media बीमार हो गया ?



Media बीमार हो गया ,डॉटर बीमारी का इलाज करता है और आदमी उसे भगवनऔर मसीहा समझताहै । वह आम इंसान की उमीद का किरण  होता है ।
लेकिन डॉक्टर ही बीमार हो जाए तो ?
इलाज के नाम पर मरीज का #Kidney बेचना शुरू करे तो ..........?
यही हाल है media का ख़ास कर hindi और अंग्रेज़ी सहाफियों (journalists)और और अखबार का जो बीमार हो गए हैं और जो मोकद्दस  (pawitra) पेशा की आड़ में जुर्म  (crime) कर रहे हैं।
मेरे अलफाज सतही  लेकिन  उनका जुर्म इस से भी ज्यादा संगीन है क्योंकि  ये किसी  फरदे वाहीद अथवा किसी #Individual_Person के खेलाफ नहीं बल्कि पुरे समाज के खेलाफ है ।
इन अखबार और सहाफियों  के दिमाग  में  #Firqaparasti अथवा #sampradaikta और भेदभाव के कसर अपने तीसरे stage की #Cancer की तरह जड़ पकड़ चुका है । # 27 अटूबर 2013 को गाँधी मैदान में भारतीय जनता पार्टी  की रैली में जो बम धमाके हुए वह  Intehai खौफनाक घटना की  हैसीयत रखते हैं जीनक जतनी मजम्मत  अथवा condemn की  जाए कम है ।
लेकिन  उन धमाकों  के लीए इस्तेमाल होने वाले बम बहुत जेयादःताक़तवर नहीं थे ।
इससे ये लगता है कि उनका मक़सद बड़े पैमाने पर हत्याओं  की  बजाये Logon में  गम ,खौफ व हरास अथवा आतंक  पैदा करना था ।
मगर इससे ये पहलु निकलता है कि  वहाँ इतनी बड़ी तादाद में  लोग मौजूद थे ।
खोदा न खस्ता अगर भगदड़  मच जाती तब यकीनन काफ़ी लोग के मरने काअंदेसा था ।ये सभी लोग बेक़सूर थे । ये तअच्छा हुआ कि हैरतअंगेज तौर पर बल्कि  गैर फ़ितरी  (unnatural )तौर पर वहां कोई भगदर नहीं मची !
इसलिए जिन लोगों ने भी ऐसा किया है उन लोगों के खिलाफ कड़ी करवाई वाकेई  मीलनी चाहीये .....लेिकन .....हैरत इस बात पर हो रही कि आम लोग की कारे अमल (reaction)जीतनी होनी चाहिए सर्द और मवाजन अथवा ठंडाऔर बैलेंस था ।
 मगर #Mediaका रवैया उतना ही आक्रामक था।
जहाँ एक तरफ जाँच एजसीयां अपने पहले वाले रवैया के एन मुताबीक काम करना शुरू कर दीया वहीँ अखबार ने हर गिरफ्तारी पर नाचना शुरू कर दिया । हैरत तो ये है कि कानून और सहाफत का  ABCD पढ़ते वक़्त ये बताया जाता है के जब तक कसी पर जुर्म  साबीत न हो जाता है उसे मुजरीम नहीं कहा जा सकता । बल्कि  वह "मुल्जिम होता है यानी उस पर इलज़ाम होता है और ये इल्जाम सही भी हो सकता है और गलत भी लेकिन कोई भी Muslim लड़का शक की वजह से गिरफ्तार क्या हो जाता है , जांच एजसीयां  "शक के आधार पर हुई गिरफ्तारियों "का कितना गलत और बेजा इस्तेमाल करती हैं  और किसी तरह बेक़सूर नौजवान का और उनके घर का  #Future अंधेरे म बदल दीया जाता है , इसपर पहले ही बहुत कुछ लीखा जा चुका है ) तो hindi औरअंेजी अख़बार के पहले पेज परअसर पहली खबर के तौर पर शह सुरखी (Headlines )होती है ।
कि "खतरनाक आतंकी गिरफ्तार  "कथीत या संदिग्ध जैसे शब्द का वह इस्तेमाल नहीं करते बलके सीधे फैसला सुना देते हैं । फिर उसके इर्द  गिर्द  ऐसी रौंगटे  खड़े कर देने वाली दास्तान  गढ़ी जाती है जैसे के वह कोई इंसान नहीं हो बलके चलता फिररता टाइम बम हो ।
ये पत्रकार  उन नौजवानों को , जिन में  से ज्यादा तर बेक़सूर होते हैं  ,ऐसा बनाकर पेश करते हैं  गोया ऐसे लोग को बगैर किसी गवाही और मुक़दमा के सरे बाजार गोली मार दी जाए ।लेकिन जब यही नौजवान कई महीने या कई साल जेल के सलाखों और उनके पीछे की दर्दनाक जंदगी झेल कर जब
बेकसूर साबीत हो कर बाइज़त बड़ी हो करआते है तो इन बेशर्म और बे हया पत्रकारों की नजर तक नहीं झुकता । उसे ये  तौफिक नहीं होती के वह उन के बेक़सूर होने की खबर भी वैसे ही प्रकाशित की जाए  जिस तरह उनके "आतंकी  "होने की खबर प्रकाशित की गई थी ।
और छापते भी हैं  तो अखबार के आखरी पेज पर किसी कोने में  इसका गैर वाजेह अंदाज में  कि लोग उसे पढ़े भी नहीं ।
इतना ही नहीं , ऐसे मामलों में गैर मुस्लिम की संलिप्ता के सबुत मीलती है बल्कि पुख्ता सबुत मील जाते हैं तो उन पत्रकारों का रवैया सिटपिटाया  हआ होता है । वह उस के ख़बर छापते भी हैं तो जैसे के "न छापना परता तो अच्छा  था"
 पटना धमाके के सिलसिले में हर मुसलमान लड़के की गिरफ्तारी  पर मीडिया धमाका खेज बना कर पेश करती रही ,लेकिन  जब तार के सिलसिले  को जोड़ते हुए police ने लखीसराय से 4 गैर मुस्लिम नौजवान #Vikash kumar , पवन कुमार ,सतीश prasad ,और सुरेश साह को गिरफ्तार  किया तब ये खबर अखबार में जेली सुर्खियों के साथ प्रकाशित हई?
और इस ख़बर को भी गुमनाम कर देने की कोशीशक की गई ,
जिस तरह Sadhvi pragya singh thakur , Karnal Purohit और उनके हवारीय को इस पर भेदभाव और साम्प्रदायिक मीडिया  ने साफ़ बचा ले जाने की  कोशीश की ।  Media का ये रवैया नया नहीं है । देश के आजादी के पहले से ही इस paturn पर ढालने का काम शुरू हो गया था ।
नफरत की हिज लहर ने इस मुल्क  को दो भाग में बाँट दिया और जिस ने हमेशा के लए दो कौमी नजरया (two nation policy) को कायम कर  दिया  ,वह नफरत बहुत  सोंच  समझ कर फैलाई गई थी ।
अंग्रेजों के लए भले ही ज्ज्बाये  Intekaam था जो चाहते थे के हमजायगे जर मगरतुहे चैनसे रहने नहदगे ,लेिकनअंेज के इसहथीयारको उनलोगने बहत तेज़ीसे अपनाया और हेफाजत कजो hindustan को "hindu rashtr "बनाना चाहते थे ।वह जानते थे के इसके लए hinduon औरमुसलमान के बीचनफरत क दीवार रहनाजरी हसी ।,चाहे उस दीवारकतामीर म झूठऔरफरेब कजतनीभी इंटऔरसीमट लगानीपड़े मगर नफरतकये दीवारमजबूतसे मजबूत तरहोनीचाहीये ।वहयहभी जानते थे के इस मोहीम क कामयाबी " media" के मुमकन नह है ।लेहाजा उहने media को फोकस कर दीया और उसक जड़ म भेदभाव और sampardaikta क का जहरीला खाद दीया जाने लगा ।आज वह जहरीला पौधामजबूत दरत बन चूकाहै । आज वहमुसलमान के खेलाफ जहरअशानी (जहर फ़ैलाने )काकोई मौका नह छोड़ताकयके उसका दोहराफायेदाहै । नफरतकखेतीभीफलफूल रहीहै औरख़बर भीखूब फरोतहोरहीह।ये नफरत से भरीतेजारतिकतनकाखून बहारहीहै ।इससे उह कोईमतलबनहहै ।कयके ये उनके गैरमवको नहहै ।ये उनक मंसूबाबंदी (planing)का हीससाहै ।लेकनअफसोस के हम जोलगातार इससाजीश औरइस मोहीमका nishanaबन रहे ह ,लगातारनुसान उठारहे ह ,जानमाल इज़तआबगंवा रहे ह लेकन इसके सदबाबके लएकुछनह कररहे ह।जमहरीनेजाम (democratic system)म इसकामुकाबला करने क जरतथी एक bilmuqaabil mediaके केयामका ।म ने पहले भीलखा था ।लोग ने बहत पजीराई(सराहना)क लेकनअमली तौरपर दोएक अफरादने ही raju कया ।बाकसब के सब सोये रहे ।हम कोशीशकरनी चाहीये एक mutbaadil मीिडयाक ।चैनलशायद अब दुशवारहो लेकनएक अखबारया कम अजकम एकअछे hindi रेसाला से हीसही इसका आगाज होना चाहीये।हम य नह इसनहज पर सचते ? जबइतने कल और इतनी सवाईके बावजूद हमारी नदनह टूट रही है तोफर हम कब जागगे ? जगेगे भी या इसी नद कहालत म सहे हसतीसे मीट जायगे ? औरया हमारी तरह हमारी नल भी ऐसी ही सवाई ,और खासारे का शीकार होतीरहगी ?हम उह इसके लीये भीछोड़दगे?सचने कजरतहै। (Mr.Rashid ahmad , sub-edititor urdu daily Qaumi Tanzeem,patna. Dated.17/11/13)

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