CBI बनाम ममताः किसके हक़ में है क़ानून


ममता बनर्जीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
Image captionपश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने सीबीआई के इस क़दम को संघीय ढांचे पर हमला बोला है
सीबीआई बनाम पश्चिम बंगाल सरकार का मुद्दा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद और राजधानी दिल्ली से लेकर कोलकाता तक गर्म रहा.
संसद में कांग्रेस, एनसीपी, आरजेडी, एसपी और दूसरे विपक्षी दलों में सरकार को घेरा और कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार सीबीआई का ग़लत इस्तेमाल कर रही है.
जानी मानी वकील और संविधान की जानकार इंदिरा जयसिंह ने इसे 'संघीय ढांचे पर एक बड़ा प्रहार' बताया है.
एक ट्वीट में जयसिंह ने कहा है, "पश्चिम बंगाल ने अपराधों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई आम सहमति को वापस ले लिया था, ये केंद्र द्वारा संघीय ढांचे पर सीधा-सीधा हमला है, इसने एक संवैधानिक जंग जैसे हालात पैदा कर दिए हैं."
सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान के जानकार सूरत सिंह पूरे मामले की व्याख्या एक पुरानी कहावत, 'कुछ तो लोहा खोटा, कुछ लोहार' के माध्यम से करते हैं.
सूरत सिंह कहते हैं, "जो सीबीआई आज सुप्रीम कोर्ट के सामने गई है वो पहले क्यों नहीं गई और कहा कि पश्चिम बंगाल के पुलिस के अमुक अधिकारी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और आप किसी वरिष्ठ अधिकारी के यहां पहुंचकर उसके साथ किसी मुजरिम की तरह व्यवहार करें तो ये कहां का क़ानून है!? सरकारों को और ख़ुद सीबीआई को ये समझना होगा कि एजेंसी एक स्वतंत्र संस्था है."
वो कहते हैं लेकिन इस मामले में देखें तो केंद्र ने अपनी ओर से सीबीआई भेज दी, दूसरी तरफ़ ममता बनर्जी पंचायत लगाकर बैठ गई हैं.
उनका कहना है कि ममता बनर्जी संविधान नहीं बचा रही हैं बल्कि ख़ुद की राजनीतिक ज़मीन मज़बूत करने की कोशिश कर रही हैं, अगर उन्हें संविधान की फ़िक्र थी तो उन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए था.
सीबीआई के पूर्व अतिरिक्त डायरेक्टर एनके सिंह क़ानूनी तौर पर कोलकाता पुलिस कमिश्नर के ख़िलाफ़ सीबीआई की कार्रवाई को सही मानते है, 'क्योंकि इस केस की जांच सीबीआई की देख-रेख में पहले से ही हो रही थी साथ ही ये भी कि पूरी जांच सुप्रीम कोर्ट के कहने पर हो रही थी लेकिन ...'
लेकिन एनके सिंह के मुताबिक़ जिस तरह से सीबीआई की कार्रवाई रविवार को हुई है उससे राजनीतिक विद्वेष की गंध आती है.
वो कहते हैं कि एजेंसी का एक नया डायरेक्टर नियुक्त हो चुका है जो जल्द ही कार्यभार संभालेंगे तो फिर इस तरह की जल्दबाज़ी किस बात को लेकर थी?
सीबीआई-कोलकाता पुलिसइमेज कॉपीरइटREUTERS
Image captionसीबीआई के छापे की कोशिश के बाद कोलकाता पुलिस ने एजेंसी के कुछ अधिकारियों को ले जाते हुए
पश्चिम बंगाल हुकूमत ने ये भी कहा है कि पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने के लिए सीबीआई अधिकारियों के पास वारंट नहीं था.
हालांकि एनके सिंह कहते हैं कि इसके लिए किसी तरह के वारंट की ज़रूरत नहीं थी लेकिन अधिकारी जिस तरह से राजीव कुमार के घर पर रविवार शाम पहुंचे वो ग़लत था.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राजीव कुमार को मामले में पूछताछ के लिए चार बार समन भेजा जा चुका है लेकिन उन्होंने उसका जवाब नहीं दिया.
तुषार मेहता का ये भी कहना था कि जांच एजेंसी को डर है कि कोलकाता पुलिस कमिश्नर, जो मामले की पहले जांच कर रहे थे, साक्ष्यों को मिटा रहे हैं.
इस पर मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई का कहना था कि उनके सामने प्रस्तुत किए गए अंतरिम आवेदन से इस तरह की कोई बात सामने नहीं आती.
इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई मंगलवार को रख दी

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"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

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