मोहमात की तारीफ़ की । सावरकर ने हिन्दुओं को तरगीब ( प्रशिक्षण ) दी के वह फौजी ट्रेनिंग हासिल करने के लिए बर्तानिया की हिन्दुस्तानहिन्दुस्तानी फीफ़ौज में भर्ती हो ।हिन्दू महासभा ने 1937 और 1946 के मरकजी और सूबाई के असेम्बली इन्तेखाबात में नाकामी की सूरत देखी ।
सावरकर ने हिन्दुस्तान के बटवारे को कबूल कर लिया । लेकिन वह गाँधी जी कनाकिद (आलोचक )था , और 1946 के सांप्रदायिक दंगे के बाद गांधी जी पर सावरकर की तनकीद (आलोचना और कटाक्ष )तेज हो गयी । 30जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे ने देहली में गाँधी जी को गोली मार कर हत्या कर दी । नाथू राम गोडसे और उसके साथी डिगंबर बाड़गे ,गोपाल गोडसे ,नारायण आप्टे,विष्णु करकरे ,और मदन लाल पाहवा । हिन्दू महासभा के अहम सदस्य के रुप में बताबताये गए । जस्टिस कपूर कमीशन ने 1967 में अपनी रिपोर्ट में बताया कि गांधी जी के कतल की साजिश करने वाले सावरकर से करीबी रिश्ते थे सावरकर के खेलाफ गुस्सा में भरी आवामी रद्दे अमल ( सावरकर के विरुद्ध भड़की जन सैलाब का गुस्सा ) के नतीजे में हिन्दू महासभा हासिये पर चली गयी और उसका वजूद बरायेनाम ( नाम मात्र ) और बेअसर होकर रह गया ।
आर एस एस का बुनियाद डॉक्टर केसू बली राम हेडगवार ने डाली जो हिन्दू महासभा की हिंदुत्व नजरयात पर यकीन रखता था । आर एस एस ने खुद को खुद को सामाजिक आन्दोलन के तौर पर पेश किया । हिन्दुस्तान की आज़ादी की तहरीक में उसने कोई रोल अदा नहीं किया । और अंग्रेजी हुकूमत के खेलाफ किसी मुहीम और तहरीक या agitation में शिरकत नहीं की । इस बात को एम एस गोवालकर ने पूरी ताक़त के साथ आगे बढ़ाया जो 1940 में उसका सरबराह अथवा चीफ बना । उन्होंने हिन्दू नवजवानों को फौजी ट्रेनिंग देने और मुसलमानों के खेलाफ नफरत व अदावअदावत के जज्बात फरोग देने के प्रोग्रामों को जोश व खरोश के साथ आगे बढ़ाया । कयोंके वह मुसलमानों को मुल्क के गद्दार या कम अज कम गैर शहरी करार देता था ।जब बरतानवी हुकूमत ने गैर सरकारी तंजीमों में फौजी ड्रिल और यूनिफार्म के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई तो गोवालकर ने अपने कार्यकर्ताओं की फौजी तरबियत ( ट्रेनिंग )को रोक दिया और अंग्रेजी हुकूमत को खुश करने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन और बहरिया की बगावत से अपने को दूर रखा ।
आर एस एस बटवारा के पहले और बटवारा के बाद 1946 और 1947 के मुसलमानों के खेलाफ भड़के दंगे में मुख्य भूमिका में रही । और पुलिस ने उसका भरपूर साथ दिया । । मिस्टर पयारे लाल ने जो 1920 से उनकी मौत तक गाँधी जी के सेक्रेटरी थे " महात्मा गांधी आखरी मरहले " नामी किताब लिखी है । वह इस कितकिताब में लिखते हैं की " आर एस एस एक फिरकापरस्त तंज़तंजीम (सम्पर्दायिक संगठन )" है उसका एलान कुर्दकुर्दा मकसद ( मुख्य उद्देशय ) हिन्दू सामराज कायम करना है । और उनका नारा है " हिन्दुस्तान से मुसलमानों का सफाया किया जाए " उन्होंने जस्टिस कपूर कमीशन के आगे जो गवाही दी वह कोम्मिस्सियोकमीशन की रिपोर्ट म यूँें दर्ज है
" गवाह का एहसास था के पुलिस में मोखालिफ गांधी मवाफिक आर एस एस अनासिर दाखिल हो चुके थे ।" कोम्मिसकमीशन की रिपोर्ट में इंटेलिजेंस ऑफिसर बी बी एस जेटले की गवाही नक़ल की गयी के
" आज़ादी के चंद महीनों में आर एस एस के खेलाफ 600 से 700 केस दर्ज किये गए । उसके खेलाफ इलज़ामहथियार जमा करने ,देहातों पर हमला करने और अफराद ( लोगों ) को मारने पीटने का था । और उसने सिफारिश की थी के आर एस एस पर पाबंदी लगा दी जाए । उसने लखनऊ से सी आई डी चीफ से मुलाक़ात कर के और मिस्टर गोविन्द बल्लभ पंत जो उस वक़्त के यू पी के वजीर ए आज़म थे । और लाल बहादुर शाष्त्री जो उस वक़्त यू पी के होम मिनिस्टर थे उनसे मुलाक़ात की ।और उनको आर एस एस पर पाबंदी लगाने के लिए कहा । उन लोगों ने उनसे इत्तेफाक किया । लेकिन कहा की उन्हें सरदार पटेल से मश्वेरा करना पड़ेगा । आर एस एस पर गांधी जी के क़त्ल के बाद पाबंदी लगाई गयी । उस गवाह ने ये भी कहा की सरदार पटेल ने उनको ( जेटले) को बुलाया और कहा की आर एस एस पर पाबंदी लगाना मुश्किल है ,कयोंकि मुसल्नान पहले से उनके खेलाफ हैं और वह (सरदार पटेल ) नहीं चाहते की हिन्दुओं का एक तबका भी उसके खेलाफ हो जाए ।
सरदासरदार पटेल का मौकूफ ( स्टैंड, स्टेप , ) बड़ा ही हैरत अंगेज है और उनकी मंतक को समझना बहुत मुश्किल है । जस्टिस कपूर कमीशन ने जिसको ये जिम्मेदारी दी गयी थी के इस बात की तहकीक करे की गांधी जी के क़त्ल की साजिश की पहले स किसी को इत्तेला (सूचना ) थी , और जिसको ये मालुम था ,उसने क्या किया ? उस कमीशन ने डॉक्टर सुशीला नायर की गवाही का भी जिक्र किया है ।और लिखा है की " आर एस एस के तअल्लुक से गांधी जी के रद्देअमल (पर्तिकीर्या) का जिक्र सुशीला नायर ने उससे वाकेया बयान किया के जब उन्होंने वाह के मुकाम पर आर एस एस के वालंटियर्स के काम की तारीफ़ महात्मा के सामने की तो महात्मा ने कहा तुम उनको नहीं जानती हो वह फासिस्टों और नाजियों की तरह ब्लास्ट शोर्ट हैं "
यहाँ इस बात को नोट करना चाहिए की आर एस एस कैंप में जाने के बावजूद गांधी जी आर एस एस के खेलाफ सख्त राये रखते थे । 12 दिसंबर 1947 के लग भग आर एस एस के सरबराह ( चीफ ) ने गांधी जी से मुलाक़ात की । और उनसे कहा की वह मुसल्मामुसलमानों को मारना नहीं चाहते । बलबल्कि हिन्दूओं की हिफाज़त करना चाहते हैं ,यानी उनका काम हिफजती है और तबाह कारी अथवा विनाशकारी नहीं है । और आर एस एस अमन अथवा शांति समर्थक है । लेकिन जब महात्मा गाँधी ने कहा की वह खुलेआम इन इल्जेमात की तरदीद ( आलोचना ) करे । और मुसलामानों को सताने और कतल करने की मोजम्मत करे । उन्होंने कहा की गांधी जी ये काम खुद कर सकते हैं । चंद दिनों बाद आर एस एस के लीडर गाँधी जी को अपने रैलियों में शामिल करने के लिए ले गए ।जो स्वीपर्स कॉलोनी में थी ।उन्होंने गांधी जी का इस्तकबाल किया और कहा की वह एक महान हिन्दू हैं जिन्हें हिंदुस्तान ने पैदा किया ।
मोहम्मद अब्दुल रहीम कुरैशी ( दिनांक 7/5/2014 , उर्दू दैनिक पिन्दार )
" बरैली से जारी कुर्दा एलान में । उन्होंने कहा की हिन्दुस्तान के हिन्दू और मुसलमानों ! उठो भाईयों उठ खरें हों । खुदा की नेमतों में सबसे बड़ी नेमत सव्राज हैं । क्या ये जालिम देव ( यानी अँगरेज़ ) हमको धोखे और फरेब के जरिये हमेशा उससे दूर रखेगा ? खुदा ये नहीं चाहता इसीलिए उसने हिन्दू और मुसलमानों के दिलों में मुल्क और अंग्रेजों को बाहर निकालने की आरजू पैदा की है । खुदा की नुसरत और तुम्हारी जुर्रत और हिम्मत दोनों मिलकर दुश्मन को शिकश्त देंगे ।और दुश्मन का नामों निशाँ नहीं रहेगा । हमारी फ़ौज में छोटे और बड़े का फर्क नहीं होगा । दर्जा बराबर का दिया जाएगा । और मसावात का दौर दौरा होगा । कयोंकि जो अपने मजहब की मुदाफ़ेअत ( हिफाज़त ) जंग करता है और तलवार निकालता है ,। इस तरह जंग वाले आपस में भाई होते हैं ये आपस में भाई हैं और उनके दरमियान रुतबा का कोई फर्क नहीं है ,इसलिए दुबारा अपने हिन्दू भाईयों से कहता हूँ । उठो अपना मजहबी काम अंजाम देने के लिए और अपना फर्ज पूरा करने के लिए मैदाने जंग में कूद परो । " इस एलान को एलान को बयान करने के बाद वी डी सावरकर बड़े तारीफी कलमात लिखता है जिससे ये बात वाजेह होती है की जब उसने ये किताब लिखी थी उसका जेहन और सोंच क्या था । वह लिखता है " जो सख्श इंक़लाबी कायेद को जुबान से ऐसी शानदार बातें कहते हुए देखने के बाद उनके असूलों को न समझे , जैसा कि हम कह चुके हैं की वह बेवकूफ है या बुजदिल । और मजबूत के शहादत ( सबूत ) चाहिए ? जो साबीत करे कि हिन्दुस्तानी जांबाजों ने उस वक़्त अपने मजहब और अपने मुल्क की आज़ादी के लिए ये समझे हुए तलवार उठायी के खुदा की तरफ से इंसान को दिए गए हक की हिफाज़त के लिए लड़ना हर शख्स पर फ़र्ज़ है ।ये एलानात मुख्तलिफ मौकों ( विभिन्न अवसरों ) पर जारी किये गए ।जिससे ये बड़ी भारी जिम्मेदारी आयेद होती है , इन एलानात को किसी गैर मारुफ़ शख्स ने जारी नहीं किया ,बल्कि ये काबिले ताजीम और ताक़तवर तख़्त के जारी कुर्दा एहकमात ( आदेश ) थे । ये एलानात उस वक़्त के मुश'तयील एहसासात के रौशन खेयाल थे । उनमें अवाम के दिल के हकीकी अल्फाज हैं जो उस वक़्त जंग के मौका पर कही गई । और उनको किसी के दबाव या खौफ की वजह से छुपाने का कोई मौका नहीं था । हिन्दू और मुसलमान मिलकर मजहब और आज़ादी के नाम पर उठ खड़े हुए " उन्होंने टीपू सुलतान के वालिद हैदर अली तक तारीफ़ की है और लिखा है कि " हिन्दुस्तान की आज़ादी के खतरे को पहले से भांपने वालों में पूना के नाना फरनाविश और मैसूर के हैदर साहब थे " इस ने आज़ादी के मक़ासिद के लिए नाना के सफीर अज़िमुल्लाह खान के कारनामों को भी तस्लीम किया है और कहता है कि " 1857 की इन्क़लाबी जंग के अहम् किरदारों में सबसे जेयादा याद रखा जाने वाला नाम अज़िमुल्लाह खान का है ,आज़ादी की जंग का तसौउर ( कल्पना ) जिन तेज़ जेहन के दिमागों में आया उनमें अज़िमुल्लाह को एक नुमाया मुकाम देना चाहिए । । इंक़लाब के मराहिल में जिन मुख्तलिफ मंसूबों के जरिये रोनुमा ( प्रकट ) हुए उनमें अज़िमुल्लाह खान का मंसूबा ( प्लान , योजना ) खसुसी तवज्जोह ( विशेष धेयानाकर्षण ) का मुस्तहक यानी हक़दार है ।" आखरी बाब में वी डी सावरकर ने " ग़दर " पर एक अँगरेज़ तब्सिरा निगार के तब्सिरे को नक़ल किया है । वह कहता है " हिन्दुस्तानी ग़दर के कई अस्बाक में जो तारीख निगारों ( इतिहासकारों ) को मिलते हैं कोई भी जेयादा अहमियत नहीं रखता ,इस इन्तेबाह के मुकाबिले में एक इन्किलाब मुमकिन है ,जिन में बरहमन ,और शुद्र हिन्दू और मुसलमान हमारे खिलाफ मुत्तहिद ( यूनाइट ) हो सकते हैं "
इस तब्सिरे के जरिये फर्स्ट ने अपने हम मुल्कों पर यानी अंग्रेजों पर ये वाजेह किया है की हिन्दुस्तान पर हुकूमत करने के लिए अंग्रेजों को हिन्दुओं के दरमियान जात पात के एख्तेलाफ को बढ़ाना चाहिए । और हिन्दुस्तान के मुसलमानों और हिन्दुओं के दरमियान नफरत और दुश्मनी के जज़्बात पैदा करनी चाहिए और इस कौल को नक़ल करके वी डी सावरकर हिन्दुओं और मुसलमानों को मुत्तहिद होने और हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने के लिए मिलजुलकर जद्दोजेहद ( संघर्ष ) करने के लिए आवाज देता है ।
इस इन्केलाबी सावरकर को गिरफ्तार किया गया । और काले पानी की सजा देते हुए अंडमान में क़ैद किया गया ।जब सावरकर को 1925 में रेहा किया गया तो बिलकुल बदला हुआ शख्स था ,कहा जाता है है कि उसने बरतानवी हुकूमत से माफ़ी चाहि और माफ़ी की दरखास्त पर उसको अंडमान निकोबार की जेल से रेहा किया गया । अब उसको अंग्रेजों से लड़ने का जज्बा खत्म हो चूका था ।और हिन्दू मुस्लिम इत्तेहाद ( हिन्दू मुस्लिम एकता ) का नारा लगाने वाला मुसलमानों के खेलाफ नफरत का प्रचार करने वाला बन गया और उसी ने हिंदुत्व की इस्लाह गढ़ी।
अपनी किताब " हिंदुत्व "में सावरकर ने तक़रीबन 80 सफ्हात ( पृष्ठों ) इस हकीकत का इनकार करने पर खर्च किये हैं के लफ्ज़ हिन्दू ईरानियों का लफ्ज़ है जो उन्होंने दरियाए सिंध के मशरीक ( पूरब ) में रहने वालों के लिए इस्तेमाल होते थे । सावरकर ने ये बात कहने पर बड़ी ही तकलीफ और मुशक़्क़त उठायी है के लफ्ज़ हिन्दू हिन्दुस्तान में बना लेकिन वह ये साबित करने में नाकाम रहे की लफ्ज़ हिन्दू की असल संस्कृत और प्राकृत जुबानों में है । किताब के बाकी हिस्सों में उन्होंने इस पर जोर दिया है कि हिन्दू समाज में जात पात के एख्तेलाफ को करार रहना चाहिए और मुसलमानों को हिन्दुओं के मुल्क हिन्दुस्तान में रहने का कोई हक हासिल नहीं है ,वह कहता है ।
1. चार जातों के नेजाम को बौध मजहब का गलबा ख़त्म न कर सका और इस नेजाम की मकबूलियत बढ़ती चली गयी ।
2. हिन्दुस्तान के मानी हैं हिन्दुओं का मुल्क । हिंदुत्व पहली बुनियाद ये जोगराफियाई इलाका है ।एक हिन्दू बुनियादी तौर पर खुद से और अपने आबाओ अजदाद की वजह से हिन्दुस्तान का शहरी है और इस मुल्क को मादरे वतन करार देता है । हिन्दुस्तान में रहने वाले गैर हिन्दुस्तानी बन सकते हैं ।अगर हिन्दू तमद्दुन को अपना लें और हिन्दुस्तान से इतनी मुहब्बत करें की इसको मुक़द्दस सरजमीं मान लें ।
हिन्दू महासभा का केयाम (स्थापना )1914 में अमृत सर में हुआ । और हरिद्वार उसका मुस्तकिर करार दिया गया । उसके बानियों में यू पी के पंडित मदन मोहन मालवीय और पंजाब के लाला लाजपत राये थे । 1924 के बाद हिन्दू महासभा वी डी सावरकर के जेरे असर आ गयी । सावरकर के जेरे असर हिन्दू महासभा कांग्रेस की सख्त मुखालिफ (कट्टर विरोधी ) हो गयी और उसपे ये इल्जाम लगाया लगाया की मुसलमानों की हिमायत हासिल करने की कोशीश में लगी है । हिन्दू महासभा ने अंग्रेजी हुकूमत के खेलाफ किसी सरगर्मी या activities और किसी भी प्रकार के agitation में भाग न ही भाग ही लिया या न किसी भी प्रकार का समर्थन ही दिया ।
1925 में हिन्दू महासभा को एक धक्का उस वक़्त लगा जब उसके एक सदस्य डॉक्टर केटू बली राम हेडगवार ने हिन्दू महासभा छोड़कर आर एस एस कायम की । आर एस एस का नजरिया हिन्दू महासभा का नजरिया ही था लेकिन आर एस एस ने तेज़ी से मकबूलियत अथवा लोकप्रियता प्राप्त कर ली । हिन्दू महासभा ने 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन की मुखालेफत ( विरोध ) किया और दूसरी आलमगीर जंग ( 2nd world war ) में हुकूमत बरतानिया की जंगी मोहमात की तारीफ़ की । सावरकर ने हिन्दुओं को तरगीब ( प्रशिक्षण ) दी के वह फौजी ट्रेनिंग हासिल करने के लिए बर्तानिया की हिन्दुस्तानहिन्दुस्तानी फीफ़ौज में भर्ती हो ।हिन्दू महासभा ने 1937 और 1946 के मरकजी और सूबाई के असेम्बली इन्तेखाबात में नाकामी की सूरत देखी ।
सावरकर ने हिन्दुस्तान के बटवारे को कबूल कर लिया । लेकिन वह गाँधी जी कनाकिद (आलोचक )था , और 1946 के सांप्रदायिक दंगे के बाद गांधी जी पर सावरकर की तनकीद (आलोचना और कटाक्ष )तेज हो गयी । 30जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे ने देहली में गाँधी जी को गोली मार कर हत्या कर दी । नाथू राम गोडसे और उसके साथी डिगंबर बाड़गे ,गोपाल गोडसे ,नारायण आप्टे,विष्णु करकरे ,और मदन लाल पाहवा । हिन्दू महासभा के अहम सदस्य के रुप में बताबताये गए । जस्टिस कपूर कमीशन ने 1967 में अपनी रिपोर्ट में बताया कि गांधी जी के कतल की साजिश करने वाले सावरकर से करीबी रिश्ते थे सावरकर के खेलाफ गुस्सा में भरी आवामी रद्दे अमल ( सावरकर के विरुद्ध भड़की जन सैलाब का गुस्सा ) के नतीजे में हिन्दू महासभा हासिये पर चली गयी और उसका वजूद बरायेनाम ( नाम मात्र ) और बेअसर होकर रह गया ।
आर एस एस का बुनियाद डॉक्टर केसू बली राम हेडगवार ने डाली जो हिन्दू महासभा की हिंदुत्व नजरयात पर यकीन रखता था । आर एस एस ने खुद को खुद को सामाजिक आन्दोलन के तौर पर पेश किया । हिन्दुस्तान की आज़ादी की तहरीक में उसने कोई रोल अदा नहीं किया । और अंग्रेजी हुकूमत के खेलाफ किसी मुहीम और तहरीक या agitation में शिरकत नहीं की । इस बात को एम एस गोवालकर ने पूरी ताक़त के साथ आगे बढ़ाया जो 1940 में उसका सरबराह अथवा चीफ बना । उन्होंने हिन्दू नवजवानों को फौजी ट्रेनिंग देने और मुसलमानों के खेलाफ नफरत व अदावअदावत के जज्बात फरोग देने के प्रोग्रामों को जोश व खरोश के साथ आगे बढ़ाया । कयोंके वह मुसलमानों को मुल्क के गद्दार या कम अज कम गैर शहरी करार देता था ।जब बरतानवी हुकूमत ने गैर सरकारी तंजीमों में फौजी ड्रिल और यूनिफार्म के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई तो गोवालकर ने अपने कार्यकर्ताओं की फौजी तरबियत ( ट्रेनिंग )को रोक दिया और अंग्रेजी हुकूमत को खुश करने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन और बहरिया की बगावत से अपने को दूर रखा ।
आर एस एस बटवारा के पहले और बटवारा के बाद 1946 और 1947 के मुसलमानों के खेलाफ भड़के दंगे में मुख्य भूमिका में रही । और पुलिस ने उसका भरपूर साथ दिया । । मिस्टर पयारे लाल ने जो 1920 से उनकी मौत तक गाँधी जी के सेक्रेटरी थे " महात्मा गांधी आखरी मरहले " नामी किताब लिखी है । वह इस कितकिताब में लिखते हैं की " आर एस एस एक फिरकापरस्त तंज़तंजीम (सम्पर्दायिक संगठन )" है उसका एलान कुर्दकुर्दा मकसद ( मुख्य उद्देशय ) हिन्दू सामराज कायम करना है । और उनका नारा है " हिन्दुस्तान से मुसलमानों का सफाया किया जाए " उन्होंने जस्टिस कपूर कमीशन के आगे जो गवाही दी वह कोम्मिस्सियोकमीशन की रिपोर्ट म यूँें दर्ज है
" गवाह का एहसास था के पुलिस में मोखालिफ गांधी मवाफिक आर एस एस अनासिर दाखिल हो चुके थे ।" कोम्मिसकमीशन की रिपोर्ट में इंटेलिजेंस ऑफिसर बी बी एस जेटले की गवाही नक़ल की गयी के
" आज़ादी के चंद महीनों में आर एस एस के खेलाफ 600 से 700 केस दर्ज किये गए । उसके खेलाफ इलज़ामहथियार जमा करने ,देहातों पर हमला करने और अफराद ( लोगों ) को मारने पीटने का था । और उसने सिफारिश की थी के आर एस एस पर पाबंदी लगा दी जाए । उसने लखनऊ से सी आई डी चीफ से मुलाक़ात कर के और मिस्टर गोविन्द बल्लभ पंत जो उस वक़्त के यू पी के वजीर ए आज़म थे । और लाल बहादुर शाष्त्री जो उस वक़्त यू पी के होम मिनिस्टर थे उनसे मुलाक़ात की ।और उनको आर एस एस पर पाबंदी लगाने के लिए कहा । उन लोगों ने उनसे इत्तेफाक किया । लेकिन कहा की उन्हें सरदार पटेल से मश्वेरा करना पड़ेगा । आर एस एस पर गांधी जी के क़त्ल के बाद पाबंदी लगाई गयी । उस गवाह ने ये भी कहा की सरदार पटेल ने उनको ( जेटले) को बुलाया और कहा की आर एस एस पर पाबंदी लगाना मुश्किल है ,कयोंकि मुसल्नान पहले से उनके खेलाफ हैं और वह (सरदार पटेल ) नहीं चाहते की हिन्दुओं का एक तबका भी उसके खेलाफ हो जाए ।
सरदासरदार पटेल का मौकूफ ( स्टैंड, स्टेप , ) बड़ा ही हैरत अंगेज है और उनकी मंतक को समझना बहुत मुश्किल है । जस्टिस कपूर कमीशन ने जिसको ये जिम्मेदारी दी गयी थी के इस बात की तहकीक करे की गांधी जी के क़त्ल की साजिश की पहले स किसी को इत्तेला (सूचना ) थी , और जिसको ये मालुम था ,उसने क्या किया ? उस कमीशन ने डॉक्टर सुशीला नायर की गवाही का भी जिक्र किया है ।और लिखा है की " आर एस एस के तअल्लुक से गांधी जी के रद्देअमल (पर्तिकीर्या) का जिक्र सुशीला नायर ने उससे वाकेया बयान किया के जब उन्होंने वाह के मुकाम पर आर एस एस के वालंटियर्स के काम की तारीफ़ महात्मा के सामने की तो महात्मा ने कहा तुम उनको नहीं जानती हो वह फासिस्टों और नाजियों की तरह ब्लास्ट शोर्ट हैं "
यहाँ इस बात को नोट करना चाहिए की आर एस एस कैंप में जाने के बावजूद गांधी जी आर एस एस के खेलाफ सख्त राये रखते थे । 12 दिसंबर 1947 के लग भग आर एस एस के सरबराह ( चीफ ) ने गांधी जी से मुलाक़ात की । और उनसे कहा की वह मुसल्मामुसलमानों को मारना नहीं चाहते । बलबल्कि हिन्दूओं की हिफाज़त करना चाहते हैं ,यानी उनका काम हिफजती है और तबाह कारी अथवा विनाशकारी नहीं है । और आर एस एस अमन अथवा शांति समर्थक है । लेकिन जब महात्मा गाँधी ने कहा की वह खुलेआम इन इल्जेमात की तरदीद ( आलोचना ) करे । और मुसलामानों को सताने और कतल करने की मोजम्मत करे । उन्होंने कहा की गांधी जी ये काम खुद कर सकते हैं । चंद दिनों बाद आर एस एस के लीडर गाँधी जी को अपने रैलियों में शामिल करने के लिए ले गए ।जो स्वीपर्स कॉलोनी में थी ।उन्होंने गांधी जी का इस्तकबाल किया और कहा की वह एक महान हिन्दू हैं जिन्हें हिंदुस्तान ने पैदा किया ।
मोहम्मद अब्दुल रहीम कुरैशी ( दिनांक 7/5/2014 , उर्दू दैनिक पिन्दार )
हिंदुत्व मुल्क के लिए खतरा , पार्ट -3
(अब्दुल रहीम कुरैशी , उर्दू दैनिक पिन्दार ,पटना ,दिनांक ...8.5.2014 )
जवाब में गांधी जी ने कहा के वह हिन्दू होने पे फख्र करते हैं लेकिन हिन्दू मत दुसरे धर्मों का विरोधी नहीं है । महात्मा गांधी के 1948 में क़त्ल के बाद आर एस एस के कई अहम लीडरों को गिरफ्तार किया गया । और बहैसियत तंजीम आर एस एस पर 2 फ़रवरी 1948 को पाबन्दी लगायी गयी । लेकिन इस पाबन्दी की मुद्दत बहुत कम रही। हिंदुस्तानी हुकूमत ने इस शर्त पर पाबंदी उठाने पर राज़ी हुआ के आर एस एस बजाप्ता अपना एक दस्तूर बनावे । आखिर आर एस एस से ये क्यों नहीं कहा गया की वह हिंदुत्व यानी हिन्दू राज के फशिष्ट नजरिया को तर्क कर दे ,कयोंकि नायब वजीरे आज़म और वजीरे दाखला ( डिप्टी पी एम और सेंट्रल होम मिनिस्टर ) जनाब सरदार पटेल उससे हमदर्दी रखते थे । वजीरे आज़म जनाब जवाहर लाल नेहरु ने भी आर एस एस को 1963 के यौमे जम्हूरिया परेड में हिस्सा लेने की दावत दी । जब कई संगठनों ने विरोध किया तो नेहरु ने कहा के मैं ने तमाम मोहब्बे वतन ( देश से हमदर्दी ) रखने वालों को परेड महिसमें हिस्सा लेने की दावत दी है । ।इस घटना ने आर एस एस की मकबूलियत में इजाफा किया और उसके कौमी इमेज को मजबूती प्रदान की । 1965 के हिन्दुस्तान और पाकिस्तान जंग के मौका पर वजीरे आज़म लालबहादुर शाष्त्री ने आर एस एस से ये दरखास्त की थथी की के वह देहली का ट्राफिक कंट्रोल संभाले ताकि पुलिस वालों को देफायी जिम्मेदारीयां दी जा सके । आर एस एस ने अपने स्थापना से ही मुस्लिम मुखालिफ अजेंडे को आगे बढ़ाया है । और देश में कई मुसलमानों के खेलाफ कई फसादात करवाए । तकरीबन उन तमाम फ़सादत में जिनकी तहकीकात कोम्मिस्सियोकमीशन के जरिये करायी गयी ।उन कमीशनों ने आर एस एस को दंगा के लिए जिम्मेदार माना । चन्द कमीशनों ने ये भी बताया की आर एस एस बाज अंजुमने कायम करती हैं जैसे - राम तरुण मंडल ,जन रक्षक मंडल , हिन्दू वाहनी वगैरह ।उन अंजुमनों के जरिये मुसलामानों के खेलाफ फसादात करवाती है ताकि जिम्मेदारी से बच सकें । जस्टिस जगन मोहन रेडी कमीशन ने 1969 के अहमदाबाद फसादात के पीछे आर एस एस के हाथ को महसूस किया । जस्टिस मोहन रेडी कमीशन ने 1969 के अहमदाबाद फसादात के पीछे आर एस एस के हाथ को महसूस किया । जुस्तीजस्टिस मादान कमीशन ने 1970 के भिवंडी ,जलगाँव और महाड़ के फ़सादत में आर एस एस की करास्तानी पायी । और एस एस और संघ परिवार के दुसरे गिरोहों वी एच पी ,बजरंग दल ,पर उड़ीशा में हुए इशायियों के खेलाफ 2008 के सांप्रदायिक दंगे के लिए फिजा बनाने में और उनकी सहयेता पहुंचाने का इल्जाम लगाया गया है । अमरका की एक क्रिश्चन संगठन जो उड़ीशा में काम करती है ,ये दावा किया की उन इंतेहापशंदों ने हिन्दू हुजुमों को इशाई को खत्म करने और उनके घरों को तबाह करने के लिए ट्रेनीग दिलाई । आर एस एस ने इस इल्जाम से सहमती नहीं जताई । और हिंशा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया । जस्टिस लिब्राहन कमीशन ने तहकीकात के बाद इस नतीजे पर पहुंचा के संघ परिवार ने बाबरी मस्जिद इन्हेदाम ( विध्वंश ) को मोनज्जिम किया । और ये रिमार्क किया है की " अयोध्या में मंदिर की तामीर की मुहीम ( बिशमोल बाबरी मस्जिद विध्वंश )का सेहरा या इल्जाइलज़ाम लाज़मी तौर पर संघ परिवार के सर जाना चाहिए ।
आर एस एस ने जो चंद वजूहात से फिलवक्त फिरकावाराना फसादात करवाने के बजाये ये हिकमत अमली इख्तेयार की है के दहशतगर्दाना हमलों ( आतंकी हमलों ) का मंसूबा कुछ इस तरह बनाया जाए और कुछ इस तरह उस पर अमल किया जाए ( यानी उसको इस तरह से अंजाम दिया जाए ) की इस घिर्नित और नफरत के काबिल अपराध का इलज़ाम मुसलमानों के सर जाए । और उनकी तरफ ऊँगली उठाई जाए और पुलिस और इंटेलिजेंस महकमा मुसलमानों को बदनाम करे । ।।
(अब्दुल रहीम कुरैशी , उर्दू दैनिक पिन्दार ,पटना ,दिनांक ...8.5.2014 )
जवाब में गांधी जी ने कहा के वह हिन्दू होने पे फख्र करते हैं लेकिन हिन्दू मत दुसरे धर्मों का विरोधी नहीं है । महात्मा गांधी के 1948 में क़त्ल के बाद आर एस एस के कई अहम लीडरों को गिरफ्तार किया गया । और बहैसियत तंजीम आर एस एस पर 2 फ़रवरी 1948 को पाबन्दी लगायी गयी । लेकिन इस पाबन्दी की मुद्दत बहुत कम रही। हिंदुस्तानी हुकूमत ने इस शर्त पर पाबंदी उठाने पर राज़ी हुआ के आर एस एस बजाप्ता अपना एक दस्तूर बनावे । आखिर आर एस एस से ये क्यों नहीं कहा गया की वह हिंदुत्व यानी हिन्दू राज के फशिष्ट नजरिया को तर्क कर दे ,कयोंकि नायब वजीरे आज़म और वजीरे दाखला ( डिप्टी पी एम और सेंट्रल होम मिनिस्टर ) जनाब सरदार पटेल उससे हमदर्दी रखते थे । वजीरे आज़म जनाब जवाहर लाल नेहरु ने भी आर एस एस को 1963 के यौमे जम्हूरिया परेड में हिस्सा लेने की दावत दी । जब कई संगठनों ने विरोध किया तो नेहरु ने कहा के मैं ने तमाम मोहब्बे वतन ( देश से हमदर्दी ) रखने वालों को परेड महिसमें हिस्सा लेने की दावत दी है । ।इस घटना ने आर एस एस की मकबूलियत में इजाफा किया और उसके कौमी इमेज को मजबूती प्रदान की । 1965 के हिन्दुस्तान और पाकिस्तान जंग के मौका पर वजीरे आज़म लालबहादुर शाष्त्री ने आर एस एस से ये दरखास्त की थथी की के वह देहली का ट्राफिक कंट्रोल संभाले ताकि पुलिस वालों को देफायी जिम्मेदारीयां दी जा सके । आर एस एस ने अपने स्थापना से ही मुस्लिम मुखालिफ अजेंडे को आगे बढ़ाया है । और देश में कई मुसलमानों के खेलाफ कई फसादात करवाए । तकरीबन उन तमाम फ़सादत में जिनकी तहकीकात कोम्मिस्सियोकमीशन के जरिये करायी गयी ।उन कमीशनों ने आर एस एस को दंगा के लिए जिम्मेदार माना । चन्द कमीशनों ने ये भी बताया की आर एस एस बाज अंजुमने कायम करती हैं जैसे - राम तरुण मंडल ,जन रक्षक मंडल , हिन्दू वाहनी वगैरह ।उन अंजुमनों के जरिये मुसलामानों के खेलाफ फसादात करवाती है ताकि जिम्मेदारी से बच सकें । जस्टिस जगन मोहन रेडी कमीशन ने 1969 के अहमदाबाद फसादात के पीछे आर एस एस के हाथ को महसूस किया । जस्टिस मोहन रेडी कमीशन ने 1969 के अहमदाबाद फसादात के पीछे आर एस एस के हाथ को महसूस किया । जुस्तीजस्टिस मादान कमीशन ने 1970 के भिवंडी ,जलगाँव और महाड़ के फ़सादत में आर एस एस की करास्तानी पायी । और एस एस और संघ परिवार के दुसरे गिरोहों वी एच पी ,बजरंग दल ,पर उड़ीशा में हुए इशायियों के खेलाफ 2008 के सांप्रदायिक दंगे के लिए फिजा बनाने में और उनकी सहयेता पहुंचाने का इल्जाम लगाया गया है । अमरका की एक क्रिश्चन संगठन जो उड़ीशा में काम करती है ,ये दावा किया की उन इंतेहापशंदों ने हिन्दू हुजुमों को इशाई को खत्म करने और उनके घरों को तबाह करने के लिए ट्रेनीग दिलाई । आर एस एस ने इस इल्जाम से सहमती नहीं जताई । और हिंशा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया । जस्टिस लिब्राहन कमीशन ने तहकीकात के बाद इस नतीजे पर पहुंचा के संघ परिवार ने बाबरी मस्जिद इन्हेदाम ( विध्वंश ) को मोनज्जिम किया । और ये रिमार्क किया है की " अयोध्या में मंदिर की तामीर की मुहीम ( बिशमोल बाबरी मस्जिद विध्वंश )का सेहरा या इल्जाइलज़ाम लाज़मी तौर पर संघ परिवार के सर जाना चाहिए ।
आर एस एस ने जो चंद वजूहात से फिलवक्त फिरकावाराना फसादात करवाने के बजाये ये हिकमत अमली इख्तेयार की है के दहशतगर्दाना हमलों ( आतंकी हमलों ) का मंसूबा कुछ इस तरह बनाया जाए और कुछ इस तरह उस पर अमल किया जाए ( यानी उसको इस तरह से अंजाम दिया जाए ) की इस घिर्नित और नफरत के काबिल अपराध का इलज़ाम मुसलमानों के सर जाए । और उनकी तरफ ऊँगली उठाई जाए और पुलिस और इंटेलिजेंस महकमा मुसलमानों को बदनाम करे । ।।
Comments