कोरोना से लड़ाई की कमान राज्यों को सौंपी तो अब मोदी सरकार क्या करेगी? जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन के पहले चरण की घोषणा की था तब उन्होंने ''किसी राज्य से इस पर सुझाव नहीं मांगा'' ऐसे आरोप लगते रहे हैं. कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री पर आरोप भी लगाए कि उन्होंने बिना सोचे-समझे, बिना राज्यों से बात किए लॉकडाउन लागू कर दिया जिससे प्रवासी मज़दूरों को तो समस्या हुई ही, बाकी देशवासी भी इस वजह से फंस गए. 19 मार्च को नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया और कोरोना महामारी की गंभीरता का जिक्र करते हुए लोगों से एहतियात बरतने की अपील की. इसी संबोधन में उन्होंने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लागू होने की घोषणा की और जनता से उसके पालन की अपील की. 24 मार्च को प्रधानमंत्री ने एक बार फिर देश को संबोधित किया और घोषणा की कि रात में 12 बजे से पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन होने जा रहा है. जिसमें घरों से बाहर निकलने पर पूरी तरह पाबंदी रहेगी.

कोरोना से लड़ाई की कमान राज्यों को सौंपी तो अब मोदी सरकार क्या करेगी?

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कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लागू किए गए लॉकडाउन के दो महीने बाद अब इसमें काफ़ी राहत मिल चुकी हैं. लॉकडाउन 5 जिसे अनलॉक-1 कहा जा रहा है, कई बड़े ऐलान किए गए हैं.
लॉकडाउन 4 ख़त्म होने से एक दिन पहले ही देश में कोरोना संक्रमण के एक दिन में आए नए मामलों का आंकड़ा 8,380 था. एक दिन में अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है. इसके साथ ही 24 घंटों में 193 लोगों की मौत हुई है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में संक्रमित लोगों की कुल संख्या बढ़कर 1,82,143 हो गई है. संक्रमण से मरने वालों की कुल संख्या 5,164 है. अब तक संक्रमित लोगों में से करीब 87 हज़ार लोग ठीक हो चुके हैं.
केंद्र सरकार की ओर से लॉकडाउन की जगह अनलॉक 1 की गाइडलाइन में अब कोरोना संक्रमण से बने हालात संभालने के लिए राज्यों को कमान सौंपी गई है. यानी अब राज्यों को फैसला करना है कि वो दूसरे राज्य से यात्रा की अनुमति देंगे या नहीं, या वो अपने राज्य में ही एक ज़िले से दूसरे ज़िले में सफ़र अनुमति देना चाहते हैं या नहीं.

लॉकडाउन और राज्यों के आरोप

सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन के पहले चरण की घोषणा की था तब उन्होंने ''किसी राज्य से इस पर सुझाव नहीं मांगा'' ऐसे आरोप लगते रहे हैं. कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री पर आरोप भी लगाए कि उन्होंने बिना सोचे-समझे, बिना राज्यों से बात किए लॉकडाउन लागू कर दिया जिससे प्रवासी मज़दूरों को तो समस्या हुई ही, बाकी देशवासी भी इस वजह से फंस गए.
19 मार्च को नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया और कोरोना महामारी की गंभीरता का जिक्र करते हुए लोगों से एहतियात बरतने की अपील की. इसी संबोधन में उन्होंने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लागू होने की घोषणा की और जनता से उसके पालन की अपील की.
24 मार्च को प्रधानमंत्री ने एक बार फिर देश को संबोधित किया और घोषणा की कि रात में 12 बजे से पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन होने जा रहा है. जिसमें घरों से बाहर निकलने पर पूरी तरह पाबंदी रहेगी.
20 मार्च को नरेंद्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की थी. उस वक़्त देश में संक्रमण के मामले 230 थे. हालांकि तब तक कई राज्यों ने खुद ही कई तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए थे.
लॉकडाउन का दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू हुआ और 3 मई तक रहा. मोदी ने 11 अप्रैल को मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की और 14 अप्रैल को एक बार फिर देश को संबोधित किया. मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ''भारत में कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई आगे कैसे बढ़े, इसे लेकर मैंने राज्यों से निरंतर बात की है. सभी का यही सुझाव है कि लॉकडाउन को आगे बढ़ाया जाए. कई राज्य पहले ही लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला कर चुके हैं.''
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जीइमेज कॉपीरइटEPA/PIB
इसके बाद लॉकडाउन तीन लागू हुआ जो 3 मई से 17 मई तक चला. चौथे लॉकडाउन में की घोषणा से पहले मोदी ने देश को संबोधित किया और आर्थिक सुधारों के लिए सरकार के प्रयासों का जिक्र किया. मोदी ने यह भी कहा कि चौथा लॉकडाउन नए रंग-रूप में होगा. चौथे लॉकडाउन में शराब की दुकानें खोलने, ग्रीन ज़ोन में आवाजाही शुरू करने और फैक्ट्रियों में काम शुरू करने की भी इजाजत दे दी गई.
इस फ़ैसले का भी कई राज्यों ने विरोध किया. गृह मंत्रालय की ओर से जारी की गई गाइडलाइंस पर चिंता जताते हुए कई राज्यों ने कहा कि इससे संक्रमण फैलने का ख़तरा और बढ़ेगा.
चौथे लॉकडाउन में ही यह संकेत दे दिया गया था कि अब आगे की ज़िम्मेदारी राज्यों की ही है. इसकी वजह यह भी रही है कि केंद्र सरकार के फ़ैसलों से राज्यों की असहमति लगातार दिखी है. राज्यों ने केंद्र से मदद की गुहार भी लगाई और प्रवासी मज़दूरों के मुद्दे पर भी केंद्र को घेरा. प्रवासी मज़दूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने का फ़ैसला भी काफी देर से लिया गया.
तब तक बहुत से प्रवासी मज़दूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घरों को पहुंच चुके थे और हज़ारों की संख्या में लोग सड़कों पर थे. भूखे-प्यासे लोग किसी भी तरह अपने घर जाना चाहते थे. इस कारण कई प्रवासियों को हादसों का शिकार भी होना पड़ा.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने एक बयान में कहा कि प्रधानमंत्री ने बिना तैयारी के और बिना सोचे समझे जिस तरह लॉकडाउन लागू करने का फ़ैसला लिया वह सही नहीं था. इसकी वजह से प्रवासी मज़दूरों की मुश्किलें बढ़ीं और वो सड़कों पर हैं. उन्होंने रेल मंत्रालय को पत्र लिखकर ट्रेनें चलाने की मांग भी की थी.
केंद्र सरकार की ओर से जब घरेलू हवाई यात्राएं शुरू करने का फ़ैसला लिया गया तो महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने इसका विरोध किया. हालांकि बाद में वो मान गए.
अनलॉक 1 में केंद्र सरकार ने रेड ज़ोन के अलावा बाक़ी जगहों पर लगभग सभी प्रतिबंध हटाने का फ़ैसला लिया तो इस पर भी राज्यों की प्रतिक्रिया कुछ अच्छी नहीं रही.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस मामले में बीबीसी से कहा, '''आपदा प्रबंधन क़ानून' के तहत सारे अधिकार केंद्र के पास थे, तब केंद्र सरकार ने राज्यों को विश्वास में लिए बिना लॉकडाउन की घोषणा की. करोड़ों मज़दूरों सहित सारे लोग फंस गए. अब जब मज़दूर जैसे तैसे लौटे हैं और संक्रमित हैं तब केंद्र सरकार अपने हाथ खींचकर, बिना किसी मदद के, कोरोना संकट से जूझने का ज़िम्मा राज्यों पर थोप रही है.
दूसरी ओर केंद्रीय मंत्रियों से लेकर भाजपा तक सब राज्यों पर आरोप लगा रहे हैं. संकट के समय यह राजनीति अशोभनीय है.''

बंगाल में दोहरी मुसीबत

पश्चिम बंगाल में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस तो शुरुआत से ही बिना किसी ठोस योजना के घोषित लॉकडाउन समेत केंद्र के तमाम कथित एकतरफा फ़ैसलों का विरोध करती रही है.
बीबीसी से बातचीत में पार्टी के वरिष्ठ नेता, कोलकाता नगर निगम के प्रशासक बोर्ड के अध्यक्ष और शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम कहते हैं, "पहले जब हालात इतनी ख़राब नहीं थी तो तमाम एकतरफा फ़ैसले लिए गए. लेकिन अब हालात गंभीर होने के बाद राज्य सरकारों से सलाह-मशविरा किए बिना ही भारी तादाद में प्रवासियों को यहां भेजा जा रहा है. बंगाल फ़िलहाल कोरोना के साथ ही अंफान तूफ़ान से भी जूझ रहा है. ट्रेनें और उड़ानों को शुरू करने का फ़ैसला भी केंद्र सरकार का ही था. अब केंद्र ने तमाम ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी है. बाहरी लोगों के बिना किसी योजना के भारी तादाद में पहुंचने की वजह से ही संक्रमण बढ़ रहा है."
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कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत के प्रयासों की सराहना की थी. हालांकि जैसे-जैसे वक़्त आगे बढ़ा भारत में संक्रमण पैर पसारता गया और हालात बेक़ाबू नज़र आ रहे हैं. भारत संक्रमण के मामले में दुनिया के शीर्ष 10 देशों की सूची में आ गया है.

मोदी ने क्या-क्या कहा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा करते वक़्त कहा कि देश में 21 दिनों के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लागू रहेगा.
उन्होंने महाभारत का ज़िक्र करते हुए कहा कहा, ''महाभारत का युद्ध 18 दिन में जीता गया था. आज कोरोना के ख़िलाफ़ जो युद्ध पूरा देश लड़ रहा है उसमें 21 दिन लगने वाले हैं.''
प्रधानमंत्री मोदी ने बीते रविवार को मन की बात कार्यक्रम में कहा, ''कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई का रास्ता लंबा है. ये एक ऐसी आपदा है जिसका दुनिया के पास कोई इलाज नहीं है और न ही पहले का इसका कोई अनुभव है. इस कारण हमें रोज़ नई चुनौतियां मिल रही हैं. देश में कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो परेशानी में न हो. इस संकट की सबसे बड़ी चोट ग़रीब मज़दूर और श्रमिक वर्ग पर पड़ी हैं. उनकी पीड़ा को शब्दों में बयान करना मुश्किल है. उनकी और उनके परिवार की तकलीफ़ों को हम सब मिल कर बांटने की कोशिश कर रहे हैं.''

अमित शाह ने बताया क्यों आया 'अनलॉक-1'

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा होने के मौके पर कोरोना संक्रमण की वजह से पैदा हुए हालात का भी ज़िक्र किया.
उन्होंने कहा, ''अगर देश की 130 करोड़ की जनता और राज्य सरकारें, मोदी जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चलती तो कोरोना से लड़ाई में भारत इतनी बेहतर स्थिति में नहीं होता. नरेंद्र मोदी जी ने देश की जनता को कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में एकजुट किया.''
एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा, ''अब हर ज़िले में स्वास्थ्य सेवाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार है, प्रदेशों ने अपने प्रोटोकॉल डेवलप कर लिए हैं. कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए प्रशिक्षित लोगों की अब एक बड़ी फौज तैयार है इसलिए अब ये अनलॉक-1 आया है.''
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केंद्र सरकार का ज़ोर 'आत्मनिर्भर भारत' पर

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार पहले ही कई पैकेज की घोषणा कर चुकी है. ग़रीबों को इस पैकेज से काफ़ी लाभ मिलेगा.
आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के की हालत सुधारने के लिए फैसले लिए गए हैं.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि 'MSME के लिए 50,000 करोड़ रुपये के फंड ऑफ़ फंड्स को मंज़ूरी दी गई है. इससे संकट में फंसे छोटे उद्योगों को मदद मिलेगी. सरकार इन 50,000 करोड़ रुपये को कुछ वर्षों में दो लाख करोड़ रुपये बना सकेगी.'
MSME सेक्टर में प्लांट और मशीनरी में निवेश 50 करोड़ होगा और टर्न ओवर 100 करोड़ की जगह 250 करोड़ हो गया है. एक्सपोर्ट के टर्नओवर को इस सेक्टर में नहीं जोड़ा जाएगा.
शहरी और आवास मंत्रालय ने रेहड़ी पटरी वालों के लिए विशेष लोन की व्यवस्था की है. कैबिनेट ने इसे मंज़ूरी दे दी है. 10 हज़ार तक का लोन दिया जाएगा. शहरी और आवास मंत्रालय ने विशेष सूक्ष्म ऋण योजना शुरू की है. ये रेहड़ी-पटरी वालों की मदद के लिए योजना है. इस योजना से 50 लाख लोगों को लाभ मिलेगा.
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा कि ग़रीब ही इस सरकार की प्रमुख प्राथमिकता हैं. सरकार ग़रीबों के हितों को ध्यान में रखकर काम कर रही है.
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उन्होंने कहा, ''लॉकडाउन शुरू होने के पहले दो दिन में 1.70 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की गई. इसके तहत 80 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा देने से लेकर 20 करोड़ महिलाओं के बैंक खाते में सीधे आर्थिक मदद पहुंचाने का भी काम हुआ है. इसके साथ ही वरिष्ठ नागरिक, विकलांगों और किसानों की भी सहायता की गई है.''
इसके एक दिन पहले रेल मंत्री पीयूष गोयल ने घोषणा की कि एक जून से 200 विशेष ट्रेन देशभर में चलाई जाएंगी. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और बाकी ज़रूरी बातों का ध्यान रखा जाएगा.
रेलवे का यह क़दम धीरे-धीरे सामान्य हालात की ओर लौटने के उद्देश्य से बढ़ाया गया है.

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