पश्चिम बंगाल ! सत्ता हथियाने का हथियार बनी दुर्गा पूजा ? पढ़ें पूरी रिपोर्ट

पश्चिम बंगाल: दुर्गा पूजा के सहारे अपनी राजनीति चमका रही हैं पार्टियां

दुर्गापूजाइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा पर इस साल सियासी रंग कुछ ज़्यादा ही चटख नजर आ रहे हैं. बीते लोकसभा चुनावों में भारी कामयाबी हासिल करने वाली बीजेपी इस मामले में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के एकाधिकार को कड़ी चुनौती दे रही है.
इसके तहत पार्टी ने पूरे राज्य में 3,000 से ज्यादा स्टॉल लगाए हैं. पूजा के दौरान वहां से पार्टी की नीतियों और नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस यानी एनआरसी की ख़ूबियों के अलावा तृणमूल कांग्रेस सरकार की कथित हिंसा और नाकामियों का प्रचार किया जा रहा है.
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के स्टॉलों पर एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रचार के अलावा राज्य सरकार की उपलब्धियों के पर्चे बांटे जा रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि पूजा के बहाने सियासत में जुटे यह दोनों दल एक-दूसरे पर सियासत के आरोप लगा रहे हैं.
बंगाल में वाममोर्चा सरकार के 34 वर्षों के शासनकाल में दुर्गापूजा राजनीति से काफ़ी हद तक परे थी. पूजा में वामपंथी नेता सक्रिय हिस्सेदारी से दूर रहते थे. हां, आयोजन समितियों में सुभाष चक्रवर्ती जैसे कुछ नेता ज़रूर शामिल थे. लेकिन उनका मक़सद चंदा और विज्ञापन दिलाना ही था.
वर्ष 2011 में तृणमूल के भारी बहुमत के साथ जीत कर सत्ता में आने के बाद इस त्योहार पर सियासत का रंग चढ़ने लगा. धीरे-धीरे महानगर समेत राज्य की तमाम प्रमुख आयोजन समितियों पर तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता काबिज़ हो गए.
अब हालत यह है कि करोड़ों के बजट वाली ऐसी कोई पूजा समिति नहीं है जिसमें अध्यक्ष या संरक्षक के तौर पर पार्टी का कोई बड़ा नेता या मंत्री न हो.
ममता बनर्जीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

पंडालों का उद्घाटन करने में जुटीं ममता

पार्टी के लिए इस त्योहार की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हर साल सैकड़ों पूजा पंडालों का उद्घाटन करती हैं. यह साल भी अपवाद नहीं है. ममता महालया के दिन से ही लगातार पंडालों का उद्घाटन करने में जुटी हैं.
पूजा को सियासी फायदे के लिए भुनाने की तृणमूल की यह रणनीति काफ़ी कामयाब रही है. हालांकि पार्टी के नेता इसे महज जनसंपर्क अभियान बताते हैं. अब यही सोच कर बीजेपी ने भी पूजा समितियों पर क़ब्ज़े का अभियान शुरू कर दिया है.
अपनी इसी रणनीति के तहत इस सप्ताह बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी कोलकाता में एक पूजा पंडाल का उद्घाटन किया. बीजेपी ने महीनों पहले से कई प्रमुख आयोजन समितियों के साथ संपर्क शुरू कर दिया था.
इस पर विवाद भी हुआ. मिसाल के तौर पर महानगर की एक समिति ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को पूजा पंडाल के उद्घाटन का न्योता दिया था. लेकिन विवाद बढ़ने पर वह न्योता वापस ले लिया गया.
प्रदेश बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता मानते हैं कि आम लोगों के बीच पैठ बढ़ाने के लिए पूजा से बेहतर कोई दूसरा मौका नहीं हो सकता. उनका कहना है कि बंगाल में लोकसभा चुनावों में सियासी कामयाबी के बाद पार्टी अब अपनी सांस्कृतिक जमीन मजबूत करना चाहती है.
अमित शाहइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

बंगालियों के करीब आना चाहती है बीजेपी

अब आम लोगों से जुड़ने के लिए पूजा समितियों पर क़ब्जे के जरिए बीजेपी अब खुद को बंगालियों की पार्टी के तौर पर छवि बनाना चाहती है. अब तक यहां उसकी छवि ग़ैर-बंगाली हिंदीभाषियों की पार्टी की है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि पार्टी दुर्गा पूजा में अपनी भागीदारी बढ़ाना चाहती है.
दिलीप घोष कहते हैं, "हमने इस साल पूजा के दौरान रिकॉर्ड स्टॉल लगाए हैं. पहले हमारी स्थिति मज़बूत नहीं थी लेकिन अब भारी तादाद में हमें आम लोगों का समर्थन मिल रहा है."
दुर्गा पूजा में सीपीएम भले प्रत्यक्ष रूप से कभी शामिल नहीं रही, लेकिन इस त्योहार के दौरान वह भी हज़ारों की तादाद में स्टॉल लगाकर पार्टी की नीतियों औऱ उसकी अगुवाई वाली सरकार की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करती थी. वैसे, अब वह इस मामले में काफी पिछड़ गई है. उसकी जगह अब बीजेपी ने ले ली है.
वर्ष 2011 में सत्ता में आने के बाद तृणमूल कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर स्टॉल लगाना शुरू किया. शुरुआत में वहां पार्टी की नीतियों से सम्बन्धित पर्चे बांटे जाते थे और ममता बनर्जी की किताबें बेची जाती थीं.
दुर्गा पूजाइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

कितनी राजनीति, कितना धर्म?

तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं, "हमारे लिए दुर्गा पूजा बांग्ला संस्कृति, विरासत और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है. पार्टी इसे उत्सव के तौर पर मनाती है. लेकिन बीजेपी धर्म के नाम पर आम लोगों को बांटने का प्रयास करती है."
दूसरी ओर, बीजेपी भी अब अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए दुर्गा पूजा का ठीक उसी तरह इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है जैसा तृणमूल ने सत्ता में आने के बाद किया था.
प्रदेश बीजेपी के नेता प्रताप बनर्जी कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस के लोग पूजा समितियों में दूसरे राजनीतिक दलों के लोगों को शामिल नहीं होने देते. इसकी वजह सियासी भी है और वित्तीय भी. बावजूद इसके कई पूजा समितियों ने बीजेपी के शीर्ष नेताओं को पंडालों के उद्घाटन का न्योता दिया था."
संघ के प्रवक्ता जिष्णु बसु कहते हैं, "दुर्गापूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है. ऐसे में पार्टी ख़ुद को इससे दूर कैसे रखे?''
अमित शाहइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
'दुर्गापूजा का सियासी इस्तेमाल'
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ख़ुद कोलकाता की प्रमुख आयोजन समिति एकडालिया एवरग्रीन के अध्यक्ष हैं. उनका आरोप है कि बीजेपी दुर्गा पूजा का सियासी इस्तेमाल करना चाहती है. लेकिन त्योहारों को राजनीति से परे रखना चाहिए.
वो कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस दुर्गा पूजा के नाम पर राजनीति नहीं करती. लेकिन बीजेपी ने अब धर्म और दुर्गा पूजा के नाम पर सियासत शुरू कर दी है."
दूसरी ओर, बीजेपी ने उल्टे तृणमूल पर पूजा को सियासी रंग में रंगने का आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस ने ही इस उत्सव को अपनी पार्टी के कार्यक्रम में बदल दिया है. अमित शाह बीजेपी प्रमुख के रूप में नहीं, बल्कि केन्द्रीय गृह मंत्री के रूप में दुर्गा पूजा का उद्घाटन किया था."
उनका कहना है कि ममता बनर्जी के सत्ता में आने से पहले तक दुर्गा पूजा महज एक धार्मिक और सामाजिक उत्सव था. लेकिन मुख्यमंत्री ने इसे एक राजनीतिक मंच में बदल दिया है.
ममता बनर्जीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

बदली-बदली सी ममता बनर्जी

ममता बनर्जी सरकार ने बीते साल राज्य की 28 हज़ार दुर्गा पूजा समितियों को 10-10 हज़ार रुपये की सहायता दी थी. इस साल यह रकम बढ़ा कर 25 हज़ार कर दी गई है. इसके अलावा स्थानीय क्लबों को दो-दो लाख रुपए का अनुदान भी दिया गया है.
राज्य सरकार ने दो साल पहले मुहर्रम की वजह से दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन पर पाबंदी लगा दी थी. उस समय पर इस पर काफ़ी विवाद हुआ था और आख़िर में कलकत्ता हाईकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा था.
बीजेपी बीते साल पंचायत चुनावों के समय से ही सरकार की ओर से लागू की गई उस पाबंदी को मुद्दा बनाती रही है.
वाममोर्चा के अध्यक्ष विमान बोस मौजूदा परिदृश्य को प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिकता की बेहतरीन मिसाल बताते हैं.
वह कहते हैं, "बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस राज्य में धार्मिक कट्टरता का माहौल पैदा कर लोगों के धुव्रीकरण का प्रयास कर रही हैं. अपने इस प्रयास के दौरान दोनों ने राज्य के सबसे बड़े त्योहार को भी अपना हथियार बना लिया है."

Comments

Popular posts from this blog

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

Department of Education Directory