पत्रकारों के ख़िलाफ़ लगातार गंभीर धाराओं में दर्ज होते आपराधिक मामले

 


  • टीम बीबीसी हिंदी
  • नई दिल्ली
पत्रकार

पिछले 65 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के बीच पत्रकारों पर आपराधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं. ताज़ा मामला हरियाणा के स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया का है.

उन्हें शनिवार रात सिंघु बॉर्डर से पुलिस के काम में बाधा पहुंचाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया. आज दोपहर उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. उनके वकील ने बताया कि उन्हें 14 दिन की न्याययिक हिरासत में भेज दिया गया है.

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लेकिन 26 जनवरी की किसान रैली के घटनाक्रम के बाद दिल्ली और उत्तर प्रदेश पुलिस ने कई और पत्रकारों पर आपराधिक मामले दर्ज किये हैं.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने गुरुवार को इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड की वरिष्ठ सलाहकार संपादक मृणाल पांडे, क़ौमी आवाज़ के संपादक ज़फ़र आग़ा, द कारवां पत्रिका के संपादक और संस्थापक परेश नाथ, द कारवां के संपादक अनंत नाथ और इसके कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस के ख़िलाफ़ राजद्रोह क़ानून के तहत मामला दर्ज किया है.

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राजदीप सरदेसाई

शिकायतकर्ता ने कहा है कि 'इन लोगों ने जानबूझकर गुमराह करने वाले और उकसाने वाली ग़लत ख़बरें प्रसारित कीं और अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया. सुनियोजित साज़िश के तहत ग़लत जानकारी प्रसारित की गई कि आंदोलनकारी को पुलिस ने गोली मार दी.'

शनिवार रात दिल्ली पुलिस ने भी इन पत्रकारों के ख़िलाफ़ ऐसा केस दर्ज किया. यही केस मध्य प्रदेश पुलिस भी दर्ज कर चुकी है.

पत्रकारों पर एक के बाद ऐसी कार्रवाई को लेकर आज कई पत्रकार संगठनों ने साझा प्रेस मीटिंग की. इस बैठक में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, इंडियन वूमन प्रेस कॉर, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट और इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन शामिल थे.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा, "कोई स्टोरी जब घटित हो रही होती है तो चीज़ें अक्सर बदलती रहती हैं. उसी तरह जो स्थिति है, वही रिपोर्टिंग में दिखती है, जब इतनी भीड़ शामिल हो और माहौल में अनुमान, शक और अटकलें हों तो कई बार पहली और बाद की रिपोर्ट में अंतर हो सकता है. इसे मोटिवेटिड रिपोर्टिंग बताना आपराधिक है जैसा कि किया जा रहा है."

बैठक में मौजूद पत्रकार सीमा मुस्तफ़ा ने कहा कि 'इस तरह के दौर में पत्रकारिता कैसे की जा सकती है. ये आरोप सिर्फ पत्रकारों को डराने के लिए नहीं हैं बल्कि अपना काम करने वाले हर व्यक्ति को डराने के लिए हैं.'

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रविवार को उत्तर प्रदेश की रामपुर पुलिस ने न्यूज़ वेबसाइट 'द वायर' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के ख़िलाफ़ एक और एफ़आईआर दर्ज की है.

द हिंदू के मुताबिक़ गणतंत्र दिवस की किसान रैली में एक किसान की मौत को लेकर किए गए ट्वीट पर ये रिपोर्ट दर्ज की गई है. उन पर भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 153बी और 505(2) के तहत मामला दर्ज हुआ है.

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उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर लगातार मामले दर्ज

सिर्फ़ अभी नहीं, बल्कि पिछले काफ़ी वक़्त से पत्रकार इस तरह के मामले अपने ऊपर झेल रहे हैं. ख़ासकर, उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर के कई मामले सामने आए.

वहां पिछले डेढ़ साल में कम से कम 15 पत्रकारों के ख़िलाफ़ ख़बर लिखने के मामलों में मुक़दमे दर्ज कराए गए हैं.

31 अगस्त 2019 को मिर्ज़ापुर में पंकज जायसवाल के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई गई. पंकज जायसवाल ने सरकारी स्कूल में व्याप्त अनियमितता और मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी खिलाए जाने से संबंधित ख़बर छापी थी. काफ़ी हंगामा होने के बाद पंकज जायसवाल का नाम एफ़आईआर से हटा दिया गया और उन्हें इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई.

इस घटना का दिलचस्प पहलू ज़िले के कलेक्टर का वह बयान था जिसमें उन्होंने कहा था कि 'प्रिंट मीडिया का पत्रकार वीडियो कैसे बना सकता है?' इस मामले में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को हस्तक्षेप करना पड़ा था.

जैसे 16 सितंबर, 2020 को सीतापुर में रवींद्र सक्सेना ने क्वारंटीन सेंटर पर बदइंतज़ामी की ख़बर लिखी. उन पर सरकारी काम में बाधा डालने, आपदा प्रबन्धन के अलावा एससी/एसटी ऐक्ट की धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज कर दिया गया.

आज़मगढ़ के एक स्कूल में छात्रों से झाड़ू लगाने की घटना को रिपोर्ट करने वाले छह पत्रकारों के ख़िलाफ़ 10 सितंबर, 2019 को एफ़आईआर हुई. पत्रकार संतोष जायसवाल के ख़िलाफ़ सरकारी काम में बाधा डालने और रंगदारी मांगने संबंधी आरोप दर्ज किये गए.

योगी आदित्यनाथ

बिजनौर में दबंगों के डर से वाल्मीकि परिवार के पलायन करने संबंधी ख़बर के मामले में सात सितंबर, 2020 को पांच पत्रकारों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज हुई.

पिछले साल फरवरी में उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले में पदयात्रा निकाल रहे दस लोगों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया था जिसमें पत्रकार प्रदीपिका सारस्वत भी शामिल थी. तब पुलिस ने कहा कि उन लोगों के पास कुछ ऐसे दस्तावेज़ मिले थे जिनसे माहौल ख़राब होने की आशंका थी लेकिन इसे लेकर और कोई जानकारी नहीं दी थी. मजिस्ट्रेट ने ज़मानत के लिए ढाई लाख के बॉन्ड भरना तय किया.

पिछले साल जून में एक न्यूज़ वेबसाइट स्क्रॉल की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा और वेबसाइट की मुख्य संपादक के ख़िलाफ़ वाराणसी पुलिस ने एक महिला की शिकायत पर एससी-एसटी एक्ट में एफ़आईआर दर्ज की थी.

इससे कुछ समय पहले ही वरिष्ठ पत्रकार और संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के ख़िलाफ़ भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दो एफ़आईआर दर्ज की गई थीं.

उन पर आरोप थे कि उन्होंने लॉकडाउन के बावजूद अयोध्या में होने वाले एक कार्यक्रम में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शामिल होने संबंधी बात छापकर अफ़वाह फैलाई.

हालांकि 'द वायर' ने जवाब में कहा है कि इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का जाना सार्वजनिक रिकॉर्ड और जानकारी का विषय है, इसलिए अफ़वाह फैलाने जैसी बात यहां लागू ही नहीं होती.

प्रेस

पुलिस और प्रक्रिया

कई मामलों में पुलिस पर भी ये आरोप लगे कि उन्होंने गिरफ़्तारी के लिए प्रक्रिया का पालन नहीं किया.

हाथरस की घटना कवर करने आए केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया तो 24 घंटे तक उनके परिवार या क़रीबी को नहीं बताया गया कि उन्हें कहां रखा गया है.

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली ताकि उनके बारे में पता चल सके. याचिका में कहा गया था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का उल्लंघन करते हुए हिरासत में लिया गया है.

कप्पन पिछले तीन महीने से जेल में हैं.

सिंघु बॉर्डर से गिरफ़्तार किए गए पत्रकार मनदीप पुनिया के बारे में भी पुलिस ने कई घंटों तक उनके परिवार को जानकारी नहीं दी. उनकी पत्नी का कहना है कि उन्हें 16 घंटे बाद उनकी ख़बर मिल पाई.

मनदीप के साथी पत्रकारों और उनके वकील का दावा है कि उन्हें बिना किसी वकील के ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया गया.

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पत्रकारों पर राजद्रोह और यूएपीए

हाल ही में द फ्रंटियर मणिपुर के दो एडिटर्स और एक रिपोर्टर पर देशद्रोह और यूएपीए का मामला दर्ज किया गया.

पुलिस का कहना था कि लेख लिखने वाले ने मणिपुर के लोगों को सच्चा क्रांतिकारी बनने के लिए उकसाया है.

पत्रकारों के संगठन एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी उनकी रिहाई की मांग की.

संगठन का कहना था, "एडिटर्स गिल्ड का मानना है कि पुलिस मौलिक अधिकारों और आज़ादी की सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसलों को लेकर जागरूक नहीं है और इसलिए कोई मीडिया संस्थान इन क़ानूनों के अतार्किक इस्तेमाल से सुरक्षित नहीं है. ये पहली बार नहीं है जब प्रशासन ने पत्रकारों और संपादकों पर राजद्रोह और यूएपीए जैसे कड़े क़ानूनों का इस्तेमाल किया है."

मनदीप पुनिया
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मनदीप पुनिया

भारत में प्रेस फ्रीडम

पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' हर साल 180 देशों की प्रेस फ्रीडम रैंक जारी करती है.

इस इंडेक्स में भारत की रैंक लगातार गिरती जा रही है. 2017 में 136वें स्थान के बाद 2020 में भारत 180 देशों में 142वें नंबर पर है.

संस्था ने भारत को लेकर कहा था कि साल 2020 में लगातार प्रेस की आज़ादी का उल्लंघन हुआ, पत्रकारों पर पुलिस की हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं का हमला और आपराधिक गुटों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों ने बदले की कार्रवाई की.

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इस पर सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट भी किया था कि 'भारत में मीडिया को पूरी स्वतंत्रता है. आज नहीं तो कल हम भारत की प्रेस स्वतंत्रता की ग़लत छवि बनाने वाले सभी सर्वे को एक्सपोज़ करेंगे.'

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