1857 जंगे आजादी और उल्मा ए अहले सुन्नत का किरदार जिन्होने अपने खून से हिन्दुस्तान को सींचा और लोगो को गुलामी के जंजीरो से आजाद होने का जज्बा पैदा किया. सुल्तान टीपु ये हिन्दुस्तान के पहले मुजाहीद है जिन्होने अंग्रेजो के खीलाफ अलमे जिहाद को बुलंद किया और सबसे पहले तसव्वरे आजादी का का जेहन दिया.

1857 जंगे आजादी और उल्मा ए अहले
सुन्नत का किरदार जिन्होने अपने खून से
हिन्दुस्तान को सींचा और लोगो को गुलामी
के जंजीरो से आजाद होने का जज्बा पैदा
किया.
सुल्तान टीपु ये हिन्दुस्तान के पहले मुजाहीद है जिन्होने अंग्रेजो के खीलाफ
अलमे जिहाद को बुलंद किया और सबसे
पहले तसव्वरे आजादी का का जेहन दिया.
1857 मे जो जंगे आजादी के सबसे बडे
हिरो थे इसमे  उल्मा ए किराम की एक बडी तवील फेहरिस्त है खुसुसन इस
तहरीक के बानी और इस तहरीक को शूरू
करने वाले सबसे पहले जिस शख्शियत
का नाम आता है वो हजरते अल्लामा फजले
हक खैराबादी का आता है.
उसके बाद हजरत सैयद किफायत अली
काफी मुरादाबादी रहम. हैं ये अपने वक्त के
बहोत बडे जंगे आजादी के मुजाहिद है.
मुफ्ती सदरूद्दीन आजरदह देहलवी ये
1857 के जंगे आजादी के वो उल्मा हैं
जिन्होने लोगो मे आजादी का जजबा पैदा
किया और एक नई रूह फूंकी.
इन्ही मे अल्लामा अहमादुल्लाह शाह
मडरासी जो एक बहोत बडे वलिये
कामिल और एक मजजूब बुजुर्ग थे जब
अल्लामा फजले हक खैराबीदी ने अंग्रेजो
के खिलाफ अल्मे जिहाद का फतवा दिया
तो उस फतवे पर इस बुजुर्ग के भी दस्तखत
थे इस बुजुर्ग ने पूरे हिंदुस्तान मे घूम घूम
कर लोगो मे आजादी का एक माहोल पैदा
किया.
इन्ही मे मुफ्ती इनायत अहमद काकोरी.
मौलाना डा. वजीर खां अकबराबादी.
मौलाना वहाजुद्दीन मुरादाबादी.
मौलाना ईमाम बख्श अहबाई.
मजहर करीम दरयाबादी.
ये वो अल्मा ए किराम है जिन्हे आज
हमारे सुन्नी जानते तक नही. इन्ही मे
मुफ्ती रहमातुल्लाह केरालवी.
मौलाना हिदायत रसूल.
मिरजा अस्दुल्लाह खां गालिब.
मौलाना अब्दुल कादिर साहब.
काजी फैजउल्लाह देहलवी.
मौलाना फैज अहमद बदायूनी.
सैयद मुबारक शाह रामपुरी.
मौलाना अब्दुल हक खैराबादी जो अल्लामा
फजले हक खैराबादी के बेटे थे यो तो
इतने बडे मुहिब्बे वतन थे कि इन्होने
वसीयत फरमाई थी की जब अंग्रेज देश
छेडकर चले जाये तो मेरी कब्र पर आकर
ये खुशखबरी सुना दी जाये. चुनान्चे आपके
वसीयत के  मुताबिक जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो उसी दिन
हजरत मौलाना सैयद नजमुल हसन
रजवी खौराबादी ने आपके मदफन दरगाह
मखदूमिया खैराबाद जिला सीतापुर में
एक जम्मे गफीर के साथ पहुंचे और
बुलंद आवाज से फरमाया मौलाना अब्दुल
हक खुश हो जाओ अंग्रेज देश छोडकर चले
गये.
1857 का का पस मंजर ये था कि अंग्रेजो
ने कारतूस तैयार की जिसमे गाय की
चरबी और खंजीर की चरबी को इस्तेमाल
मे लाया गया. गाय हिन्दु के नजदीक
पबित्र थी और खंजीर मुसलमान के नजदीक निहायत नजिस और नापाक था
चुनान्चे अंग्रेजो  की फौज मे एक जरनल
जिसका नाम मंगल पांडे था उसने कहा
हम इस कारतूस का इस्तेमाल नही करेंगे.
और इस बात को लेकर सुलतान बहादुर
शाह जफर के पास पहुंचा. बहादुर
शाह जफर ने उल्मा ए किराम को
बुलाया और मसवरा तलब किया कि
अंग्रोजो के खिलाफ जंग क्या मायने रखती
है क्या इन्के इक्तेदार को तसलीम किया जाये या फिर इनसे जंग की जाये.
चुनान्चे हजरते अल्लामा फजले हक खैराबादी ने अंग्रेजो के खिलाफ अल्मे
जिहाद का फतवा दिया और कहा अंग्रेजो
से जिहाद करना जायज है. जब आपने
फतवा दिया तो पूरे हिंदुस्तान मे कोहराम मच गया. फतवा देने के कई महीने बाद
अंग्रेजो ने आपको गिरफ्तार किया अदालत
मे गये जज ने पूछा क्या ये फतवा आपका
है. आपने बडे दिलेराना अंदाज मे फरमाया
हां ये मेरा फतवा है. उल्मा फरमाते हैं
अगर आपने कह दिया होता ये फतवा मेरा
नही है तो अंग्रोजो के पास कोई सुबूत ही
नही था जो आपको गिरीफतार करते.
चुनानचे आप पर मुकदमा चला आपने
ने कोई वकील नही रखा बल्कि खुद
अपने मुकदमे को लडते और ऐसी जिरह
और ऐसी बहस करते की अंग्रेजो को
लगने लगा अगर कुछ दिन और मुकदमा
चला तो फजले हक हमे देश से निकालकर
रहेगा और हमारे वजूद को हिंदुस्तान मे
गलत साबित करके रहेगा.
चुनानचे अग्रेजो ने कहा चुंकि तुमने हमारे
खिलाफ जंग का फतवा दिया है
और हमारे इक्तेदार को तसलीम नही
कीया इसपर हम तुम्हो काले पानी की
सजा देते हैं. चुनानचे आपको काला पानी
अंडमान मे भेज दिया जाता है.
तफसीली वाक्या आप किताब मे पढे.
1861 मे आपका वंही इंतकाल होता है
और वंही मजार शरीफ है.
जितनो के नाम मैने  लिखे है अगर सबके
हालात लिखु तो ऐसे दस पोस्ट की
जरूरत पडेगी.
बख्त खां जो बहादुर शाह जफर के सैना के सालार ए आजम थे बहोत बडे सिपहे सालार थे और बहोत बडे जंगे आजादी के
हीरो थे. मुफ्ती सदरूद्दीन आजरदह देहलवी इन्हे भी अंग्रेजो ने काला पानी
की सजा सुनाई थी.
मौलाना हिदायत रसूल जो आला हजरत
के सागिर्दे खास थे. इन्हे भी अंग्रोजो ने
फासी की सजा दे दी थी. बहोत बडे
तकरीर दा थे अंग्रेजो के खिलाफ पूरी
जिंदगी बोलते रहे तकरीर करने मे इन्हे
मलका हासिल था. आला हजरत इन्के
बारे मे फरमाते थे कि अगर मुझ जैसा एक कलम का धनी और हिदायत रसूल
जैसा एक और तकरीर करने वाला मिल
जाता तो हम दोनो मिलकर ही अंग्रेजो को
हिंदुस्तान से निकाल देते.
सैयद किफायत अली काफी मुरादाबादी
इन्को भी फासी दे दी गई थी.
आला हजरत के दादा अल्लामा रजा अली
खां के सर पर अंग्रेजो ने 600 रूपये का
का ईनाम रखा था कि जो रजा अली का
सर लायेगा उसे 600 रूपया ईनाम दिया
जायेगा. जुर्म क्या था जब 1857 मे
गदर का मामला आया था तो ये भी
उसमे सामिल थे.
आला हजरत के वालिद दिन मे लोगो को
पढाते थे और रात मे घौडे खरीद खरीद
कर मुजाहिदो मे तकसीम करते थे.
बख्त खां जब बरेली पहुंचे तो सिर्फ
बरेली से चौदह हजार मुसलमान
जंगे आजादी के लिये निकले ये
उल्माए अहले सुन्नत का किरदार था.
लाल किले पर सात हजार सुन्नी उल्मा ए
किराम को अंग्रेजो ने बर सरे आम फांसी दी.
लेकिन इसके बरअक्स एक जमात
देवबंदियो की थी जो अंग्रेजो के पिठु और
गुलाम बने हुये थे जिसमे इस्माइल देहलवी इन्के पीर सैयद राय बरेली
और इन्के मानने वाले सब सामिल थे.
यंहा तक अशरफ अली थानवी भी अंग्रेजो
के पिठु बने हुये थे.
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