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भीमा कोरेगाँव: तीन साल बाद भी पुलिस कुछ साबित नहीं कर पाई

 


  • दीपाली जगताप
  • बीबीसी मराठी संवाददाता
भीमा कोरेगांव मामला: 16 गिरफ़्तारियां और 10 हज़ार पन्नों की चार्जशीट

उस घटना के तीन साल बीत चुके हैं, जब भीमा कोरेगाँव एक जनवरी 2018 को हिंसक झड़पों का गवाह बना था.

इसमें अब तक 16 सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और वकीलों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जिन लोगों को गिरफ़्तार किया है, उनमें आनंद तेलतुंबडे, मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, कवि वरवर राव, स्टेन स्वामी, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस समेत कई अन्य शामिल हैं.

भीमा कोरेगाँव हिंसा का देश के सामाजिक और राजनीतिक माहौल पर गंभीर असर पड़ा है.

एक जनवरी 2018 को ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठों के बीच हुए युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के जश्न के दौरान भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़क उठी थी.

हज़ारों दलित विजय स्तंभ के नज़दीक इकट्ठा हुए थे. लेकिन तनाव के बाद वहां आगज़नी और पथराव हुआ. इसमें कई गाड़ियों को नुक़सान पहुँचा और एक शख़्स की जान चली गई.

इस घटना से एक दिन पहले 31 दिसंबर 2017 को ऐतिहासिक शनिवार वाड़ा पर एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. प्रकाश आंबेडकर, जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद, सोनी सोरी और बी.जी. कोलसे पाटिल जैसी हस्तियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया था.

पुणे पुलिस की शुरुआती जांच के बाद केंद्र सरकार ने इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया. एनआईए ने अक्टूबर के दूसरे हफ़्ते में एक विशेष अदालत के सामने 10,000 पन्नों की चार्ज़शीट पेश की थी.

पुणे पुलिस ने इस हिंसा से जुड़े दो अलग-अलग मामले दर्ज किए थे. दो जनवरी 2018 को पिंपरी पुलिस स्टेशन में हिंदुत्व नेताओं, संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर दर्ज की गई थी.

आठ जनवरी 2018 को तुषार दामगुडे नाम के शख़्स ने एल्गार परिषद में हिस्सा लेने वाले लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करवाई थी. एफ़आईआर में दावा किया गया कि एल्गार परिषण में भड़काऊ भाषण दिए गए, जिसकी वजह से अगले दिन हिंसा हुई. इस एफ़आईआर के आधार पर पुलिस ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों और कवियों को गिरफ़्तार किया.

इस मामले में पहली चार्जशीट दायर करने के बाद पुलिस ने 21 फ़रवरी 2019 को एक पूरक चार्जशीट पेश की.

17 मई 2018 को पुणे पुलिस ने यूएपीए की धाराओं 13, 16, 18, 18B, 20, 39, और 40 के तहत मामला दर्ज किया. एनआईए ने भी मामले के संबंध में 24 जनवरी 2020 को भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 505(1)(B), 117 और 34 के अलावा यूएपीए की धारा 13, 16, 18, 18B, 20 और 39 के तहत एफ़आईआर दर्ज की.

महाराष्ट्र और पूरे देश को हिला देने वाली इस घटना और कई गिरफ़्तारियों के बाद अब तक भीमा-कोरेगाँव मामले में क्या मोड़ आए हैं?

एनआईए अपनी जाँच में कहां तक पहुंची है? क्या सभी चार्जशीट दायर हो चुकी हैं और न्यायिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी है? भीमा कोरेगाँव में हुई हिंसा के लिए कौन ज़िम्मेदार है? क्या जांच एजेंसियां दोषियों को ढूंढने में सफल रही हैं? हम इस लेख में मामले में अब तक हुई प्रगति की समीक्षा करेंगे.

एनआई जांच

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को भीमा कोरेगाँव मामले की जांच 24 जनवरी 2020 को सौंपी गई थी. एएनआई ने मुंबई में एक नई एफ़आईआर दर्ज की और 11 लोगों को अभियुक्त के तौर पर नामज़द किया.

एनआईए ने भारतीय दंड संहिता की पहले से लगी धाराओं के साथ यूएपीए की कुछ धाराओं को जोड़ा. लेकिन देशद्रोह से जुड़ी धारा 124 (ए) को अभी तक नहीं जोड़ा गया था.

अक्टूबर 2020 में एनआईए ने इस मामले में एक विशेष अदालत के सामने 10 हज़ार पन्नों की चार्जशीट दायर की. मामले में गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे, हनी बाबू, रमेश गैचोर, ज्योति जगताप, स्टेन स्वामी, मिलिंद तेलतुंबडे और आठ अन्य लोगों को नामज़द किया गया.

पुणे पुलिस ने एक एफ़आईआर में समाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और स्कॉलर आनंद तेलतुंबडे का नाम 22 अगस्त 2018 को जोड़ा था.

अदालत ने 8 अप्रैल 2020 को नवलखा और तेलतुंबडे की ज़मानत याचिकाओं को ठुकरा दिया और दोनों एनआईए के सामने पेश हुए. 14 अप्रैल 2020 को उन्हें हिरासत में ले लिया गया.

एनआईए ने झारखंड के 83 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया.

वीडियो कैप्शन,

कोरेगांव में भड़की हिंसा के बाद क्या हुआ?

एनआई की 10 हज़ार पन्नों की चार्जशीट

एनआईए की ओर से दायर चार्जशीट में दावा किया गया कि समाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा कश्मीरी अलगाववादियों, पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी और माओवादी चरमपंथियों के सपंर्क में थे.

चार्जशीट के मुताबिक़, नवलखा 2010-11 के दौरान कश्मीरी अमेरिकी काउंसिल को संबोधित करने के लिए तीन बार अमेरिका गए थे और जब 2011 में एफ़बीआई ने ग़ुलाम नबी फई को गिरफ़्तार कर लिया था तो नवलखा ने फई के अमेरिकी वकील को चिट्ठी लिखी थी.

चार्जशीट में ये दावा भी किया गया कि फई ने पाकिस्तानी सेना के कुछ अधिकारियों से नवलखा का परिचय करवाया था.

चार्जशीट में दावा किया गया कि नवलखा से ज़ब्त डिज़िटल उपकरणों से उनके माओवादियों और आईएसआई से संबंध साबित हुए हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर हनी बाबू को भी मामले में गिरफ़्तार किया गया था. एनआईए ने उन पर अपने छात्रों को माओवादी विचारधारा से प्रभावित करने का आरोप लगाया.

एनआईए ने ये भी आरोप लगाया कि हनी बाबू पाईखोम्बा मेटेई के संपर्क में थे, जो मिलिट्री अफेयर केसीएम (एमसी) के सूचना और प्रचार सचिव हैं.

उन पर जेल से रिहा हुए सीपीआई (माओवादी) कैडर के लिए फंड जुटाने का भी आरोप है. एनआईए ने चार्जशीट में कहा कि हनी बाबू के अकाउंट से इस संबंध में कुछ आपत्तिजनक ई-मेल मिले हैं.

एनआईए ने ये भी दावा किया कि हनी बाबू ने विदेशी पत्रकारों और सीपीआई (माओवादी) के सदस्यों के बीच मुलाक़ात भी करवाई थी. साथ ही उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के प्रतिबंधित रिवॉल्युशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ भी काम किया है.

एनआईए की चार्जशीट में ये भी दावा है कि गोरखे, गैचोर और जगताप सीपीआई (माओवादी) के प्रशिक्षित सदस्य हैं और वो कबीर कला मंच के भी सदस्य हैं.

चार्जशीट में कहा गया है कि आनंद तेलतुंबडे भीमा कोरेगाँव शौर्य प्रेरणा अभियान के समन्वयकों में से एक थे और वो 31 दिसंबर 2017 को शनिवार वाडा में मौजूद थे.

अभियुक्तों की ज़मानत अर्ज़ी

गौतम नवलखा ने मुंबई हाई कोर्ट में ज़मानत की अपील की थी और कोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिका पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया.

लगातार ख़बरों में ये आता रहा है कि भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले के अभियुक्तों के साथ जेल में अमानवीय बरताव हुआ है. दिसंबर 2020 में मुंबई हाई कोर्ट ने तलोजा जेल प्रशासन को इस मामले में थोड़ी इंसानियत दिखाने के लिए कहा था.

जेल प्रशासन ने नवलखा को चश्मा देने से इनकार कर दिया था. नवलखा के परिवार वालों ने कोर्ट में बताया कि उनका चश्मा जेल में चोरी हो गया था और उन्हें नया चश्मा भेजा गया था, लेकिन जेल प्रशासन ने उन्हें वो देने से इनकार कर दिया. नवलखा की उम्र 68 साल है.

वरवर राव

वरिष्ठ कवि और बुद्धिजीवी वरवर राव बीते दो साल से सलाखों के पीछे हैं. उन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था. फ़िलहाल ख़राब स्वास्थ्य के चलते उनका मुंबई के नानावती अस्पताल में इलाज चल रहा है.

21 दिसंबर 2020 को मुंबई हाई कोर्ट ने उनकी ज़मानत याचिका पर सुनवाई की. उनकी पत्नी हेमलता राव ने मेडिकल ग्राउंड पर उनकी ज़मानत मांगी थी.

नंवबर में अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही वरवर राव को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. वो लीवर से संबंधित बीमारी से पीड़ित हैं. उनकी पत्नी के मुताबिक़, उन्हें जेल में जो इलाज मिल रहा था वो काफ़ी नहीं था.

उनकी हालत जब बिगड़ने लगी तो कोर्ट में एक ज़मानत याचिका डाली गई कि उन्हें इलाज के लिए रिहा किया जाए. उनकी ज़मानत याचिका पर अगली सुनवाई 7 जनवरी 2021 को होगी.

इस बीच एनआईए ने हाई कोर्ट से कहा कि वरवर राव ठीक हैं और उन्हें जेल वापस भेज देना चाहिए.

स्टेन स्वामी

एनआईए ने स्टेन स्वामी को अक्टूबर के पहले हफ़्ते में गिरफ़्तार किया था. उनपर नक्सलियों के साथ संबंध होने के आरोप हैं. वो सबसे उम्रदराज़ अभियुक्त हैं जिन पर आतंकवाद से जुड़ी धाराएं लगाई गई हैं. उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का खंडन किया है.

कुछ दिन पहले स्टेन स्वामी को स्ट्रॉ देने से इनकार कर दिया गया था, इस पर जेल प्रशासन की कड़ी निंदा हुई थी.

83 वर्षीय फादर स्टेन स्वामी पर्किन्सन्स नाम की बीमारी से ग्रसित हैं. उनके वकील ने अदालत से कहा कि वो हाथ में कप नहीं पकड़ सकते, क्योंकि उनके हाथ कांपते रहते हैं.

घटना के बाद एक सोशल मीडिया अभियान चलाया गया और लोगों ने तलोजा जेल में कई स्ट्रॉ भेजीं. स्वामी के वकली फिर कोर्ट गए. जेल प्रशासन उन्हें स्ट्रॉ देने को तैयार हो गया.

सुधा भारद्वाज

बायकुला की महिला जेल में क़ैद समाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ने उन्हें जेल में किताबें और अख़बार दिए जाने की मांग की थी.

सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और हनी बाबू की ओर से पेश वकील चांदनी चावला ने एनआईए की विशेष अदालत के सामने शिकायत की कि जेल अधिकारी उनके मुवक्किलों को किताबें और अख़बार देने से इनकार कर रहे हैं.

अदालत ने वकीलों को इस मामले में एक हलफ़नामा दायर करने के लिए कहा है और इस पर अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी.

सुधा भारद्वाज को जून 2018 में गिरफ़्तार किया गया था. उनके वकील निहाल सिंह राठौड़ ने कहा कि उनकी ज़मानत याचिका दायर की गई थी, जो 60 बार सुनवाई के लिए रखी गई, लेकिन उस पर कभी विचार नहीं हुआ.

राठौड़ का दावा है कि 40 बार तो पुलिस अभियुक्त को अदालत में लाई ही नहीं.

पुलिस ने कहा कि वो अभियुक्त को इसलिए कोर्ट नहीं ला पाए क्योंकि वक़्त पर सुरक्षा व्यवस्था नहीं हो पाई.

पुणे पुलिस की ओर से दायर चार्जशीट क्या कहती है?

पुलिस का कहना है कि उसने चार्जशीट इस मामले में गिरफ़्तार किए गए लोगों के हार्ड-डिस्क, पेन-ड्राइव, मेमोरी-कार्ड और मोबाइल-फ़ोन से मिली जानकारी के आधार पर तैयार की है.

सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत से जुड़े मामले की चार्जशीट में कहा गया है कि 'प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) ने रोना विल्सन और सुरेंद्र गडलिंग के ज़रिए सुधीर धवले से संपर्क किया, जो कबीर कला मंच के सक्रिय सदस्य हैं.

चार्जशीट के मुताबिक़, 'सीपीआई-माओवादी ने उनसे कबीर कला मंच के बैनर तले एक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए कहा. इस कार्यक्रम का मक़सद भीमा कोरेगांव युद्ध की दो सौवीं सालगिरह के दौरान दलित संगठनों को एकजुट करना और लोगों को सरकार के ख़िलाफ़ भड़काना था.'

पुलिस का दावा है कि रोना विल्सन और सुधीर धवले ने अंडरग्राउंड कॉमरेड एम यानी मिलिंद तेलतुंबडे और प्रकाश उर्फ ​​ऋतुपर्णा गोस्वामी के साथ मिलकर ये काम किया.

कहा गया कि इन लोगों ने 31 दिसंबर 2017 की एल्गार परिषद में भड़काऊ नारे लगाए, गाने गाए और नाटक आयोजित किए. पुलिस का आरोप है कि इससे लॉ एंड ऑर्डर की समस्या खड़ी हुई और अंत में हिंसा हो गई.

वरवर राव, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा की गिरफ़्तारी के बाद मामले में एक पूरक चार्जशीट दायर की गई.

पुलिस का आरोप है कि रोना विल्सन और फरार चल रहे किशनदा उर्फ ​​प्रशांत बोस की मदद से वरवर राव ने हथियार और गोला-बारूद ख़रीदने की व्यवस्था की.

पुलिस का दावा है कि वरवर राव सीपीआई-माओवादी के एक वरिष्ठ नेता हैं और राव प्रतिबंधित माओवादी पार्टी के नेताओं से संपर्क में थे. इसके अलावा, वरवर राव पर आरोप है कि हथियारों के ट्रांसफर को लेकर उनकी नेपाली माओवादी नेता वसंत के साथ डील हुई थी. राव पर दूसरे अभियुक्तों को पैसा देना का भी आरोप है.

गोंजाल्विस को पहले आर्म्स एक्ट और एम्युनिशन एक्ट के तहत गिरफ़्तार किया गया था. उनके ख़िलाफ़ मुंबई के काला चौकी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की गई थी. एक मामले में, वो सज़ा भुगत रहे हैं. पुलिस का दावा है कि गोंजाल्विस माओवादी पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं.

पुलिस का कहना है कि गौतम नवलखा प्रतिबंधित संगठन में अहम भूमिका निभाते हैं. वो लोगों को नियुक्त करने से लेकर उन्हें फंड देने और योजनाएं बनाने में शामिल रहते हैं.

पुलिस का दावा है कि वो देशद्रोही कामों में भी लिप्त हैं. पुलिस का ये भी दावा है कि नवलखा से ज़ब्त दस्तावेजों से, ये स्पष्ट है कि उन्होंने कार्यकर्ताओं को अंडरग्राउंड होकर देश के ख़िलाफ़ काम करने के लिए प्रोत्साहित किया.

पुलिस ने आरोप लगाया है कि आनंद तेलतुंबडे ने प्रतिबंधित माओवादी पार्टी की विचारधारा का प्रचार किया. उनपर प्रतिबंधित माओवादी पार्टी से फंड लेने के भी आरोप हैं.

मामला एनआई को कैसे ट्रांसफ़र हुआ?

पुलिस की शुरुआती कार्रवाई के दौरान बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार थी. लेकिन फिर 2019 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी और शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने हाथ मिलाकर राज्य में महा विकास अघाड़ी सरकार बनाई.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने 22 दिसंबर 2019 को एक प्रेस वार्ता में कहा कि पुणे पुलिस के नेतृत्व में एल्गार परिषद मामले की जांच कई सवाल खड़े करती है.

पवार ने कहा, "देशद्रोह का आरोप लगाते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करना ठीक नहीं है. एक लोकतंत्र में सभी तरह के विचारों को अभिव्यक्त करने की आज़ादी होनी चाहिए. पुणे पुलिस की कार्रवाई ग़लत है और लगता है कि ये बदला लेने के लिए की गई है. कुछ अधिकारियों ने पावर का ग़लत इस्तेमाल किया है."

कुछ दिनों बाद जनवरी में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले को पुणे पुलिस से एनआईए के पास ट्रांसफर करने का आदेश दे दिया. एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने मामले को ट्रांसफर किए जाने का विरोध किया और इस आदेश को असंवैधानिक बताया.

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दलितों के गीतों में ज़िंदा हैं अंबेडकर

न्यायिक जांच

देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली तब की महाराष्ट्र सरकार ने भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के लिए 9 फ़रवरी 2018 को एक दो सदस्यीय न्यायिक आयोग गठित किया था. कोलकाता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जे.एन. पटेल ने इस आयोग की अध्यक्षता की.

इस आयोग को चार महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी, लेकिन अब तक कई बार और समय दिए जाने के बावजूद आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश नहीं की है.

हिंदुत्व कार्यकर्ता

एक ओर, पुणे सिटी पुलिस ने आरोप लगाया कि भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा में वामपंथी कार्यकर्ता शामिल थे. वहीं पुणे ग्रामीण पुलिस ने आरोप लगाया कि एक जनवरी 2018 को हुई हिंसा के पीछे हिंदुत्ववादी नेता थे.

कहा गया कि भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में हिंदुत्व की राजनीति से जुड़े लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और उन्हें 'क्लीन-चिट' दे दी गई, जबकि दूसरी तरफ वामपंथी झुकाव रखने वाले लोगों को अनुचित रूप से गंभीर कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा.

पिंपरी पुलिस स्टेशन में हिंदुत्व नेताओं संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी. मामले के सिलसिले में पुलिस ने मिलिंद एकबोटे को दो बार हिरासत में लिया. पुणे पुलिस ने उन्हें 14 मार्च 2018 को गिरफ़्तार किया और उन पर फिरौती और अत्याचारों में लिप्त होने सहित कई गंभीर आरोप लगाए गए.

अनीता साल्वे की ओर से दायर की गई शिकायत से जुड़े मामले में पुणे की एक अदालत ने चार अप्रैल 2018 को एकबोटे को ज़मानत पर रिहा करने के आदेश दे दिए. लेकिन, शिकरापुर पुलिस ने एक अन्य शिकायत के सिलसिले में उसे हिरासत में लिया. शिकरापुर पुलिस का कहना है कि हिंसा भड़कने से पहले एकबोटे और उनके समर्थकों ने कार्यक्रम स्थल पर कुछ पर्चे बांटे थे.

पुणे के सत्र न्यायालय ने उन्हें 19 अप्रैल को ज़मानत दे दी. इस मामले के एक अन्य अभियुक्त संभाजी भिड़े को कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया, लेकिन उन पर आरोप है कि उन्होंने एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में रहकर लोगों को उकसाया था. कई संगठनों ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है और कुछ ने अदालतों में भी अपील की है. लेकिन, पुलिस ने अभी तक इस मामले में चार्ज़शीट दाखिल नहीं की है.

भीमा कोरेगाँव का महत्व

भीमा कोरेगाँव को एक लड़ाई के लिए जाना जाता है जो 1818 में पेशवा के नेतृत्व में मराठों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ी गई थी.

इस लड़ाई में महार सैनिकों ने पेशवा सेना पर जीत हासिल करने में ब्रिटिशों की मदद की थी. कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने महार रेज़िमेंट की बहादुरी के कारण ही पेशवाओं को हराया था.

महार सैनिकों की वीरता की याद में यहां एक विजय स्तंभ बनाया गया था. हर साल एक जनवरी को हज़ारों लोग, जिनमें अधिकतर दलित समुदाय के लोग होते हैं, वो यहां इकट्ठा होते हैं और उन लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने 1818 की लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी.

स्तंभ पर लड़ाई में जान गँवाने वाले सैनिकों के नाम लिखे हैं.

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