शिशुओं में कॉलिक (उदरशूल) || बच्चे की रोने की वजह ||

 

शिशुओं में कॉलिक (उदरशूल)

 
 
 
कॉलिक की वजह से रोता हुआ शिशु
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कॉलिक (उदरशूल) क्या है?

स्वस्थ शिशु जब अत्याधिक व अनियंत्रित ठंग से रोए और कोशिशों के बाद भी शांत न हो, तो इसे कॉलिक (उदरशूल) कहा जाता है।

वैसे तो सभी बच्चे रोते हैं। मगर इसे अत्याधिक रोना तब माना जाता है, जब वह एक दिन में तीन घंटे तक रोए और ऐसा कम से एक सप्ताह में तीन बार हो, और कम से कम तीन हफ्तों तक चले। इस तरह के रोने को निरंतर रोना (पर्सिसटेंट क्राइंग), समस्यात्मक रोना (प्रॉब्लम क्राइंग) या फिर 'पर्पल क्राइंग' की अवधि का एक हिस्सा भी कहा जाता है।

आप चाहे इसे कोई भी नाम दें, शिशु का अत्याधिक रोना परेशान करने वाला हो सकता है। कई घंटों से अनियंत्रित ढंग से रो रहे शिशु को शांत करवाना भी मेहनत का काम है।

कई बार ऐसी स्थिति में आप असहाय सा महसूस कर सकती हैं। शिशु के लगातार रोने की आवाज सुनकर शायद आपके भी आंसू बह निकले। मगर, आप कुछ गलत नहीं कर रही हैं, और आमतौर पर आपके शिशु के रोने का कोई विशेष कारण भी नहीं होगा।

शिशु के रोने का यह चरण काफी आम है और यह जल्द ही गुजर जाएगा। इसकी शुरुआत आमतौर पर दो से चार हफ्तों की उम्र से होती है, और यह शायद शिशु के चार महीने का होने तक समाप्त हो जाता है।

मुझे शिशु में कॉलिक होने का कैसे पता चल सकता है?

यदि आपका शिशु स्वस्थ होने और सही ढंग से दूध पीने के बावजूद भी अत्याधिक रोता है, तो हो सकता है कि उसे कॉलिक हो। आपके शिशु को कॉलिक या पर्सिसटेंट क्राइंग होने की पहचान निम्न तरीकों से की जा सकती है:
  • शिशु बार-बार अत्यंत प्रबलता से रो रहा है और शांत कराने पर भी चुप नहीं हो रहा
  • वह रोते समय अपनी टांगों को अपने पेट तक ले आता है और अपनी पीठ को चापाकार (आर्च) में मोड़ लेता है
  • वह अधिकांशत: दोपहर बाद या फिर शाम को रोता है (कॉलिक से ग्रस्त शिशु की पहचान करने का यह एक अच्छा तरीका है क्योंकि यदि​ शिशु किसी अन्य वजह से रो रहा हो तो हो सकता है उसका कोई निश्चित समय न हो)

क्या मुझे शिशु को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए?

हां, यदि आपका शिशु अत्याधिक रोए तो सलाह यही दी जाती है कि आप शिशु के डॉक्टर से बात करें। शिशु के रोने के दौर और अन्य लक्षणों व उसके दूध पीने के बारे में लिखती रहें। जब आप डॉक्टर के पास जाएं, तो यह कागज अपने साथ ले जाएं।

हो सकता है आपके शिशु में कुछ ऐसे भी लक्षण हों, जो दर्शाते हों कि उसके रोने की कुछ और गंभीर वजह है। अगर, शिशु में निम्नांकित लक्षण हों, तो तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लें:
  • वह बहुत तेज, असामान्य आवाज में रो रहा है
  • उल्टी में हरे रंग का तरल निकल रहा है
  • उसके मल में खून आ रहा है
  • वह सामान्य से कम तरल ले रहा है या फिर सामान्य से कम संख्या में लंगोट गीली कर रहा है
  • उसका कलांतराल (फॉन्टानेल, सिर के शीर्ष पर नरम स्थान) उभरा हुआ है
  • उसे बुखार है
यहां और अधिक जानें कि शिशु को डॉक्टर के पास कब ले जाना चाहिए।

यदि आपके शिशु को उपर्युक्त कोई भी लक्षण हो, और आपका डॉक्टर उपलब्ध न हो, तो उसे नजदीकी अस्पताल या ओपीडी क्लिनिक ले जाएं। वहां ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर और नर्स तुरंत आपकी मदद करेंगे।

यदि आपके शिशु में अत्याधिक रोने के अलावा किसी और बीमारी का लक्षण न भी दिखाई दे, तो भी बेहतर है कि एक बार उसे डॉक्टर को दिखा लिया जाए। डॉक्टर या तो शिशु में कॉलिक होने की पुष्टि कर देंगे, या फिर किसी अन्य समस्या के बारे में बता सकेंगे, जैसे कि:
  • फॉर्मूला दूध या स्तनदूध के प्रति एलर्जी या अस्थाई असहिष्णुता
  • रिफ्लेक्स, जब शिशु दूध बाहर निकाले या दूध पीने के बाद उल्टी करे
  • स्तनपान करते समय ठीक ढंग से स्तनों को मुंह में ले पाने में मुश्किल। यदि आपका शिशु स्तनपान करता है और दूध पीने के दौरान रोने लगता है और स्तन से दूर होने लगता है, तो आप उसे किसी दूसरी अवस्था में दूध पिलाकर देख सकती हैं।
  • कब्ज
  • थ्रश
ऐसे मामलों में, शिशु को लक्षणों से राहत देने के लिए डॉक्टर आपको सही सलाह दे देंगे।

मेरा शिशु इतना ज्यादा क्यों रोता है?

यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि वास्तव में कुछ शिशु अन्य की तुलना में इतना ज्यादा क्यों रोते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कॉलिक शिशु के सामान्य रोने की चरमसीमा हो सकती है, जो आमतौर पर शुरुआती दो महीनों में अत्याधिक होता है।

इसलिए, जहां कुछ शिशु केवल थोड़ा-बहुत रोते हैं, वहीं आपका शिशु जन्म के शुरुआती हफ्तों में स्वाभाविक रूप से थोड़ा ज्यादा रो सकता है। यह चरण जल्द ही गुजर जाएगा। यदि आपके शिशु को कॉलिक हो, तो आपको यह जान कर राहत मिलेगी कि कुछ सप्ताह बीत जाने पर वह भी उतना ही रोने लगेगा, जितना ही उसकी उम्र के अन्य शिशु रोते हैं।

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कॉलिक स्तनपान करने वाले शिशुओं में भी उतना ही आम है, जितना की फॉर्मूला दूध पीने वाले शिशुओं में। यह पुत्र व पुत्रियों दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है।

कॉलिक क्यों होता है, इसके बहुत से अलग-अलग सिद्धांत हैं। उदाहरण के तौर पर हो सकता है आपका शिशु लगातार इसलिए रो रहा है, क्योंकि उसका पाचन तंत्र अभी परिपक्व हो रहा है। इसलिए अपचता और गैस उसके लिए अस्थाई तौर पर समस्या पैदा कर रहे हैं।

यह भी संभव है कि शिशु केवल आपके सीने से लगकर प्यार व दुलार चाहता है। जिन शिशुओं का जन्म के समय से शारीरिक संपर्क कम रहता है (दिन में सोते, जागते या दूध पीते समय कम से कम 10 घंटों से भी कम समय के लिए), माना जाता है वे शिशु अधिक रोते व कोलाहल मचाते हैं।

हालांकि, कॉलिक के बारे में उपर्युक्त दिए गए या फिर किन्हीं अन्य सिद्धांतों की सच्चाई साबित करने का कोई प्रमाण नहीं है। चिंता न करें, ऐसा शायद नहीं है कि आपका शिशु किसी दर्द की वजह से रो रहा है या फिर आपने कुछ गलत किया है। हालांकि, शिशु को अनवरत रोते देखना बहुत मुश्किल हो सकता है, संभव है कि वह बिना किसी कारण के ऐसे ही रो रहा हो।

यदि मैं शिशु को स्तनपान करा रही हूं, तो क्या मेरे आहार की वजह से शिशु को कॉलिक हो सकता है?

यदि आप शिशु को स्तनपान करवा रहीं हैं, तो भी आपके खानपान से शायद शिशु को कॉलिक होना संभव नहीं हैं।

हालांकि, आप जो भी खाती या पीती हैं, उसके अवशेष आपके स्तनदूध में मिल सकते हैं। यदि आपका शिशु किसी विशिष्ट भोजन के प्रति संवेदनशील है, तो वह इससे प्रभावित हो सकता है।

इस बात को लेकर काफी विवाद है कि कौन से भोजन दिक्कत पैदा करते हैं (मगर आंकड़े इनसे मेल नहीं खाते), लेकिन बहुत से लोग मानते हैं कि पत्ता गोभी, प्याज, लहसुन, हरी गोभी, छोटी बंद गोभी और शलगम परेशानी की वजह हैं। ये कुछ शिशुओं में गैस पैदा कर सकते हैं और उनके रोने की वजह हो सकते हैं।

क्या इनमें से कोई भोजन आपके शिशु को असहज कर रहा, यह जानने के लिए कुछ दिनों त​क इन सभी का सेवन बंद करके देखें। यदि आपका शिशु बेहतर महसूस करे, तो दोबारा एक-एक करके इन भोजनों का सेवन शुरु करें। एक चीज का सेवन शुरु करने के बाद दूसरी चीज का सेवन कुछ दिनों बाद करें।

यदि आपका शिशु किसी विशेष भोजन का सेवन शुरु करने के बाद दोबारा से परेशान लगे, तो आपको पता चल जाएगा कि किस भोजन की वजह से यह परेशानी हो रही है। यदि आप यह पहचान जाएं, तो इस बारे में डॉक्टर से बात करें।

ध्यान रखें कि नई मां के तौर पर आपको अपनी ताकत बनाए रखनी होगी। इसलिए सुनिश्चित करें कि आप सेहतमंद और भरपूर आहार का सेवन जारी रखें।

मैं कॉलिक से ग्रस्त अपने शिशु को शांत कैसे करा सकती हूं?

कॉलिक की अनवरत रोने की प्रकृति का मतलब है कि बहुत बार ऐसा समय होगा, जब आपका शिशु बिना किसी वजह रोता ही रहेगा, चाहे आप उसे शांत करवाने के लिए कुछ भी कर लें। इसलिए, हो सकता है उसे शांत करवाने का कोई तरीका एक दिन सफल हो जाए, मगर अगले दिन वह काम न आए।

यदि आपके डॉक्टर ने शिशु के रोने का कोई ऐसा कारण नहीं बताया है, जिसका उपचार किया जा सके, तो आपको खुद ही जैसे-तैसे शिशु को शांत करवाना पड़ेगा। हालांकि, यह मुश्किल हो सकता है, मगर बहुत से ऐसे सुझाव हैं, जो आप अपना सकती हैं:
  • शिशु के दूध पीने के समय को अनुशासित करने की बजाय, जब भी शिशु भूखा लगे, उसे दूध पिलाएं। इसे इच्छानुसार दूध पिलाना यानि फीडिंग आॅन डिमांड कहा जाता है।
  • खुद को समय दें और शिशु के संकेतों को समझें। इससे आपको यह पहचानने में मदद मिल सकती है कि अब शिशु रोना शुरु करने वाला है। ऐसे में आप उसके अत्याधिक रोना शुरु करने से पहले उसे दूध पिला सकती हैं या सुला सकती हैं। हालांकि, हो सकता है कि आपका शिशु बिना किन्हीं संकेतों के सीधे ही एकदम तेज रोना शुरु कर दे। यदि ऐसा हो, तो दूध पिलाने से पहले उसे आराम से गोद में लें या फिर त्वचा से त्वचा का संपर्क कराएं।
  • शिशु को हर बार दूध पिलाने के बाद डकार दिलाएं। उसे गोद में अपने कंधों पर ले लें, अपनी गोद में सीधा बैठा लें या फिर उसे अपनी गोद में नीचे की तरफ मुंह करके लिटा लें। इसके बाद हल्के से उसकी पीठ थपथपाएं या मलें, ताकि गैस बा​​​हर निकल सके।
  • हल्के से शिशु के पेट पर मालिश करना। घड़ी की सुई की दिशा में (क्लॉकवाइज) मालिश करने से फंसी हुई गैस और मल को बाहर निकालने में मदद मिल सकती है। यह मालिश किस तरह की जाती है, इसके लिए पाचन में मदद के लिए मालिश का हमारा वीडियो देखें
  • चूसनी या पैसिफायर का इस्तेमाल करें। हो सकता है इसे चूसने से उसे शांत कराया जा सके। कुछ शिशु इसकी बजाय अपनी उंगलियां या अंगूठा चूसना पसंद करते हैं। बहरहाल, यह ध्यान में रखें कि भारत में बहुत से डॉक्टर शिशुओं को चूसनी या सूदर न देने की सलाह देते हैं, क्योंकि सही ढंग से इस्तेमाल न किए जाने पर ये संक्रमणों का कारण बन सकते हैं। यदि आप इनका इस्तेमाल करना चाहें, तो शिशु को बहुत थोड़े समय के लिए ही दें और इस्तेमाल के बाद इन्हें साफ करके ही रखें।
यदि आप बहुत चिंतित हों, तो आपका शिशु भी यह पहचान सकता है। यदि आपके शिशु को बहुत ज्यादा गैस हो, तो आप उसे अपचता से बचाने के लिए निम्न उपाय आजमा सकती हैं:
  • यदि आप शिशु को स्तनपान करवाती हैं, तो उस समय शिशु को जितना अधिक हो सके सीधा रखने का प्रयास करें। सुनिश्चित करें कि एक स्तन से पूरी तरह दूध पीने के बाद ही उसे दूसरे स्तन से दूध पिलाना शुरु करें, खासकर यदि वह हरे रंग का मल कर रहा है तो।
  • यदि आपका शिशु बोतल से दूध पीता है, तो सुनिश्चित करें कि वह बोतल से हवा नहीं निगल रहा है। शिशु को सीधा बिठाकर बोतल को इस तरह पकड़े कि उसका छोर हल्का सा उठा हुआ हो, ताकि निप्पल में हर समय दूध भरा रहे। आप एंटी-कॉलिक बोतल आजमाकर देख सकती हैं।
  • अपने डॉक्टर से शिशु के लिए गैस के उचित उपचार के बारे पूछें।
शिशु को शांत करने के अन्य तरीकों में एक तरीका यह भी है कि आप शिशु के लिए ऐसा माहौल और अनुभव तैयार करें जो वह शिशु गर्भ के भीतर महसूस करता था। निम्न तरीके अपनाने से शिशु राहत महसूस कर सकता है:
  • शिशु को गोद में अपने इतने करीब उठाएं कि वह आपके दिल की धड़कन सुन सके। आप बैठ जाएं, शांत रहें और धीरे-धीरे लंबी सांस लें, ताकि आपकी धड़कन धीमी और नियमित हो जाए।
  • अगर शिशु एक महीने से कम उम्र का है, तो आप उसे लपेट (स्वोडल) करके रखें
  • शांत माहौल बनाएं और रोशनी एकदम मंद कर दें। अत्याधिक हलचल या फिर एक व्यक्ति की गोद से दूसरे व्यक्ति की गोद में जाने से शिशु अधिक उत्तेजित हो सकता है। उसके लिए चमकदार रोशनी से नजर हटाना मुश्किल हो सकता है।
  • शिशु के लिए 'व्हाइट नॉइस' चलाएं। बार-बार दोहराया गया शोर गर्भ में सरसराहट यानि व्हूशिंग ध्वनि उत्पन्न करता है। वैक्यूम क्लीनर, हेयर ड्रायर, घड़ी की टिक-टिक की आवाज या फिर मोबाइल पर व्हाइट नॉइस की ऐप आपके काम आ सकती है।
  • उसे कार में या फिर बग्गी (प्रैम) में घुमाने ले जाएं। सड़क या पत्थर के रास्ते पर वाइब्रेशन से कुछ शिशुओं को आराम मिलता है।
  • अपने शिशु को गोद में लेकर हिलाए-डुलाएं। बेबीवियरिंग के जरिये उसके लिए हिलने-डुलने का ऐसा ही माहौल तैयार करें, जैसा वह गर्भ में महसूस करता था। या फिर बाउंसी कुसी में उसे हिला-डुलाकर भी ऐसा किया जा सकता है।
  • शिशु को हल्के गर्म पानी से नहलाकर भी देख सकती हैं। आपके शिशु ने हल्के गर्म एमनियोटिक द्रव में कई महीने गुजारे हैं।
हमेशा शिशु की देखभाल के एक समान तरीके का पालन करने से भी मदद मिलती है। इससे आपके शिशु को आदत हो जाएगी कि अब आगे क्या होने वाला है और इस तरह वह आमतौर पर अधिक शांत रहेगा।

जब भी आपका शिशु सोकर उठे आप उसे दूध पिला सकती हैं और थोड़ा समय उसे सीने से लगाने या उसके साथ खेलने में लगाएं। इसके बाद उसे अपने आप खेलने दें, बेबी जिम या मोबाइल के साथ।

जैसे ही आप शिशु में नींद आने के संकेत देखें, जैसे कि उबासी लेना, ठिनठिनाने लगना, आंखों को मलना या फिर अत्याधिक क्रियाशील हो जाना। हालांकि, संभव है कि एक ही तरह की दिनचर्या हर बार कारगर साबित न हो।

इस बात को कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि शिशु को शांत करवाने की कोई विशेष तकनीक या कॉलिक उपचार, उसके रोने को कम कर सकते हैं। जब तक माता-पिता शिशु को शांत करवाने के सभी तरीके आजमा चुके होते हैं, तब तक शिशु इतना बड़ा हो चुका होता है कि कॉलिक का चरण बीत गया होता है।

यदि आपको लगे कि कोई तरीका काम नहीं आ रहा है और आप परेशान होने लगें, तो शिशु को उसकी कॉट या मोजेज बास्केट में लिटाएं और कुछ मिनटों का अंतराल लें। या फिर अपने पति या घर के किसी अन्य इच्छुक सदस्य को थोड़ी देर के लिए यह जिम्मेदारी दे दें।

अगर आप कुछ निश्चित समय तक ही शिशु को शांत करवाने में लगाना चाहती हैं, तो आप अपने लिए टाइमर लगा लें। आपका आराम करना भी उतना ही जरुरी है।  जब शिशु सोए तब आप भी सो जाएं या झपकी ले लें, चाहे वह दिन का समय क्यों न हो। घर के कामकाज में न लगें। खुद का ख्याल रखना भी कॉलिक का सामना करने का एक अहम हिस्सा है।

कॉलिक के लिए पारंपरिक उपचार क्या हैं?

परिवार के सदस्यों और मित्रों का आपके और आपके शिशु के लिए चिंतित होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में आपको क्या करना चाहिए, इसे लेकर आपको बहुत से सिद्धांत और सलाह सुनने को मिलेंगी, खासकर परिवार के बुजुर्ग जनों से।

हालांकि, इस बात के पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि ये उपाय कारगर साबित होंगे, मगर बहुत से लोग इन्हें फायदेमंद मानते हैं:

शिशु के पेट पर हींग लगाना
कुछ माएं पिसी हुई हींग शिशु की नाभि में लगाती हैं। माना जाता है कि यह कॉलिक कम करने और पाचन में सुधार में मदद करती है। कई बार पिसी हुई हींग को लगाने से पहले गर्म किया जाता है या फिर पानी में घोला जाता है।

अगर आप भी यह आजमाना चाहें, तो सुनिश्चित कर लें कि आपके शिशु का नाभि ठूंठ टूटकर गिर चुका है और घाव भी पूरी तरह भर चुका है। इससे उस जगह पर इनफेक्शन होने के खतरे से बचा जा सकता है। घाव के भर जाने के बाद भी बेहतर यही है कि हींग के घोल को नाभि के किनारे पर बाहर की तरफ ही लगाया जाए। इस तरह यह नाभि के भीतर इकट्ठा नहीं होगा।

नाभि में सरसों का तेल लगाना
हल्का गर्म करके या फिर सामान्य रूप से सरसों का तेल लगाना भी कॉलिक का एक लोकप्रिय उपचार है। कुछ माएं सरसों के तेल में लहसुन, अजवायन या हींग भी मिलाती हैं। ध्यान रखें कि इनफेक्शन से बचने के लिए त्वचा से तेल को धोकर साफ कर दें। यदि आपके शिशु की त्वचा रुखी, संवेदनशील है, उसे एग्जिमा या त्वचा कट-फट रही है, तो बेहतर है कि ऐसे में सरसों का तेल न लगाया जाए।

हल्की गर्म सिकाई
पारंपरिक तौर पर शिशुओं को कॉलिक से राहत देने के लिए अजवायन से हल्की गर्म सिकाई की जाती थी। आप तय किए कपड़े में कुछ हल्की गर्म अजवायन रख सकती हैं या एक छोटी पोटली बना सकती हैं। बहुत सी माएं इस तरीके को अपनाती हैं और शिशु को शांत कराने में इसे मददगार मानती हैं। मगर, सुनिश्चित करें कि सेक इतना गर्म न हो, जिससे शिशु की नाजुक त्वचा झुलस जाए।

जन्म घुट्टी देना
हालांकि, अधिकांश डॉक्टर छोटे शिशुओं को जन्म घुट्टी या कोई अन्य जड़ी-बूटियों (हर्बल) के उपचार देने की सलाह नहीं देते, मगर यह कॉलिक का सदियों पुराना लोकप्रिय उपचार है। .

मां द्वारा सौंफ या अजवायन का पानी पीना
कॉलिक का एक अन्य प्राचीन उपचार है कि स्तनपान करवाने वाली माँ अजवायन और सौंफ का पानी पीए, ताकि पाचन में मदद मिल सके। यह पानी में एक छोटी चम्मच अजवायन और सौंफ डालकर उबालकर तैयार किया जाता है।

कुछ महिलाएं अजवायन और सौंफ को एक साथ मिलकार उबालने की बजाय केवल एक ही चीज का पानी पीना पसंद करती हैं। बहरहाल, आप जो भी निर्णय लें, बेहतर यही है कि आप इनका सेवन सीमित मात्रा में करें। अपने शरीर को जलनियोजित रखने के लिए अन्य सेहतमंद पेय पीना जारी रखें।

क्या उदरशूल नुकसानदेह है?

नहीं, कॉलिक से शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। वास्तव में, आपके, आपके पति और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए शिशु को लगातार रोते देखना मुश्किल भरा हो सकता है। बेहतर यही है कि जितना संभव हो सके आप उतने शांत रहें। खुद को तसल्ली दें कि यह केवल एक चरण ही है, जो जल्द ही गुजर जाएगा।

शिशु के लगातार रोने से घर में तनाव का माहौल सा बन जाता है, जिससे कुंठा, गुस्सा, निराशा या अवसाद उत्पन्न हो सकता है। दुर्लभ मामलों में, कुछ माता-पिता ऐसे कदम भी उठा लेते हैं, जिनके लिए फिर बाद में उन्हें पछताना पड़ता है, जैसे कि शिशु को बुरी तरह झकझोर देना।

अगर, आप भी शिशु के रोने को नहीं संभाल पा रही हैं तो चिंतित न हों और अपने डॉक्टर की मदद लें। खुद को याद दिलाएं कि शिशु के रोने में आपकी कोई गलती नहीं है और इससे उसको कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। यह चरण जल्द ही समाप्त हो जाएगा, बस इसे थोड़ा समय दें।

याद रखें कि आप अकेली नहीं हैं। आप हमारी कम्युनिटी में “आपका शिशु और मातृत्व ग्रुप” में अन्य माँओं से इस विषय पर बातचीत कर सकती हैं।
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