कर्नाटकः दलितों के लिए अलग नाई की दुकानों की बात कहां से आई?

 


  • इमरान क़ुरैशी
  • बेंगलुरु से, बीबीसी हिंदी के लिए
नाई की दुकान
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सांकेतिक तस्वीर

ऐसे वक़्त में जब सरकार कुछ सरकारी कम्पनियों से ख़ुद को अलग करने के रास्ते खोज रही है, तब मीडिया में एक ख़बर को लेकर काफ़ी चर्चा हो रही है.

ख़बर ये है कि कर्नाटक के सामाजिक कल्याण विभाग ने हेयरकटिंग यानी नाई की दुकानें खोलने का प्रस्ताव रखा है क्योंकि स्थानीय इलाक़ों में ख़ुद को ऊँची जाति का मानने वाले या दबंग समुदाय के लोग उस दुकान में बाल कटवाने नहीं जाना चाहते जहां दलित जाते हैं.

दरअसल, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति क़ानून की विजिलेंस और मॉनिटरिंग कमिटी के सामने ये प्रस्ताव आया था. ख़ुद मुख्यमंत्री इस कमिटी के अध्यक्ष होते हैं.

प्रस्ताव में लिखा था, "कई गाँवों में दुकानदार दलितों के बाल काटने से मना करते हैं, ऐसे में अत्याचार के केस दर्ज हो रहे हैं. इसलिए, सही रहेगा कि सभी ग्राम पंचायतों में नाई की दुकान खोली जाए जिसे स्थानीय इकाई चलाए. इसके लिए सामाजिक कल्याण विभाग ज़रूरी आर्थिक मदद मुहैय्या करा सकता है."

दलित नेता और विधायक एन महेश ने बीबीसी से कहा, "इस मामले पर बात नहीं हो सकी क्योंकि कई और मुद्दे थे जिन पर जल्द चर्चा करना ज़रूरी था."

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प्रभावशाली समुदाय

पिछले साल ही एन महेश ने बहुजन समाज पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थामा है. महेश उन विधायकों में से थे जिसकी मदद ने बीजेपी कर्नाटक में सत्ता में आई.

प्रदेश में दो और ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं जिससे पता चलता है कि प्रभावशाली समुदाय उसी दुकान में बाल नहीं कटवाना चाहते जहां दलित जाते हैं.

एक घटना उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट ज़िले में हुई और दूसरी घटना दक्षिणी कर्नाटक के मैसुरु ज़िले की है.

बागलकोट के हुनगुंड तालुक में एक नाई ने बाल काटने के लिए आए एक दलित व्यक्ति को अपनी दुकान में घुसने नहीं दिया.

स्थानीय लोगों के साथ-साथ सामाजिक कल्याण विभाग के अधिकारियों और पुलिस ने तुरंत इस मामले में दखल दिया और सुनिश्चित किया कि ग्राहकों में भेदभाव न हो.

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सौहार्द बनाए रखने के लिए

बाल कट जाने के बाद दलित व्यक्ति ने शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया. मैसुरु की घटना इससे कुछ अलग है.

इलाक़े के प्रभावशाली नायक समुदाय के एक व्यक्ति ने नाई से कहा कि वो बाल कटवाने आने वाले दलितों को दुकान में प्रवेश न करने दे.

नायक यहां पर एक ख़ास अनुसूचित जनजाति है.

ये घटना नंजनगुड तालुक के हालेरे गांव की है, जहां के मल्लिकार्जुन शेट्टी की शिकायत पर पुलिस, सामाजिक कल्याण विभाग और तहसीलदार ने मामले की जांच की.

गांव के लोगों की सौहार्द बनाए रखने के लिए तहसीलदार ने सभी जाति और समुदायों के प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई.

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अनुसूचित जनजाति

तहसीलदार महेश कुमार ने बताया, "ये शेट्टी और चाँदनायक के बीच निजी झगड़े का मामला था जिसकी वजह से शेट्टी ने शिकायत की. यहां के नायक समुदाय के बीच चाँदनायक का विशेष स्थान है. स्थानीय लोगों ने भी शेट्टी से कहा कि इस मामले में जाति को बीच में ना लाए. बाद में शेट्टी अपनी शिकायत वापस लेने को राज़ी हो गए."

हालांकि शेट्टी अपनी बात पर क़ायम थे. उन्होंने बीबीसी को बताया, "मैं अपनी शिकायत वापस नहीं ले रहा हूँ. मैंने पूरा दिन सर्कल इंस्पेक्टरर के दफ़्तर में इंतज़ार किया है क्योंकि उन्होंने मुझे शिकायत दर्ज करने के लिए बुलाया था."

लेकिन मैसुरु के पुलिस अधीक्षक सीबी रिश्यांत ने बीबीसी को बताया, "कई सरकारी विभागों समेत कुछ एनजीओ ने भी इस मामले की जांच की है. निष्कर्ष यही निकला है कि ये दो लोगों के बीच एक निजी लड़ाई थी जिसे शेट्टी ने अधिक तूल दिया. मीडिया ने इस मामले को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया."

रिश्यांत के मुताबिक़, "अजीब बात ये है कि अगर उनकी शिकायत सच तो लोग उस नई दुकान में क्यों जा रहे हैं जो शेट्टी की दुकान के बगल में खुली है और अनुसूचित जनजाति के समुदाय से जुड़े व्यक्ति की है. दूसरे समुदायों के लोग इस नई दुकान में जा रहे हैं क्योंकि वो साफ़-सुथरी है."

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दलितों के लिए अलग दुकान क्यों?

जांच के बाद भी इस मामले पर कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका. लेकिन महेश जैसे और अन्य नेता कहते हैं कि इस तरह की ज़्यादातर घटनाएं दर्ज नहीं होतीं, हालाँकि घटनाएँ पहले से कम हुई हैं.

तो ग्राम पंचायत के दलित व्यक्ति के बाल काटने की दुकान का प्रस्ताव कितना उपयोगी होगा?

मैसुरु के दलित संघर्ष समिति के नेता चोरनल्ली शिवन्ना ने बीबीसी हिंदी को बताया, "दलितों के लिए अलग दुकान क्यों होनी चाहिए? डॉक्टर आम्बेडकर ने जो संविधान दिया है वो कहता है कि सभी बराबर हैं. संविधान किसी समुदाय के ख़िलाफ़ भेदभाव नहीं करता. हम ऐसे कदम के ख़िलाफ़ हैं."

इंडियन काउन्सिल ऑफ़ सोशल साइंस के सीनीयर रिसर्च फ़ेलो महेश टीएम का कहना है, "विकास का ये अच्छा लक्षण नहीं है. ये कदम समाज को जोड़ने की बजाय उसे बांटने का काम करेगा. इस तरह की दुकानें खोलने की बजाय सरकार को प्रभावशाली समुदायों को जागरूक करने का काम करना चाहिए."

वहीं, कर्नाटक के सामाजिक कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉक्टर एन नागम्बिकादेवी ने कहा, "फिलहाल हमारे सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है. इस तरह की कुछ ख़बरें ज़रूर थीं लेकिन सरकार के पास ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है."

https://www.bbc.com/hindi/india

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