कोरोना वायरस की वो ज़रूरी बातें जो नहीं जानते


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दुनिया के ज़्यादातर देश लॉकडाउन में हैं. कई देशों ने अपने यहां कर्फ़्यू लगा दिया है.
लगभग देशों ने अपनी सीमा को बंद कर दिया है. क्या ज़मीन क्या आसमान सब कुछ बंद. लोग घरों में कैद हैं. लग रहा है कितना वक़्त या अरसा गुज़र चुका है इस तरह रहते हुए. दुनिया को कोरोना वायरस के बारे में अभी कुछ महीनों पहले यानी बीते साल दिसंबर में ही पता चला था.
दुनिया भर के वैज्ञानिक शोधकर्ता इस वायरस के बारे में जानने की कोशिश में लगे हुए हैं ताकि इसके लिए वैक्सिन बनाया जा सके. लेकिन वैक्सिन तो अभी दूर की बात है. दुनिया को तो अभी इस वायरस के बारे में ही बहुत कम जानकारी है. बहुत सी बातें हैं जिनके जवाब नहीं मिले हैं.
लेकिन इन जवाबों को तलाशने का काम सिर्फ़ वैज्ञानिक या शोधकर्ता नहीं कर रहे. घर में बैठा हर शख़्स अपने-अपने स्तर पर इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा है.

वो सवाल जो अब भी सामने हैं

कोरोना वायरस से अ तक कितने लोग संक्रमित हुए हैं ?
यह सबसे आम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल है.
दुनिया भर में सिर्फ़ संक्रमण के मामलों की बात करें तो छह लाख से अधिक लोग संक्रमित हैं जबकि मरने वालों का आँकड़ा 30 हज़ार के पार पहुंच चुका है.
लेकिन क्या ये बिल्कुल सटीक आँकड़े हैं?
शायद नहीं. बहुत हद तक संभव है कि संक्रमित मामलों का सिर्फ़ एक अंश मात्र हो. इन आँकड़ों पर यक़ीन करना उस दशा में मुश्किल हो जाता है जब हम उन मामलों के बारे में सोचते हैं जो सामने नहीं आए हैं.
ऐसे मामले जिनमें कोई शख़्स संक्रमित तो है लेकिन उसमें इस संक्रमण के कोई लक्षण नज़र नहीं आ रहा. ना ही उन्हें किसी तरह की कमज़ोरी महसूस हो रही है और ना दूसरा कोई लक्षण.
एंटीबॉडी टेस्ट ईजाद करने के बाद ही शोधकर्ता ये देख पाएंगे कि किसी में वायरस है या नहीं. इसके बाद ही कहीं जाकर हम ये पता कर पाएंगे कि कोरोना वायरस ने कितने लोगों को और कितनी आसानी से अपना शिकार बनाया.

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आख़िर यह कितना ख़तरनाक है?
जब तक हमें ये जानकारी नहीं है कि संक्रमण के कुल मामले कितने हैं, तब तक कोविड 19 की सटीक मृत्यु दर निकालना असंभव है. फ़िलहाल जो आकलन किया जा रहा है, उसके मुताबिक़, कोरोनोवायरस से संक्रमित होने वाले कुल लोगों में से एक फीसदी लोगों की मौत हो रही है.
लेकिन अगर ऐसे मरीज़ों की संख्या ज़्यादा होगी जिनमें लक्षण स्पष्ट नहीं हैं तो इसके आधार पर निकाली गई मृत्यु दर कम हो सकती है.
सामान्य लक्षणों के अलावा क्या हो सकते हैं संभावित लक्षण
अगर कोरोना वायरस के सामान्य लक्षणों की बात करें तो इसमें बुख़ार और सूखी खांसी होती है. अगर आपको ये लक्षण ख़ुद में दिखें तो संभव है कि आप पॉज़ीटिव हो सकते हैं.
कुछ मामलो में गले में ख़राश, सिर दर्द और डायरिया की शिकायत भी पायी गई थी, जिसके बाद टेस्ट कराने पर रिज़ल्ट पॉज़िटिव आया.
हाल के दिनों में एक और लक्षण सामने आया है. बहुत से लोगों ने बताया कि उन्हें किसी भी चीज़ की गंध समझ नहीं आ रही थी. यानी ये भी एक लक्षण है.
लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि क्या हल्की या सामान्य सर्दी के लक्षण जैसे नाक बहना और छींकना भी कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं? दरअसल कुछ मामले इन लक्षणों के साथ भी सामने आए हैं.
कई शोधों के मुताबिक़, ऐसा भी हो सकता है कि कोई शख़्स संक्रमित हो लेकिन उसमें कोई लक्षण नज़र ना आए और उसे पता ही ना चले कि वो संक्रमित है.

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बच्चे किस तरह इस वायरस को फैलाने में मदद कर रहे हैं
अभी तक यही कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस से सबसे अधिक ख़तरा बुज़ुर्गों को है लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि यह बच्चों को नहीं हो सकता. कोरोना वायरस संक्रमण बच्चों को भी हो सकता है. हालांकि उनमें संक्रमण बेहद धीमा पाया गया है और अभी तक दुनिया भर में बच्चों के मरने के मामले भी कम ही आए हैं.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस वायरस के प्रसार में बच्चों की भूमिका बेहद अहम है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि बच्चे अक्सर अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों से मिलते (पार्क और प्लेग्राउंड में खेलने के दौरान) हैं. इस वायरस के मामले में यह स्पष्ट नहीं है कि बच्चे इसे किस स्तर तक फैला सकते हैं.
कोरोना वायरस आख़िर आया कहां से?
इस वायरस के सबसे शुरुआती मामले चीन के वुहान शहर में मिले. साल 2019 ख़त्म होने की कग़ार पर थी, उस वक़्त दुनिया को वुहान में पनपे इस वायरस के बारे में पता चला.
ऐसा माना जा रहा है कि यह वायरस वुहान के 'वेट-मार्केट' से आया.
कोरोना वायरस को आधिकारिक तौर पर Sars-CoV-2 कहा जा रहा है. यह वायरस उस वायरल का बेहद क़रीबी माना जा रहा है जो चमगादड़ों को संक्रमित करता है.
एक मान्यता ये भी है कि कोरोना वायरस चमगादड़ से सीधे इंसानों में नहीं आया. चमगादड़ और इंसान के बीच में कोई 'रहस्यमय जीव' माध्यम बना.
इस रहस्यमय जीव को लेकर कई तरह के तर्क हैं लेकिन प्रामाणिक तौर पर कोई कुछ भी नहीं कह सकता और बहुत हद तक संभव है कि इससे आगे आने वाले समय में भी संक्रमण और बढ़े.

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क्या गर्मी आने पर कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में कमी आएगी
अगर सामान्य सर्दी-ज़ुकाम की बात करें तो यह सर्दियों में ज़्यादा और गर्मी में अपेक्षाकृत कम होती है. लेकिन अभी तक यह नहीं पता है कि गर्मी में यह वायरस क्या गुल खिलाएगा. इसका संक्रमण कम हो जाएगा या यूं ही बना रहेगा. इसे लेकर कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता.
ब्रिटिश सरकार के साइंटफिक एडवाइज़र ने चेतावनी दी है कि यह अभी तक बिल्कुल स्पष्ट नहीं है कि कोरोना वायरस पर मौसम का असर होगा. अगर यह एक ही है तो उन्हें लगता है कि यह सर्दी और ज़ुक़ाम की तुलना में छोटा होगा.
पर अगर गर्मी आने पर कोरोना वायरस के मामलों में एकाएक कमी आई तो इस बात का डर भी रहेगा कि सर्दियां आने पर इन मामलों में तेज़ी आएगी. उस वक़्त में भी अस्पतालों और डॉक्टरों के लिए इससे निपटना मुश्किल होगा क्योंकि सर्दी के दिनों में सामान्य फ़्लू और दूसरी बीमारियों के मामले अधिक होते हैं.
आख़िर कुछ लोगों में इसके लक्षण इतने तीव्र कैसे
ज़्यादातर लोगों में कोविड-19 के बेहद हल्के लक्षण देखने को मिले हैं. वहीं क़रीब 20 फ़ीसदी ऐसे लोग भी हैं जिनमें इसका संक्रमण बहुत तीव्र पाया गया. लेकिन क्यों?
इसका पूरा संबंध इंसान के रोग प्रतिरक्षा तंत्र से है. इसके अलावा कुछ आनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं.

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इम्यूनिटी कब तक इसका मुक़ाबला कर सकती है
कोरोना वायरस से मुक़ाबले के लिए कोई रोग प्रतिरोधक क्षमता कितनी टिकाऊ है इसका कोई प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है. इस संबंध में कयास अधिक हैं.
अगर कोई संक्रमित शख़्स वायरस से मुकाबला कर रहा है तो इसका सीधा मतलब ये है कि उसने अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित किया है.
लेकिन एक तथ्य यह भी है कि यह वायरस अटैक बहुत नया है और इसके बारे में बेहद सीमित जानकारी है.
जहां तक बात इम्यूनिटी की है कि आगे क्या होगा क्या नहीं तो यह एक बड़ा और गंभीर सवाल है.
क्या यह वायरस परिवर्तित भी होगा
वायरस हर समय परिवर्तित होता रहता है लेकिन अधिकतर मामलों में उनके जेनेटिक कोड में कोई ख़ास बदलाव नहीं आता है.
आपको लगता है कि परिवर्तित होने के साथ ही वायरस कम घातक होता जाएगा लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है.
फ़िलहाल चिंता तो इस बात की है कि अगर यह वायरस परिवर्तित हुआ तो इम्यून सिस्टम इसकी पहचान नहीं कर पाएगा और अगर इसकी मौजूदा कोडिंग के आधार पर कोई वैक्सिन तैयार की गई तो वो लंबे वक़्त के लिए कारगर साबित नहीं होगी. (जैसा की फ़्लू के साथ है)

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