इंसाफ .....? मुज़फ़्फ़रनगर में 11 दिन बाद रिहा हुए 'ग़लती से पकड़े गए' फ़ारूक़

मुज़फ़्फ़रनगर में 11 दिन बाद रिहा हुए 'ग़लती से पकड़े गए' फ़ारूक़

फ़ारूक़ और उनका बेटाइमेज कॉपीरइटYOGESH TYAGI
नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शन के मामले में मुज़फ़्फ़रनगर में पुलिस ने चार ऐसे लोगों को भी गिरफ़्तार कर लिया था जिन्हें बाद में ये कहते हुए रिहा कर देने की अपील की कि इन लोगों को ग़लती से पकड़ लिया था.
गिरफ़्तार लोग अपनी बेग़ुनाही का सबूत देते रहे लेकिन जब तक पुलिस अपनी ग़लती मानती, तब तक 11 दिन ये लोग जेल में काट चुके थे. गिरफ़्तार लोगों में मुज़फ़्फ़रनगर के ही रोज़गार कार्यालय में क्लर्क के रूप में तैनात मोहम्मद फ़ारूक़ भी थे.
20 दिसंबर को पुलिस ने तमाम लोगों के साथ इन्हें भी गिरफ़्तार किया था. मुज़फ़्फ़रनगर में कुल 73 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. पुलिस अब जेल में डाले गए लोगों में से निर्दोषों को पहचानने का काम कर रही है.
इसी के तहत चार लोगों को निर्दोष मानते हुए उनकी रिहाई की अपील की गई और फिर मजिस्ट्रेट ने इन चारों लोगों को रिहा कर दिया.

आरोप

सतपाल अंतील
रोज़गार दफ़्तर में सीनियर क्लर्क मोहम्मद फारूक़ ने बीबीसी को बताया, "20 दिसंबर की शाम पुलिस रात क़रीब दस बजे अचानक आई. मुझे और मेरे बेटे को पकड़ कर गाड़ी में बिठा लिया. मेरी समझ में ही कुछ नहीं आया. मैं उन्हें समझाता रहा, अपने बारे में भी बताया लेकिन एक नहीं सुनी गई. घर में इतनी तोड़-फ़ोड़ की गई कि कोई सामान साबूत नहीं बचा है. मेरे परिवार ने पुलिस के सामने इस बात के सबूत पेश किए कि मैं उस वक़्त अपने ऑफिस में था. तब कहीं जाकर उन लोगों ने भरोसा किया."
फ़ारूक़ के अलावा मुज़फ़्फ़रनगर में अतीक अहमद, शोएब और ख़ालिद को भी छोड़ दिया गया. ये तीनों लोग एक ही परिवार के हैं और जिस दिन हिंसा हुई, उस दिन ये लोग अपने एक बीमार रिश्तेदार को मेरठ अस्पताल लेकर जा रहे थे. पुलिस के मुताबिक़, इनको निर्दोष बताते हुए इनकी रिहाई से संबंधित रिपोर्ट कई दिन पहले ही दाख़िल कर दी गई थी लेकिन कोर्ट में छुट्टी के चलते रिहाई में कुछ ज़्यादा दिन लग गए.
जिला सेवायोजन कार्यालय के लिपिक फ़ारूक़ को उस हालत में सिविल लाइन पुलिस ने जेल भेज दिया, जब वह पूरे दिन अपने कार्यालय में ड्यूटी पर रहे.
56 वर्षीय मोहम्मद फ़ारूक़ रोज़गार दफ़्तर में पिछले 31 साल से नौकरी कर रहे हैं. उनके दो अन्य भाई भी सरकारी विभागों में नौकरी करते हैं जबकि दो बेटे दिल्ली में रहते हैं. 20 दिसंबर की रात में उन्हें घर से पकड़ा गया और 21 दिसंबर को जेल भेज दिया गया.
24 दिसंबर को उनकी रिहाई की रिपोर्ट न्यायालय में पेश की गई और एक जनवरी को रिहा किया गया. फ़ारूक़ का 20 वर्षीय बेटा अभी भी जेल में है.
फ़ारूक़ बताते हैं कि हिरासत में उनके और उनके बेटे दोनों के मोबाइल फ़ोन भी ज़ब्त कर लिए गए, किसी से बात नहीं करने दी गई और अगले दिन सीधे जेल भेज दिया गया.

'सिस्टम से भरोसा उठ गया'

यूपी में सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शनइमेज कॉपीरइटANADOLU AGENCY
बेहद निराश मन से कहते हैं, "सिस्टम पर तो कोई भरोसा ही नहीं रह गया है. मुझे ये भी डर लग रहा है कि आपसे बात करूंगा तो कहीं फिर न मुझे उठा लिया जाए. बताइए, सिर्फ़ चार साल मुझे रिटायर होने में रह गए हैं, मैं कौन सा फ़साद करता. आजतक कभी किसी ने उंगली तक नहीं उठाई है मुझ पर."
वहीं अपने परिवार के बुज़ुर्ग यूनुस को मेरठ के हॉस्पिटल में ले जा रहे शहर के उद्यमी ख़ालिद, उनके बेटे सुहैल और परिवार के ही एक अन्य व्यक्ति अतीक को भी कोतवाली पुलिस ने 21 दिसंबर को गिरफ़्तार करके जेल भेज दिया था.
तीनों की रिहाई की रिपोर्ट 24 दिसंबर को ही भेज दी गई थी लेकिन कोर्ट बंद होने के कारण ये लोग एक जनवरी को ही जेल से बाहर आ पाए.
मुज़फ़्फ़रनगर के पुलिस अधीक्षक सतपाल अंतील ने बीबीसी को बताया, "जांच के बाद पता चला कि चारों लोग भीड़ का हिस्सा नहीं थे, इसलिए सीआरपीसी की धारा 169 के तहत चारों को रिहा कर दिया गया. सभी मामलों में जांच चल रही है और किसी भी निर्दोष व्यक्ति को सज़ा नहीं दी जाएगी. हिंसा के बाद हमने बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लिया लेकिन सभी मामलों में हम ध्यान से देख रहे हैं और ये सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कोई निर्दोष व्यक्ति न पकड़ा जाएगा. जिसकी संलिप्तता साबित नहीं होगी, उन्हें तत्काल छोड़ दिया जाएगा."
एसपी सतपाल अंतील का ये भी कहना है कि यदि किसी के परिजनों को लगता है कि गिरफ़्तारी ग़लत तरीक़े से की गई थी तो वे पुलिस के पास जा सकते हैं.
मुज़फ़्फ़रनगर में एक ऐसे ही मामले में लद्दाख से बीजेपी सांसद जामयंग सेरिंग नामग्याल ने मुज़फ़्फ़रनगर के बीजेपी सांसद संजीव बालयान से आग्रह किया था कि वह कारगिल के मोहम्मद अली को रिहा कराने के लिए हस्तक्षेप करें. नामग्याल का कहना था कि मोहम्मद अली प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे लेकिन उन्हें हॉस्टल में दाख़िल होते वक़्त पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया.

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