शाहीन बाग़: अमित शाह ने मिलने का वादा किया है तो पुलिस ने रोका क्यों?


शाहीन बाग़
Image captionशाहीन बाग़ की प्रदर्शनकारी महिलाएं रविवार को गृह मंत्री के आवास की तरफ़ जा रही थीं लेकिन पुलिस ने जाने नहीं दिया.
रविवार की दोपहर शाहीन बाग़ में पुलिसकर्मियों के पास आंसू गैस वाले बॉक्स थे. उस पर चेतावनी के रूप में लिखा हुआ था, डू नोट ड्रॉप यानी गिराएं नहीं. यह भी छपा हुआ था, हैंडल विद केयर यानी ध्यान से संभालिए.
वहीं मौजूद एक प्रदर्शनकारी ने बताया कि वे इन आंसू गैसों का सामना प्यार से करेंगे. हालांकि ये लोग उन मुद्दों पर नहीं बोल रहे थे जो उनके हिसाब से महत्वपूर्ण नहीं थे.
अहिंसात्मक विरोध-प्रदर्शन के मूल में बात रहती है कि ग़ुस्सा आने पर मौन रखा जाएगा. यहां के प्रदर्शनकारी भी इस बात को जानते हैं.
जब पुलिस के लगाए ढेरों बैरिकेड के चलते उन्हें अपने प्रदर्शन की जगह पर लौटना पड़ा तो इन लोगों ने आसमान में बैलून उड़ाए. 1111 लाल बैलून उड़ाए गए जिन पर गृह मंत्री अमित शाह के लिए संदेश लिखे हुए थे जब इनको उड़ाया जा रहा था तब शाहीन बाग की प्रदर्शनकारी महिलाएं नारे लगा रही थी कि गृह मंत्री महोदय कब मिलिएगा.
रविवार दोपहर दो बजे के आसपास, गृह मंत्री के आवास तक मार्च करने वाली महिलाएं जमा हो चुकी थीं. इन सबको क़तारों में व्यवस्थित करने के लिए पुरुषों की टीम लगी हुई थी. प्रदर्शन करने वालों में शामिल शाहनवाज ख़ान लगातार माइक से महिलाओं से शांति बनाए रखने और नारे नहीं लगाने की अपील कर रहे थे. इस दौरान उनकी नज़र इस बात पर भी लगी हुई थी कि कुछ अप्रिय स्थिति ना हो जाए.
इससे पहले सुबह घंटों तक इन लोगों ने गृह मंत्री के यहां मार्च करके जाने वाली महिलाओं का चुनाव किया था. हालांकि प्रदर्शन में शामिल हिना अहमद का कहना था कि ये नेतृत्व विहीन विरोध प्रदर्शन है लिहाज़ा इस मार्च में हर किसी को जाना चाहिए.
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पुलिस ने क्यों रोका?

शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली पुलिस को एक आवेदन दे कर रविवार को 5000 प्रदर्शनकारियों के शाहीन बाग से अमित शाह के आवास तक जाने की अनुमति मांगी थी.
रविवार की दोपहर को विरोध प्रदर्शन की जगह लगे अस्थायी टेंट में जमा हुए थे जिन्हें वॉलिंटियरों की टीम संभाल रही थी. एक पुरुष महिलाओं को तिरंगा बांट रहा रहा था. वहीं एक महिला संयोजक मंच से यह कह रही थीं कि मार्च में बुजुर्ग महिलाओं को नहीं जाना है.
36 साल की मरियम ख़ान ने अपने दुपट्टे को हरा, केसरिया और सफेद रंग में रंगवाया हुआ था, उनके हाथों की चूड़ियां भी इसी अंदाज़ की थीं. अपने हाथों में तिरंगा संभाले उन्होंने कहा कि उन्हें मार्च में शामिल होने से कोई डर नहीं लग रहा है.
उन्होंने बताया, "मैंने यह सब इसलिए पहना है क्योंकि हमें ख़ुद को भारतीय साबित करने की ज़रूरत पड़ रही है. मैंने इन्हें 26 जनवरी को तिरंगे रंग में रंगवाया था."
वहीं मंच के निकट, बुज़ुर्ग महिलाएं बैठी हुई थीं और बुलाए जाने का इंतज़ार कर रही थीं. गुरुवार को अमित शाह ने टाइम्स नाउ समिट में कहा था कि वे किसी से भी बात करने को तैयार हैं, जिनमें शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी भी शामिल हैं.
उन्होंने इस आयोजन में कहा था, "मैं यह कहना चाहता हूं कि शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को मेरे दफ़्तर से समय मांगना चाहिए. तीन दिनों के भीतर मैं समय दे दूंगा. मैंने कहा है कि मैं किसी से भी मिल सकता हूं लेकिन कोई बातचीत करना नहीं चाहता."
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क्या तीन दिन के भीतर अमित शाह से मिलने का वक़्त मिल पाएगा?

मरियम के मुताबिक़ यह उन लोगों के लिए एक अवसर है. इन लोगों ने ठिठुराने वाली सर्दी और बरसात में दो महीनों से ज़्यादा समय तक प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के आने का इंतज़ार किया है और उसकी जगह उनके पास जाने को तैयार हैं.
मरियम ने बताया, "अगर वे डरे हुए हैं तो हम शाहीन बाग़ की महिलाएं उन्हें भरोसा दिलाते हैं कि हम उनका यहां तो विरोध करेंगे लेकिन बातचीत शांतिपूर्ण ढंग से करेंगे. अब उन्होंने हम लोगों को बुलाया है तो हम उसके लिए भी तैयार हैं."
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि उन लोगों को शाहीन बाग़ की ओर से नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के मुद्दे पर बातचीत के लिए किसी तरह के अप्वाइंटमेंट के लिए अनुरोध नहीं मिला है.
ज़ाकिर नगर से अपने युवा बेटे के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए शाहीन बाग़ आने वाली तब्बसुम ने बताया, "हम यहां इंतज़ार कर रहे हैं और उसके बाद मार्च करेंगे. अगर वे हमारी पिटाई करते हैं तो हम लोग उसके लिए तैयार हैं. जब हम अपने घर से बाहर निकले तब से हम जानते हैं कि कुछ भी हो सकता है. अमित शाह ने कहा कि वे हम लोगों से मिलना चाहते हैं. हम लोग भी जाना चाहते हैं और उनसे मिलना चाहते हैं क्योंकि वे यहां नहीं आए. जाड़े में उनका इंतजार करते हुए दो महीने बीत गए हैं."
विरोध प्रदर्शन से थोड़ी दूरी पर अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती भी साफ़ दिखाई देती है. सीआरपीएफ के जवान हेलमट और अन्य सुरक्षात्मक उपकरण पहने हुए थे. महिला पुलिस अधिकारियों की एक कंपनी को भी सामने तैनात किया गया था.
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पुलिस ने नहीं दी अनुमति

दक्षिण पूर्वी दिल्ली के डीसीपी आरके मीणा ने बताया कि प्रदर्शनकारियों को मार्च करने की अनुमति नहीं है और उनका आवेदन महज़ एक दिन पहले ही मिला है, इतने कम समय में इसकी अनुमति देना संभव नहीं है क्योंकि इसमें दो अन्य ज़िले भी शामिल हैं.
मीणा के मुताबिक आवेदन को दिल्ली पुलिस मुख्यालय और गृह मंत्रालय को भेजा गया है. मीणा ने यह भी बताया कि पुलिस भीड़ को शांतिपूर्ण ढंग से हटाने की कोशिश करेगी जैसा कि हमेशा करती है.
उन्होंने बताया, "हम उन्हें पीछे हटने के लिए कहेंगे."
हालांकि, वहीं बगल में पुलिसकर्मी आंसू गैस के साथ नज़र आए. एक वॉलिंटयर पुलिस वालों और प्रदर्शनकारियों के बीच बोतलबंद पानी बांटता नज़र आया.
दो बजे के क़रीब, महिलाओं ने बैरिकेड की उन दो लाइनों की ओर मार्च करना शुरू कर दिया जिनके आगे पुलिसकर्मी तैनात थे.
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वापस लौटीं महिलाएं

इसके बाद यह घोषणा भी हुई कि दो महीने से विरोध प्रदर्शन पर बैठीं शाहीन बाग़ की दादी माएं, मार्च का नेतृत्व करेंगी. 90 साल की अस्मा ख़ातून, 82 साल की बिलकिस बानो, 75 साल की सरवारी और 75 साल की ही नूरूनिसा बैरिकेड के सामने खड़ी हो गईं और उन्होंने आगे जाने के लिए पुलिस से अनुमति के लिए बातचीत शुरू की.
नूरूनिसा ने बताया, "हमलोग कुछ भी ग़लत नहीं कर रहे हैं. हमने पहले अनुमति लेना चाहते हैं. उन्होंने हमलोगों को मिलने के लिए कहा है. हम तो उनका आमंत्रण स्वीकार कर रहे हैं."
सरवारी ने बताया कि वे लोग मार्च के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन पुलिस के आदेशों की अवहेलना नहीं करेंगे, केवल पुलिस से अनुरोध किया जाएगा. मार्च की शुरुआत से ठीक पहले, भीड़ ने एक एंबुलेंस को गुजरने का रास्ता भी दिया.
इसके बाद सब बैरिकेड के पास जमा हो गए थे, जहां उन्हें रोका गया था और जहां दादी माएं पुलिस अधिकारियों से बातचीत कर रही थीं.
इसके बाद मार्च करने वाली महिलाएं पीछे लौटने लगीं. पुलिस के मुताबिक उन्होंने प्रदर्शनकारियों को बताया कि उन्हें अनुमति नहीं है और उनके अनुरोध को पुलिस मुख्यालय भेजा गया है. वहीं शहर के दूसरे हिस्से में गृहमंत्री आवास के आसपास मुस्तैद सुरक्षा व्यवस्था नज़र आई.
मार्च के रोके जाने के बाद हवा में संदेशे लिखे बैलून नज़र आने लगे. प्रदर्शनकारी महिलाओं ने बताया कि सड़क पर तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा जब तक उन्हें पुलिस या गृह मंत्रालय की ओर से जवाब नहीं मिलता.
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अगली रणनीति क्या?

रविवार को साढ़े तीन बजे दोपहर तक, महिलाएं अपने विरोध प्रदर्शन की जगह पर लौटने लगीं थीं. एक वॉलिंटयर ने बताया की अगले एक्शन के लिए जल्दी ही बैठक होगी. वैसे इस प्रदर्शन को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह नेतृत्वविहीन विरोध प्रदर्शन है और जनमत के आधार पर कोई भी फ़ैसला लिया जाता है. ऐसे में प्रतिनिधि मंडल का गठन करना मुश्किल है.
नुरूनिसा ने बताया, "अगर हम गए, तो हम सब जाएंगे."
महिलाएं कोई संघर्ष की स्थिति नहीं चाहती हैं. वे जानती हैं कि अगर पुलिस आदेशों की अवहेलना करके मार्च को आगे बढ़ाया जाता तो सरकार को हिंसा पर काबू पाने के नाम पर नैरेटिव बदलने का मौक़ा मिल जाएगा.
प्रदर्शन की जगह लौट रही एक महिला ने बताया, "हम जानते हैं कि वे हमें उकसाना चाहते हैं. हम यहां दंगा करने नहीं आए हैं. हम यहां यह दर्शाने आए हैं कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं, यह जानते हुए भी कि हमें मार्च करने की अनुमति नहीं मिलेगी."
इस दौरान आसमान में लाल गुब्बारे भरे हुए थे. वैलेंटाइन सप्ताह के मौक़े पर प्रदर्शनकारी महिलाएं इसके ज़रिए अमित शाह को 'प्रेम पत्र' भेज रही थीं.
हालांकि शाम होते होते दूसरे मुद्दों पर भी बात होने लगी. बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन कानून का 15 दिसंबर से बैठे प्रदर्शनकारियों पर कहा था कि वे सार्वजनिक सड़क को बंद नहीं कर सकते और दूसरों को असुविधा में नहीं डाल सकते. इस मामले में अगली सुनवाई 17 फ़रवरी को होगी.
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सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को कहा था, "आप सार्वजनिक सड़क बंद नहीं कर सकते. ऐसे इलाक़े में अनिश्चितकालीन समय तक विरोध प्रदर्शन नहीं हो सकता. अगर आप विरोध करना चाहते हैं तो विरोध करने की जगह की पहचान करनी होगी."
हिना अहमद ने बताया, "सोमवार को उन याचिकाओं पर फिर सुनवाई होगी, जिनके मुताबिक़ विरोध प्रदर्शन के चलते लोगों को असुविधाएं हो रही हैं."मतलब अभी काफ़ी कुछ होना बाक़ी है.
शाहीन बाग़ में प्रदर्शन कर रही महिलाओं का इंतज़ार जारी है. हालांकि ये महिलाएं अब इसमें एक्सपर्ट हो चुकी हैं. दो महीने बीत चुके हैं और इंतज़ार जारी है.
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