होशियार रहिये , 2014 में आपको 15 लाख के नाम पर ठगा गया था , और इस बार 2019 को फतह करने के लिए तरह तरह के खेल रचे जाएंगे । भाई को भाई से लड़ाए जायेंगे ?


फ़ेसबुक पर इस वीडियो को अब तक 20 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है.
इस वीडियो के ऊपर लिखा है, 'देखें पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ क्या होता है'.

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'भाजपा: मिशन 2019' नाम के दक्षिणपंथी रुझान वाले फ़ेसबुक पेज ने भी 2 जनवरी को इस वीडियो को पोस्ट किया था. अकेले इस पेज पर ही ये वीडियो 14 लाख से ज़्यादा बार देखा गया है.
इसी फ़ेसबुक पेज से 44 हज़ार से ज़्यादा लोग इस वायरल वीडियो को शेयर कर चुके हैं.
इनमें से कई लोगों ने इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है, "अगर 2019 में नरेंद्र मोदी को नहीं लाओगे तो भारत में भी हिंदुओं का ऐसा ही हाल होगा."

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इस वीडियो में पाकिस्तान की एलीट फ़ोर्स के कुछ जवान एक घर में घुसते हुए दिखाई देते हैं और उसके बाद वो कुछ लोगों पर लाठी लेकर टूट पड़ते हैं.
बीबीसी ने इस वीडियो की पड़ताल की और पाया कि इस वीडियो के साथ ग़लत संदर्भ जोड़कर बेबुनियाद दावे किये गए हैं. ये वीडियो न सिर्फ़ भारत में, बल्कि यूरोप, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान में भी वायरल रह चुका है.
इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में मौजूद बीबीसी संवाददाता उमर दराज़ ने इस बात की पुष्टि की है कि ये वीडियो पाकिस्तान के फ़ैसलाबाद का है, लेकिन मामला अल्पसंख्यक हिंदुओं की पिटाई का बिल्कुल नहीं है.

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पड़ताल की शुरुआत और सबसे पहला पोस्ट

रिवर्स सर्च से हमें पता चला कि इस वीडियो की इंटरनेट (यू-ट्यूब) पर मौजूद सबसे पुरानी पोस्ट 5 अक्तूबर, 2014 की है.
इस वीडियो को बिलाल अफ़गान नाम के एक शख़्स ने अपने पर्सनल यू-ट्यूब पेज पर पोस्ट किया था.
उन्होंने लिखा था, "आम नागरिकों को उनके घर में घुसकर बुरी तरह पीटती पाकिस्तान पुलिस." उन्होंने अपनी पोस्ट में किसी धर्म का ज़िक्र नहीं किया था.
बिलाल के इसी वीडियो पर दरी/फ़ारसी भाषा की न्यूज़ वेबसाइट 'शिया न्यूज़ एसोसिएशन' ने नवंबर, 2014 में एक वीडियो स्टोरी की थी जिसका शीर्षक था, 'अफ़गान शरणार्थियों के साथ बर्बर सुलूक करती पाकिस्तान पुलिस.'
इस वीडियो स्टोरी के बारे में हमने काबुल में मौजूद बीबीसी पश्तो सेवा के संवाददाता नूर गुल शफ़ाक से बात की.
उन्होंने वीडियो में लोगों की भाषा, उनके पहनावे और साल 2014 में दर्ज हुईं घटनाओं के आधार पर हमें बताया कि वीडियो अफ़गान शरणार्थियों के साथ हुई हिंसा का नहीं हो सकता और न ही वीडियो में दिख रहे लोग अफ़गान हैं.
हालांकि नूर गुल शफ़ाक ने कहा कि "ये वीडियो साल 2014-15 में अफ़गानिस्तान में भी वायरल हो चुका है. उस वक़्त लोग इस वीडियो को ये कहते हुए शेयर कर रहे थे कि पाकिस्तान में अफ़गान शरणार्थियों के साथ बुरा बरताव किया जा रहा है."

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अब पढ़ें वीडियो की हक़ीक़त

बीबीसी संवाददाता उमर दराज़ ने बताया कि ये वीडियो मई या जून, 2013 का है.
ये घटना पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित तीसरे सबसे बड़े शहर फ़ैसलाबाद में हुई थी जहाँ 'पाकिस्तान एलीट फ़ोर्स' के जवानों की एक टुकड़ी ने लोगों को ज़बरन उनके घरों में घुस-घुसकर पीटा था.
उमर दराज़ ने बताया, "फ़ैसलाबाद में बिजली की किल्लत शुरुआत से रही है, लेकिन 2013 में हालात बहुत ज़्यादा ख़राब थे. लोगों की शिकायतें थीं कि दिन में 14-16 घंटे तक बिजली नहीं आती. इसे लेकर शहर में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ और गुस्साए लोगों ने एक पेट्रोल पंप समेत सार्वजनिक संपत्ति का भी काफ़ी नुकसान कर दिया था."
उन्होंने बताया कि बिजली की मांग को लेकर 2013 में हुए इस प्रदर्शन में महिलाएं और बच्चे भी सड़कों पर निकल आये थे. बाद में पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की और प्रदर्शनकारियों को उनके घरों से उठाकर उनकी पिटाई की.

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Image captionबिजली की माँग लेकर प्रदर्शन करते पाकिस्तान के लोग (सांकेतिक फ़ाइल तस्वीर)

उस वक़्त पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ थे.
उन्होंने भी पुलिस की इस हिंसक कार्रवाई की निंदा की थी और इस पर पुलिस विभाग से रिपोर्ट मांगी थी.
पाकिस्तान के टीवी न्यूज़ चैनल 'दुनिया न्यूज़' की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में कम से कम पांच पुलिसकर्मियों को महिलाओं के साथ बदसलूकी करने के आरोप में बर्ख़ास्त कर दिया गया था.
रिपोर्टों के अनुसार इस हिंसा में जिनकी पिटाई हुई वो स्थानीय मुस्लिम परिवार थे और जिन सिपाहियों ने उन्हें पीटा, उनमें से तीन के नाम थे- बाबर, तौसीफ़ और आबिद.

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वीडियो कई जगह हुआ वायरल

अपनी पड़ताल में हमने ये भी पाया कि राजस्थान की अलवर और अजमेर समेत पश्चिम बंगाल की उलुबेरिया लोकसभा सीट पर जनवरी 2018 में हुए उप-चुनाव से पहले भी यही वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया गया था.

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जनवरी 2018 में जिन लोगों ने इस वीडियो को फ़ेसबुक और ट्विटर पर शेयर किया था, उन्होंने दावा किया था कि पाकिस्तान में एक हिंदू नागरिक ने अपने मकान के ऊपर भगवा झंडा फहराया तो पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ बड़ी हिंसक कार्रवाई की.

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इस वीडियो को शेयर करने वाले ज़्यादातर लोगों ने ये भी लिखा था कि भारत में कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के दबाव में उन लोगों के ख़िलाफ़ कभी कार्रवाई नहीं होती जो भारत में पाकिस्तान का झंडा फहराते हैं.
साल 2017 में यही वीडियो यूरोप के कुछ देशों में भी वायरल हुआ था. इसके बारे में कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी ट्विटर पर टिप्पणी की थी.

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कुछ लोगों ने नागरिकों के साथ हुई पुलिस की इस हिंसा को 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान' का अंश बताया था.
लेकिन यूरोप में इस वीडियो के बारे में ये दावा किया गया था कि जिन लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस ने हिंसक कार्रवाई की, वे सभी अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के लोग थे.
'पीस वर्ल्डवाइड' नाम के एक यू-ट्यूब पेज ने भी मई, 2015 में यही वीडियो पोस्ट किया था और पीड़ितों को ईसाई समुदाय का बताया था.

बीबीसी हिन्दी

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