नए डोमिसाइल कानून की भारत प्रशासित कश्मीर में कड़ी प्रतिक्रिया


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भारत प्रशासित कश्मीर के लिए भारत सरकार के जारी किए गए नए मूल निवास (डोमिसाइल) नियमों के पर आम लोगों, एकेडिमीशियंस, लॉयर्स और राजनीतिक पार्टियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
इन लोगों का कहना है कि सरकार नए नियमों के जरिए जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में डेमोग्राफिक बदलाव लाना चाहती है.
भारत सरकार ने जेएंडके रीऑर्गनाइजेशन एक्ट, 2020 के तहत नए नियमों का नोटिफिकेशन जारी किया है.
नए डोमिसाइल रूल्स कहते हैं कि जम्मू और कश्मीर में कम से कम पिछले 15 साल से रह रहा कोई भी शख्स अब इस केंद्र शासिल प्रदेश का मूल नागरिक माना जाएगा.
सरकारी गजट की परिभाषा के मुताबिक, केंद्र सरकार के अफसरों, ऑल इंडिया सर्विस ऑफिसर्स, पीएसयू के अफ़सर और केंद्र सरकार की स्वायत्त संस्था और केंद्र सरकार के संस्थानों के अफसरों के बच्चे जो कि जम्मू और कश्मीर में कुल 10 साल गुजार चुके हैं या ऐसे बच्चों के पेरेंट्स जो कि सेक्शंस की किसी भी शर्त को पूरा करते हैं' उन्हें भी वहां का नागरिक माना जाएगा.
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पाबंदियां महीनों तक लागू रहीं...

पिछले साल 5 अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाकर वहां के खास दर्जे को खत्म कर दिया था.
साथ ही राज्य को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में तोड़ दिया था. धारा 370 हटाने के बाद से राज्य में एक असाधारण सुरक्षा घेरा स्थापित कर दिया गया था.
5 अगस्त के बाद से कश्मीर कर्फ्यू में रहा, कई तरह की पाबंदियां महीनों तक लागू रहीं और लंबे वक्त तक कम्युनिकेशंस के साधनों को काटे रखा गया.
तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कई मेनस्ट्रीम लीडर्स और एक्टिविस्ट्स, अलगाववादियों समेत हजारों लोगों को हिरासत में ले लिया गया था.
श्रीनगर के एक शॉपकीपर सुहेब वानी ने नए डोमिसाइल नियमों पर कहा कि नया कानून हमसे हमारी पूरी पहचान छीन लेगा और इससे कश्मीर के युवाओं पर बुरा असर पड़ेगा.
सुहेब ने कहा, "नए डोमिसाइल कानून के आने के बाद से मुझे मेरा भविष्य अंधकार में नजर आता है. मेरा काम और मेरी पहचान नहीं बचेंगे. पूरी दुनिया में हमारी एक खास पहचान है. लेकिन, यह पहचान अब नहीं रहेगी. हमारी नौकरियां अब सुरक्षित नहीं हैं."
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पहचान पर संकट

दक्षिण कश्मीर के स्टूडेंट अर्शिद अजीज ने बीबीसी को बताया कि नए कानून ने मेरे अस्तित्व को गहरे संकट में डाल दिया है.
अजीज ने कहा, "जॉब मेरी प्राथमिकता नहीं है. मेरी प्राथमिकता मेरा वजूद है. मुझे अगर नौकरी नहीं मिलेगी तो मैं कारोबार कर लूंगा. मेरी जमीन, मेरी पहचान पर संकट है."
जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के वकील अब्दुल बारी ने कहा कि यह नया कानून एक तरह की सोशल इंजीनियरिंग है जो कि नए कानून लाकर या पुराने कानूनों को अचानक खत्म कर आपके समाज को बदलना चाहते हैं.
बारी कहते हैं, "जब सरकार लोगों को डोमिसाइल देगी जो कि जम्मू और कश्मीर में रह रहे हैं तो यह डेमोग्राफिक बदलाव लाता है. सरकार इस डोमिसाइल को कानूनी वैधता देती है और इसे किसी की परवाह नहीं है. विरोध को दबाया जा रहा है. सरकार का मकसद राज्य में डेमोग्राफी को बदलना है."
कश्मीर में राजनीतिक जानकार कहते हैं कि नए डोमिसाइल कानून से सभी राजनीतिक आवाजें एकसाथ आ जाएंगी और लोग इसके खिलाफ बोलेंगे.
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कश्मीर की राजनीतिक आवाजें

प्रोफ़ेसर नूर अहमद बाबा ने बीबीसी को बताया कि यह जम्मू और कश्मीर के युवाओं के साथ एक मजाक है.
उन्होंने कहा, 'मैं नहीं जानता कि यह टिकेगा या नहीं और जम्मू और कश्मीर के लोग इसे मानेंगे या नहीं. इससे कश्मीर की राजनीतिक आवाजें एकसाथ आ जाएंगी.'
बाबा ने कहा कि यह न केवल कश्मीर में अस्वीकार्य होगा, बल्कि जम्मू के लोग भी इस फैसले का विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि यहां तक कि जम्मू में बीजेपी के कुछ लोग भी इस फैसले को पचा नहीं पा रहे हैं.
बाबा ने कहा, "दूसरी ओर, जम्मू में बीजेपी का बड़ा आधार है. मुझे लगता है वे इस आधार को खो देंगे."
हालांकि, जम्मू के कुछ लोग नए डोमिसाइल कानून से खुश हैं. पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी, जम्मू के प्रेसिडेंट लाबाराम गांधी ने कहा कि इस नए कानून से इक्कीस हजार पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों को इससे फायदा होगा.
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नोटिफिकेशन की टाइमिंग

गांधी ने कहा, "हम लोगों के लिए यह एक बहुत अच्छा कदम है. राज्य सरकार ने हमें अब तक अपनी आबादी नहीं माना था. अब हमारे बच्चे नौकरियां पा सकेंगे, वोट दे पाएगे और उन्हें दूसरे फायदे मिलेंगे. हमारे बच्चों को प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति और दूसरी हायर टेक्निकल एजूकेशन स्कीमों का फायदा नहीं मिल रहा था."
कश्मीर में एनालिस्ट्स का कहना है कि नए नोटिफिकेशन की टाइमिंग यह बताती है कि यह किसी भी कीमत पर एक गंभीर कदम नहीं है.
एक एनालिस्ट ने कहा, "पिछले कुछ दिनों में राजनेताओं को रिहा किया गया है. नई राजनीतिक पार्टियों ने जन्म लाय है. कश्मीर में इस तरह की धारणा है कि नई दिल्ली का इन राजनेताओं के साथ समझौता हो चुका है."
केंद्र सरकार के जम्मू और कश्मीर के खास दर्जे को खत्म करने के बाद से 138 में से 28 कानूनों को वापस लिया जा चुका है. राजनीतिक पार्टियों ने भी नई दिल्ली के इस कदम की आलोचना की है.
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एक नई पार्टी

जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस लीडर उमर अब्दुल्ला ने कई ट्वीट्स के जरिए नए डोमिसाइल कानूनों पर भारत सरकार की कड़ी आलोचना की है.
उमर अब्दुल्ला ने कहा, "नए डोमिसाइल कानूनों को लेकर क्या स्थिति है इसे इस बात से समझ लीजिए कि यहां तक कि जो एक नई पार्टी दिल्ली के आशीर्वाद से खड़ी हुई है, जिसके लीडर्स इस कानून के लिए दिल्ली में लॉबीइंग कर रहे थे उन्हें तक इसका विरोध करने के लिए मजबूर होना पड़ा है."
5 अगस्त से पहले आर्टिकल 35ए (जिसे अब हटा दिया गया) के जरिए यह तय होता था कि कौन इस राज्य में नौकरियों और अचल संपत्ति का हकदार है.
कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती ने भी नए डोमिसाइल कानूनों के लिए सरकार की आलोचना की है.
मुफ्ती ने अपने ट्वीट के जरिए चिंता जताई है कि नए डोमिसाइल कानून 5 अगस्त को धारा 370 को हटाने के साथ शुरू हुए एक डेमोग्राफिक प्रोजेक्ट का हिस्सा है.
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जम्मू और कश्मीर

सीपीआई (एम) के राज्य सेक्रेटरी और पूर्व एमएलए एम वाई तारिगामी ने कहा कि यह नया डोमिसाइल कानून जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए केंद्र का नया डराने वाला कदम है.
बीजेपी के राज्य महासचिव अशोक कौल ने इस नए कानून का स्वागत किया और कहा कि जम्मू और कश्मीर का भारत का हिस्सा है और देश के सभी हिस्सों में लागू होने वाले सभी कानून यहां लागू किए जाएंगे.
उन्होंने बीबीसी से कहा कि हम लगातार डोमिसाइल अधिकारों के लिए कानून की मांग कर रहे थे और यह अब हो गया है. हम इस कदम का स्वागत करते हैं.
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