मुस्लिम बुद्धिजीवियों से बीजेपी नेता राम माधव की बातचीत


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भारत में कोराना संकट के बीच भी मुसलमानों को निशाना बनाए जाने की कई घटनाएँ सामने आई हैं. इन सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोर टीम के सदस्य राम माधव ने कुछ मुसलमान बुद्धिजीवियों के साथ बैठक की है.
राम माधव पूर्वोत्तर और कश्मीर के मामले में प्रधानमंत्री के बहुत क़रीबी सलाहकार हैं और बैठक में से एक का कहना था कि उनसे हिसाब से ये पहल प्रधानमंत्री के कहने पर हुई है.
रविवार को बुलाई गई ये बैठक क़रीब दो घंटे से अधिक चली. इस बैठक में पिछली मोदी सरकार के दो मंत्री - पूर्व विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर और पूर्व नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा भी मौजूद थे. वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए हुई इस बैठक में मुस्लिम-पक्ष के अधिकतर लोगों ने तक़रीबन ख़ामोशी बनाए रखी, लेकिन कुछ लोगों ने सीधे शब्दों में कहा कि 'मुसलमानों की वफ़ादारी पर बार-बार सवाल उठाकर और कोरोना जैसी बीमारी के फैलने के लिए मुसलमानों को मुजरिम बनाने की जो कोशिश हो रही है, उससे मुस्लिम समाज में बेहद हलचल है'.
बैठक में जो बातें हुईं, उस पर अलग-अलग चार सूत्रों ने बीबीसी से हामी भरी.
बीबीसी को मिली जानकारी के मुताबिक़ बैठक में नागरिकता क़ानून के विरोध में उतरे मुसलमानों को निशाना बनाने का भी मुद्दा उठा. साथ ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया की छात्रा सफ़ूरा ज़रगर का मामला भी उठा, जो गर्भवती हैं और उन्हें जेल में रखा गया है.

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Image captionसफ़ूरा जरगर

सफ़ूरा ज़रगर को यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया गया है. बैठक में ये भी कहा गया कि इन सारी बातों का देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है.
फरवरी में हुए दिल्ली दंगों का ठीकरा भी मुसलमानों के सिर फोड़े जाने और समुदाय के लोगों की मामले में जारी गिरफ़्तारियों की बात भी बैठक में उठाई गई.
सरकारी पक्ष ने जब ये पूछा कि हालात में सुधार किस तरह किया जा सकता है तो मुस्लिम बुद्धिजीवियों में से एक ने कहा कि ये सवाल मुसलमानों से पूछे जाने की बजाय हिंदुत्व-पक्ष से किया जाना चाहिए कि वो आख़िर क्या चाहते हैं.
बीजेपी नेताओं से दूसरे पक्ष ने कहा कि प्रजातंत्र में बहुसंख्यक की ज़िम्मेदारी अधिक होती है.
'मुस्लिमों का मन टटोलने' के लिए समुदाय की तरफ़ से जिन लोगों को बुलाया गया था उसमें दिल्ली के पूर्व राजपाल नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर तारिक़ मंसूर, कश्मीर विश्वद्यालय के उप-कूलपति तलत अहमद, दिल्ली-स्थित इंडिया इस्लामिक सेंटर के अध्यक्ष सिराजुद्दीन क़ुरैशी, पटना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीश इक़बाल अंसारी, उर्दू दैनिक इंक़लाब के संपादक शकील हसन शमशी और दूसरे लोग शामिल थे.



कोरोना के बीच रमज़ान

बीबीसी ने जब मुस्लिम बुद्धिजीवियों में से कई से संपर्क साधकर ये जानना चाहा कि उनके ख़्याल से ये बैठक एक ऐसे समय में क्यों की गई, जब प्रधानमंत्री के रमज़ान बधाई संदेश पर भी सोशल मीडिया पर उनकी ट्रॉलिंग हो जाती है?
अंग्रेज़ी दैनिक हिंदू की एक ख़बर के अनुसार रमज़ान मुबारक के प्रधानमंत्री के 24 अप्रैल के ट्वीट पर जवाब आया कि मोदीजी हम टैक्स भरते हैं, पीएम केयर्स में दान देते हैं, लॉकडाउन के क़ानून का पालन करते है, लेकिन आपकी सरकार उनको सिर-माथे बैठाती है जो नियमों का पालन नहीं करते, सरकार के ख़र्चे पर उनका इलाज होता है, जो डॉक्टरों को पीटते हैं और फिर उन्हें मुआवज़ा दिया जाता है, ये कबतक चलेगा?
अगले 30 मिनट में प्रधानमंत्री के ट्वीट पर आए इस जवाब को लोगों ने 1,000 बार री-ट्वीट किया.
प्रधानमंत्री के इस संदेश पर कि कोविड की कोई धर्म-जाति नहीं, इस पर भी ढेरों विपरीत प्रतिक्रियाएं आई थीं.

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रविवार बैठक मे शामिल हुए सिराजुद्दीन क़ुरैशी ने कहा कि उन्हें बातचीत के लिए राम माधव की तरफ़ से संदेश आया था, तो उन्होंने उन्हें हालात से अगाह कर दिया अब इस मीटिंग के पीछे उनकी क्या मंशा थी या वो आगे क्या करेंगे ये वही जानें.
उन्होंने इससे अधिक कुछ कहने से मना कर दिया. बैठक में जो बातें हुईं, उस पर अलग-अलग चार सूत्रों ने बीबीसी से हामी भरी
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई इस बैठक को नागरिकता-क़ानून-विरोध, दिल्ली दंगों और ठीक उसके बाद कोरोना को लेकर मुसलमानों की टारगेटिंग पर विदेशों ख़ासतौर पर मुस्लिम देशों में हुई विपरीत प्रतिक्रया पर सरकार की चिंता का नतीजा मानते हैं.
दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद कई ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई, तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन, मलेशिया और इंडोनेशिया ने भारत सरकार के ख़िलाफ़ कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.
ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता ख़ामेनेई ने ट्वीट कर कहा था कि भारत में मुसलमानों पर ज़ुल्म हो रहा है और दुनिया भर के मुसलमान इससे दुखी हैं.
उन्होंने ट्वीट में लिखा था, ''भारत में मुसलमानों के नरसंहार पर दुनियाभर के मुसलमानों का दिल दुखी है. भारत सरकार को कट्टर हिंदुओं और उनकी पार्टियों को रोकना चाहिए और इस्लामी दुनिया की ओर से भारत को अलग-थलग किए जाने से बचने के लिए भारत को मुसलमानों के नरसंहार को रोकना चाहिए.''
तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप अर्दोआन ने कहा था, "भारत अब एक ऐसा देश बन गया है जहां व्यापक स्तर पर नरसंहार हो रहा है. कैसा नरसंहार? मुसलमानों का नरसंहार. कौन कर रह है? हिंदू."
इस्लामी देशों के संगठन आईओसी ने भी भारत से कार्रवाई की मांग की थी.
ओआईसी की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया था, "आईओसी भारत से ये अपील करता है कि वो मुस्लिम विरोधी हिंसा को अंज़ाम देने वाले लोगों को इंसाफ़ के कटघरे में खड़ा करे और अपने मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करे."
दिल्ली के उत्तर-पूर्वी ज़िले में 22-26 फ़रवरी तक हुए दंगों में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए थे जिनमें ज़्यादातर मुसलमान थे.
इसके अलावा गल्फ़ न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार खाड़ी देशों में रह रहे कुछ भारतीयों के ख़िलाफ़ वहां की सरकारों और निजी कंपनियों ने सख़्त कार्रवाई की थी क्योंकि उन पर भारतीय मुसलमानों या इस्लाम के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर भड़काऊ बातें लिखने के आरोप लगे थे. कई लोगों की नौकरियां चली गईं और कुछ लोग गिरफ़्तार भी हुए हैं.
हेट स्पीच के मामले में एक शख़्स को सज़ा दिए जाने की संयुक्त अरब अमीरात की राजकुमारी हेंद अल-क़ासिमी ने पुष्टि की है. उन्होंने लिखा है, "सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयानबाज़ी करने के मामले में केरल के एक व्यापारी को तो माफ़ कर दिया गया, पर एक अन्य शख़्स को जेल की सज़ा हुई है."
रशीद किदवई ने कहा, "नफ़रत की बयार फैलाना एक बात है लेकिन उसका एक आर्थिक पहूल भी है. खाड़ी देशों में तक़रीबन 85 लाख भारतीयों की मौजूदगी से देश को अरबों डॉलर सालाना की आमदनी होती है. सरकार की नज़र से ये तस्वीर पूरी तरह से ग़ायब नहीं."
पिछले दिनों खाड़ी के कुछ प्रभावी लोगों के ज़रिए भारत में एक तबक़े द्वारा हेट-कैंपेन के ख़िलाफ़ मुहिम सी चल पड़ी थी जिसके बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने स्तर पर इस मसले को सुलझाने की कोशिश की थी.

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