भारत में डॉक्टर क्यों नहीं लगा रहे कोरोना का टीका? क्या करे मोदी सरकार?


  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
प्रतीकात्मक तस्वीर

कोरोना वैक्सीन लगवाने को लेकर भारत में फ्रंट लाइन वर्कर्स में एक हिचक देखने को मिल रही है. ये बात आँकड़ों से भी साबित होती है. भारत सरकार, वैक्सीन लगाने के अपने लक्ष्य से 20-30 फ़ीसदी पीछे चल रही है.

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के 18 जनवरी के आँकड़ों के मुताबिक़ कर्नाटक, ओडिशा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना वो राज्य हैं, जहाँ अब तक सबसे ज़्यादा लोगों को टीके लगे हैं.

वहीं मणिपुर, मिजोरम, पुडुचेरी और लक्षद्वीप में सबसे कम लोगों को टीका लगा है.

कोरोना वैक्सीन ग्राफ़

स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े जानकार इस हिचक के लिए 'वैक्सीन हेज़िटेंसी' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं.

जानकारों की मानें, तो ख़तरा ये है कि अगर ज़्यादा समय तक फ्रंटलाइन वर्कर में वैक्सीन लगाने को लेकर हिचक बनी रही, तो कहीं ये नया चलन ना बन जाए. आगे चल कर कोरोना महामारी से निपटने की सरकार की प्रक्रिया फिर धरी की धरी रह जाएगी.

इसलिए मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों में ख़ास तौर पर डॉक्टर और अस्पताल से जुड़े स्टॉफ़ में इस हिचक को दूर करने की है.

लेकिन हिचक को दूर करने से पहले भारत सरकार को उन कारणों का पता लगाना होगा, जिस वजह से लोग वैक्सीन लगवाने से हिचक रहे हैं. इन्हीं कारणों और उसे दूर करने के उपाय को लेकर बीबीसी ने बात की देश के तीन बड़े स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों से.

डॉ. जगदीश प्रसाद, पूर्व महानिदेशक, स्वास्थ्य सेवा विभाग, भारत सरकार

डॉ. जगदीश प्रसाद साल 2011 से 2018 तक भारत के स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक के तौर पर कार्यरत रहे थे

डॉ. जगदीश प्रसाद साल 2011 से 2018 तक भारत के स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक के तौर पर कार्यरत रहे थे. फ़िलहाल वो रिटायर हो चुके हैं.

बीबीसी से बातचीत में डॉ. जगदीश प्रसाद कहते हैं- लोगों के अंदर कोरोना वैक्सीन को लेकर हिचक केंद्र सरकार के फ़रमान की वजह से पैदा हुआ है. तो ज़ाहिर है दूर करने के प्रयास भी उन्हीं की तरफ़ से होने चाहिए.

"किस व्यक्ति को कोवैक्सीन का टीका लगेगा और किसको कोविशिल्ड का - ये लोग तय नहीं कर सकते - सरकार के इस फ़रमान से लोगों में सबसे ज़्यादा हिचक पैदा हुई है.

दूसरी दिक़्क़त इस बात से हुई कि केंद्र सरकार ने बता दिया कि कोवैक्सीन के तीसरे फेज़ का ट्रायल पूरा नहीं हुआ है. कोवैक्सीन की इमरजेंसी रेस्ट्रिक्टेड इस्तेमाल की इजाज़त दी गई है. इस वजह से भी लोगों के अंदर हिचक पैदा हुई.

इसके साथ ही ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने ये भी कहा है कि जिनका भी टीकाकरण होगा, सबकी रिपोर्ट सरकार को सौंपना ज़रूरी है. इस वजह से डॉक्टरों के दिमाग़ में भी ये बात समा गई है कि बिना फेज़ थ्री ट्रायल पूरा किए कोवैक्सीन को मंज़ूरी दे दी गई है.

सरकार को फ्रंट लाइन वर्कर के दिमाग से इन दोनों संशय को सबसे पहले दूर करने की ज़रूरत है. इतना ही नहीं सरकार ख़ुद कह रही है कि कोविड19 बीमारी होने के बाद रिकवरी रेट बहुत अच्छी है. 90 फ़ीसदी से ज़्यादा लोग ठीक हो रहे हैं. इस वजह से अब ज़्यादा बेफिक्र हो जा रहे हैं कि वैक्सीन की ज़रूरत क्या है, कोरोना हुआ भी तो वो ठीक हो जाएँगे.

ऐसे में लोग ये समझ नहीं पा रहे हैं कि वैक्सीन लगाने की ज़रूरत क्यों है?

सरकार को इस बारे में भी लोगों तक सही जानकारी देनी चाहिए. लोगों में ये जानकारी भी ठीक से नहीं पहुँच पा रही है कि किस व्यक्ति पर वैक्सीन का असर अच्छा होगा और किस पर इसका कम असर होगा.

कई जगहों पर इन सब सवालों की आधी-अधूरी जानकारी पहुँच रही है. इसलिए सरकार को सामने आ कर इन सवालों के जवाब लोगों को देने होंगे. कोवैक्सीन को लेकर जो संशय है लोगों के मन में उसको आँकड़ों के आधार पर दूर करने की ज़रूरत है.

फेज़ थ्री ट्रायल के जो डेटा सामने हैं, उनके बारे में सही सूचना जनता तक पहुँचाना होगा. लोगों तक ये जानकारी भी सरकार को पहुँचाने की ज़रूरत है कि कोवैक्सीन किस तरीक़े से बनी है और उसके क्या फ़ायदे हैं, कितनी सेफ़ है ताकि लोगों का डर दूर हो सके."

केंद्र सरकार ने कुछ हद तक लोगों के अंदर कोवैक्सीन को लेकर पैदा हिचक को दूर करने की कोशिश की थी.

वैक्सीन के लिए बनी केंद्र सरकार की समिति के अध्यक्ष वीके पॉल और एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कैमरे के सामने पहले दिन ही कोवैक्सीन लगवाया. ताकि लोगों तक ये संदेश पहुँच सके कि भारत बॉयोटेक की वैक्सीन सुरक्षित है.

उन्होंने कोवैक्सीन ही क्यों लगवाया और कोविशिल्ड क्यों नहीं, इसके पीछे के कारण को लोगों तक नहीं पहुँचाया गया. इसलिए डॉ. जगदीश प्रसाद इस क़दम को काफ़ी नहीं मानते. हर सवाल का वैज्ञानिक आधार सरकार को जनता तक पहुँचाने की ज़रूरत है.

डॉ. रमन गंगाखेडकर, पूर्व प्रमुख, महामारी विज्ञान विभाग, आईसीएमआर

डॉ. रमन गंगाखेडकर, पूर्व प्रमुख, महामारी विज्ञान विभाग, आईसीएमआर

इस बारे में हमने बात की दूसरे विशेषज्ञ भारत के जाने-माने डॉक्टर रमन गंगाखेडकर से. डॉ. रमन गंगाखेडकर पूर्व में आईसीएमआर के महामारी विज्ञान विभाग के प्रमुख रह चुके हैं. इस पद से रिटायर होने से पहले सरकार द्वारा कोरोना महामारी को लेकर आयोजित प्रेस कॉन्फ़्रेंस में वो अहम चेहरा रहे हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने चेतावनी दी कि 'वैक्सीन हेज़िटेंसी' दो हफ्ते से ज़्यादा चली, तो डर है कि ये 'न्यू नॉर्म' ना बन जाए. मतलब ये कि लोगों में वैक्सीन नहीं लगाने की आदत ना पड़ जाएगी और ये मानसिकता कोरोना के ख़िलाफ़ भारत की लड़ाई के लिए घातक होगा.

"सरकार को कम्युनिटी मोबिलाइजेशन पर ध्यान देने की ज़रूरत है. लोगों के अंदर जो टीके को लेकर आशंकाएं हैं, उनको दूर करने की पहल करनी होगी. फ़िलहाल हर दिन के टीकाकरण का डेटा जारी कर सरकार ने पूरे मामले में पारदर्शिता अपनाई है. लेकिन साथ ही साथ हेल्थ केयर वर्कर के बीच में जो ओपिनियन लीडर हैं, उनसे टीके के बारे में जागरूकता फैलाने को कहना चाहिए. सरकार को उनको अपने साथ लेकर चलना होगा. जिन राज्यों में सरकार टीकाकरण के अपने तय लक्ष्य से काफ़ी पीछे चल रही है, उन राज्यों में इस बात पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.

कोरोना वैक्सीन ग्राफ़

डॉ. रणदीप गुलेरिया और डॉ. वीके पॉल के वैक्सीन लगवा लेने से हर डिसिप्लिन के डॉक्टर पर इसका असर नहीं होता. पैथोलॉजी वाले को पैथोलॉजिस्ट से कहलवाना पड़ेगा, आँख वाले डॉक्टर को आँख वालों से. इसके लिए ज़्यादा से ज़्यादा ट्रेनिंग सेशन करने की ज़रूरत भी है ताकि लोगों की परेशानी के बारे में पता लगाया जा सके. इस मुद्दे पर लाइव कार्यक्रम भी किए जाने चाहिए ताकि लोग अपने सवाल भी एक्सपर्ट के सामने रख सकें.

अमिताभ बच्चन की आवाज़ में कोरोना वैक्सीन के बारे में कहलवाने से डॉक्टरों पर असर ज़्यादा नहीं होगा. मेरे टीचर अगर मुझे आकर बताएँगें तो मुझ पर ज़्यादा असर होगा. डॉक्टरों पर उन्हीं में से कोई बड़ा, जिनकी बात उस समुदाय के लोग समझते हों, उनका असर सबसे ज़्यादा होगा. अस्पताल के दूसरे सपोर्टिंग स्टाफ में भी अस्पताल के डॉक्टरों की बात ही ज़्यादा असर करती है.

इसके अलावा हर दिन की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट की बात जिस अंदाज़ में की जाती है, उसे विस्तार से समझाने की ज़रूरत है. सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट को बीमारी का नाम और मरीज़ की हालात भी एक साथ बताने की ज़रूरत है. ऐसा करने से पूरी बात डॉक्टरों तक ज़्यादा बेहतर तरीक़े से पहुँच पाएगी.

साथ ही सीरियर एडवर्स इफ़ेक्ट बताते समय उसकी फ्रीक्वेंसी बताने की भी ज़रूरत है. मसलन "3 लाख लोगों में एक व्यक्ति को टीकाकरण के बाद अस्पताल ले जाया गया."

डॉ. रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि वैसे वैक्सीन को लेकर ये हिचक केवल समय की बात है. कुछ समय बाद सब ठीक हो जाना चाहिए. लेकिन सरकार को इसके लिए प्रयास करने होंगे. अगर एक निश्चित समय अवधि के आगे भी ये हिचक लोगों में बरकरार रहती है तो 'न्यू नार्म' बन जाएगा. 15 दिन के बाद भी ये बंद नहीं हुआ, तो दिक़्क़त बढ़ जाएगी. फिर लोग कहने लगेंगे, वहाँ तो कोई वैक्सीन लगवाने जाता नहीं तो मैं क्यों जाऊं?

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में वैक्सीन हेज़िटेंसी ग़लत सूचनाओं की वजह से भी है? मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी इस हिचक के पीछे 'इंफोडेमिक' को वजह मान रहे हैं. डॉ. रमन गंगाखेडकर इस बात से सहमत हैं, लेकिन उनका साथ ही कहना है कि हर नई चीज़ के साथ ये होता है. हमें ऐसी बातों से निपटने की तैयारी रखनी चाहिए.

डॉ. टी जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट

डॉ. टी जैकब जॉन, वायरोलॉजिस्ट

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में वायरोलॉजी के प्रोफ़ेसर रहे टी जैकब जॉन से भी बात की. आज भी उनकी गिनती देश के जाने माने वॉयरोलॉजिस्ट में की जाती है.

उन्होंने बताया कि वैक्सीन को लेकर हिचक नई बात नहीं है. मास्क पहने को लेकर भी पहले लोगों में इस तरह की हिचक देखने को मिली थी.

"अगर आप लोगों को सीधे कोई नई चीज़ करने को कहते हैं, तो वो काम एक हद तक ही पूरा होता है. लेकिन अगर आप उस काम को करने की वजह बता कर करने को कहते हैं तो लोग उसे मन से करेंगे, क्योंकि तब उन्हें उस काम को नहीं करने के फ़ायदे और नुक़सान के बारे में पूरा पता होता है.

यानी सरकार को वैक्सीन लाने के पहले उसके बारे में लोगों तक सही जानकारी पहुँचानी चाहिए थी. तब लोगों में ऐसी हिचक नहीं होती. मैंने लोगों से बातचीत कर जो पता लगाया है उससे मालूम पड़ता है कि लोगों में कुछ बातों को लेकर सबसे ज़्यादा आशंकाएँ हैं. मसलन दो अलग-अलग वैक्सीन क्यों अप्रूव किए गए, इसके पीछे सरकार की मंशा क्या थी?

लोगों में इस तरह भावना है कि भारत सरकार दुनिया के सामने भारत को सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की सफलता का ढिंढोरा पीटना चाहती थी, इसलिए जल्दबाज़ी में टीकों को अप्रूव किया गया. कई लोग ये कह रहे हैं कि हेल्थ केयर वर्कर में वैक्सीन की एफिकेसी पता लगाने के बाद नेता ख़ुद वैक्सीन लगवाएँगे. यानी हेल्थ केयर वर्कर में 'गिनीपिग' का भाव भर गया है.

साफ़ है कि हेल्थ केयर वर्कर को सबसे पहले वैक्सीन लगवाने के पीछे की सरकार की मंशा, उन्हीं हेल्थ केयर वर्कर तक सही से नहीं पहुँच पाई है. यही बातें सरकार के लिए घातक हैं.

पहले फैसले ले लिए जाते हैं, फिर सवाल उठतें हैं और फिर उसका जवाब दिया जाता है और संशय दूर करने के प्रयास होते हैं. इस पूरे विषय पर तुरंत सरकार को लोगों के सभी भ्रम को दूर करने की ज़रूरत है.

जैसे ही एम्स के निदेशक एक वैक्सीन लगवाते हैं और दूसरा नहीं, तो लोगों के मन में सवाल उठता है कि वही वैक्सीन आख़िर उन्होंने क्यों लगवाई?

फिर लोग तरह तरह के जवाब गढ़ते हैं. कोवैक्सीन भारत में बनी है. इसलिए उन्होंने वही लगवाया. यानी कुछ लोग देशभक्ति से इसे जोड़ते हैं. कुछ लोगों को लगता है कि लोगों का कोवैक्सीन के डेटा को लेकर जो कुछ सवाल है, वो पूछना बंद कर दें.

लेकिन असल बात तो ये है कि एम्स में वही वैक्सीन उपलब्ध थी, इसलिए वही वैक्सीन लगानी थी. उनके पास कोई विकल्प नहीं था."

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