मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ जारी कानूनी कार्रवाई पर उठ रहे हैं ये 9 सवाल

 


  • अनंत प्रकाश
  • बीबीसी संवाददाता
मोहम्मद ज़ुबैर (बीच में)

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मोहम्मद ज़ुबैर (बीच में)

फ़र्ज़ी ख़बरों की पोल खोलने वाले पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को गिरफ़्तार हुए 15 दिन से ज़्यादा हो गए हैं. उत्तर प्रदेश के पाँच ज़िलों में उनके ख़िलाफ़ छह एफआईआर दर्ज़ हैं.

यूपी सरकार ने इन मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है, जिसका नेतृत्व राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक करेंगे.

मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ यूपी के साथ-साथ दिल्ली में भी दो मामले दर्ज़ हैं.

उनके वकील उत्तर प्रदेश की ज़िला अदालतों से लेकर दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उनकी ज़मानत की अर्ज़ियाँ लगा चुके हैं.

ये सारे मामले मोहम्मद ज़ुबैर के पिछले कुछ सालों के ट्वीट्स से जुड़े हैं.

नूपुर शर्मा पर ट्वीट के बाद उठा तूफ़ान

ज़ुबैर ने हाल ही में बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी पर भी ट्वीट किया था, जिसके बाद यह मामला सुर्ख़ियों में आया था और बीजेपी ने नूपुर शर्मा को निलंबित कर दिया था.

मुसलमान महिलाओं को लाउडस्पीकर पर बलात्कार की धमकी देने वाले महंत बजरंग मुनि के आपत्तिजनक बयान को भी ज़ुबैर सामने लाए थे.

दिल्ली और यूपी पुलिस ने नूपुर शर्मा और बजरंग मुनि के ख़िलाफ़ आईपीसी की धाराओं - 153ए (धर्म, भाषा, नस्ल आदि के आधार पर लोगों में नफरत फैलाना) के तहत मामले दर्ज़ किए हैं.

यूपी पुलिस ने बजरंग मुनि को नफ़रत फैलाने के मामले में गिरफ़्तार भी किया, लेकिन अब इन्हीं बजरंग मुनि को 'नफ़रत फ़ैलाने वाला' कहने की वजह से सीतापुर में ज़ुबैर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ की गई है.

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इसी तरह अक्सर विवादों में रहने वाले न्यूज़ चैनल सुदर्शन टीवी के पत्रकार ने लखीमपुर खीरी में उनके ख़िलाफ़ मुकद्दमा दर्ज़ कराया है.

ज़ुबैर ने सुदर्शन टीवी न्यूज़ की कथित रूप से आपत्तिजनक कवरेज़ के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की थी.

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‘हेट स्पीच’ से जुड़े सवाल पर भड़के यति नरसिंहानंद

ज़ुबैर पर कब, कहां और किन धाराओं में मामले दर्ज़

  • दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ 2018 में किए गए एक ट्वीट के आधार पर एफ़आईआर दर्ज की है. इस एफ़आईआर में पहले आईपीसी की धाराएँ 153ए और 295 लगाई गई थीं. इसके बाद आपराधिक साज़िश (120-बी), सबूत मिटाना (201) और फ़ॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफ़सीआरए) की धारा 35 भी जोड़ी गई. दिल्ली पुलिस ने उन्हें 27 जून को गिरफ़्तार किया.
  • दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2020 में मोहम्मद ज़ुबैर पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए बने क़ानून (POCSO) के तहत भी एक केस दर्ज किया था. ये केस नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स की (NCPCR) प्रमुख प्रियंका कानूनगो की शिकायत पर दर्ज किया गया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सितंबर 2020 में मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने पर रोक लग दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने फरवरी में पुलिस से अब तक हुई जांच पर स्टेटस रिपोर्ट दायर करने को कहा. इसके बाद मई में दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया था कि मोहम्मद ज़ुबैर का ट्वीट अपराध की श्रेणी में नहीं आता.
बजरंग मुनि

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बजरंग मुनि

  • उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में एक जून को मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ 'हिंदू शेर सेना' के ज़िलाध्यक्ष भगवान शरण की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया है. शिकायतकर्ता ने कहा है कि "हिंदू शेर सेना के राष्ट्रीय संरक्षक पूजनीय प्रबंधक महंत बजरंग मुनि जी को हेट मॉन्गर्स जैसे अपशब्द से संबोधित किया गया. उसी ट्वीट में मोहम्मद जुबैर ने यति नरसिंहानंद सरस्वती और स्वामी आनंद स्वरूप को भी अपमानित किया."
लखीमपुर खीरी में दर्ज़ कराई गयी एफ़आईआर की कॉपी

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लखीमपुर खीरी में दर्ज़ कराई गयी एफ़आईआर की कॉपी

  • मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ लखीमपुर खीरी में 18 सितंबर 2021 को सुदर्शन टीवी न्यूज़ चैनल के स्थानीय पत्रकार आशीष कटियार ने रिपोर्ट (एफ़आईआर संख्या - 0511) दर्ज कराई, सुदर्शन टीवी के पत्रकार ने कहा कि मोहम्मद ज़ुबैर "देश विरोधी ट्वीट करने में माहिर हैं जिस पर कार्यवाही किया जाना न्यायहित में आवश्यक है."
  • यह भी शिकायत की गई है कि ज़ुबैर ने "पूरे विश्व के मुसलमानों से अपील की है कि एकजुट होकर अराजकता फैलाएँ और देश का माहौल ख़राब करते हुए न्यूज़ चैनल के विरोध में सांप्रदायिकता फैले ताकि देश के अंदर गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो सके."
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  • मुज़फ़्फ़रनगर के थाना चरथावल में 24 जुलाई 2021 को अंकुर राणा ने शिकायत (एफ़आईआर संख्या 0199) की थी कि "ज़ुबैर ने एक फोनवार्ता के दौरान उन्हें जान से मारने की धमकी दी." ये मामला भी सुदर्शन न्यूज़ की उस ख़बर से जुड़ा है जिस आपत्तिजनक बताते हुए मोहम्मद ज़ुबैर ने कार्रवाई की मांग की थी.
मुज़फ़्फ़रनगर के थाना चरथावल में दर्ज़ कराई गयी रिपोर्ट

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मुज़फ़्फ़रनगर के थाना चरथावल में दर्ज़ कराई गयी रिपोर्ट

  • सुप्रीम कोर्ट ने आगामी 7 सितंबर तक सीतापुर में दर्ज़ मामले में मोहम्मद ज़ुबैर को अंतरिम ज़मानत दे दी है. फिलहाल वह सीतापुर ज़ेल में क़ैद हैं.
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ज़ुबैर के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई पर उठते सवाल

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सवाल 1 - राजनीति से प्रेरित कार्रवाई?

सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस धारा में नूपुर शर्मा, बजरंग मुनि और मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ किया गया है, उसमें नूपुर शर्मा को अब तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है, जबकि बजरंग मुनि ज़मानत पर छूट चुके हैं और मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ लगे मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित की गई है.

सरकारी पत्र

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उत्तर प्रदेश सरकार ने मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज़ मामलों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया.

यही नहीं, मोहम्मद ज़ुबैर को जिस ट्वीट के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया है, वह ट्वीट 2018 का है, लेकिन इस पर मामला 20 जून 2022 को दर्ज किया गया.

इस एफ़आईआर को राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है क्योंकि इसे नूपुर शर्मा के बयान से जुड़े विवाद के खड़ा होने के बाद दर्ज कराया गया है.

हालाँकि पुलिस ने इसे राजनीति से प्रेरित नहीं बताया है.

नूपुर शर्मा

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सवाल 2 - एफ़आईआर की कॉपी क्यों नहीं दी गयी?

ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने लिखा है कि 'क़ानूनी प्रावधानों के अनुसार उन्हें जिन धाराओं के तहत गिरफ़्तार किया गया है उसके अनुसार एफ़आईआर की कॉपी देना अनिवार्य होता है लेकिन बार-बार गुज़ारिश करने के बाद भी हमें एफ़आईआर की कॉपी नहीं दी गई.'

बीबीसी के साथ बातचीत में कानूनी मामलों के जानकार फ़ैज़ान मुस्तफ़ा ने बताया कि "अभियुक्त या उनके वकील को एफ़आईआर की कॉपी देना ज़रूरी होता है, नहीं तो अभियुक्त और उनके वकील अपना पक्ष किस आधार पर तैयार करेंगे."

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सवाल 3 - अभियुक्त को गिरफ़्तारी से पहले सूचना क्यों नहीं दी गयी?

प्रतीक सिन्हा ने लिखा है कि 'दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद ज़ुबैर को 2020 में दर्ज मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था. इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने गिरफ़्तारी से सुरक्षा दी हुई है. लेकिन 27 जून की शाम हमें बताया गया कि उन्हें एक दूसरी एफ़आईआर के तहत गिरफ़्तार किया गया है.'

डॉ फ़ैज़ान मुस्तफ़ा मानते हैं कि "ज़ुबैर के मामले में पुलिस ने शायद पहले नोटिस नहीं दिया. इस वजह से सवाल उठ रहे हैं. अगर एफ़आईआर में केवल 153ए और 295 धारा ही लगी है तो पुलिस पहले नोटिस भेजती तो वो कानून की नज़र में सही होता. पुलिस को गिरफ़्तारी से भी बचना चाहिए. सात साल से कम सज़ा वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐसा पहले का फैसला है. जब तक इस बात की आशंका नहीं हो कि सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती है या अभियुक्त फरार हो सकता है, गिरफ़्तारी से बचना चाहिए था."

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सीतापुर मामले में मोहम्मद ज़ुबैर की तरफ़ से पेश हो रहे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कोलिन गोंज़ाल्विस ने बीबीसी हिंदी से कहा है, "ज़ुबैर के ख़िलाफ़ सारी एफ़आईआर रिपोर्ट्स को पढ़ा जाए तो किसी भी जगह अपराध का आरोप नहीं मिलता है. सवाल ये है कि क्या ज़ुबैर ने धर्म के ख़िलाफ़ कुछ कहा? जवाब है--नहीं. धर्म के ख़िलाफ़ बयान देना ग़ैर-कानूनी है.

गोंजाल्विस कहते हैं, "ज़ुबैर ने नफ़रत फैलाने वालों के बारे में बात की कि आप हेट स्पीच बंद करें, तो जो नफ़रती भाषण देने वाले लोग हैं वही शिकायतकर्ता बन गए, और ज़ुबैर जो नफ़रती भाषणों के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं, वो जेल में हैं. ये इस केस की अजीब बात है."

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सवाल 4 - सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हुआ?

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सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार 'सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई' मामले में एक ऐतिहासिक फ़ैसला देते हुए कहा है कि केंद्र सरकार को जमानत प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए एक नया कानून बनाना चाहिए,

सर्वोच्च अदालत ने ये भी कहा है कि जांच एजेंसियां एवं उनके अधिकारी सीआरपीसी की धारा 41 (गिरफ़्तारी जब बेहद ज़रूरी हो) और 41ए (गिरफ़्तार किए जाने वाले व्यक्ति को जांच अधिकारी की ओर से पूर्व सूचना दिया जाना ताकि वह जांच एजेंसी का सहयोग कर सके) का पालन करने के लिए बाध्य हैं. उनकी ओर से की गयी किसी भी तरह की लापरवाही को अदालत द्वारा उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाना चाहिए.

इसके साथ ही कोर्ट ने सात साल से कम की सज़ा वाले अपराधों में गिरफ़्तारी से बचने की बात कही है.

सीतापुर मामले में मोहम्मद ज़ुबैर की तरफ़ से पेश हो रहे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कोलिन गोंज़ाल्विस ने बीबीसी हिंदी से कहा है, "सुप्रीम कोर्ट ने जो फ़ैसला दिया था वो ज़ुबैर के केस में 100 फीसद लागू होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर अधिकतम सज़ा 7 साल या उससे कम हो सकती है तो गिरफ़्तारी नहीं होनी चाहिए.

अगर पुलिस गिरफ़्तार करती है तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए. इस मामले में दर्ज अलग-अलग एफआईआर रिपोर्ट्स में भी जितनी धाराएं लगाई गई हैं, उनमें अधिकतम सज़ा पांच साल से कम ही हो सकती है. इसका मतलब ये है कि ज़ुबैर के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला लागू होता है, और उन्हें गिरफ़्तार किया जाना सही नहीं था और पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि इन्होंने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया."

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सवाल 5 - बलात्कार की धमकी देने वाला 'सम्मानित धर्म गुरू कैसे'?

सीतापुर मामले में सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के दौरान एडीशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा है कि 'बजरंग मुनि एक सम्मानित धार्मिक नेता हैं. सीतापुर में उनके काफ़ी ज़्यादा समर्थक हैं. जब आप एक धार्मिक नेता को नफ़रत फैलाने वाला कहते हैं तो इससे समस्याएं होती हैं."

सवाल ये उठ रहा है कि जिस व्यक्ति को नफ़रत फैलाने के मामले में गिरफ़्तार किया गया है, जिस व्यक्ति ने खुलेआम मुसलमान महिलाओं को अगवा करके उनका बलात्कार करने की धमकी दी, जिस व्यक्ति ने आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की, उसे सम्मानित महंत कैसे कहा जा सकता है?

बजरंग मुनि के बलात्कार की धमकी देने वाले वीडियो वायरल हैं जो काफ़ी अश्लील और महिलाओं के प्रति अपमानजनक हैं.

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सवाल 6 - क्या गिरफ़्तारी होनी चाहिए थी?

मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी के बाद जांच के सिलसिले में उन्हें बंगलुरु और उत्तर प्रदेश ले जाए जाने पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सोशल मीडिया पर योगेंद्र यादव के साथ बातचीत के दौरान इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है.

उन्होंने कहा है, "मोहम्मद ज़ुबैर के मामले में मूल बात ये है कि वह हर तरह के नफ़रती भाषण को रेखांकित कर रहे थे और कह रहे थे कि नफ़रती भाषण नहीं दिए जाने चाहिए, चाहें मुसलमानों की तरफ़ से हों या हिंदुओं की तरफ़ से. ऐसे में कोई ये नहीं कह सकता कि वह एकतरफ़ा काम कर रहे थे. लेकिन एक पल के लिए मान भी लिया जाए कि वह सिर्फ हिंदुओं के ही फ़ेक न्यूज़ या हेट स्पीच का भंडाफोड़ कर रहे थे तो भी ये कोई अपराध नहीं है."

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने बीबीसी से बातचीत में बताया है कि मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ जो मामले दर्ज़ हैं, उनमें कोई दम नहीं है.

बीबीसी हिंदी के साथ बातचीत में वे कहते हैं, "मैंने मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज़ एफआईआर देखे हैं. मेरा मानना है कि किसी भी एफ़आईआर में प्रथमदृष्टया उनके ख़िलाफ़ कोई केस नहीं बनता है. ये एफ़आईआर उन्हें परेशान करने के लिए दर्ज़ किए गए हैं. एक तरह की साजिश है, सरकार और पुलिस तालमेल से काम कर रही हैं, ताकि उन्हें किसी भी तरह से पकड़कर अंदर रखा जा सके."

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सवाल 7 - कोर्ट से पहले दिल्ली पुलिस ने कैसे सुनाया फ़ैसला?

दिल्ली पुलिस के डीसीपी केपीएस मल्होत्रा ने बीती 2 जुलाई को ज़ुबैर की गिरफ़्तारी के संबंध में चीफ़ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया का फ़ैसला आने से पहले ही को मीडिया को इसकी जानकारी दे दी, इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया ने 2 जुलाई 1:30 बजे तक दोनों पक्षों की दलीलें सुन ली थीं और लंच ब्रेक के बाद अपना फ़ैसला सुनाने का एलान किया था लेकिन केपीएस मल्होत्रा ने लगभग 2:30 बजे पत्रकारों को संदेश भेजा कि 'जमानत याचिका ख़ारिज कर दी गई है, और 14 दिन की न्यायिक हिरासत दी गई है."

प्रशांत भूषण इस मुद्दे पर कहते हैं, "लोअर कोर्ट का फ़ैसला पांच घंटे पहले दिल्ली पुलिस ही सुना दे तो समझा जा सकता है कि लोअर कोर्ट दिल्ली पुलिस के प्रभाव में काम कर रहा था इसलिए इसकी जांच होनी चाहिए. कैंपेन फॉर ज्युडिशियल अकाउंटैबिलिटी ने हाई कोर्ट को खुला पत्र लिखा है कि हाई कोर्ट को इसकी जांच करनी चाहिए क्योंकि ये न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर बहुत बड़ा धब्बा है."

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सवाल 8 - सुप्रीम कोर्ट ने ट्वीट करने से क्यों रोका?

सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद ज़ुबैर को ट्वीट नहीं करने का निर्देश जारी किया है.

इस पर प्रशांत भूषण ने सवाल उठाते हुए कहा है, "सुप्रीम कोर्ट को ऐसी कंडीशन लगाने की ज़रूरत नहीं थी कि आप कोई ट्वीट नहीं करेंगे. अदालत को ये करना चाहिए था कि इस तरह की ट्वीट्स के आधार पर जो एफ़आईआर दर्ज कराई जा रही हैं, उनके मामले में कम से कम गिरफ़्तारी पर रोक लगा देनी चाहिए थी. मान लीजिए कि कोई ये कह भी दे कि उनकी कोई ट्वीट ऐसी थी जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं, फिर भी उनको गिरफ़्तार करने का कोई औचित्य नहीं था."

सवाल 9 - एफआईआर में बदलाव क्यों?

दिल्ली पुलिस ने स्थानीय अदालत को ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर में धाराओं को हटाने और जोड़ने की सूचना दी है.

ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दिल्ली में दर्ज एफआईआर में पहले आईपीसी की धारा 295 लगाई गई थी लेकिन जब ज़ुबैर के वकील ने इस धारा पर सवाल उठाया तो इसके बाद धारा 295 हटाकर 295ए लगाई गई. इसके बाद 2 जुलाई को हुई सुनवाई में धारा 120बी और 35 भी लगाई गई.

कई मामलों में कई उच्च न्यायालयों ने कहा है कि एफ़आईआर में छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है.

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