हलाला शरीयत में वही सज़ा है, ताकि कोई मर्द अपनी औरत को तलाक़ देने से पहले हज़ार बार सोचे,और आप सभी अपने आस पास देखिये, हलाला का कितना मामला आप-ने अपने आस-पास देखा है, और आपमें से जिन लोगों का आना जाना किसी मुस्लमान के घर में हो, उनमे से कुछ लोग बहूत अच्छे से जानते होंगे, इस हलाला जैसे कानून की वजह से कितने रिश्ते टूटने से बचे हैं।बात समझ आ गई तो ठीक, वरना कोई बात नहीं, विरोध करना जायज़ है, करते रहिए।

Asif Khan
इस्लाम मज़हब में, शादी कॉन्ट्रैक्ट है, जहाँ बिना सहमति के शादी नहीं होती है, 3 बार पूछा जाता है, पहले लड़की से फिर लड़का से।
अगर लड़की सहमति देती है, तो ही क़ाज़ी लड़के के पास सहमती के लिए जाता है, वरना मामला वही ख़तम।
शादी के बाद अगर लड़की लड़के के साथ ना रहना चाहे तो वो खुला ले सकती है, और 40 दिन की इद्दत पूरी होने के बाद किसी और मर्द से शादी कर सकती है।
इसी तरह अलग लड़का चाहे तो लटकी को तलाक़ दे सकता है, पर 1 साथ 3 तलाक को इस्लाम में सही नहीं मना जाता है, इस तरह से तलाक़ तो हो जाता है, पर मर्द को कोड़े मारने की सजा है, और भारत में इसे मान्यता प्राप्त नहीं है,
लड़का पहले 1 तलाक़ देता है, फिर लड़की की पहली मासिकधर्म तक दूसरा तलाक़ देने के लिए इंतज़ार करता है, इस तरह रिश्ता बचने की गुंजाईश बची रहती है, अगर दोनों में समझ बूझ आ गई तो रिश्ता कायम रहता है, वरना लड़का दूसरा तलाक़ देता है, और फिर लड़की की मास्किकधर्म तक का इंतज़ार करता है, अगर फिर समझ बुझ आ गई तो रिश्ता बच गया वरना लड़का तीसरा तलाक़ देता है, और फिर इस तरह मुक़म्मल तलाक़ होता है,
(अगर मासिकधर्म नहीं आया तो बच्चा पैदा होने तक वो तलाक़ नहीं दे सकता है)
फिर लड़की 40 दिन की उद्दात पूरी करती है, और जसके बाद वो दुबारा शादी कर सकती है।
इस बीच लड़का दूसरी शादी नहीं कर सकता है,
हो सकता है, आप लोगों को 1 तलाक़ के बाद लड़की की मासिकधर्म, और 3 तलाक़ मुक़म्मल हो जाने के बाद 40 दिनों की इद्दत की बात समझ नहीं आ रही हो,
अगर इस्लाम के इस तरह की बात नहीं हो, और पहली तलाक़ को ही मुक़म्मल तलाक़ मान लिया जाये और लड़की इद्दत पूरी किये बीना ही दूसरी शादी कर ले और दूसरी शादी के तुरंत बाद प्रेग्नेंट हो जाये तो वो बच्चा किसका होगा? उसके पहले शौहर का या दूसरे शौहर का? इन सबके बाद एड्स और HIV का खतरा भी।
अब हलाला की बात करते हैं,
हम क़ानून किस लिए बनाते हैं? और कानून बनाते हैं तो सजा का प्रावधान करते हैं,
हलाला शरीयत में वही सज़ा है, ताकि कोई मर्द अपनी औरत को तलाक़ देने से पहले हज़ार बार सोचे,
और आप सभी अपने आस पास देखिये, हलाला का कितना मामला आप-ने अपने आस-पास देखा है, और आपमें से जिन लोगों का आना जाना किसी मुस्लमान के घर में हो, उनमे से कुछ लोग बहूत अच्छे से जानते होंगे, इस हलाला जैसे कानून की वजह से कितने रिश्ते टूटने से बचे हैं।
बात समझ आ गई तो ठीक, वरना कोई बात नहीं, विरोध करना जायज़ है, करते रहिए।

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