दिल्ली दंगे: दिल्ली पुलिस बार-बार कोर्ट के सामने शर्मसार क्यों हो रही है?



दिल्ली पुलिस

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सांकेतिक तस्वीर

दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को दंगों से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है.

लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब दिल्ली की किसी अदालत ने दंगों से जुड़े मामले में दिल्ली पुलिस की आलोचना की है. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सीएमएम कोर्ट जांच को लेकर दिल्ली पुलिस की जांच और उसकी चार्जशीट पर सवाल उठा रही है.

जबकि दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसने वीडियो एनालिटिक्स से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों की मदद से इन मामलों की जांच की है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी संसद में दिल्ली पुलिस के काम की सराहना कर चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि अदालतें दिल्ली पुलिस की आलोचना क्यों कर रही हैं.

दिल्ली दंगों की एक तस्वीर

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दिल्ली दंगों में पुलिस की भूमिका

दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाके में 23 फरवरी 2020 को शुरु हुए दंगे में कुल 53 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग जख़्मी हुए. इसके साथ ही कई लोगों के घरों और दुकानों को नुकसान पहुंचा.

इसे बीते सात दशक में दिल्ली में हुआ सबसे बड़ा हिंदू-मुस्लिम दंगा कहा गया. दिल्ली पुलिस पर आरोप लगे कि उसने दंगों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए. अदालतों में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से जवाब मांगे गए.

एक मौका ऐसा भी हुआ जब दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस एस मुरलीधर को दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर से यह कहना पड़ा कि 'जब आपके पास भड़काऊ भाषणों के क्लिप मौजूद हैं तो एफ़आईआर दर्ज करने के लिए आप किसका इंतज़ार कर रहे हैं?'

कोर्ट में यह भी कहा गया था कि 'शहर जल रहा है, तो कार्रवाई का उचित समय कब आयेगा?'

दिल्ली पुलिस पर जो आरोप लगाए गए, उस पर विस्तार से बीबीसी की रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं.

दिल्ली पुलिस के डीसीपी प्रमोद कुशवाहा के मुताबिक़, इस मामले में उत्तरी - दिल्ली के 11 पुलिस थानों में 755 एफ़आईआर दर्ज की गयी हैं और 1753 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.

इस साल की शुरुआत में दिल्ली पुलिस ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि 27 जनवरी 2021 तक 557 लोगों को जमानत दी गयी और कुल 300 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गयी है.

लेकिन पिछले कुछ महीनों में दिल्ली की तमाम अदालतों ने दंगों से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को आड़े हाथों लिया है.

पढ़िए ऐसे ही कुछ अहम मामलों के बारे में -

दिल्ली दंगों की एक तस्वीर

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मोहम्मद नासिर की एफ़आईआर

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके घोंडा में रहने वाले मोहम्मद नासिर दंगों के दौरान घायल हो गए थे. नासिर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि उन पर हुए हमले की एफ़आईआर दर्ज करने की बजाय भजनपुरा पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने उनकी शिकायत दूसरी एफ़आईआर के साथ जोड़ दी जिसका उन पर हुए हमले से कोई ताल्लुक नहीं था.

नासिर के वकील महमूद पराचा ने बीबीसी को बताया था कि जिस एफ़आईआर के साथ पुलिस ने नासिर की शिकायत को जोड़ा है उसमें "अभियुक्त मुसलमान हैं और पीड़ित भी मुसलमान" हैं.

मोहम्मद नासिर
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मोहम्मद नासिर

पराचा ने जो हलफ़नामा अदालत में दायर किया था, उसमें कहा गया है कि पुलिस नासिर पर हुए हमले की शिकायत पर एफ़आईआर दर्ज करने से बचती रही जबकि नासिर ने हमलावरों को नामज़द किया था.

इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने मामले की सुनवाई के बाद दिल्ली पुलिस पर 25 हज़ार रूपए का जुर्माना लगाया था.

इसी आदेश में जज विनोद यादव ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर से कहा था कि वे नासिर के मामले की जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों के ऊपर कार्रवाई करके अदालत को इसकी सूचना दें.

अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि नासिर के मामले में दिल्ली पुलिस की जांच "बेढंगी, लापरवाह और हास्यास्पद" है.

आदेश में कहा गया कि नासिर ने जिन लोगों पर हमले का आरोप लगाया है, पुलिस के "अधिकारियों ने उनका बचाव करने के रास्ते बनाने की कोशिश की है."

दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए 25 हज़ार रुपये के जुर्माने को भरने की समय सीमा 15 नवंबर तक बढ़ा दी है.

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हेड कांस्टेबल रतनलाल की हत्या के मामले में जमानत

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में दंगों के दौरान मारे गए दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या के मामले में पांच अभियुक्तों आरिफ, शाहबाद, फुरकान, सुवलीन और तबस्सुम को ज़मानत दी है.

कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन करना और अपनी असहमति व्यक्त करना एक मौलिक अधिकार है.

कोर्ट ने पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ये अधिकार इस्तेमाल करने वालों की क़ैद को जायज़ ठहराने के लिए अधिकार के प्रयोग मात्र को हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा था, "भारतीय दंड संहिता की धारा 149 को, विशेषत: जब उसे धारा 302 के साथ पढ़ा जाए, सामान्य आरोपों और अस्पष्ट सबूतों के आधार पर लागू नहीं किया जा सकता. जब भीड़ से जुड़ा मामला हो तब अदालतों को जमानत देने या ख़ारिज करते समय इस नतीज़े पर पहुंचने में कोताही बरतनी चाहिए कि ग़ैर-कानूनी सभा के सभी सदस्य एक ग़ैर-क़ानूनी साझे उद्देश्य को हासिल करने का साझा इरादा रखते हैं."

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि यह उसका संवैधानिक कर्तव्य है कि राज्य की शक्ति की अधिकता की स्थिति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मनमाने ढंग से न छीना जाए.

दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

दिल्ली दंगों की एक तस्वीर

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राज्य बनाम रोहित मामले में कोर्ट का रुख

दिल्ली के चीफ़ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने बीते शुक्रवार दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली पुलिस को कड़ी चेतावनी दी है.

इस मामले में रिज़वान नामक एक शख़्स ने गोकुलपुरी थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी कि 200 से 300 लोगों की भीड़ ने उसके घर के ताले तोड़ने के साथ ही तोड़फोड़ की और 4,80,000 रुपये की राशि लूट ली.

इस सिलसिले में कोर्ट में पेश हुए जांच अधिकारी ने अदालत से अगली तारीख़ देने की मांग की. उन्होंने कहा कि वह मामले से जुड़ी फाइल नहीं देख सके हैं, ऐसे में वह कोर्ट के सवालों के जवाब देने में असमर्थ हैं.

इस पर चीफ़ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ये सब चलता रहा तो अदालत कड़े फैसले लेने के लिए विवश होगी जिसमें स्थगन खर्च के साथ - साथ अधिकारियों की तनख़्वाहें काटने का आदेश शामिल हो सकता है.

कोर्ट ने कहा कि विशेष अभियोजक कई सुनवाइयों में उपस्थित नहीं हो रहे हैं.

इसके साथ ही गोकुलपुरी थाने के एसएचओ को आड़े हाथों लेते हुए कोर्ट ने कहा कि जब जांच अधिकारी को किसी मामले में हाई कोर्ट में उपस्थित होना है तो जांच अधिकारी क्यों नहीं बदला जाता और जब वह उपस्थित होते हैं तो ये सुनिश्चित नहीं किया जाता कि वे केस फाइल पढ़कर आएं.

उन्होंने कहा कि दंगों से जुड़े मामलों में ढुलमुल रवैया बरतने पर आलोचना का शिकार होने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने उचित ढंग से अभियोजन के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए हैं.

उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस के अधिकारियों (डीसीपी-उत्तर पूर्व, ज्वॉइंट सीपी ईस्टर्न रेंज एवं दिल्ली पुलिस कमिश्नर) द्वारा अभियोजन के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए जिसकी वजह से दंगों से जुड़े मामलों की सुनवाई में अनावश्यक देरी हो रही है.

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पांच मामलों पर एक एफ़आईआर क्यों

बीती 14 सितंबर को दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद कुमार यादव ने दिल्ली पुलिस से सवाल किया है कि कथित रूप से दंगे, चोरी और आगजनी के पांच अलग-अलग मामलों को एक एफ़आईआर में क्यों शामिल किया गया है.

जज यादव ने पूछा कि दिल्ली के भजनपुरा में ब्लॉक सी, डी और ई में अलग - अलग तारीख़ों पर होनी वाली कथित आगजनी, चोरी और दंगे की घटनाओं में एक एफ़आईआर क्यों की गयी है.

अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, दिल्ली पुलिस ने इस मामले में अलग - अलग एफ़आईआर करने और सभी मामलों की जांच अलग - अलग करने का आश्वासन दिया है.

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जांच में ढिलाई का आरोप

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद कुमार यादव ने एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस की जांच पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि दंगों से जुड़े कई मामलों में जाँच का स्तर बेहद ख़राब है.

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक़, कोर्ट ने ये टिप्पणी सशस्त्र सीमा बल की 65वीं बटालियन के एक कांस्टेबल द्वारा दर्ज कराई गई एफ़आईआर की सुनवाई करते हुए की.

इसके अलावा ऐसे कई मामलों में अदालतों द्वारा दिल्ली पुलिस के जांच एवं अभियोजन के मामले में ढुलमुल रवैये पर सख़्त टिप्पणी की गयी है.

लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार ने दिल्ली पुलिस के प्रयासों की सराहना की है.

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क्या कहती है सरकार और दिल्ली पुलिस

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 मार्च 2020 को संसद में दिल्ली के दंगों को "एक बड़ी सुनियोजित साज़िश का हिस्सा" बताते हुए दिल्ली पुलिस के बारे में कहा था कि "उन्होंने सराहनीय काम करते हुए दंगों को 36 घंटे के भीतर काबू में कर लिया.

डीसीपी प्रमोद कुशवाहा ने बताया है कि दिल्ली पुलिस ने सीसीटीवी और स्मार्ट फोन से बनाई गई फुटेज़ के विश्लेषण में वीडियो एनालिटिक्स के साथ - साथ चेहरे पहचानने की तकनीक का सहारा लिया. इस प्रक्रिया से मिली तस्वीरों का मिलान अलग - अलग डेटाबेसों के साथ किया गया. इससे दंगाइयों का पहचान की जा सकी. इससे अन्य सबूतों के साथ उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने में मदद मिली.

कुशवाहा ने ये भी बताया कि दिल्ली पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज को बेहतर करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया और ई-वाहन डेटाबेस एवं ड्राइविंग लाइसेंस डेटाबेस की मदद से आगे की पहचान की गयी. इसके अलावा फंड फ्लो एनालिसिस टूल की मदद से दंगे को करवाने और उसके लिए धन जुटाने की प्रक्रिया में पैसे के आवागमन को ट्रैक किया गया. इस टूल को विशेष रूप से दंगे के पीछे साज़िश का पता लगाने के लिए किया गया.

कुशवाहा ने बताया कि जांच इन कसौटियों पर की गयी है -

  • सीसीटीवी और मोबाइल फुटेज की मदद से साइंटिफिक और स्पष्ट सबूतों का संग्रह
  • पहचान और गिरफ़्तारियों के लिए लेटेस्ट सॉफ़्टवेयर एवं तकनीक का इस्तेमाल
  • फॉरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा घटनास्थल का दौरा एवं मैटेरियल एविडेंस का संग्रहण किया जाना
  • जांच दलों का गठन एवं एसआईटी, स्पेशल सेल और लोकल पुलिस के बीच जानकारी को साझा करने के लिए समन्वय स्थापित किया जाना
  • वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा लगातार मॉनिटरिंग एवं विशेष मार्गदर्शन
  • समय - सीमा में काम होने के लिए विशेष लक्ष्यों का तय किए जाना
  • बेहतर परिणाम हासिल करने के लिए विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति
  • सुनवाई प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए विशेष अदालतों का गठन
  • जांच अधिकारियों की मदद से लिए कानूनी सलाहकारों का चयन
  • एक समर्पित टीम द्वारा पैरवी एवं सुनवाई की मॉनिटरिंग

दिल्ली पुलिस ने इन तमाम कसौटियों के आधार पर ये साबित करने की कोशिश की है कि उन्होंने पूरे पेशेवर ढंग से जांच की है.

लेकिन कोर्ट पिछले कई हफ़्तों से लगभग इन्हीं कसौटियों के आधार पर दिल्ली पुलिस को आड़े हाथों ले रही है.

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