सीबीएसई परीक्षाओं और स्कूल-कॉलेज खोलने के बारे में क्या बोले केंद्रीय मंत्री निशंक

रमेश पोखरियाल निशंक

कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए जब लॉकडाउन हुआ तो स्कूल-कॉलेजों के दरवाज़े भी बंद हो गए. भारत के प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय तक के 33 करोड़ से ज़्यादा विद्यार्थी घर पर बैठ गए.
महामारी और लॉकडाउन का असर भारत समेत दुनियाभर के लगभग 70 फ़ीसदी छात्रों पर पड़ा है.
पर अब जब धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जा रही है, तो स्कूलों को भी अगस्त के महीने के बाद खोलने की तैयारी है.
इस दौरान मानव संसाधन मंत्रालय, गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर गाइडलाइंस तैयार कर रहा है.
जब बदले माहौल में स्कूल खुलेंगे, तो पढ़ने-पढ़ाने का तरीक़ा बदल जाएगा. पढ़ाई के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण होगी.


छात्राइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

बदल जाएगा पढ़ाई का तरीक़ा?

बीबीसी से ख़ास बातचीत में भारत के मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने दावा किया कि जब तक बच्चे स्कूल नहीं पहुँच रहे हैं, तब तक ऑनलाइन क्लास के ज़रिए उनके स्कूल घर तक पहुँच गए हैं.
क्या ई-लर्निंग क्लास रूम का विकल्प हो सकता है? इस सवाल पर मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि इसके अलावा फ़िलहाल कोई और विकल्प नहीं है, छात्रों की पढ़ाई बिल्कुल नहीं हो पाती. उससे बेहतर है कि घर बैठे-बैठे उन्हें पढ़ने का मौक़ा मिल रहा है.
उन्होंने कहा, "हमारे शिक्षा मंत्रालय ने घरो पर बच्चों को एक साथ ऑनलाइन शिक्षा देने की कोशिश की है. हमने बच्चों को निराश नहीं होने दिया है, अभिभावकों को परेशान नहीं होने दिया है. आज अध्यापक और अभिभावक दोनों मिलकर बच्चों को सँवार रहे हैं."


स्कूली बच्चेइमेज कॉपीरइटBBC/ PRINCE KUMAR

क्या वाक़ई शहर से लेकर सूदूर गांव के इलाकों तक सबको बराबर शिक्षा मिल पा रही है वो भी भारत जैसे देश में, जहाँ आज भी 23-24 फ़ीसदी लोगों के घरों में ही इंटरनेट है.
शहरों में तो फिर भी कई घरों में लैपटॉप और डेस्क टॉप मिल जाएंगे, लेकिन गाँवों में ज़्यादातर बच्चों के पास इंटरनेट के नाम पर मोबाइल फ़ोन की ही सुविधा है तो उस छोटे से फ़ोन में उनके इतना बड़ा पाठ्यक्रम समा पाएगा?
इस सवाल पर मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि स्कूली शिक्षा के लिए दीक्षा और ई-पाठशाला जैसे ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म हैं लेकिन अगर किसी बच्चे के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है तो उनके लिए स्वयंप्रभा के 32 चैनलों के ज़रिए शिक्षा पहुंचाई जा रही है और भविष्य में ज़रूरत पड़ी तो रेडियो का भी इस्तेमाल होगा.
उन्होंने कहा, "हम अंतिम छोर पर रहने वाले बच्चों की भी चिंता कर रहे हैं, जिनके पास इंटरनेट और स्मार्टफ़ोन नहीं हैं, उन्हें भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. हम उनके हिसाब से पाठ्यक्रम लाएंगे. ज़रूरत पड़ी तो रेडियो का भी प्रयोग करेंगे."


रमेश पोखरियाल निशंकइमेज कॉपीरइटRAMESH POKHRIYAL NISHANK

लेकिन पूरी शिक्षा ऑनलाइन हो जाए, इसके लिए क्या भारत का शिक्षा तंत्र तैयार था इस सवाल पर उन्होनें कहा, "किसी को नहीं पता था कि ये होने वाला है, कोई तैयार नहीं था. लेकिन हम भविष्य की तैयारियों में जुटे थे कि एक दिन ऐसा ज़रूर आना है जब शिक्षा को ऑनलाइन होना है, जब दूरस्थ क्षेत्र में बैठे बच्चों को भी शहरी बच्चों जैसी सुविधाएँ मिलीं. अब जब ये वक़्त आया तो हमने अपनी तैयारियों की गति बढ़ाई और सभी तक ऑनलाइन शिक्षा पहुँचाने की कोशिश की. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्म निर्भर भारत का मंत्र दिया है शिक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने का मौक़ा है."
हालाँकि मानव संसाधन मंत्री से ये सवाल पूछे जाने के अगले ही दिन केरल की कक्षा 10 में पढ़ने वाली 14 साल की एक लड़की ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे ऑनलाइन पढाई करने का मौका नहीं मिल रहा था.
इस छात्रा के पिता दिहाड़ी पर काम करते हैं. आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की वजह से उनके घर में टीवी नहीं था और वो स्मार्ट फोन का भी जुगाड़ नहीं कर पाए. यहीं नहीं केरल में लगभग ढाई लाख छात्र-छात्राएँ हैं जिनके पास टीवी या कंप्यूटर नहीं है.
दलित एक्टिविस्ट सनी कपिकड़ का मानना है कि शिक्षा ग़रीब तबक़े तक नहीं पहुंच रही है तो इसकी वजह लैपटॉप या स्मार्टफोन ना होना नहीं है. सरकार को हाशिए पर रह रहे लोगों के नज़रिए से शिक्षा की ज़रूरत को देखना होगा. सबसे पहले घर और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुवीधाएं ग़रीबों को मुहैया करानी होंगी.

जुलाई में परीक्षा की तैयारी



स्कूली बच्चेइमेज कॉपीरइटBRAJESH MISHRA

हज़ारों छात्रों का भिवष्य इस बात पर टिका है कि उनकी परीक्षाएं कब होंगी और कैसे वो मेरिट के आधार पर अपना विषय चुनेंगे. कुछ ऐसा ही इंतज़ार जेईई और नीट के परीक्षार्थियों को भी है.
लॉकडाउन से पहले सीबीएसई की 10वीं और 12वीं के कुछ विषयों की परीक्षा हो चुकी थी, लेकिन जब कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ा, तो देश में सभी परीक्षाएँ रद्द कर दी गईं.
सीबीएसी के कुल 71 विषयों की परीक्षा भी हो चुकी थी और अब बचे हुए 29 विषयों की परीक्षा जुलाई के महीने में 1 से 15 तारीख़ के बीच होगी.
मानव संसाधन मंत्री ने बताया कि इन परीक्षाओं के लिए उन्हें परीक्षा केंद्रों पर नहीं जाना होगा बल्कि उनके ही स्कूल में ही परीक्षा हो जाएगी.
उन्होंने कहा कि जो बच्चे लॉकडाउन की वजह से अपने गृह ज़िलों को चले गए हैं उनका सेंटर उनके घर के पास ही होगा.
लेकिन इन तमाम इंतज़ामों के बाद भी एक्सपर्ट्स ये मान रहे हैं कि संक्रमण के डर के बीच परीक्षा देना, सोशल डिसटेंसिंग के नियमों का पालन करना और परफॉर्म करना कुल मिलाकर इन सबका दबाव छात्रों पर पड़ सकता है.





भारत में स्कूल और कॉलेज कब खुलेंगे, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया

हमने जब ये सवाल रमेश पोखरियाल से पूछा तो उनका कहना था, "छात्रों को परीक्षाओं का इतंज़ार है ताकि उनका मेरिट तय हो सके जिसके दम पर वो आगे अपनी राह चुन सकें. सारी सुविधाएँ बच्चों को दी जा रही हैं, मुझे लग रहा है बच्चे तनाव में नहीं है, वो मस्ती के साथ परीक्षा देंगे. उन्हें तैयारी करने का पूरा समय मिला है."
जुलाई के ही महीने में जेईई और नीट की परीक्षा की भी तैयारी है. नीट में देश भर के छात्र हिस्सा लेते हैं. जेईई परीक्षा कई शिफ़्टों में होती है. पिछले साल क़रीब 3 हज़ार सेंटर पर छात्रओं ने परीक्षा दी थी.
लेकिन इस बार हालात अलग होंगे. सोशल डिसटेंसिंग का ध्यान रखते हुए इस बार क़रीब दो-तीन गुना सेंटर की ज़रूरत होगी. इसकी भी तैयारी करनी होगी.
मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि हमने जेईई और नीट के परीक्षाओं की भी तिथियां तय की हैं.


सारिका सिंह और निशंक

बदलाव के लिए कितना तैयार है भारत का शिक्षा तंत्र?
भारत में हर साल लगभग साढ़े सात लाख छात्र विदेशों में पढ़ाई के लिए जाते हैं, लेकिन अब उन्हें देश में ही उस स्तर की शिक्षा दिलाने की बात कही जा रही है.
क्या भारत में इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार है? मानव संशाधन मंत्री ने कहा, "उन छात्रों और उनके अभिभावकों से मैं अपील करूंगा कि उनको भारत से बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है."
उन्होंने कहा, "हमारी सिक्षा का स्तर ये है कि दुनिया की शीर्ष कंपनियों के सीईओ हिंदुस्तान से पढ़कर गए नौजवान है. ये हमारी शिक्षा का स्तर है. अगर विदेशों में ज़्यादा अच्छी शिक्षा थी तो इन श्रेष्ठ कंपनियों के सीईओ वहीं के छात्र होते. आईआईटी और आईएएम, एनआईटी से निकलने वाले बच्चे दुनिया में छाए हुए हैं."
मानव संसाधन मंत्री ने ये भी कहा सरकार इन शीर्ष संस्थानों की संख्या बढ़ाएगी.


स्कूल, कॉलेजइमेज कॉपीरइटFRÉDÉRIC SOLTAN

आत्मनिर्भर होगी शिक्षा भी-आएगी नई शिक्षा नीति

हलाँकि एक तरफ़ जहां ग्लोबल भारतीय दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं, वहीं इस बार की नई शिक्षा नीति के भारतीयकरण पर ज़ोर है. शिक्षा में भारतीय मूल्यों और भारत की स्थानीय भाषाओं पर ज़ोर दिया जा रहा है. 22 भाषाओं में अब पढ़ाई पर ज़ोर दिया जा रहा है.
भारत के मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने कहा है कि कोरोना के इस दौर में जब दुनिया बदल रही है तो शिक्षा भी बदलेगी.
उन्होंने कहा, "अब शिक्षा व्यवस्था भी आत्मनिर्भर होगी. इसलिए कोरोना वायरस के संकट के इस दौर में छात्रों को विदेश जाकर पढ़ाई करने की ज़रूरत नहीं है बल्कि उन्हें देश में ही शिक्षा मिलेगी."
उन्होंने कहा, "नई शिक्षा नीति भारतीय मूल्यों पर आधारित होगी. भारतीय विज़न और संस्कार, जीवन मूल्य दुनिया में छाएँगे, आज इनकी दुनिया को ज़रूरत है."


स्कूली बच्चेइमेज कॉपीरइटBRAJESH MISHRA

कोरोना वायरस संकट की वजह से भारत में अब तक 12 करोड़ लोगों की नौकरी गई है. ऐसे लोग बच्चों की पढाई का ख़र्च कैसे उठाएँगे, इस सवाल पर उन्होनें कहा कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में उन्हें शिक्षा मिल सकती है.
उन्होंने कहा, "हम बेसिक शिक्षा दे रहे हैं, पूरे देश में सर्व शिक्षा अभियान के तहत फ्री शिक्षा दे रहे हैं. सरकारी स्कूलों में जाने की मनाही नहीं है तो छात्र सरकारी स्कूलों में जाएँ."
हलांकि जिस देश में अमरीका की आबादी के बराबर अगर छात्रों की ही आबादी है, जिसकी लगभग 65 फ़ीसदी आबादी युवा है उनकी शिक्षा ना किसी सरकार की प्राथमिकता रही है ना ही इसके लिए बज़ट का बड़ा हिस्सा दिया जाता है, ऐसे में कोरोना काल की ये चुनौती छात्रों के लिए अवसर बन पाएगी या भविष्य में आगे बढ़ने के अवसर कम होंगे फिलहाल ये साफ़ नहीं.

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