बेशर्म मीडिया के सम्पादको सुनो
Published On: Thu, May 22nd, 2014 चर्चा में | By KohraMhindi
बेशर्म मीडिया के सम्पादको सुनो !
मुकेश कुमार
सुप्रीम कोर्ट ने अक्षर धाम हमलों में दस साल से सजा काट रहे छह आरोपियों को बरी कर दिया पर बेशर्म ( कुछ को छोड़) मीडिया ने इसे तवजो तक न दी. मीडिया विश्लेषक मुकेश कुमार मीडिया के इस चेहरे से पर्दा उठा रहे हैं
सोलह मई को भारत के इतिहास में दो जीत दर्ज हैं, एक नरेंद्र दामोदर भाई मोदी की और दूसरी हिंदुस्तान के लगभग उन अठारह करोड़ मुसलमानों की जो भारतीय मुख्यधारा की मीडिया में आतंकवाद के मिथक प्रतीकों “सफ़ेद टोपी”के उपनामों से नवाजे गयें है.
भारत की तथाकथित मुख्यधारा के मीडिया हमेशा से मुसलमानों को आतंकवाद के साथ जोड़ कर देखता रहा है(कुछ अखबार को छोड़कर). एक हाथ में कुरान और एक हाथ में लैपटॉप के जुमलेबाजी से आगे निकलना है तो इस मुख्यधारा की मीडिया को अपने चश्में का रंग बदलना होगा,उसको हरे रंग की स्याही से लिखने की सोच से निकलना होगा.
सोलह मई 2014 को 2002 के अक्षरधाम आतंकी हमले के सभी छह आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया. आदेश में शीर्ष अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा-”अभियोजन पक्ष की कहानी हर मोड़ पर कमजोर है और गृह मंत्री ने नॉन अल्पिकेशन ऑफ़ माइंड( बुद्धि का अनुपयोग) किया. सनद रहे उस समय गुजरात के गृहमंत्री और कोई नहीं बल्कि देश का मजदूर नंबर एक बनने की कामना लिए अशोक हाल में रोने वाले नरेंद्र दामोदर भाई मोदी थे!”
कुछ मीडिया की करतूत
जब आतंकी हमले के घंटे दो घंटे के अंदर पुलिस मनचाहे लोगों को शिकार बनाकर उठा ले जाती है तब तो मीडिया आरोपियों को आतंकी करार देते हुए और उनके शहर को आतंक का अड्डा बताते हुए पहले पन्ने पर काजग काले(हरे रंग से)किये रहते हैं या स्पेशल रिपोर्ट में धागे से तम्बू बनाने/तानने की जुगत में दि�
बेशर्म मीडिया के सम्पादको सुनो !
मुकेश कुमार
सुप्रीम कोर्ट ने अक्षर धाम हमलों में दस साल से सजा काट रहे छह आरोपियों को बरी कर दिया पर बेशर्म ( कुछ को छोड़) मीडिया ने इसे तवजो तक न दी. मीडिया विश्लेषक मुकेश कुमार मीडिया के इस चेहरे से पर्दा उठा रहे हैं
सोलह मई को भारत के इतिहास में दो जीत दर्ज हैं, एक नरेंद्र दामोदर भाई मोदी की और दूसरी हिंदुस्तान के लगभग उन अठारह करोड़ मुसलमानों की जो भारतीय मुख्यधारा की मीडिया में आतंकवाद के मिथक प्रतीकों “सफ़ेद टोपी”के उपनामों से नवाजे गयें है.
भारत की तथाकथित मुख्यधारा के मीडिया हमेशा से मुसलमानों को आतंकवाद के साथ जोड़ कर देखता रहा है(कुछ अखबार को छोड़कर). एक हाथ में कुरान और एक हाथ में लैपटॉप के जुमलेबाजी से आगे निकलना है तो इस मुख्यधारा की मीडिया को अपने चश्में का रंग बदलना होगा,उसको हरे रंग की स्याही से लिखने की सोच से निकलना होगा.
सोलह मई 2014 को 2002 के अक्षरधाम आतंकी हमले के सभी छह आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया. आदेश में शीर्ष अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा-”अभियोजन पक्ष की कहानी हर मोड़ पर कमजोर है और गृह मंत्री ने नॉन अल्पिकेशन ऑफ़ माइंड( बुद्धि का अनुपयोग) किया. सनद रहे उस समय गुजरात के गृहमंत्री और कोई नहीं बल्कि देश का मजदूर नंबर एक बनने की कामना लिए अशोक हाल में रोने वाले नरेंद्र दामोदर भाई मोदी थे!”
कुछ मीडिया की करतूत
जब आतंकी हमले के घंटे दो घंटे के अंदर पुलिस मनचाहे लोगों को शिकार बनाकर उठा ले जाती है तब तो मीडिया आरोपियों को आतंकी करार देते हुए और उनके शहर को आतंक का अड्डा बताते हुए पहले पन्ने पर काजग काले(हरे रंग से)किये रहते हैं या स्पेशल रिपोर्ट में धागे से तम्बू बनाने/तानने की जुगत में दि�
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