[मेरठ के मौलाना 'चतुर्वेदी' - BBC हिंदी] मेरठ के मौलाना 'चतुर्वेदी'

[मेरठ के मौलाना 'चतुर्वेदी' - BBC हिंदी]
मेरठ के मौलाना 'चतुर्वेदी'
सोहेल हलीम
बीबीसी उर्दू संवाददाता, दिल्ली
6 सितंबर 2016

उत्तर प्रदेश के मेरठ में दारुल उलूम देवबंद से पढ़े एक मौलाना, बच्चों को पढ़ाते समय संस्कृत के श्लोकों का भी हवाला दते हैं और कुरान की आयतों का भी.
मौलाना महफ़ूज़ उर रहमान शाहीन जमाली पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 'मौलाना चतुर्वेदी' के नाम से मशहूर हैं.
उन्होंने हिंदुओं की धार्मिक पुस्तकों या वेदों का भी गहरा अध्ययन किया है. वो कहते हैं, "लोग यह सोचते हैं कि अगर ये मौलाना हैं तो फिर चतुर्वेदी कैसे हैं? मैं उनसे कहता हूं कि मौलाना अगर चतुर्वेदी भी हो जाए, तो उसकी शान घटती नहीं और बढ़ जाती है".
हिंदू धर्म में चारों वेदों का अध्ययन करने वालों को चतुर्वेदी कहा जाता है.
देवबंद से पढ़ाई पूरी करने के बाद मौलाना शाहीन जमाली को संस्कृत सीखने इच्छा हुई. उसके बाद वेदों और हिन्दुओं के बाक़ी धार्मिक पुस्तकों में उनकी रूचि बढ़ती चली गई.
वो कहते हैं, "वेद पढ़ने के बाद मैंने महसूस किया कि मेरा जीवन एक खाने में सिमट कर नहीं रह गया है, बल्कि मेरा दायरा और भी बड़ा हो गया है."

मौलाना अपने मदरसे में छात्रों को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हैं. वो मानते हैं कि इसके लिए दूसरे धर्मों के बारे में भी जानना ज़रूरी है.
मौलाना चतुर्वेदी कहते हैं, "हमारा संदेश यह है कि लोगों में दूरी, ज़्यादा ताक़त की इच्छा से बढ़ती है. लेकिन मानवता के रिश्ते में कोई भेदभाव नहीं है, इसलिए वेदों में मानवता के बारे में कई गई बातों का हवाला देकर, मैं लोगों को एक दूसरे के क़रीब लाने की कोशिश करता हूं".
उनके मुताबिक़, "वेदों में तीन मूल बातें कही गई हैं, भगवान की पूजा, इंसान की मुक्ति और मानव सेवा. मैं समझता हूँ कि ये तीनों बातें इस्लाम के संदेश में पहले से ही मौजूद हैं".
इस असाधारण मदरसे के आसपास रहने वालों में मौलाना चतुर्वेदी ख़ुद भी लोकप्रिय हैं और उनका संदेश भी.

इज़हार हुसैन इस मदरसे के पास ही कपड़े की दुकान चलाते हैं. वो कहते हैं कि 'जब हिन्दू लोग कोई धार्मिक सभा करते हैं, तो मौलाना जमाल को भी बुलाते हैं. इससे हमें अपने धर्म के बारे में पता चलता है और उन्हें हमारे".
उनके दोस्त कुलदीप भी पास ही छोले भटूरे की दुकान करते हैं. वे कहते हैं, "आजकल ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं, जो दोनों धर्मों की बात करे. इस तरह के संदेश से मेल मिलाप बना रहता है, एक दूसरे को समझने का मौक़ा मिलता है और ग़लतफ़हमी की वजह से जो दूरी पैदा हो गई है उसे ख़त्म करने में मदद मिलती है".
भारत में पिछले कुछ समय से असहिष्णुता का माहौल बढ़ा है.
मौलाना जमाली कहते हैं कि इस शिक्षा का हमारे अपने बच्चों पर यह असर पड़ता है कि वो जिस समाज में जाएंगे, वहां उनका वास्ता अपने दूसरे धार्मिक भाइयों से होगा और जो कुछ उन्होंने यहां सीखा है, उसे अपने जीवन में अपनाएंगे. इस तरह के मेल मिलाप से आपस की एकता मज़बूत होगी.
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