ताहिर हुसैन: दंगों के लिए ज़िम्मेदार या ख़ुद दंगे के शिकार- ग्राउंड रिपोर्ट


दिल्ली

क्या पिछले पाँच दिनों से दिल्ली के चाँद बाग़ में चाँद निकल रहा है? अगर निकलता भी है तो चाँदनी रात में यहां क्या दिखता है? डर में जागती आंखें, सड़कों पर बिखरे पत्थर और ईंट के टुकड़े, जली दुकानें, चीख़, सन्नाटा और मनों में पलती नफ़रतें.
करावल बाग़ की सड़क तो किसी मलबे में तब्दील हो गई है. पुलिस की कड़ी गश्त और बीच में माइक से लोगों को आगाह करती आवाज़ें- सड़क पर कोई खड़ा नहीं रहेगा. सब कोई अपने-अपने घरों में चले जाएं. लोग यह सुनते ही दौड़कर अपने घरों में भाग जाते हैं. हिन्दुओं के कुछ समूह एक तरफ़ हैं और मुसलमानों के दूसरी तरफ़. इन दोनों के बीच में ही आम आदमी पार्टी के पार्षद मोहम्मद ताहिर हुसैन का घर है.
करावल नगर में ताहिर हुसैन के घर से 20 क़दम आगे बढ़ने पर एक नाला है और उसी नाले में आईबी (ख़ुफ़िया विभाग) के एक कर्मी अंकित शर्मा का बुधवार को शव मिला है.
हिन्दुओं का कहना है कि इलाक़े की शांति ताहिर हुसैन के कहने पर भंग हुई है. आशीष त्यागी करावल नगर के ही हैं. वो एक फ़ार्मा कंपनी में जॉब करते हैं. आशीष कहते हैं कि ताहिर हुसैन के घर की छत से 24 और 25 फ़रवरी को पेट्रोल बम और पत्थर फेंके जा रहे थे.
आशीष कहते हैं, ''पत्थर और पेट्रोल बम फेंकते हुए तो मैंने अपनी आँखों से देखा है. गोलीबारी भी हो रही थी. इतनी भीड़ में मुझे ताहिर हुसैन नज़र नहीं आए थे. लेकिन लोग कह रहे हैं कि वो भी थे.''

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इसी इलाक़े के युनुस सलीम दिल्ली अमन एकता कमेटी के उपाध्यक्ष हैं. ताहिर हुसैन को लेकर वो कहते हैं कि उनके घर में दंगाई घुस गए थे. वो कहते हैं, ''दंगाई किस मज़हब के थे ये नहीं बता सकता. सच तो यह है कि ताहिर को पुलिस ने इस घर से निकाला था. अगर उन्हें नहीं निकाला जाता तो वो ख़ुद ही दंगाइयों के हत्थे चढ़ जाते. वो 24 फ़रवरी को इस घर में थे लेकिन ख़ुद ही फंसे हुए थे.''
ताहिर हुसैन को लेकर इस इलाक़े के हिन्दुओं और मुसलमानों में साफ़ मतभेद है. मुसलमान ताहिर हुसैन को बहुत ही अच्छा इंसान बता रहे हैं. दूसरी तरफ़ जितने हिन्दुओं से बात हुई सबने कहा कि ताहिर हुसैन ने हमला करवाया है. बीजेपी नेता कपिल मिश्रा को लेकर मुसलमानों में ग़ुस्सा है तो ताहिर हुसैन को लेकर इलाक़े के हिन्दुओं में.
जब कपिल मिश्रा आम आदमी पार्टी में थे तो करावल नगर से ही विधायक बने थे. इलाक़े के मुसलमानों का कहना है कि कपिल मिश्रा 2015 में यहां से चुनाव ताहिर हुसैन के कारण ही जीते थे.
स्थानीय निवासी मोहम्मद इक़रार कहते हैं, ''मुझे नहीं पता कि हिन्दू भाई क्यों ताहिर हुसैन से नाराज़ हैं. जिस कपिल मिश्रा का वो बचाव कर रहे हैं उसे ताहिर हुसैन ने ही विधायक बनाया था. 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कपिल मिश्रा का ताहिर हुसैन के इसी घर में दफ़्तर था. अब वो बीजेपी में चले गए तो कह रहे हैं कि ताहिर ने दंगा करवा दिया.''

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ताहिर हुसैन ने भी बीबीसी संवाददाता विकास त्रिवेदी से बातचीत में कहा है कि 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कपिल मिश्रा का उनके ही घर में चुनावी कैंपेन का ऑफ़िस था. ताहिर ने कहा कि उन्होंने कपिल मिश्रा की जीत में अहम भूमिका निभाई थी.
इसी इलाक़े में गश्त लगा रहे दयालपुर थाना के एसएचओ तारकेश्वर सिंह ने कहा कि ताहिर हुसैन पर कई तरह के आरोप लग रहे हैं और इसकी जाँच चल रही है.
एक चीज़ साफ़ दिखती है कि पूरे इलाक़े में मज़हब के आधार पर भयावह ध्रुवीकरण है. अंकित शर्मा के शव मिलने के बाद से माहौल काफ़ी तनावपूर्ण है. करावल नगर सड़क पर हिन्दुओं का एक समूह कॉलोनी का गेट बंद कर खड़ा है.
इनसे अंकित शर्मा के बारे में पूछा तो कहा कि उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि अंकित को लोग खींचकर ले गए थे. देखने के बाद भी अंकित को बचाया क्यों नहीं? इस सवाल के जवाब में मूलचंद नाम के एक बुज़ुर्ग कहते हैं, ''उनके लोग बहुत ज़्यादा थे. उनके पास हथियार भी थे और हम डर गए थे.''
ताहिर हुसैन के घर के ठीक सामने श्याम टी स्टॉल है. इस दुकान का शटर आधा गिरा हुआ है और अंदर से रोने की आवाज़ आ रही है. जाकर देखा तो धर्मवंती अपने पति श्याम को चुप करा रही हैं. श्याम ज़मीन पर बैठे हैं और उनकी पत्नी कंधे पर हाथ रख खड़ी हैं. इनकी दुकान बिखरी पड़ी है. तोड़फोड़ हुई है. आगे से जली हुई भी है. वो भी ताहिर हुसैन के घर की तरफ़ इशारा करते हैं.

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श्याम से मुश्किल से 30 क़दम दूर 33 साल के राहत अली हैं. राहत अली से ताहिर हुसैन के बारे में पूछा तो वो फूट पड़े. उन्होंने रोते हुए कहा, ''ये सवाल कोई क्यों नहीं पूछ रहा कि पुलिस कहां थी? अगर ताहिर हुसैन के घर की छत से दो दिनों तक ईंट, पत्थर और पेट्रोल बम फेंके गए तो पुलिस क्या कर रही थी? पुलिस क्यों नहीं आई? हमने कई बार पुलिस को फ़ोन किया. मेरे घर के शीशे फोड़ दिए गए. मेरे बच्चे अपने मामू के यहां रह रहे हैं. अपने ही घर से बेदख़ल हैं. मैं इसका दोष किसे दूं? कपिल मिश्रा हो या कोई और हो यह काम पुलिस का है कि हिंसा रोके.''
इलाक़े के लगभग मुसलमानों का कहना है कि कपिल मिश्रा को गिरफ़्तार किया जाए. उधर हिन्दुओं का कहना है कि ताहिर हुसैन ने हिंसक भीड़ को मदद की है. मुस्लिम इलाक़ों में कुछ मीडिया घरानों को लेकर भी भारी ग़ुस्सा है. शोएब नाम के एक युवा ने कहा, ''कुछ टीवी चैनलों ने दंगे के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया है. हमें आतंकवादी बता रहे हैं.'' ये कहते हुए शोएब एक दीवार पर लगी असदउद्दीन ओवैसी की तस्वीर दिखाते हैं और कहते हैं, ''हमलोग का असली नेता यही है. यही हमारी बात कहता है. संसद से सड़क तक यही हमलोग के पक्ष में खड़ा रहता है.''

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शोएब यह कहते हुए मुस्तफ़ाबाद के राजीव गांधी नगर पहुंच जाते हैं. मुसलमानों की सघन आबादी वाले इस इलाक़े में प्राचीन महाकाली शिव मंदिर है. शोएब कहते हैं, ''इतना कुछ हुआ लेकिन हमने इस मंदिर को सुरक्षित रखा. यहां चारों तरफ़ मुसलमान हैं. हमारी मस्जिदों के साथ दंगाइयों ने क्या किया? इमाम को मारा और भगवा झंडे लगाए. सर, क्या हम पाकिस्तानी हैं? हमें बात-बात पर पाकिस्तानी कह देते हैं. कपिल मिश्रा की वजह से मामला इतना बढ़ गया. दिल्ली पुलिस अगर वक़्त पर आ जाती तो चीज़ें इस हद तक नहीं जातीं.''
आशीष त्यागी की शिकायत है कि हालात बेक़ाबू हुए तो उनके पड़ोसी मुसलमान परिवार भाग गए. वो कहते हैं, ''हम साथ रहते तो ज़्यादा अच्छा होता. हम एक दूसरे के साथ रहेंगे तभी समाधान मिलेगा. हालात बिगड़ने के बाद हम पड़ोसी होने के बजाय हिन्दू और मुस्लिम ख़ेमे में भागेंगे तो भागते रह जाएंगे. अच्छा होता कि मेरे पड़ोसी कहीं नहीं जाते और हम उनके साथ खड़े रहते.''
आशीष की तमन्ना अधूरी रह गई. राहत अली ने भी अपने पड़ोसी दीपक को कहीं और भेजने में मदद की ताकि उनकी जान बच जाए. पूरा इलाक़ा अभी हिन्दू बनाम मुसलमान में बँटा दिख रहा है. दशकों के पड़ोसी एक दूसरे को हिन्दू-मुसलमान के रूप में देख रहे हैं.
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