कोरोना संकटः कर्ज़ लेकर हवाई सफर करने के लिए मजबूर बिहारी मज़दूर


बिहार मजदूरइमेज कॉपीरइटSEETU TEWARI/BBC
गहरे लाल रंग की पसीने से भीगी टी शर्ट, जींस, गले में चेन और गुलाबी चश्मा अपनी टी शर्ट के सहारे गले में लटकाए 32 साल के टोनी शेख प्लास्टर ऑफ पैरिस से लोगों के आशियाने खुबसूरत बनाते हैं.
टोनी, मुझे पटना एयरपोर्ट पर मिले. अपनी फ्लाइट का इंतजार करते जो रात 9 बजे के आस-पास है. उन्होंने हवाई जहाज़ से श्रीनगर जाने के लिए 6000 रुपये का टिकट लिया है.
इससे पहले उन्होंने अपने गांव बरमुतरा (बिहार के सुपौल ज़िले से) से पटना एयरपोर्ट तक आने के लिए 300 रुपये खर्च किए हैं.
दो बच्चों के पिता टोनी बताते हैं, "दस हजार रुपया कर्ज़ लेकर जा रहे हैं. सैकड़ा पर पांच रुपया ब्याज का रेट है. महीने-महीने ब्याज देना होगा, नहीं तो महाजन घरवालों को मारेगा-पीटेगा. यहां कोई काम नहीं मिला तो जाना मजबूरी है. ट्रेन बंद है तो जहाज से जा रहे है."

पहली हवाई यात्रा: मजबूरी भी, खुशी भी

पटना एयरपोर्ट पर अपनी फ़्लाइट का इंतजार करते टोनी शेख अकेले मजदूर नहीं हैं.
23 मई को दोपहर एक बजे पटना एयरपोर्ट के पार्किंग के पास एक पेड़ के नीचे अपनी फ़्लाइट का इंतजार करते सैकड़ों की संख्या में मुझे मजदूर दिखे. बिहार के अंदरूनी इलाकों से आए ये मजदूर अपनी फ़्लाइट के तय समय से पन्द्रह-सोलह घंटे पहले ही पहुंच गए हैं.
बिहार मजदूरइमेज कॉपीरइटSEETU TEWARI/BBC
वो उमस भरी गर्मी में इंतजार कर रहे हैं. कुछ सोते हुए, कुछ मोबाइल देखते हुए, कुछ मॉस्क लगाए लेकिन शारीरिक दूरी को धत्ता बताते हुए.
ज़मीन पर अपनी अपनी चादर बिछाकर, रंग बिरंगी पन्नियों में अपने खाने के लिए भुना चूरा, प्याज, बिस्कुट, रोटी, पूड़ी, साग, बचका बांधे ये हवाई यात्री पसोपेश में है.
पशोपेश अपनी पहली हवाई यात्रा का है, जो मजबूरी में ही सही, लेकिन उनमें से ज्यादातर का सपना था.

कर्ज के पैसे से टिकट का इंतज़ाम

जम्मू में निर्माण मजदूर का काम करने वाले मोहम्मद जुम्मन से जब मैने पूछा तो थोड़ा शर्माते हुए उन्होंने बताया, "घर वालों ने कहा है कि ठीक से जाना. बाकी एक जानकार लड़के ने बताया है कि बेल्ट बांधनी होगी और कोई वर्दी भी मिलेगी पहनने को."
श्रीनगर, लेह-लद्दाख, हैदराबाद, जम्मू, दिल्ली सहित देश के हर हिस्से में जाने वाले इन मजदूरों में से कुछ का टिकट तो उनके ठेकेदार या कंपनी ने भेजा है तो कुछ खुद ही कर्ज लेकर काम पर जा रहे हैं.
मजदूर बिहारइमेज कॉपीरइटSEETU TEWARI/BBC
बता दें कि श्रीनगर, जम्मू, लेह लद्दाख जाने वाले मज़दूर मई से लेकर नवंबर के महीनों में वहां जाते है. इन इलाकों में ठंड पड़ने पर ये लोग अपने गांव लौट आते हैं.
इस बार लॉकडाउन के चलते ये मज़दूर काम के महीनों में नहीं जा सके.
कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति को देखते हुए 1 जुलाई से 12 अगस्त कर रेगुलर टाइम टेबल वाली सभी ट्रेनों को भारतीय रेलवे ने रद्द किया है. जबकि स्पेशल राजधानी और मेल/एक्सप्रेस ट्रेन की सेवाएं जारी रहेंगी.

'थोड़े से' खुशकिस्मत मजदूर: कंपनी जिनका खर्च दे रही

शिबू राय बांका जिले के खुली डुमरी प्रखंड की सादपुर पंचायत से हैं. वो दस हजार रुपया में गाड़ी रिजर्व कराकर अपने साथियों के साथ पटना एयरपोर्ट पहुंचे हैं.
शिबू राय अपने बेटे कंचन कुमार के साथ लेह लद्दाख जा रहे हैं और वो उन 'थोड़े से' खुशकिस्मत मज़दूरों में से जिनके आने का खर्च कंपनी ने उठाया है.
शिबू का बेटा कंचन बताता है, "हम लोगों को वहां सोलह हजार रुपया सैलरी देता है. यहां गांव में भी खेती का सारा काम खत्म हो गया था तो यहां बैठकर क्या करेंगे."
इसी तरह बांका के ही मुकेश राय ने बीबीसी से कहा, "देहात में कोई काम नहीं है. कितने दिन बैठकर खाएंगें. काम तो करना ही है."
मजदूर बिहारइमेज कॉपीरइटSEETU TEWARI/BBC
मुजफ्फरपुर के नीलेश कुमार और पूर्वी चंपारण के मोहम्मद कामरान जो बतौर गार्ड अपनी पहली नौकरी पर हैदराबाद जा रहे हैं, उनको हवाई जहाज का टिकट कटा कर कंपनी ने ही दिया है.

कर्जदार बना रहा कोरोना

मोहम्मद सलीम और मोहम्मद उकैत ने कर्ज लेकर हवाई जहाज का टिकट कटाया है.
मोहम्मद सलीम को पांच रुपया सैकड़ा तो मोहम्मद उकैत को 10 रुपया सैकड़ा हर महीने के हिसाब से कर्ज मिला है.
कम उम्र के मोहम्मद उकैत बहुत गुस्से में है. वो कहते हैं, "चुनाव होगा तो वोटर लिस्ट बनाने के लिए घर-घर सरकार मास्टर को भेज देती है. लेकिन अभी लॉकडाउन में कोई हाल नहीं पूछा. यहीं नियम है सरकार का?"
वहीं मोहम्मद सलीम कहते हैं, "एक तारीख को ईद है. कायदे से हमे परिवार के साथ होना चाहिए. पैसे खर्च करने चाहिए, लेकिन वो सब क्या होगा. उलटा हम कर्जा करके जा रहे है. नहीं चुकेगा तो घर वालों को कर्जा देने वाला मारेगा."

काम और राशन संबंधी दावों का क्या?

ऐसे में ये सवाल अहम है कि बिहार सरकार के काम और राशन संबंधी दावों का क्या?
सुपौल के आठवीं तक की पढ़ाई कर चुके ललन कुमार राय जवाब देते हैं, "यहां कोई काम नहीं मिलता. अनंतनाग में प्लास्टर का काम करते हैं तो 600 रुपया मजदूरी मिलती है. फिर सरकार कहती है कि राशन देगी. सरकार तो सिर्फ़ चावल दे रही है. वो भी तौल में कम. दाल तो आज तक पीडीएस की दुकान से नहीं मिली."
वहीं हवाई जहाज का टिकट कर्ज़ लेकर खरीदने वाले मोहम्मद वासिल कहते हैं, "ये हवाई जहाज से जाने पर हमारा फालतू का पैसा खर्च हो रहा है. यहां काम ही नहीं है तो बैठे-बैठे क्या करेंगे. बाहर जाएंगे तो दस रुपए कमाएंगे. इसलिए कर्ज़ ले कर जा रहे हैं. लेकिन मेरे घर में सिर्फ मैं जा रहा हूं, लड़के अबकी बार यहीं रुक गए हैं."

सरकारी दावे

बिहार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव अनुपम कुमार के मुताबिक, "राज्य सरकार ने कोरोना के दौरान रोजगार मुहैया कराने को विशेष प्राथमिकता दी है. अब तक 5 लाख 55 हजार योजना में 11 करोड़ 42 लाख मानव दिवस का सृजन हो चुका है वहीं अगर राशन कार्ड की बात करें तो राज्य में 91 प्रतिशत वंचित परिवारों को राशन कार्ड मिल चुका है."
सरकारी दावों को एक तरफ़ रख दें तो पटना एयरपोर्ट पर रोज़ाना हवाई यात्रा करने वाले मज़दूरों की बड़ी संख्या इससे अलग तस्वीर पेश करती है.

Comments

Popular posts from this blog

"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... ! जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !! वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... ! जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!"

Department of Education Directory